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Thread: हरयाणवी परमपराएं |

  1. #1

    हरयाणवी परमपराएं |

    डॉ. महासिंह पूनिया
    हरियाणवी जन-मानस स्वभाव से ही विनोदी प्रवृत्ति का होता है। यहां के लोगों की हास्यात्मक प्रवृत्ति का असर उनके लोक-व्यवहार, आचार, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, मान्यताओं एवं संस्कारों में भी देखने को मिलता है। ‘छन्न कुहाई’ हरियाणवी लोकजीवन में विवाह संस्कार परम्परा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो उक्त विनोदी प्रवृत्ति को अपने अंदर समेटे हुए है। हरियाणवी लोकजीवन में फेरों की समाप्ति के उपरांत बन्ने व बन्नी (बटेऊ एवं बहू) को थाप्पे वाली जगह पर ले जाया जाता है। वहां देवी-देवताओं का पूजन कराया जाता है एवं घी एवं मेहंदी के थाप्पे लगवाए जाते हैं। इसी समय बन्ने से ‘छन्न’ कहलवाने की प्रथा विद्यमान है। वास्तव में ‘छन्न’ शब्द छंद का ही अपभं्रश है।
    वास्तव में ‘छन्न’ वह कविता या पद है जो दूल्हे की सालियां उसके पिंगल ज्ञान तथा बुद्धि, स्वभाव आदि की परख के लिए फेरे होने के बाद सुनाने को कहती हैं। (दुल्हन के पक्ष की ओर से हर ‘छन्न’ पर कुछ निधि या वचन दिया जाता है), फेरे हो चुकने के बाद कन्या पक्ष की लड़कियों द्वारा दूल्हे से पद्य-बद्ध बात सुनना तथा वर की अभिलाषा या इच्छा जानना। वैसे हरियाणवी लोकजीवन में ‘छन्न’ हाथ का एक आभूषण भी होता है, जिसमें जौ की आकृति के बीज उभरे हुए होते हैं, लेकिन यहां पर ‘छन्न’ से अभिप्राय अलग है।
    ‘छन्न’ प्रथा में दूल्हा दो-दो पंक्तियों की लयात्मक-काव्यात्मक शब्दावली बना-बनाकर बोलता है। ‘छन्न’ प्रथा की शुरुआत से पहले दुल्हन की भाभी यानी साल़ेह दूल्हा-दुल्हन को अपने हाथ से मिठाई खिलाकर मुंह मीठा करवाती है। छन्नों की विषय वस्तु हंसी-मजाक से लेकर व्यंग्य-उपालम्भ, शिष्टाचार से लेकर परिचय-पहचान, सामाजिक आचार-व्यवहार, शृंगार से लेकर संयोग तक होती है।
    विवाह-संस्कार के मौके पर ‘छन्न’ कहलवाने की परम्परा कब शुरू हुई, इसका ब्यौरा तो नहीं मिलता, लेकिन इतना अवश्य है कि कालिदास द्वारा रचित कुमारसम्भव नामक ग्रंथ में शिव-पार्वती के विवाह के अवसर पर जो संस्कार व्याख्यायित किए गए हैं उनमें से अनेक जैसे – कांगणा खुलाई, पाणि-ग्रहण आदि आज भी हमारे लोकजीवन में प्रचलित हैं। इसके अतिरिक्त सातवीं सदी में सम्राट हर्षवर्धन की बहन राज्यश्री के विवाह के अवसर पर महिलाओं द्वारा बारातियों के संग भी मनोविनोद के प्रमाण मिलते हैं। ‘छन्न कुहाई’ के मौके पर दूल्हे की सालियां एवं सालों की बहुएं तथा दुल्हन पक्ष की अन्य महिलाएं वर को घेर कर खड़ी हो जाती हैं।
    ये सभी दूल्हे मियां के साथ दिल खोल कर हंसी-ठिठोली करने लगती हैं और दूल्हे की हाजिर जवाबी का परीक्षण करने हेतु उसे ‘छन्न’ बोलने को कहा जाता है। कहना न होगा कि इस ‘छन्न’ प्रथा द्वारा न केवल दूल्हे की काव्य-प्रतिभा की परीक्षा लेती हैं, बल्कि उसके संकोच का खात्मा भी होता है। यही नहीं, इससे यह भी पता चलता है कि कहीं दूल्हा गूंगा या तोतला तो नहीं है।
    नि:संदेह, ‘छन्न’ शब्द को उच्चरित करने से जीभ ऐसे फैलती है, जिससे सहज ही पता चल जाता है कि दूल्हा हकलाकर तो नहीं बोलता है। प्रस्तुत है वह ‘छन्न’, जिसमें एक दूल्हा सर्वप्रथम ‘छन्न’ के माध्यम से अपना परिचय देते हुए कहता है कि वह अमुक का पुत्र, अमुक का पौत्र है और अमुक की पुत्री व अमुक की पौत्री को विवाह करके ले जाने आया है—

