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Thread: चौ० छोटूराम का हत्यारा कौन?

  1. #1

    चौ० छोटूराम का हत्यारा कौन?

    चौ० छोटूराम का हत्यारा कौन? (1)
    -पूर्व कमान्डेंट हवा सिंह सांगवान

    यह प्राकृतिक सिद्धान्त है कि जो पैदा होगा वह अवश्य मृत्यु को प्राप्त होगा । कहते हैं कि चौ० साहब को देहान्त से कुछ दिन पहले से ही उनके पेट में अचानक दर्द रहने लगा था । कुछ ही दिन में मलेरिया और पेचिस ने भी घेर लिया । उनके निजी डॉक्टर नंदलाल दवा दारू करते रहे लेकिन 9 जनवरी 1945 को प्रातः 10 बजे उनके हृदय में पीड़ा हुई और दम घुटने लगा । उस समय संयुक्त पंजाब के प्रधानमन्त्री (उस समय राज्य के मुख्यमंत्री को प्रधानमन्त्री कहा जाता था) सर खिजय हयात खां तिवाणा को बुलाया गया । चौ० साहब हयात खां से गले से लिपट गए और धीरे से कहा - हम तो चलते हैं भगवान सबकी मदद करे । ये उनके अंतिम शब्द थे। यह कहकर चारपाई पर फिर से लेट गये और सदा के लिए भगवान के पास चले गए । यह देखकर हयात साहब और परिवार के उपस्थित अन्य लोग सभी रोने लगे । यहां इन्सानियत रो रही थी। हिन्दू मुस्लिम जाट भाईचारा रो रहा था, जाट कौम के अरमान रो रहे थे और सबसे बढ़कर जाट कौम का भविष्य रो रहा था । यह देहान्त चौ० साहब के स्थूल शरीर का था जिसकी हमें उस समय परम आवश्यकता थी । इससे एक दिन ही पहले 8 जनवरी 1945 को चौ० साहब ने पंजाब के राजस्व मन्त्री होते हुए भाखड़ा बांध का पूर्ण सर्वे करवाकर और इसका निरीक्षण करने के बाद इस योजना पर अपने हस्ताक्षर किए थे जो उनके अन्तिम हस्ताक्षर साबित हुए ।

    इसके अतिरिक्त पंजाब से 80 वर्षीय सरदार राजेन्द्र सिंह निज्जर जो वर्तमान में इंग्लैण्ड में रहते हैं, ने चौ० साहब की मृत्यु का कारण बतलाते हुए मनोज दूहन को ई-मेल किया जो इस प्रकार है:-

    Manoj, My father did say that, that Lalas used to welcome Chhotu Ram Ohlayan with BLACK JHANDIS. He did say that he was given poison in the food and he had stomach problems overnight. But our Haryanavi Jats should know better. There is no doubt that he was poisoned. Now, most people are frightened of the Khatris as they are Rulers of the Kalyug. So, better do research with close relatives. All people of his age have died, both in India & Pakistan. Pakistan Jatts were more faithful than our Panjabi Jatts. There is Jatt Sabha in Pakistan. If you go on Apna Panjab website,www.apna.org.com

    , you might find more information too. I will keep you informed .
    - Uncle-Ch.Rajender Singh Nijjar Jatt. England

    अर्थात् - मनोज, मेरे पिता जी ने बतलाया था कि चौ० छोटूराम ओहलान को लाला लोग (हिन्दू पंजाबी अरोड़ा व खत्री) काली झण्डियां दिखाया करते थे । उन्होंने बतलाया था कि उनको खाने में जहर दिया गया था, जिसकी वजह से रात से ही उनके पेट में तकलीफ पैदा हो गई थी । लेकिन हमारे हरयाणवी जाटों को इस बारे में अधिक ज्ञात होना चाहिए । इसमें कोई भी संदेह नहीं है कि उनको जहर दिया गया था । आजकल अधिकतर लोग खत्री समुदाय से डरे हुए हैं, क्योंकि यह समुदाय इस कलयुग का शासक है । इसलिए उनके नजदीकी सम्बन्धियों से इस बारे में और अधिक शोध करना बेहतर होगा । उस समय के सभी बुजुर्ग भारत व पाकिस्तान में मर चुके हैं । पाकिस्तान के जाट पंजाबी जाटों से अधिक वफादार थे । पाकिस्तान में जाट सभा है । यदि आप ‘अपना पंजाब’ बैवसाईटwww.apna.org.com

    में जाएंगे तो अधिक जानकारियां मिलेंगी - चाचा - राजेन्द्रसिंह निज्जर जट्ट, इंग्लैंड ।

    लेकिन मेरा आज का विषय उनके स्थूल शरीर त्यागने की जांच का नहीं बल्कि उनकी सूक्ष्म विचारधारा को जानने तथा उस विचारधारा के हत्यारों के बारे में जानने का हैं क्योंकि उनकी विचारधारा की हत्या उनके स्थूल शरीर की मौत से जाट कौम के लिए कहीं अधिक घातक सिद्ध हुई । क्योंकि कोई भी क्रान्ति, व्यवस्था में बदलाव व सुधार किसी भी विचारधारा के तहत होता है । चौ० साहब की विचारधारा धीरे-धीरे लेकिन बड़े सशक्त तरीके से संयुक्त पंजाब में ही नहीं पूरे उत्तर भारत (जाट बाहुल्य क्षेत्र) में अपना रंग ला रही थी । इसकी शुरुआत इन्होंने सन् 1911 में ही आगरा में अपनी वकालत की पढ़ाई पूर्ण करते ही शुरू कर दी थी और उन्होंने आगरा में जाटों के बच्चों के लिए होस्टल बनवाया । उसके बाद 1911 में जार्ज पंचम के आगमन पर सोनीपत तहसील को दिल्ली जिले से निकालकर रोहतक के साथ मिलाने पर वे सन् 1912 में रोहतक आकर वकालत करने लगे । उन्होंने सन् 1913 में रोहतक जाट हाई स्कूल की स्थापना करवाई । कहने का अर्थ यह है कि उनकी विचारधारा का प्रथम बिन्दु शिक्षा था ।
    contd.....
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


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    dahiyaBadshah (July 5th, 2012), op1955 (July 3rd, 2012)

