चौ० साहब यह भली भांति जानते थे कि उनकी जाट कौम गांव में रहती है और शिक्षा में पिछड़ी हुई है । जब 6 नवम्बर 1920 को उन्होंने रोहतक जिले के कांग्रेस अध्यक्ष पद को इसलिए त्याग दिया क्योंकि वे कर्मचन्द गांधी के असहयोग आन्दोलन के कट्टर विरोधी थे । इसके कारण, बोलना ले सीख और दुश्मन को पहचान ले लेख में पहले ही विस्तार से लिख दिया है । चौ० साहब जानते थे कि शिक्षा और आर्थिक स्तर एक दूसरे के पूरक हैं इसलिए उन्होंने शिक्षा के साथ-साथ अपनी विचारधारा को पूरी तरह आर्थिक पर केन्द्रित कर लिया था । कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने सर फजले हुसैन से मिलकर पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी (जमींदारा पार्टी) का गठन किया जिसके द्वारा अपनी विचारधारा को अमलीजामा पहनाया जा सके । वैसे सन् 1916 से ही संयुक्त पंजाब में गैर राजनीतिक जमींदारा एसोसिएशन बनी हुई थी जो सिख जाटों ने बनाई थी जिसमें कुछ हिन्दू भी सम्मिलित हो गए थे । लेकिन जमींदारा पार्टी में सभी जाट इकट्ठे हो गए थे । उन्होंने अपनी विचारधारा को जाट जन तक पहुंचाने के लिए सन् 1916 में उर्दू साप्ताहिक जाट गजट निकालना शुरू किया जो उनकी विचारधारा का आईना था । क्योंकि दूसरे हिन्दू अखबार जाट विरोधी थे (आज भी हैं), स्वयं हिन्दू महासभा भी कांग्रेस समर्थक थी । वे जाट गजट में ‘ठगी के बाजार की सैर’, ‘बेचारा जमींदार’, तथा ‘जाट नौजवानों के लिए नुस्खे’, आदि नामों से लेखमाला निकालते रहे । उनके संदेश धीरे-धीरे गांवों के जाटों तक पहुंचने में लगे थे । हालांकि गांव के अनपढ़ जाटों तक पहुंचने के लिए बड़ी परेशानी थी क्योंकि हिन्दू अखबार चौ० साहब के विरोध में धड़ाधड़ लिख रहे थे और गांवों में रहने वाली गांधीवादी जातियां इनका धुआंधार प्रचार करती थी । यहां एक बनाम अनेक की लड़ाई थी । इसी कारण चौ० साहब को पहला चुनाव सन् बादली से 22 मतों से हारना पड़ा था लेकिन दूसरी बार सन् 1923 में कई हजार मतों से जीते । हिन्दू पंजाबी अखबार चौ० साहब द्वारा कांग्रेस छोड़ने के कारण अंग्रेजों के दास, पिट्ठू, टोडी, देशद्रोही, गद्दार व विश्वासघाती आदि पदवियों से सुशोभित करते थे । चौ० साहब इन सबका उत्तर यह कहकर देते थे - ‘जाट भाइयों जब तक ये अखबार मेरी बुराई करते हैं तब तक समझते रहना कि मैं तुम्हारे हित में लगा हूं । जिस दिन ये मेरी प्रशंसा करने लगे तो समझना कि मैंने तुम्हारा साथ छोड़ दिया है और मैं बिक चुका हूँ ।’ लेकिन इस दुष्प्रचार से हमारे जाट भाई भी अछूते नहीं रह पाए और इसी कारण आज भी हमें कुछ ऐसे जाट मिल जाएंगे जो चौ० साहब के लिए ऐसे ही शब्दों का प्रयोग करते हैं । ये जाट भाई अज्ञानी और मूर्ख हैं या स्वयं किसी के पिट्ठू हैं । रोहतक से एक चौधरी रामसिंह जाखड़ जो स्वयं ‘हरियाणा तिलक’ पत्र के संपादक नेकीराम शर्मा के पिट्ठू थे, ने तो चौ० साहब के विरोध में एक पूरी पुस्तक ही लिख डाली । यह पुस्तक आज भी जिला पुस्तकालयों में उपलब्ध है क्योंकि इसका वितरण 1991 में सरकारी पैसे से कराया गया था । जिसके विरोध में रोहतक के जाटों ने फैसला लिया कि जिसे भी रामसिंह जाखड़ मिले उसके मुंह पर थूका जाए । लेकिन अभागा रामसिंह दो साल के भीतर ही चल बसा लेकिन नेकीराम शर्मा के किसी पिट्ठू ने उसकी मौत पर एक आंसू तक नहीं बहाया । इसलिए यह सच्चाई है कि जिसे अपनी कौम धिक्कार देगी उसे कोई दूसरा कभी गले नहीं लगायेगा ।
सन् 1923 में रोहतक जिले की एक सभा में चौ० साहब ने नारा दिया - ‘राज करेगा जाट’ । इसी तर्ज पर बाद में चौ० साहब ने पेशावर की एक सभा में साफ-साफ कह दिया था - ‘पंजाब में अरोड़ा खत्री रहेंगे या जाट और गक्खड़ ।’ यह सुनकर इन लोगों के दिल की धड़कन तेज हो जाती थी । लेकिन ये अपने अखबारों में चौ० साहब के विरोध में कभी लिखना नहीं छोड़ते थे । उन्होंने कभी भी चौ० साहब का पूरा नाम नहीं लिखा । कहीं छोटू लिखते थे तो कभी छोटूखान । कई बार उन्होंने चौ० साहब को हिटलर लिखा । इसके जवाब में चौ० साहब कहते ‘जहां यहूदी रहेंगे वहां हिटलर तो अवश्य होगा ।’ ये लोग चौ० छोटूराम को पश्चिमी पंजाब में जाने पर काले झण्डे दिखाया करते थे और ये झण्डे इन्होंने पक्के तौर पर बनवाकर अपने घरों में रख लिये थे । उन्हीं में से आज भी कुछ लोग हरयाणा के बाजारों में मेहंदी से चितकबरा सिर किए अपना बुढ़ापा काट रहे हैं । इन्होंने अवश्य अपनी उस विरासत को अपनी संतानों को दे दिया है ।
चौ० साहब ने जाटों की गरीबी के कारण ढूंढ लिए थे । पूरे संयुक्त पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह का राज्य जाने के बाद 55 हजार सूदखोर पैदा हो गए थे जिनकी 100 साल से ब्याज की कमाई बढ़कर पंजाब राज्य के सालाना बजट से तीन गुणा अधिक थी । इनके बाट बट्टे और ताखड़ी नकली और काणी होती थी । (पूर्ण जानकारी के लिए मेरी पुस्तक असली लुटेरे कौन? के अध्याय ‘जाटों ने चौ० छोटूराम की शिक्षाओं को भुलाया’ तथा ‘जाटों की टूटती पीठ’ को अवश्य पढ़ें ।)