आधुनिक शिक्षा केवल रोजरोंमुखी हो कर रह गयी है. मानव संसाधन विकास के नाम पर, व्यक्तित्व विकास के नाम पर, ज्ञान के नाम पर केवल रोजगार सम्बन्धी जानकारी रहती हैं. और उसमे भी व्यवस्था अस्त-व्यस्त. यह सिक्षा सभ्यता, संस्कृति सिखाने में असफल है. इसने अपने सामाजिक परिवेश को तहस-नहस कर दिया है. युवक एक ही गाँव में विवाह कर रहे हैं! असभ्य, माँसाहारी, जंगली, अफीम, चरस के आदि हो रहे हैं. विश्व की श्रेष्ठ सभ्यता दम तोड़ रही है. शिक्षा सुख के नाम पर मात्र रोजगार दिलवाने का झांसा देती है, पर वाही धक् के तीन पात. या तो रोजगार मिलता नही और मिल भी जाए तो सुख क्या केवल रोजगार में है. सुख तो व्यवहार में होता है. और व्यवहार के विषय में शिक्षा मौन है. पारिवारिक व्यवहार, सामाजिक व्यवहार, राष्ट्रीय व्यवहार आदि आदि इसकी कोई जानकारी नही. बस पेट भरो और जीवन बसर करो और अंत में सफ़र करो!!!
समाज को उन्नत करने के लिए शिक्षा सबसे बड़ा साधन है और गिराने के लिए भी. अपना समाज उन्नत हो रहा है की गिरावट जारी है. खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार, आहार-विहार, भाषा-भूषा सब प्रदूषित हो रहे हैं! कहाँ है शिक्षा?????
क्या सभ्यता संस्कृति सिखाने हारी शिक्षा व्यवस्था की समाज को आवश्कता नही है???
क्या पंचायती शिक्षा व्यवस्था समय की मांग नही है???
अपने विचार अवश्य दें जिससे समाज को दिशा दी जा सके.
राष्ट्रीय मानव संसाधन विकास अति आवश्यक है और विकास जो चहुमुखी हो. केवल रोज्गारोपर्क नही, वे जन जो उत्तम खेती मद्धम बाण, कठिन नौकरी पर विश्वास करते थे! क्या कारन है आज मात्र नौकरी को उत्तम मानने लगे हैं?