  3. #2
    चौ० साहब यह भली भांति जानते थे कि उनकी जाट कौम गांव में रहती है और शिक्षा में पिछड़ी हुई है । जब 6 नवम्बर 1920 को उन्होंने रोहतक जिले के कांग्रेस अध्यक्ष पद को इसलिए त्याग दिया क्योंकि वे कर्मचन्द गांधी के असहयोग आन्दोलन के कट्टर विरोधी थे । इसके कारण, बोलना ले सीख और दुश्मन को पहचान ले लेख में पहले ही विस्तार से लिख दिया है । चौ० साहब जानते थे कि शिक्षा और आर्थिक स्तर एक दूसरे के पूरक हैं इसलिए उन्होंने शिक्षा के साथ-साथ अपनी विचारधारा को पूरी तरह आर्थिक पर केन्द्रित कर लिया था । कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने सर फजले हुसैन से मिलकर पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी (जमींदारा पार्टी) का गठन किया जिसके द्वारा अपनी विचारधारा को अमलीजामा पहनाया जा सके । वैसे सन् 1916 से ही संयुक्त पंजाब में गैर राजनीतिक जमींदारा एसोसिएशन बनी हुई थी जो सिख जाटों ने बनाई थी जिसमें कुछ हिन्दू भी सम्मिलित हो गए थे । लेकिन जमींदारा पार्टी में सभी जाट इकट्ठे हो गए थे । उन्होंने अपनी विचारधारा को जाट जन तक पहुंचाने के लिए सन् 1916 में उर्दू साप्ताहिक जाट गजट निकालना शुरू किया जो उनकी विचारधारा का आईना था । क्योंकि दूसरे हिन्दू अखबार जाट विरोधी थे (आज भी हैं), स्वयं हिन्दू महासभा भी कांग्रेस समर्थक थी । वे जाट गजट में ‘ठगी के बाजार की सैर’, ‘बेचारा जमींदार’, तथा ‘जाट नौजवानों के लिए नुस्खे’, आदि नामों से लेखमाला निकालते रहे । उनके संदेश धीरे-धीरे गांवों के जाटों तक पहुंचने में लगे थे । हालांकि गांव के अनपढ़ जाटों तक पहुंचने के लिए बड़ी परेशानी थी क्योंकि हिन्दू अखबार चौ० साहब के विरोध में धड़ाधड़ लिख रहे थे और गांवों में रहने वाली गांधीवादी जातियां इनका धुआंधार प्रचार करती थी । यहां एक बनाम अनेक की लड़ाई थी । इसी कारण चौ० साहब को पहला चुनाव सन् बादली से 22 मतों से हारना पड़ा था लेकिन दूसरी बार सन् 1923 में कई हजार मतों से जीते । हिन्दू पंजाबी अखबार चौ० साहब द्वारा कांग्रेस छोड़ने के कारण अंग्रेजों के दास, पिट्ठू, टोडी, देशद्रोही, गद्दार व विश्वासघाती आदि पदवियों से सुशोभित करते थे । चौ० साहब इन सबका उत्तर यह कहकर देते थे - ‘जाट भाइयों जब तक ये अखबार मेरी बुराई करते हैं तब तक समझते रहना कि मैं तुम्हारे हित में लगा हूं । जिस दिन ये मेरी प्रशंसा करने लगे तो समझना कि मैंने तुम्हारा साथ छोड़ दिया है और मैं बिक चुका हूँ ।’ लेकिन इस दुष्प्रचार से हमारे जाट भाई भी अछूते नहीं रह पाए और इसी कारण आज भी हमें कुछ ऐसे जाट मिल जाएंगे जो चौ० साहब के लिए ऐसे ही शब्दों का प्रयोग करते हैं । ये जाट भाई अज्ञानी और मूर्ख हैं या स्वयं किसी के पिट्ठू हैं । रोहतक से एक चौधरी रामसिंह जाखड़ जो स्वयं ‘हरियाणा तिलक’ पत्र के संपादक नेकीराम शर्मा के पिट्ठू थे, ने तो चौ० साहब के विरोध में एक पूरी पुस्तक ही लिख डाली । यह पुस्तक आज भी जिला पुस्तकालयों में उपलब्ध है क्योंकि इसका वितरण 1991 में सरकारी पैसे से कराया गया था । जिसके विरोध में रोहतक के जाटों ने फैसला लिया कि जिसे भी रामसिंह जाखड़ मिले उसके मुंह पर थूका जाए । लेकिन अभागा रामसिंह दो साल के भीतर ही चल बसा लेकिन नेकीराम शर्मा के किसी पिट्ठू ने उसकी मौत पर एक आंसू तक नहीं बहाया । इसलिए यह सच्चाई है कि जिसे अपनी कौम धिक्कार देगी उसे कोई दूसरा कभी गले नहीं लगायेगा ।

    सन् 1923 में रोहतक जिले की एक सभा में चौ० साहब ने नारा दिया - ‘राज करेगा जाट’ । इसी तर्ज पर बाद में चौ० साहब ने पेशावर की एक सभा में साफ-साफ कह दिया था - ‘पंजाब में अरोड़ा खत्री रहेंगे या जाट और गक्खड़ ।’ यह सुनकर इन लोगों के दिल की धड़कन तेज हो जाती थी । लेकिन ये अपने अखबारों में चौ० साहब के विरोध में कभी लिखना नहीं छोड़ते थे । उन्होंने कभी भी चौ० साहब का पूरा नाम नहीं लिखा । कहीं छोटू लिखते थे तो कभी छोटूखान । कई बार उन्होंने चौ० साहब को हिटलर लिखा । इसके जवाब में चौ० साहब कहते ‘जहां यहूदी रहेंगे वहां हिटलर तो अवश्य होगा ।’ ये लोग चौ० छोटूराम को पश्चिमी पंजाब में जाने पर काले झण्डे दिखाया करते थे और ये झण्डे इन्होंने पक्के तौर पर बनवाकर अपने घरों में रख लिये थे । उन्हीं में से आज भी कुछ लोग हरयाणा के बाजारों में मेहंदी से चितकबरा सिर किए अपना बुढ़ापा काट रहे हैं । इन्होंने अवश्य अपनी उस विरासत को अपनी संतानों को दे दिया है ।

    चौ० साहब ने जाटों की गरीबी के कारण ढूंढ लिए थे । पूरे संयुक्त पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह का राज्य जाने के बाद 55 हजार सूदखोर पैदा हो गए थे जिनकी 100 साल से ब्याज की कमाई बढ़कर पंजाब राज्य के सालाना बजट से तीन गुणा अधिक थी । इनके बाट बट्टे और ताखड़ी नकली और काणी होती थी । (पूर्ण जानकारी के लिए मेरी पुस्तक असली लुटेरे कौन? के अध्याय ‘जाटों ने चौ० छोटूराम की शिक्षाओं को भुलाया’ तथा ‘जाटों की टूटती पीठ’ को अवश्य पढ़ें ।)
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    dahiyaBadshah (July 5th, 2012), DrRajpalSingh (July 3rd, 2012), op1955 (July 3rd, 2012)

