अभद्र भाषा और जाट की पहचान
जैसा के हम सब जानते हैं बहुत से पुराणी और नई पीढ़ी के लोग अभद्र भाषा को अपने जात होने की पहचान समझते हैं और इसमें गर्व अनुभव करते हैं| मेरे लिए यह दुखद अनुभव होता है|
१. यदि अपनी बात को स्पष्ट कह देने की बात है तो मैं उस से सहमत हूँ यद्यपि ऐसा करते समय भी विनम्र भाषा का प्रयोग सराहनीय होता है|
२. यदि जाट समाज को अपनी पहचान परिभाषित करनी है तो यह परिभाषा किन मूल्यों पे आधारित होनी चाहिए? हम क्या चाहते हैं के जाट समाज किन मूल्यों के कारण जाना जाए?
दूसरे हमारे विषय में क्या सोचते हैं यह आवश्यक नहीं है| आवश्यक यह है के हम अपने विषय में क्या सोचते हैं और हम अपने समाज में क्या परिवर्तन लाना चाहते हैं|
समाज कभी स्थाई नहीं रहता| वो या तो परिवर्तन और उन्नति की ओर बढ़ता है, या पतन की ओर| इतिहास के परिपेक्ष में हमारा कर्त्तव्य है के हम समाज को मूल्यों पर आधारित उन्नति की ओर ले जाने के लिए कार्य करें|