    निरंतर जारी ...................

    :rockwhen you found a key to success,some ideot change the lock,*******BREAK THE DOOR.
    हक़ मांगने से नहीं मिलता , छिना जाता हे |
    अहिंसा कमजोरों का हथियार हे |
    पगड़ी संभाल जट्टा |
    मौत नु आंगालियाँ पे नचांदे , ते आपां जाट कुहांदे |

  2. #2
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर तोता,
    रलदू कै ब्याहवण आया, कुरडि़ए का पोता।
    शिव का हरियाणवी लोकसमाज में विशेष स्थान है। जीवन का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा हो जिसमें शिव एवं पार्वती से जुड़ी हुई परम्परा एवं लोकमान्यता न हो। दूल्हा वधू पक्ष के सामने अपने सास एवं ससुर की तुलना शिव एवं पार्वती से करता है—
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर केसर,
    सास मेरी सै पारवती, ससुर मेरा परमेसर।
    फेरों के पश्चात् थाप्पा लगाने की परम्परा वास्तव में लोक संस्कृति का अभिन्न अंग है। कई बार तो सालियां थाप्पे के स्थान पर छोटी-छोटी सूइयां भी लगा देती हैं ताकि दूल्हा जब दीवार पर थाप्पा लगाए तो उसके हाथ में वो सूइयां चुभ जाएं। थाप्पे के तुरंत बाद ‘छन्न’ परम्परा का सिलसिला शुरू होता है और दूल्हा ‘छन्न’ के माध्यम से वहां उपस्थित दुल्हन की सभी सहेलियों/सालियों को राम-राम करके उनका दिल जीतना चाहता है, जैसे-
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर आम,
    याडै़ खड़ी सारी सालिय़ां नै, जीजे की राम-राम।
    दूल्हा छन्नों के माध्यम से जहां वधू पक्ष का अभिवादन करता है वहीं पर वह वधू पक्ष के लोगों से भी अभिवादन की अपेक्षा रखता है—
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न ऊपर आल़ा,
    दूसरा छन्न जब कहूं, जब राम-राम दे साल़ा।
    सालियों, सास एवं बड़ी-बड़ेरी-बीच में ‘छन्न’ परम्परा में वर पक्ष के साथ-साथ वधू पक्ष भी कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ता। वधू पक्ष की महिलाएं भावनाओं को अभिव्यक्त करने से नहीं चूकती—
    छन्न पकइया-छन्न पकइया, छन्न पके का खीरा।
    बारात आई सोहणी, जमाई आया हीरा।।
    छन्न का सिलसिला रुकने का नाम ही नहीं लेता। यहां पर अचरज की बात तो यह है कि दूल्हा दुल्हन को छोड़कर सब को प्रणाम करता है। शायद वह औरत होने के नाते अपनी पत्नी का दर्जा अपने से कम समझता है। मगर, दूसरी ओर, वह ‘छन्न’ के माध्यम से उपस्थित महिलाओं को यह विश्वास दिलाता है कि वह उनकी पुत्री यानी दुल्हन को इस प्रकार रखेगा, जैसे अंगूठी में हीरा होता है—
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर खीरा।
    थारी बेटी नै न्यूं राखंू, ज्यूं अंगूठी मैं हीरा।
    ‘छन्न कुहाई’ के मौके पर वधू पक्ष की महिलाएं बार-बार दूल्हे से इस तरह के सवाल करती हैं कि वह उनकी बहन को कैसे रखेगा? उससे क्या-क्या काम करवाएगा? आदि आदि। ऐसे में दूल्हा वधू पक्ष को ‘छन्न’ के माध्यम से आश्वस्त करना चाहता है—
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न पके का खूरमा।
    थारी बेटी नै न्यूं राक्खूं, ज्यूं आंख्यां मैं सूरमा।।