  5. #3
    जब सन् 1938 में ‘पंजाब कृषि उत्पादन मार्केट एक्ट’ पर पंजाब सदन में बहस हुई तो इन हिन्दू पंजाबियों के नेता डॉ० गाकुलचन्द नारंग ने कहा ‘इस बिल के पास होने से रोहतक का दो धेले का जाट लखपति बनिये के बराबर मार्केट कमेटी में बैठेगा ।’ इसके उत्तर में चौ० साहब ने गरजकर कहा, ‘नारंग जी आप तो एक दिन एक बैठक में कह रहे थे कि जाट तो राष्ट्रवादी कौम है, उसके अपने अधिकार हैं फिर आज उनके अधिकार कहां चले गए?’ चौ० साहब बहुत हाजिर जवाब थे और अपनी बात को दृढ़ता और आत्मविश्वास से कहते थे । चौ० साहब इस बात को बार-बार दोहराते थे कि जाट कौम बोलना सीखे और दुश्मन को पहचाने । उनके निशाने पर दो दुश्मन थे - मंडी और पाखण्डी । लेकिन अफसोस है कि चौ० साहब ने इन दुश्मनों के विरुद्ध जो कानून बनवाए उनको हम न तो गति दे पाए और न ही याद रख पाए । उन्होंने अपने समय में इस लुटेरे वर्ग को नंगा कर दिया था और एक कोने में लगा दिया था । वे यह भी भली-भांति जानते थे कि अंग्रेजों से कैसे और कब काम लेना है । उन्होंने अपनी कौम के फायदे का कोई एक अवसर भी नहीं गंवाया । एक तरफ तो वे अपने जाट गजट में अंग्रेजों की शासन प्रणाली की बखिया उधड़ते थे तो दूसरी तरफ इसी ‘जाट गजट’ के लिए अंग्रेजों से ग्रांट भी लेते थे । चौ० साहब बहुत ही बुद्धिमान और पक्के इरादे वाले जाट थे जिन्होंने बड़ी सफाई से अंग्रेजों को दूहा और कांग्रेस को धोया । पंजाब में तो कांग्रेस का इन्होंने लगभग सफाया ही कर दिया था । इसी कारण नेहरू, गांधी पंजाब में उनके देहान्त तक कांग्रेसी सरकार के लिए मुंह ताकते रहे । उधर अंग्रेज जान गए थे कि चौ० साहब के बगैर पंजाब में पत्ता भी हिलने वाला नहीं । इसीलिए दूसरे विश्वयुद्ध में जब अंग्रेज युद्ध के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे थे तो चौ० साहब ने समय की नजाकत को भांपते हुए गेहूं का मूल्य 6 रुपये प्रति मन से बढ़ाकर 10 रुपये प्रति मन की मांग कर डाली । इस पर पंजाब के गर्वनर ने सभी राज्यों के कृषिमन्त्री या प्रतिनिधियों को अपने दफ्तर बुलाया जिसमें दक्षिण राज्य के श्री राजगोपालाचार्य ने गेहूं का भाव न बढ़ाने के लिए समर्थन किया तो चौ० साहब ने तड़ाक से कहा कि ये दक्षिण वाले हैं, ये चावल बोते हैं, गेहूं नहीं । इस पर भी जब गर्वनर नहीं माना तो चौ० साहब ने उनकी टेबल पर मुक्का मारकर कहा यदि गेहूं का भाव 10 रुपये प्रति मन नहीं किया गया तो वे पंजाब के खेतों में खड़े गेहूं को आग लगवा देंगे और उठकर चले गए । क्या कोई पिट्ठू अपने शासक पर इस प्रकार का व्यवहार करने की हिम्मत रखता है ? क्या आज भी इस आजाद देश में मुख्यमन्त्री या मंत्री या किसान नेता अपनी मांग को इस प्रकार मनवा सकता है ? लेकिन अंग्रेजों ने उनकी मांग को मानना पड़ा । चौ० साहब ने अपने राजनीतिक जीवन में अनेक किसान हितैषी कानून बनवाए जिनको इस लेख में लिखना सम्भव नहीं है । याद रहे चौ० छोटूराम भारतवर्ष के प्रथम कृषि दार्शनिक थे ।

    कुछ लोग कहते थे कि चौ० छोटूराम आजादी के पक्षधर नहीं थे । यह प्रचार उनके विरोधियों ने शुरू किया था क्योंकि उन्होंने सन् 1929 में कहा था - हम गौरे बनियों का राज बदलकर काले बनियों का राज नहीं चाहते अर्थात् उनके विचार में बनिया तो बनिया ही है, चाहे काले हो या गौरे । उन्होंने तो सिर्फ हमें लूटना है । जब लुटना ही है तो कोई भी लूटे, इसमें क्या फर्क है ? ऐसी ही टिप्पणी एक बार शहीदे-आजम भगतसिंह ने भी की थी । चौ० साहब अच्छी तरह जानते थे कि उस समय यदि आजादी मिली तो वह सत्ता हस्तांतरण होगा और यह सत्ता बनियों को मिलेगी और यह शत-प्रतिशत सच हुआ क्योंकि इस देश के प्रधानमन्त्री का चयन करने वाला असल में कर्मचन्द गांधी बनिया जाति से था । चौ० साहब चाहते थे कि किसान और मजदूर का राज हो जिसमें जाट स्वयं ही सर्वोपरि होगा । इसलिए वे चाहते थे कि जाट कौम पहले शिक्षित हो ताकि देश आजाद होने पर सत्ता पर कायम रह कर अच्छी तरह से शासन करे । इसलिए उन्होंने आजादी के लिए कभी भी हड़बड़ी और जल्दबाजी नहीं दिखलाई । विरोधी यह भी कहते हैं कि चौ० साहब कभी जेल नहीं गए । मोहम्मद जिन्ना तो कभी एक दिन के लिए भी जेल नहीं गए फिर वे पाकिस्तान के राष्ट्रपति कैसे बने ? यह जानने का विषय है कि नेहरू और गांधी को जेलों में जो सुविधाएं मिली वे सुविधाएं आज तक हमारे घरों में भी हमें नहीं मिलती और इसका उदाहरण पाकिस्तानी हत्यारा कसाब से भी लिया जा सकता है जिसको उसकी सुरक्षा में लगे सिपाहियों से कहीं बेहतर खाना मिलता रहा । चौ० साहब भली भांति जानते थे कि उसी समय सत्ता मिलने पर कौन लोग सत्ता पर काबिज होंगे । इसलिए उन्होंने एक दिन कहा था, ‘बड़ी विचित्र बात है कि आज भी भारत पर 12 प्रतिशत उच्च जाति के लोगों का राज 88 प्रतिशत भारतीय जनता पर है ।’

