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ravinderjeet
छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर तोता,
रलदू कै ब्याहवण आया, कुरडि़ए का पोता।
शिव का हरियाणवी लोकसमाज में विशेष स्थान है। जीवन का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा हो जिसमें शिव एवं पार्वती से जुड़ी हुई परम्परा एवं लोकमान्यता न हो। दूल्हा वधू पक्ष के सामने अपने सास एवं ससुर की तुलना शिव एवं पार्वती से करता है—
छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर केसर,
सास मेरी सै पारवती, ससुर मेरा परमेसर।
फेरों के पश्चात् थाप्पा लगाने की परम्परा वास्तव में लोक संस्कृति का अभिन्न अंग है। कई बार तो सालियां थाप्पे के स्थान पर छोटी-छोटी सूइयां भी लगा देती हैं ताकि दूल्हा जब दीवार पर थाप्पा लगाए तो उसके हाथ में वो सूइयां चुभ जाएं। थाप्पे के तुरंत बाद ‘छन्न’ परम्परा का सिलसिला शुरू होता है और दूल्हा ‘छन्न’ के माध्यम से वहां उपस्थित दुल्हन की सभी सहेलियों/सालियों को राम-राम करके उनका दिल जीतना चाहता है, जैसे-
छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर आम,
याडै़ खड़ी सारी सालिय़ां नै, जीजे की राम-राम।
दूल्हा छन्नों के माध्यम से जहां वधू पक्ष का अभिवादन करता है वहीं पर वह वधू पक्ष के लोगों से भी अभिवादन की अपेक्षा रखता है—
छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न ऊपर आल़ा,
दूसरा छन्न जब कहूं, जब राम-राम दे साल़ा।
सालियों, सास एवं बड़ी-बड़ेरी-बीच में ‘छन्न’ परम्परा में वर पक्ष के साथ-साथ वधू पक्ष भी कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ता। वधू पक्ष की महिलाएं भावनाओं को अभिव्यक्त करने से नहीं चूकती—
छन्न पकइया-छन्न पकइया, छन्न पके का खीरा।
बारात आई सोहणी, जमाई आया हीरा।।
छन्न का सिलसिला रुकने का नाम ही नहीं लेता। यहां पर अचरज की बात तो यह है कि दूल्हा दुल्हन को छोड़कर सब को प्रणाम करता है। शायद वह औरत होने के नाते अपनी पत्नी का दर्जा अपने से कम समझता है। मगर, दूसरी ओर, वह ‘छन्न’ के माध्यम से उपस्थित महिलाओं को यह विश्वास दिलाता है कि वह उनकी पुत्री यानी दुल्हन को इस प्रकार रखेगा, जैसे अंगूठी में हीरा होता है—
छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न के ऊपर खीरा।
थारी बेटी नै न्यूं राखंू, ज्यूं अंगूठी मैं हीरा।
‘छन्न कुहाई’ के मौके पर वधू पक्ष की महिलाएं बार-बार दूल्हे से इस तरह के सवाल करती हैं कि वह उनकी बहन को कैसे रखेगा? उससे क्या-क्या काम करवाएगा? आदि आदि। ऐसे में दूल्हा वधू पक्ष को ‘छन्न’ के माध्यम से आश्वस्त करना चाहता है—
छन्न पकइया, छन्न पकइया, छन्न पके का खूरमा।
थारी बेटी नै न्यूं राक्खूं, ज्यूं आंख्यां मैं सूरमा।।
निरंतर जारी ...................