    निरंतर जारी ...................
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    मौत नु आंगालियाँ पे नचांदे , ते आपां जाट कुहांदे |

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    reenu (August 6th, 2012)

  4. #3
    शृंगारिकता एवं ‘छन्न’ का परस्पर चोली एवं दामन का सम्बन्ध है। दोनों ही पक्षों के बड़े-बुजुर्ग जानबूझकर छन्न कुहाई परम्परा में भाग नहीं लेते और जीजा-सालियों को स्वतंत्र माहौल देने का प्रयास करते हैं।
    जहां पर दूल्हा अपने साथियों के साथ सालियों के बीच अपने मन की खूब भड़ास निकालता है तो ऐसे में सालियां भी चुटकी तक काटने में कोई-कोर-कसर नहीं छोड़ती और यदि बात किसी साली पर दिल आने की है, तो उसको भी ‘छन्न’ का सहारा लेकर हंसी-मजाक में बयां कर दिया जाता है। जैसे-
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर लोट,
    मेरा दिल आग्या भतेरी पै, बता तेरे दिल मैं के खोट।
    ‘छन्न कुहाई’ के अवसर जिससे दोनों ही पक्ष एक-दूसरे के नज़दीक आते हैं। सालियां अपने जीजा तथा उसके साथियों पर जहां शृंगारिक बाण चलाती हैं, वहीं दूल्हा तथा उसके यार भी कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ते। जब छोटी साल़ी बहुत ज्यादा पसंद आती है, तो दूल्हा कहने से नहीं चूकता कि—
    छन्न परागा, छन्न परागा, छन्न पै धरी ताली,
    आगल़ा छन्न तब कहूं, जब नाच दिखावै साली।
    दूल्हा अपने यारों-प्यारों एवं साथियों का भी पूरा ख्याल रखता है—
    छन्न बताऊं, छन्न बताऊं, छन्न बताऊं पाल़ी,
    आगला छन्न तब बताऊं, जद मेरे यार तै देद्यो साल़ी।
    हरियाणवी लोकजीवन में बेमेल विवाह की परम्परा भी रही है। पहले विवाह नाई और ब्राह्मण ही करवाया करते थे। इसके अतिरिक्त महिलाओं का अभाव होने के कारण जहां एक ओर तीन-चार भाइयों में केवल एक ही का विवाह होता था, वहीं पर दूसरी ओर बेमेल विवाह भी उक्त दोनों पक्षों द्वारा करवा दिए जाते थे। इसी तरह का एक किस्सा टेका पंचायती का है, जिसकी उम्र लगभग 50 वर्ष की थी और उसकी शादी 18 साल की लड़की से हुई। फेरों के पश्चात् जब साल़ी-सपटी टेके को ‘छन्न’ कहने के लिए बाध्य करने लगी तो उसने जिदंगी की कड़वी सच्चाई को स्वीकार करते हुए अपने बड़े-बूढ़ों का नाम लेते हुए यह ‘छन्न’ कह डाला—
    छन्न कह, छन्न कह, छन्न कह टेक्का कोथां का,
    मैं मरज्यागां, या भाजैगी, खोह सै दोन्नूं ठोकां का।

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    reenu (August 6th, 2012)