    हम सभी जानते हैं कि किस प्रकार नेहरू और गांधी ने जिन्ना की पाकिस्तान की मांग के सामने घुटने टेक दिए थे जबकि उसी जिन्ना को जो पंजाब में पाकिस्तान की तलाश करने गया था को चौ० साहब ने रातोंरात पंजाब से खदेड़ दिया था और 9 मई 1944 को लायलपुर की एक विशाल जनसभा में चौ० साहब ने जिन्ना को चैलेंज किया था कि वह उसके इक्यासी मुस्लिम विधायकों में से किसी एक को भी तोड़ कर दिखाए, पाकिस्तान बनाने की तो बात ही छोड़ो । इसी दम पर चौ० साहब ने 14 अगस्त 1944 को गांधी को एक पत्र विस्तार से लिखा था कि उन्हें जिन्ना के बहकावे में नहीं आना है । लेकिन अफसोस, कर्मचन्द गांधी उस पत्र का उत्तर ही नहीं दे पाए और इसका इन्तजार करते-करते चौ० साहब चले गए ।




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    op1955 (July 3rd, 2012)

  7. #4
    चौ० छोटूराम का हत्यारा कौन? (2)
    -पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान

    9 जनवरी सन् 1945 का दिन आधुनिक जाट कौम का सबसे मनहूस दिन था । चौ० छोटूराम ने अपने 25 साल के अथक प्रयास से जिस विचारधारा को स्थापित किया उसकी परीक्षा की घड़ी थी । नेहरू-गांधी-जिन्ना का सपना साकार हो रहा था । चौ० छोटूराम की कर्मभूमि पंजाब में एक साम्प्रदायिक देश के जन्म की तैयारी होने लगी । चौ० साहब की विचारधारा का सबसे बड़ा स्तम्भ जाट भाईचारा टूटने जा रहा था । सर हैयात खां तिवाना बेबस और लाचार थे क्योंकि उनके जाट धर्म-चाचा चौ० छोटूराम इस दुनिया से जा चुके थे अर्थात् उनके दायां हाथ कट चुका था और इसी दर्द के कारण उसने पाकिस्तान छोड़ दिया और इंग्लैण्ड जा बसे और वहीं एकान्त में मरे लेकिन उनके इस बिछोह को कोई नहीं समझ सका । चौ० साहब का अंदेशा सच साबित हुआ जब देश की सत्ता काले अंग्रेजों के हाथ आई । पंजाब में जमींदारा पार्टी दफन हो चुकी थी । पाकिस्तान एक नया देश बन चुका था । भारत के सभी 15 राज्यों के मुख्यमन्त्री नेहरू ने अपनी जाति से बनाए । जो कुछ जाट नेता चौ० साहब की विचारधारा के थे उन्हें भी हताश होकर कांग्रेस का दामन थामना पड़ा ।

    जब 15 अगस्त 1947 को नेहरू को सत्ता मिली तो उन्होंने अंग्रेजों से कई गुप्त शर्मनाक समझौते किये क्योंकि यह सत्ता कुछ शर्तों पर आधारित थी । जिसमें प्रथम समझौता था कि यदि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस भारत आते हैं तो उन्हें अंग्रेजों के सुपुर्द करना होगा । जिन क्रान्तिकारियों को अंग्रेजों ने अपना दुश्मन मानना पड़ा उन्हें नेहरू व उसकी सरकार भी देश का दुश्मन मानती रही । इसी कारण 1857 के क्रान्तिकारियों या फिर शहीदे-आजम भगतसिंह व नेता जी सुभाष या आई.एन.ए. तक की प्रशंसा करना नेहरू काल तक एक गुनाह माना जाता रहा और इसी प्रकार इनके इतिहास को भुलाने का पूरा प्रयास किया गया जिस कारण आज 1857 के क्रान्तिकारियों के नाम ढूंढने असम्भव हो गए हैं जिन्होंने इस देश के लिए खून बहाया था । तो फिर चौ० छोटूराम की विचारधारा व उनके सत्कर्मों को संजोकर रखने की उम्मीद कैसे कर सकते थे? इसलिए उनको और उनकी विचारधारा को भुला दिया गया क्योंकि जो जाट कांग्रेसी थे उन्हें तो नेहरू की नीति के अनुसार चलना ही था चाहे वह सरदार प्रतापसिंह केरों या चौ० चरणसिंह व देवीलाल आदि । सब कुछ नेहरूमय हो चुका था । उस समय चौ० छोटूराम की विचारधारा की बात करना नेहरू या कांग्रेस की बुराई करने के समान था । उस समय ये हालात बना दिए गए थे कि अगर नेहरू मर गया तो इस देश का क्या होगा अर्थात् यह कहा जाता था कि “Who after Nehru”। इसलिए बेचारे जाट नेताओं ने भी अपनी राजनीति कायम रखने के लिए अपने जमीर को गिरवी रख दिया और यह धारणा इन्दिरा के शासनकाल तक कायम रही । जब कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष देवकान्त बरुआ ने कहा था, “Indira is India” । जाट कौम का चौ० साहब से दिली लगाव होने के कारण जाट राजनीतिक नेता चौ० साहब की पुण्यतिथि या निर्वाण दिवस पर दिखावे के लिए कभी-कभी दर्शन दे जाते हैं लेकिन उनकी विचारधारा पर कभी कोई वार्ता, गोष्ठी या भाषण नहीं हुआ । धीरे-धीरे पुराने जाट जाते रहे उतनी ही चौ० साहब की विचारधारा हमसे दूर होती चली गई । जब हमारे जाट नेताओं की एक पीढ़ी इस दुनिया से चली गई तो उनके वारिशों ने केवल अपने बाप-दादों की यादगारों को जीवित रखने की जिम्मेदारी उठाई क्योंकि आधुनिक युग में जब राजनीति पूर्णतया नोट और वोट की हो गई तो उन्होंने अपनी खानदानी राजनीतिक परम्परा को जीवित रखने के लिए यही रास्ता अपनाया और चौ० साहब की विचारधारा को असामायिक बना दिया गया और इन हमारे जाट नेताओं ने केवल एक ही बात कहकर अपना पिंड छुड़ाना शुरू कर दिया कि चौ० छोटूराम का जमाना तो अलग था । क्या अभी जाट कौम नहीं रही या उनकी समस्याएं नहीं रही या उनकी वोट कम हो गई थी? ऐसा माहौल बनता चला गया जिससे जाट कौम का जमीर भी मरता चला गया । जिस कौम को चौ० साहब ने अपनी निर्भीकता और पूर्ण आत्मविश्वास भरी एक विचारधारा से खड़ा किया और कौम में स्वाभिमान और आत्मविश्वास जगाया उसी जाट कौम के लोग अपनी छोटे-छोटे निजी हितों के लिए अपने अपने नेता चुनने लग गए जहां कोई अपना निजी फायदा दिखाई दिया उसी के नारे लगाने लगे । किसी भी पार्टी के छोटे-छोटे पदों के लिए जाट हाथ पांव मारने लगे और अपने नेताओं के इतने अंधभक्त हो गए कि वे उनके हित के लिए अपना निजी हित साधते हुए कोई भी अनुचित कार्य करना या मारधाड़ तक भी करने के लिए तत्पर रहने लगे । इनका न किसी विचारधारा से मतलब रहा न ही जाट कौम से ।
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    op1955 (July 3rd, 2012)

