Results 1 to 2 of 2

Thread: अभद्र भाषा और जाट की पहचान

  1. #1

    अभद्र भाषा और जाट की पहचान

    अभद्र भाषा और जाट की पहचान

    जैसा के हम सब जानते हैं बहुत से पुराणी और नई पीढ़ी के लोग अभद्र भाषा को अपने जात होने की पहचान समझते हैं और इसमें गर्व अनुभव करते हैं| मेरे लिए यह दुखद अनुभव होता है|
    १. यदि अपनी बात को स्पष्ट कह देने की बात है तो मैं उस से सहमत हूँ यद्यपि ऐसा करते समय भी विनम्र भाषा का प्रयोग सराहनीय होता है|
    २. यदि जाट समाज को अपनी पहचान परिभाषित करनी है तो यह परिभाषा किन मूल्यों पे आधारित होनी चाहिए? हम क्या चाहते हैं के जाट समाज किन मूल्यों के कारण जाना जाए?
    दूसरे हमारे विषय में क्या सोचते हैं यह आवश्यक नहीं है| आवश्यक यह है के हम अपने विषय में क्या सोचते हैं और हम अपने समाज में क्या परिवर्तन लाना चाहते हैं|
    समाज कभी स्थाई नहीं रहता| वो या तो परिवर्तन और उन्नति की ओर बढ़ता है, या पतन की ओर| इतिहास के परिपेक्ष में हमारा कर्त्तव्य है के हम समाज को मूल्यों पर आधारित उन्नति की ओर ले जाने के लिए कार्य करें|

    "कर्मंयेवाधिकरास्ते = कर्मणि एव अधिकार: ते = कर्म करनें में ही अधिकार है तुम्हारा"

  2. The Following 18 Users Say Thank You to navingulia For This Useful Post:

    anilphogat (June 19th, 2012), anilsangwan (June 18th, 2012), Dagar25 (June 18th, 2012), Moar (June 18th, 2012), narvir (June 18th, 2012), ndalal (June 18th, 2012), raka (June 18th, 2012), rameshlakra (June 24th, 2012), ramitchaudhary (June 19th, 2012), ravinderjeet (June 18th, 2012), rohittewatia (June 22nd, 2012), sanjeev_balyan (June 18th, 2012), satyenderdeswal (June 18th, 2012), sunillathwal (June 18th, 2012), Sure (June 21st, 2012), swaich (June 18th, 2012), vijaykajla1 (June 18th, 2012), vikasJAT (June 18th, 2012)

  3. #2
    Great.......
    Action is the foundational key to all success.
    Narvir Sangwan

Posting Permissions

  • You may not post new threads
  • You may not post replies
  • You may not post attachments
  • You may not edit your posts
  •