  6. #4
    हरियाणवी लोकजीवन में दहेज एक सामाजिक बुराई है, परंतु वह समाज का एक हिस्सा भी है। हरियाणवी लोकजीवन की यह परम्परा भी छन्नों से भी अभिन्न नहीं है। जैसे—
    छन्न पकइया छन्न पकइया, छन्न के ऊपर पाती।
    दूसरा छन्न तब कहूंगा, जब ससुर देवै हाथी।
    दूल्हा गिन्नी की मांग इस प्रकार करता है—
    छन्न परागा, छन्न परागा, छन्न के ऊपर पीन्नी,
    दूसरा छन्न तब कहूं, जब सास देवै मेरी गिन्नी।
    हरियाणवीं लोकजीवन में खानपान पर विशेष महत्ता दी जाती है। दूध तथा इससे बने भोज्य पदार्थ विशेष रूप से खानपान हेतु प्रयोग में लाए जाते हैं। खीर को हरियाणवी जन-मानस देवताओं एवं ब्राह्मणों का भोजन मानता है। इसलिए दूल्हा अपने ‘छन्न’ में अपनी खीर खाने की इच्छा कुछ यूं प्रस्तुत करता है—
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर हीर,
    दूसरा छन्न तब कहूं, जब मेरी सासू खुवावै खीर।
    हरियाणवी समाज में ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं कि बारात किसी एक व्यक्ति की गई हो और विवाह दो या तीन का किया जाता रहा है। इसके पीछे जहां एक ओर पारिवारिक रिश्तों को मजबूत करने की परम्परा रही है, वहीं पर विवाह के खर्च से बचने का लालच भी कहीं न कहीं दोनों ही पक्षों को ऐसा करने को बाध्य करता रहा है। सो, वधू पक्ष के सामने हंसी-मजाक के माध्यम से दूल्हा अपने भाई एवं साथियों के लिए वधू की बहन एवं सालियों में से किसी विशेष को शादी का प्रस्ताव ‘छन्न’ के माध्यम से कुछ इस प्रकार रखता है—
    सरड़क पै सरड़क, सरड़क पै धर्या इक्का,
    एक नै तो ब्याह चाल्ले, दूज्जी का देद्यो टीका।
    छन्न पकइया छन्न पकइया छन्न पै धरी आंगी,
    एक नै तो ब्याह ले चाल्ले, एक दे द्यो मांगी।
    ‘छन्न कुहाई’ के मौके पर वधू पक्ष की महिलाएं हंसी-मजाक के माध्यम से दूल्हे को हर कसौटी से परखना चाहती हैं। जब दूल्हा कुछ नहीं बोलता तो वह उसे ‘गूंगी का गूंगा’ तक कहने में नहीं चूकती। ऐसे में दूल्हा उनको छन्दात्मक जवाब देते हुए कह उठता है—
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर टोकणा,
    मां मेरी नै कह भेज्या ज्यादा नहीं भौंक्कणा।

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    reenu (August 6th, 2012)

  8. #5
    वधू की चाची, ताई एवं काकी भी ‘छन्न’ परम्परा में पीछे नहीं रहती और वह दूल्हे से मांग कर डालती हैं कि वह अपने पिता को बुलाकर विदाई के शगुन को निभाए। अपनी इस भावना को वे इस तरह से प्रस्तुत करती हैं—
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर लाड्डू,
    छोरी नै जब गालेंगे जब सौ रुपये देगा छोरे का बाबू।
    हरियाणवी लोकजीवन में दम तोड़ रही ‘छन्न’ विधा परम्परागत रूप से सदियों पुरानी रही है, लेकिन आधुनिकता की चपेट में आने के पश्चात् छन्न का वजूद खतरे में पड़ गया है। बाज़ारवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण ‘छन्न’ की महत्ता और बढ़ गई है, क्योंकि आधुनिकता की इस दौड़ में वैवाहिक एवं पारिवारिक रिश्तों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं।


    इती |


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    harpaljulani (August 7th, 2012), JSRana (August 7th, 2012), yogeshdahiya007 (August 9th, 2012)

  10. #6
    बहुत बढ़िया है, पर हैरत की बात है पर मन्ने कद्दे किस्से ब्याह मै ये छन्न ना सुने , अर बंदडा तो कद्दे भी किम्मे भी गाता ना सुना ।
    आजकल कम हो रहे हैं के ??
    It is by luck that you get the chance to be the cause of someone's happiness,
    I love to grab these chances

  11. The Following User Says Thank You to Mishti For This Useful Post:

    rekharathee (August 7th, 2012)

  12. #7
    Quote Originally Posted by Mishti View Post
    बहुत बढ़िया है, पर हैरत की बात है पर मन्ने कद्दे किस्से ब्याह मै ये छन्न ना सुने , अर बंदडा तो कद्दे भी किम्मे भी गाता ना सुना ।
    आजकल कम हो रहे हैं के ??
    hambe manne b na sune, arr dada arr ne bhi na batai ki unke tem pe nu hoya karta :P
    "Every Man alone is sincere.At the entrance of second person hypocrisy begins"



  13. #8
    Quite Interesting .