  9. #5
    वहीं दूसरी तरफ कुकुरमुत्तों की तरह अनेक जाट संगठन खड़े हो गए । जब कोई भी कौमी चौधरी नहीं रहा तो अनेक स्वयंभू चौ० बनकर अपने-अपने संगठनों को पंजीकृत करवाकर और उनके प्रधान बनकर फख्र महसूस करने लगे । उनके संगठन का उद्देश्य क्या है,अभी तक संगठन ने क्या हासिल किया, इससे उनका कोई लेना-देना नहीं । केवल अपना नाम और फोटो छपवाना सफलता की कुंजी बन गया । यदि किसी अखबार में नाम और फोटो छप जाए तो फिर क्या कहने? और यदि सफेद कुर्ता-पायजामा पहन लिया तो नेतागिरी की पक्की मोहर समझ ली गई । कहने का तात्पर्य यह है कि अनेक जाट नेता होने पर भी सम्पूर्ण जाट कौम नेता विहीन हो गई और पूरी जाट कौम को एक सिरकटे भूत के समान बना दिया गया । चौ० साहब की विचारधारा को खत्म करने के लिए बड़े जाट से लेकर छोटे तक सभी ने अपनी आहूति डाली इसलिए आज हम सभी जाट गुनाहगार हैं और चौ० साहब की विचारधारा के हत्यारे हैं । इसलिए अभी समय आ गया है कि हम सब जाट मिलकर अपने इस पाप का प्रायश्चित करें ।

    मेरी यह बात कितने जाट भाइयों के गले उतरेगी, मैं नहीं कह सकता । लेकिन मैं पूर्ण आत्मविश्वास से लिख रहा हूं कि यदि हमें हमारी कौम को जीवित रखना है तो हमें चौ० साहब व उनकी विचारधारा को पुनर्जीवित करना होगा । इसके अतिरिक्त और कोई चारा नहीं । यही एक रास्ता है जिससे बिखरी पड़ी कौम को पुनः संगठित किया जा सकता है और हमारे लम्बित अधिकारों को प्राप्त किया जा सकता है । इसके लिए हमें दूसरों से भी सीखना होगा जो लोग दूसरों को भी जीवित रखकर और उन्हें पूजकर अपना हित साधते रहे हैं । उदाहरण के लिए राम, कृष्ण, शिव, हनुमान और गणेश में कोई भी ब्राह्मण नहीं था और सभी के सभी क्षत्रिय वर्ण से थे । लेकिन ब्राह्मण समाज उनको सदियों से पूजकर अपनी संतानों के पेट भरते आए और बड़े गौरव से ऐशो-आराम की जिंदगी जीते रहे। डॉ० अम्बेडकर, बाबा ज्योतिबा फूले व शिवाजी में से कोई भी चमार जाति से नहीं था लेकिन चमार जाति ने इनकी विचारधारा का 30 सालों में इतना जोरदार प्रचार किया कि वे आज केवल दलितों के ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर पूजनीय हो गए जबकि डॉ० अम्बेडकर ने अपना संघर्ष 1928 में शुरू किया लेकिन चौ० साहब ने अपना संघर्ष 1921 में आरम्भ किया और संयुक्त पंजाब में अपनी इतनी बड़ी राजनीतिक सल्तनत कायम की । जो डॉ० अम्बेडकर महाराष्ट्र में कभी नहीं कर पाए । लेकिन यह चमार और दलित जातियों का ही सद्प्रयास था कि उनकी विचारधारा को पूरे भारत में घर-घर में ही नहीं बल्कि सरकार की चौखटों तक पहुंचा दिया वरना इससे पहले इस देश में डॉ० अम्बेडकर को बहुत कम लोग जानते थे । लेकिन आज सरकारें उनके जन्मदिन को सरकारी तौर पर मनाने के लिए मजबूर हैं । इस सत्कार्य को आगे बढ़ाने में दलित जातियों के गैर राजनीतिक संगठन बामसेफ का सराहनीय योगदान है । इनके प्रयास सराहनीय ही नहीं अपितु अनुकरणीय है । वहीं दूसरी ओर हम हमारे एक महापुरुष की विचारधारा को आज तक न तो समझ पाए और इसलिए न ही उसे जीवित रख पाए ।
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


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    op1955 (July 3rd, 2012)

  11. #6
    यदि वास्तव में हम जाट हैं और इस कौम को जीवित रखकर आगे बढ़ाना है तो हमें निजी स्वार्थ छोड़कर तन-मन-धन से यह प्रण लेना होगा कि चौ० साहब की विचारधारा को हर कीमत पर पुनर्जीवित करके उसे यथा सम्भव स्थान दिलाएंगे और आज से हमारा नेता-देवता-कुलदेवता, युगपुरुष और महापुरुष केवल चौ० छोटूराम होंगे और उन्हीं की विचारधारा हमारा मार्गदर्शन करेगी । इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित सुझाव हैं ।

    1. हर जाट की बैठक या घर में चौ० साहब का चित्र अवश्य लगा हो ।

    2. जहां भी हमें फालतू समय मिले चाहे वह जाट धर्मशाला, चौपाल या कोई और सामाजिक स्थल हो हम जाट भाई चौ० साहब और उनकी विचारधारा पर चर्चा अवश्य करें । फालतू की राजनीति की चर्चाओं पर अपना समय बर्बाद न करें ।

    3. जाट समाज अपने हर सामाजिक आयोजन या कार्यस्थल पर चौ० साहब का चित्र लगाकर उस पर फूल चढ़ाकर अपने आयोजन का शुभारम्भ करें तथा ऐसे आयोजन पर चौ० छोटूराम तथा ‘जाट एकता जिंदाबाद’ के नारे अवश्य लगाएं ।

