दिनांक ३जून, रविवार को, प्रसारित हुये एपीसोड को देखने के बाद यह महसूस होता है कि आमिर खान पहले से ही खाप विरोधी मंसूबा बनाये हुये थे. महम चौबीसी के जिन प्रतिनिधियों को मंच पर बोलने के लिये आमिर ने बुलाया वे स्वयं को ठगा सा महसूस करते रहे. उनकी बात पर इसलिये ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया कि इससे पहले आमिर करुणामाय वातावरण तैयार कर चुके थे और पीड़ितों के प्रति समस्त दर्शकों की सहानुभूति सृजित करने में कामयाब हो चुकेथे.आमिर के इस प्रोग्राम की सबसे बड़ी कमी यह रही कि उन्होनें किसी मेडिकल बायोलोजिस्ट या जैव-वैज्ञानिक को नहीं बुलाया. हो सकता है उन्होंनें जान बूझकर ऐसा किया हो क्योंकि मैं उन्हें कच्चा खिलाड़ी नहीं मानता और नही यह मानने के लिये तैयार हूँ कि प्रोग्राम की रूपरेखा बनाते वक़्त वे शोध को समुचित वज़न नहीं देते. खैर, कुलमिलाकर यह केवल एक तरफ़ा प्रोग्राम था जिसका एक परिणाम यह हुआ कि जाटों की बदनामी में थोडा इज़ाफा और होग या और पूरे देश को यह मालूम हुआ कि जाट कौम अभी कितनी पिछड़ी, गंवार और अविकसित है. देश का संविधान बनाते हुये प्रत्येक कौम की परम्पराओं का ध्यान रखा गया परन्तु वैदिक परम्पराओं को मानने वाले जाटों की उपेक्षा की गयी. वर्तमान संविधान में गाँव-आधारित प्रजातंत्रतो है ही नहीं. इससे अच्छे तो अंग्रेज़ ही थे जिन्होनें जाटों को न केवल इज्ज़त दी वरन उन्हें अनेक बढ़िया और आधुनिक बातें सिखाईं. सीधे-सादे जाटों के साथ मीडिया ने बहुत छल किया है जिसका प्रतिकार करनेमें वे अक्षम हैं. जो सक्षम हैं वे बंटे हुए हैं और पूर्वाग्रह ग्रस्त मीडिया उनकी बातें छापता भी नहीं है.जिन जाटों का मीडिया में कुछ हिस्सा-पट्टी है और जो जाट बहुत पढ़ लिख गये हैं वे इन मसलों के प्रतिउदासीन है.अफ़सोस इस बात का है कि आमिर खान ने भी खापों के विरुद्ध ही माहौल बनाया.
जाट ही जाट की मदद करता है
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