    " यही नहीं, इससे यह भी पता चलता है कि कहीं दूल्हा गूंगा या तोतला तो नहीं है"

    Just curious , pata chal bhi jayega toh kya-----the time to act has already passed.

    Yeh sab pheron se pehle hona chahiye-----shayad .

  14. #9
    Email Verification Pending
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    Quote Originally Posted by rekha View Post
    Quite Interesting .

    " यही नहीं, इससे यह भी पता चलता है कि कहीं दूल्हा गूंगा या तोतला तो नहीं है"

    Just curious , pata chal bhi jayega toh kya-----the time to act has already passed.

    Yeh sab pheron se pehle hona chahiye-----shayad .

    एक तो ब्याह ऊँ ए ना होवें आजकाल
    ...छोरी घाट हो री सें.. .... यो टेस्ट भी धरवा दे रेखा...... वा क्रिशन भाई आली बात स क्यूँ किसे की चढ़ती बेल ने काटे स...!!!!
    Last edited by anilsangwan; August 7th, 2012 at 06:53 AM.

  15. #10
    Han jab bechari ladki ---interview ke itne rounds deti hai

    tab kisso ko taras nahi aata-----ab ladke par bat aaye toh " यो टेस्ट भी धरवा दे रेखा."



    Quote Originally Posted by anilsangwan View Post

    एक तो ब्याह ऊँ ए ना होवें आजकाल
    ...छोरी घाट हो री सें.. .... यो टेस्ट भी धरवा दे रेखा...... वास क्रिशन भाई आली बात स क्यूँ किसे की चढ़ती बेल ने काटे स...!!!!

  16. #11
    bahut accha lga etne sare chhan padke ,keep sharing the cultural
    heritage

  17. The Following User Says Thank You to harpaljulani For This Useful Post:

    rekhasmriti (August 7th, 2012)

  18. #12
    Quote Originally Posted by ravinderjeet View Post
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर तोता,
    रलदू कै ब्याहवण आया, कुरडि़ए का पोता।
    शिव का हरियाणवी लोकसमाज में विशेष स्थान है। जीवन का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा हो जिसमें शिव एवं पार्वती से जुड़ी हुई परम्परा एवं लोकमान्यता न हो। दूल्हा वधू पक्ष के सामने अपने सास एवं ससुर की तुलना शिव एवं पार्वती से करता है—
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर केसर,
    सास मेरी सै पारवती, ससुर मेरा परमेसर।
    फेरों के पश्चात् थाप्पा लगाने की परम्परा वास्तव में लोक संस्कृति का अभिन्न अंग है। कई बार तो सालियां थाप्पे के स्थान पर छोटी-छोटी सूइयां भी लगा देती हैं ताकि दूल्हा जब दीवार पर थाप्पा लगाए तो उसके हाथ में वो सूइयां चुभ जाएं। थाप्पे के तुरंत बाद ‘छन्न’ परम्परा का सिलसिला शुरू होता है और दूल्हा ‘छन्न’ के माध्यम से वहां उपस्थित दुल्हन की सभी सहेलियों/सालियों को राम-राम करके उनका दिल जीतना चाहता है, जैसे-
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर आम,
    याडै़ खड़ी सारी सालिय़ां नै, जीजे की राम-राम।
    दूल्हा छन्नों के माध्यम से जहां वधू पक्ष का अभिवादन करता है वहीं पर वह वधू पक्ष के लोगों से भी अभिवादन की अपेक्षा रखता है—
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न ऊपर आल़ा,
    दूसरा छन्न जब कहूं, जब राम-राम दे साल़ा।
    सालियों, सास एवं बड़ी-बड़ेरी-बीच में ‘छन्न’ परम्परा में वर पक्ष के साथ-साथ वधू पक्ष भी कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ता। वधू पक्ष की महिलाएं भावनाओं को अभिव्यक्त करने से नहीं चूकती—
    छन्न पकइया-छन्न पकइया, छन्न पके का खीरा।
    बारात आई सोहणी, जमाई आया हीरा।।
    छन्न का सिलसिला रुकने का नाम ही नहीं लेता। यहां पर अचरज की बात तो यह है कि दूल्हा दुल्हन को छोड़कर सब को प्रणाम करता है। शायद वह औरत होने के नाते अपनी पत्नी का दर्जा अपने से कम समझता है। मगर, दूसरी ओर, वह ‘छन्न’ के माध्यम से उपस्थित महिलाओं को यह विश्वास दिलाता है कि वह उनकी पुत्री यानी दुल्हन को इस प्रकार रखेगा, जैसे अंगूठी में हीरा होता है—
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर खीरा।
    थारी बेटी नै न्यूं राखंू, ज्यूं अंगूठी मैं हीरा।
    ‘छन्न कुहाई’ के मौके पर वधू पक्ष की महिलाएं बार-बार दूल्हे से इस तरह के सवाल करती हैं कि वह उनकी बहन को कैसे रखेगा? उससे क्या-क्या काम करवाएगा? आदि आदि। ऐसे में दूल्हा वधू पक्ष को ‘छन्न’ के माध्यम से आश्वस्त करना चाहता है—
    छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न पके का खूरमा।
    थारी बेटी नै न्यूं राक्खूं, ज्यूं आंख्यां मैं सूरमा।।