    4. हर जाट संस्था में चौ साहब का जन्मदिवस या निर्वाण दिवस अवश्य मनाया जाए । जहां तक सम्भव हो सके उनके जन्मदिन पर बच्चों में मिठाई बांटी जाए ताकि बच्चों को भी मालूम हो कि वे मिठाई किस खुशी में खा रहे हैं ।

    5. जाट शिक्षण संस्थाओं में हर साल उनकी विचारधारा पर सेमीनार और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाए ।

    6. समर्थ जाट भाई व जाट संस्थाएं हर साल उनके चित्र के साथी कैलेण्डर चित्र या मूर्ति अवश्य हो और चौराहों आदि पर जहां भी सम्भव हो उनकी मूर्तियां स्थापित की जाएं । उनके जन्मदिन पर शहर व गांव में शोभायात्रा निकालने का आयोजन हो जिसमें छोटे-छोटे पम्फलेटों का वितरण किया जाए ।

    7. दिल्ली में कहीं स्थान चुनकर उनकी मूर्ति के साथ एक यादगार स्थल बनाया जाए जिसे क्रान्तिस्थल या कोई ऐसा ही उपयुक्त नाम दिया जाए ।

    8. उनकी चित्र के स्टीकर बनाकर जाट भाई अपनी गाड़ियों पर लगाएं लगाएं । इससे गांवों के ट्रैक्टर भी अछूते न रहें ।

    9. जो जाट भाई शिक्षित हैं और लिखने पढ़ने में दिलचस्पी रखते हैं वे जाट पत्रा-पत्रिकाओं तथा अन्य समाचार पत्रों पत्रिकाओं में चौ० साहब के बारे में तथा उनकी विचारधारा पर समय-समय पर लेख लिखते रहें और समर्थ जाट भाई पुस्तक/पुस्तिकाएं छपवाते रहें तथा लागत कीमत पर उन्हें देते रहें (याद रहे जाट कौम मुफ्त की चीज को बेकार समझती है और अधिक कीमत की पुस्तक को बेकार का खर्चा समझती है ।)

    10. उनके नाम पर अधिक से अधिक संस्थाओं, सड़कों व पार्कों आदि के नाम रखे जाएं । जहां तक सम्भव हो, चप्पे-चप्पे पर चौ० छोटूराम का नाम हो ।

    11. वर्तमान में मुरथल तकनीकी संस्थान में चौ० भूपेन्द्र सिंह हुड्डा मुख्यमन्त्री हरयाणा ने चौ० साहब की कुर्सी लगवा दी है जहां उनके बारे में शोध कार्य हो । उन्होंने संयुक्त पंजाब के सदन में विभिन्न विषयों पर वाद-विवाद व बिलों की बहस पर जो भाषण दिए उसके दस्तावेज चौ० बलबीर सिंह हौजखास नई दिल्ली में चालीस हजार पन्नों के रूप में एक प्रतिलिपि सुरक्षित है जिसकी फोटो कापियां बनवाकर उनके ऊपर शोध किया जाए ।

    12. जाट कौम एक चरित्रावान संघर्षशील और जनूनी कौम रही है । आज भी इस कौम में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो इस कौम का कौमी नेतृत्व कर सकें । इसलिए कौम को अपना नेतृत्व करने के लिए कोई एक कौमी नेता ढूंढना ही होगा क्योंकि बगैर नेतृत्व के कोई भी देश, सेना, संगठन या समाज आदि नहीं चल सकता है । एक नेता होना अनिवार्य है ।

    इन ऊपरलिखित प्रयासों से कुछ ही वर्षों में दूसरे समाज के लोग भी उनके बारे में जानने के लिए उत्सुक हो जाएंगे और वह दिन दूर नहीं होगा कि उत्तर भारत की सभी सरकारों व केन्द्र सरकार को चौ० छोटूराम और उसकी विचारधारा को हर हाल में स्वीकार करना होगा । इस बात का मुझे पूर्ण विश्वास है ।

    (नोट - जाट भाई इसका अर्थ यह बिल्कुल न समझें कि दूसरे जाट महापुरुषों के जन्मदिन नहीं बनाने या उनको याद नहीं किया जाना है ।)
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

  12. The Following 2 Users Say Thank You to RavinderSura For This Useful Post:

    op1955 (July 3rd, 2012), rsdalal (July 4th, 2012)

  13. #7
    Quote Originally Posted by RavinderSura View Post
    यदि वास्तव में हम जाट हैं और इस कौम को जीवित रखकर आगे बढ़ाना है तो हमें निजी स्वार्थ छोड़कर तन-मन-धन से यह प्रण लेना होगा कि चौ० साहब की विचारधारा को हर कीमत पर पुनर्जीवित करके उसे यथा सम्भव स्थान दिलाएंगे और आज से हमारा नेता-देवता-कुलदेवता, युगपुरुष और महापुरुष केवल चौ० छोटूराम होंगे और उन्हीं की विचारधारा हमारा मार्गदर्शन करेगी । इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित सुझाव हैं ।

    1. हर जाट की बैठक या घर में चौ० साहब का चित्र अवश्य लगा हो ।

    2. जहां भी हमें फालतू समय मिले चाहे वह जाट धर्मशाला, चौपाल या कोई और सामाजिक स्थल हो हम जाट भाई चौ० साहब और उनकी विचारधारा पर चर्चा अवश्य करें । फालतू की राजनीति की चर्चाओं पर अपना समय बर्बाद न करें ।

    3. जाट समाज अपने हर सामाजिक आयोजन या कार्यस्थल पर चौ० साहब का चित्र लगाकर उस पर फूल चढ़ाकर अपने आयोजन का शुभारम्भ करें तथा ऐसे आयोजन पर चौ० छोटूराम तथा ‘जाट एकता जिंदाबाद’ के नारे अवश्य लगाएं ।

    4. हर जाट संस्था में चौ साहब का जन्मदिवस या निर्वाण दिवस अवश्य मनाया जाए । जहां तक सम्भव हो सके उनके जन्मदिन पर बच्चों में मिठाई बांटी जाए ताकि बच्चों को भी मालूम हो कि वे मिठाई किस खुशी में खा रहे हैं ।

    5. जाट शिक्षण संस्थाओं में हर साल उनकी विचारधारा पर सेमीनार और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाए ।

    6. समर्थ जाट भाई व जाट संस्थाएं हर साल उनके चित्र के साथी कैलेण्डर चित्र या मूर्ति अवश्य हो और चौराहों आदि पर जहां भी सम्भव हो उनकी मूर्तियां स्थापित की जाएं । उनके जन्मदिन पर शहर व गांव में शोभायात्रा निकालने का आयोजन हो जिसमें छोटे-छोटे पम्फलेटों का वितरण किया जाए ।

    7. दिल्ली में कहीं स्थान चुनकर उनकी मूर्ति के साथ एक यादगार स्थल बनाया जाए जिसे क्रान्तिस्थल या कोई ऐसा ही उपयुक्त नाम दिया जाए ।

    8. उनकी चित्र के स्टीकर बनाकर जाट भाई अपनी गाड़ियों पर लगाएं लगाएं । इससे गांवों के ट्रैक्टर भी अछूते न रहें ।

    9. जो जाट भाई शिक्षित हैं और लिखने पढ़ने में दिलचस्पी रखते हैं वे जाट पत्रा-पत्रिकाओं तथा अन्य समाचार पत्रों पत्रिकाओं में चौ० साहब के बारे में तथा उनकी विचारधारा पर समय-समय पर लेख लिखते रहें और समर्थ जाट भाई पुस्तक/पुस्तिकाएं छपवाते रहें तथा लागत कीमत पर उन्हें देते रहें (याद रहे जाट कौम मुफ्त की चीज को बेकार समझती है और अधिक कीमत की पुस्तक को बेकार का खर्चा समझती है ।)

    10. उनके नाम पर अधिक से अधिक संस्थाओं, सड़कों व पार्कों आदि के नाम रखे जाएं । जहां तक सम्भव हो, चप्पे-चप्पे पर चौ० छोटूराम का नाम हो ।

    11. वर्तमान में मुरथल तकनीकी संस्थान में चौ० भूपेन्द्र सिंह हुड्डा मुख्यमन्त्री हरयाणा ने चौ० साहब की कुर्सी लगवा दी है जहां उनके बारे में शोध कार्य हो । उन्होंने संयुक्त पंजाब के सदन में विभिन्न विषयों पर वाद-विवाद व बिलों की बहस पर जो भाषण दिए उसके दस्तावेज चौ० बलबीर सिंह हौजखास नई दिल्ली में चालीस हजार पन्नों के रूप में एक प्रतिलिपि सुरक्षित है जिसकी फोटो कापियां बनवाकर उनके ऊपर शोध किया जाए ।

    12. जाट कौम एक चरित्रावान संघर्षशील और जनूनी कौम रही है । आज भी इस कौम में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो इस कौम का कौमी नेतृत्व कर सकें । इसलिए कौम को अपना नेतृत्व करने के लिए कोई एक कौमी नेता ढूंढना ही होगा क्योंकि बगैर नेतृत्व के कोई भी देश, सेना, संगठन या समाज आदि नहीं चल सकता है । एक नेता होना अनिवार्य है ।

    इन ऊपरलिखित प्रयासों से कुछ ही वर्षों में दूसरे समाज के लोग भी उनके बारे में जानने के लिए उत्सुक हो जाएंगे और वह दिन दूर नहीं होगा कि उत्तर भारत की सभी सरकारों व केन्द्र सरकार को चौ० छोटूराम और उसकी विचारधारा को हर हाल में स्वीकार करना होगा । इस बात का मुझे पूर्ण विश्वास है ।

    (नोट - जाट भाई इसका अर्थ यह बिल्कुल न समझें कि दूसरे जाट महापुरुषों के जन्मदिन नहीं बनाने या उनको याद नहीं किया जाना है ।)


    रविंदर भाई बहुत बहुत धन्यवाद, इतनी सटीक और भावपूर्ण लाइने लिखने का. पर आपका यह लेख शायद कम ही जाट भाइयों ने पढ़ा . मैं हर मेम्बर से प्रार्थना करता हूँ कि एक बार रविंदर भाई का लेख जरुर पढ़ें . और कौशिश करे कि जाट लैंड पर जो भी आर्टिकल दीनबंधु रह्ब्रेआज़म चौधरी छोटू राम के बारे मैं लिखा जाये उसे जरुर पढ़ें .
    भाई मैं एक बार फिर आपका दिल से आभार वयक्त करता हूँ, मैं आपकी लाइनों पर पहले से ही अमल करता हूँ और करता रहूँगा.

    में हर बसंत पंचमी पर दो लाइन बोलता हूँ, लेकिन क्या बताऊँ इस बार बसंत पंचमी पर रोहतक कि छोटू धर्मशाला में एक भी ट्रेक्टर ट्राली नहीं दिखाई दिया अफ़सोस .




    जाट ही जाट की सहायता करता है .

  14. The Following 2 Users Say Thank You to deswaldeswal For This Useful Post:

    DrRajpalSingh (July 3rd, 2012), puneetlakra (July 8th, 2012)

  15. #8
    Quote Originally Posted by RavinderSura View Post
    चौ० छोटूराम का हत्यारा कौन? (1)
    -पूर्व कमान्डेंट हवा सिंह सांगवान

    यह प्राकृतिक सिद्धान्त है कि जो पैदा होगा वह अवश्य मृत्यु को प्राप्त होगा । कहते हैं कि चौ० साहब को देहान्त से कुछ दिन पहले से ही उनके पेट में अचानक दर्द रहने लगा था । कुछ ही दिन में मलेरिया और पेचिस ने भी घेर लिया । उनके निजी डॉक्टर नंदलाल दवा दारू करते रहे लेकिन 9 जनवरी 1945 को प्रातः 10 बजे उनके हृदय में पीड़ा हुई और दम घुटने लगा । उस समय संयुक्त पंजाब के प्रधानमन्त्री (उस समय राज्य के मुख्यमंत्री को प्रधानमन्त्री कहा जाता था) सर खिजय हयात खां तिवाणा को बुलाया गया । चौ० साहब हयात खां से गले से लिपट गए और धीरे से कहा - हम तो चलते हैं भगवान सबकी मदद करे । ये उनके अंतिम शब्द थे। यह कहकर चारपाई पर फिर से लेट गये और सदा के लिए भगवान के पास चले गए । यह देखकर हयात साहब और परिवार के उपस्थित अन्य लोग सभी रोने लगे । यहां इन्सानियत रो रही थी। हिन्दू मुस्लिम जाट भाईचारा रो रहा था, जाट कौम के अरमान रो रहे थे और सबसे बढ़कर जाट कौम का भविष्य रो रहा था । यह देहान्त चौ० साहब के स्थूल शरीर का था जिसकी हमें उस समय परम आवश्यकता थी । इससे एक दिन ही पहले 8 जनवरी 1945 को चौ० साहब ने पंजाब के राजस्व मन्त्री होते हुए भाखड़ा बांध का पूर्ण सर्वे करवाकर और इसका निरीक्षण करने के बाद इस योजना पर अपने हस्ताक्षर किए थे जो उनके अन्तिम हस्ताक्षर साबित हुए ।