    निरंतर जारी ...................
    भाई साहब भौत काम की बात लिख दी ....नई जेनंरेसन न भौत टोटा होरा ह इन सब का .....!!!
    I always learn from the mistake of others, who take my advice !!!
    "राणा का ठीकाना .......ठेका र थाना".

  19. #13
    Quote Originally Posted by Mishti View Post
    बहुत बढ़िया है, पर हैरत की बात है पर मन्ने कद्दे किस्से ब्याह मै ये छन्न ना सुने , अर बंदडा तो कद्दे भी किम्मे भी गाता ना सुना ।
    आजकल कम हो रहे हैं के ??
    रमा या बात कोणी ,तन्ने ना सुनी होगी पर मेरा ब्याह होया जब थाप्यां पे मेरी सालियाँ ने भी छन् कहण की कही थी , अर वा बात घणी पुराणि कोणी ,२२ साल पहलम की बात स | इब्ब मेरे मामा के छोरे के बियाह में गया था ,नई पीढ़ी स | ऊँ ते वो भी आपणी बोली अर परम्परा की बात करे था पर जब रशम निभान की बारी आई ते हर एक पे न्यू-कह दे अक के खामखा की बात करणी सें | ९० % परमपराओं की साइड में ला दिया | चावल ताहीं ना मरवाए | ये सब पढ़े- लिखे ड्राइंग रूम में बैठ के बात मारण के सें |
    :rockwhen you found a key to success,some ideot change the lock,*******BREAK THE DOOR.
    हक़ मांगने से नहीं मिलता , छिना जाता हे |
    अहिंसा कमजोरों का हथियार हे |
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    JSRana (August 8th, 2012), virendra204 (August 9th, 2012)

  21. #14
    Quote Originally Posted by ravinderjeet View Post
    रमा या बात कोणी ,तन्ने ना सुनी होगी पर मेरा ब्याह होया जब थाप्यां पे मेरी सालियाँ ने भी छन् कहण की कही थी , अर वा बात घणी पुराणि कोणी ,२२ साल पहलम की बात स | इब्ब मेरे मामा के छोरे के बियाह में गया था ,नई पीढ़ी स | ऊँ ते वो भी आपणी बोली अर परम्परा की बात करे था पर जब रशम निभान की बारी आई ते हर एक पे न्यू-कह दे अक के खामखा की बात करणी सें | ९० % परमपराओं की साइड में ला दिया | चावल ताहीं ना मरवाए | ये सब पढ़े- लिखे ड्राइंग रूम में बैठ के बात मारण के सें |
    बेचारी बहन! बाट देख देख के तै वो दिन आया होगा जिब भाई कै चावल मारने थे अर श्याने नै वो ऐ रसम ना करन दी ।
    It is by luck that you get the chance to be the cause of someone's happiness,
    I love to grab these chances

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    JSRana (August 9th, 2012)

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