    इसके अतिरिक्त पंजाब से 80 वर्षीय सरदार राजेन्द्र सिंह निज्जर जो वर्तमान में इंग्लैण्ड में रहते हैं, ने चौ० साहब की मृत्यु का कारण बतलाते हुए मनोज दूहन को ई-मेल किया जो इस प्रकार है:-

    Manoj, My father did say that, that Lalas used to welcome Chhotu Ram Ohlayan with BLACK JHANDIS. He did say that he was given poison in the food and he had stomach problems overnight. But our Haryanavi Jats should know better. There is no doubt that he was poisoned. Now, most people are frightened of the Khatris as they are Rulers of the Kalyug. So, better do research with close relatives. All people of his age have died, both in India & Pakistan. Pakistan Jatts were more faithful than our Panjabi Jatts. There is Jatt Sabha in Pakistan. If you go on Apna Panjab website,www.apna.org.com

    , you might find more information too. I will keep you informed .
    - Uncle-Ch.Rajender Singh Nijjar Jatt. England

    अर्थात् - मनोज, मेरे पिता जी ने बतलाया था कि चौ० छोटूराम ओहलान को लाला लोग (हिन्दू पंजाबी अरोड़ा व खत्री) काली झण्डियां दिखाया करते थे । उन्होंने बतलाया था कि उनको खाने में जहर दिया गया था, जिसकी वजह से रात से ही उनके पेट में तकलीफ पैदा हो गई थी । लेकिन हमारे हरयाणवी जाटों को इस बारे में अधिक ज्ञात होना चाहिए । इसमें कोई भी संदेह नहीं है कि उनको जहर दिया गया था । आजकल अधिकतर लोग खत्री समुदाय से डरे हुए हैं, क्योंकि यह समुदाय इस कलयुग का शासक है । इसलिए उनके नजदीकी सम्बन्धियों से इस बारे में और अधिक शोध करना बेहतर होगा । उस समय के सभी बुजुर्ग भारत व पाकिस्तान में मर चुके हैं । पाकिस्तान के जाट पंजाबी जाटों से अधिक वफादार थे । पाकिस्तान में जाट सभा है । यदि आप ‘अपना पंजाब’ बैवसाईटwww.apna.org.com

    में जाएंगे तो अधिक जानकारियां मिलेंगी - चाचा - राजेन्द्रसिंह निज्जर जट्ट, इंग्लैंड ।
    लेकिन मेरा आज का विषय उनके स्थूल शरीर त्यागने की जांच का नहीं बल्कि उनकी सूक्ष्म विचारधारा को जानने तथा उस विचारधारा के हत्यारों के बारे में जानने का हैं क्योंकि उनकी विचारधारा की हत्या उनके स्थूल शरीर की मौत से जाट कौम के लिए कहीं अधिक घातक सिद्ध हुई ।...................

    Thanks for sharing the informaation on the life and work of Ch. Chhotu Ram.
    Shri Hari Singh Kheri Jattan (Rohtak) met me in 1986 and had expressed same type of apprehension on the issue. It may be mentioned here that he was about 70 years of age at that time. If he is still alive he can shed more light on the issue because he used to study at Lahore in some college courtesy Ch. Chhotu Ram. He has worked hard to spread the ideology of Chaudhary Sahib by extensively writing on his life and work.


  16. #9

    The life and work of Ch. Chhotu Ram is being brought to light through the efforts of Jat Sabha Chandigarh under the leadership of Ch. M.S. Malik, former DGP Haryana who keeps on organising various functions and keeps publishing material on him from time to time.


    Last edited by DrRajpalSingh; July 3rd, 2012 at 10:30 PM.

  17. #10
    Dr Rajpal ji,
    I met Prof Hari Singh in 2006 @convocation ceremony in MDU Rohtak. He was in good health.

    Quote Originally Posted by DrRajpalSingh View Post
    Thanks for sharing the informaation on the life and work of Ch. Chhotu Ram.
    Shri Hari Singh Kheri Jattan (Rohtak) met me in 1986 and had expressed same type of apprehension on the issue. It may be mentioned here that he was about 70 years of age at that time. If he is still alive he can shed more light on the issue because he used to study at Lahore in some college courtesy Ch. Chhotu Ram. He has worked hard to spread the ideology of Chaudhary Sahib by extensively writing on his life and work.

    [/LEFT]
    "No one can make you feel inferior without your consent..."

  18. #11
    Ranvinder, Yaa ke website chipakaa dee
    www.apna.org.com No such site exists
    www.apna.com American Psychiatric Nurses Association
    www.apnaorg.com Academy of Punjab in North America, promoting Punjabi language, literature and culture. It has mere 7000 members. Front page has picture of Bhutto but not any Unionist party leader. What this website has to do with Jatt/Jat?

    Quote Originally Posted by RavinderSura View Post
    ........................ Pakistan Jatts were more faithful than our Panjabi Jatts. There is Jatt Sabha in Pakistan. If you go on Apna Panjab website,www.apna.org.com

    , you might find more information ......................................

  19. #12
    Krishan,

    Chaudhary Rajinder Singh Nijjar is also a member of Jatland.

    http://www.jatland.com/forums/showth...l=1#post270392

    Not too sure how often he visits this website but you can try sending him a PM for your queries.

    http://www.jatland.com/forums/member.php?1185-nijjhar


    Quote Originally Posted by deshi-jat View Post
    Ranvinder, Yaa ke website chipakaa dee
    www.apna.org.com No such site exists
    www.apna.com American Psychiatric Nurses Association
    www.apnaorg.com Academy of Punjab in North America, promoting Punjabi language, literature and culture. It has mere 7000 members. Front page has picture of Bhutto but not any Unionist party leader. What this website has to do with Jatt/Jat?

  20. #13
    Atish,
    I have seen his posts, some years back he used to be active here on JL.
    I was just wondering about references/back references. There is no hit if you google “Jat or Jatt Sabha Pakistan” at least in first couple of pages. References should be straight forward and authentic. That’s why………

    Quote Originally Posted by atishmohan View Post
    Krishan,

    Chaudhary Rajinder Singh Nijjar is also a member of Jatland.

    http://www.jatland.com/forums/showth...l=1#post270392

    Not too sure how often he visits this website but you can try sending him a PM for your queries.

    http://www.jatland.com/forums/member.php?1185-nijjhar

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