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Thread: इधर भी गधे है उधर भी गधे है

  1. #1

    Wink इधर भी गधे है उधर भी गधे है

    इधर भी गधे है उधर भी गधे है
    जिधर देखता हू गधे ही गधे है

    गधे हँस रहे आदमी रो रहा है
    हिन्दोस्तां मे ये क्या हो रहा है

    जवानी का आलम गधो के लिए है
    ये रसिया ये बालम गधो के लिए है

    ये दिल्ली ये पालम गधो के लिए है
    ये संसार सालम गधो के लिए है

    पिलाये जा सकी पिलाये जा डट के
    तू विहस्की के मटके पे मटके पे मटके

    मे दुनिया को अब भूलना चाहता हू
    गधो की तरह झूमना चाहता हू

    घोड़ो को मिलती नहीं घास देखो
    गधे खा रहे चवनप्राश देखो

    यहाँ आदमी की कहा कब बनी है
    ये दुनिया गधो के लिए ही बनी है

    जो गलियों मे डोले वो कच्चा गधा है
    जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है

    जो खेतो मे दिखे वो फसली गधा है
    जो माइक पे चीखे वो असली गधा है


    मे क्या बक गया हू मे क्या कह गया हू
    नशे की पिनक मे कहा बह गया हू

    मुझे माफ़ करना मे भटका हुआ था
    वो ठर्रा था भीतर जो अटका हुआ था

    पी अस :
    बहुत पहले एक कवि सम्मलेन मे सुनी थी कवि का नाम तो याद नहीं पर आज पढ़ी तो लगा के आज के राजनितिक हिसाब से बिलकुल सही है|

    महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमा: |
    सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||

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  3. #2
    आज के माहोल मे विल्कुल सटीक कविताइस हास्य-व्यंग कविता की रचना, रणसीका (गुगाव) में जन्मे जाने-माने कविश्री ओम प्रकाश आदित्य’, एमए(हिन्दी),दिल्ली विश्वविद्यालय ने की। मुझे भी इनको एक कवि सम्मेलन में सुनने का मौका मिला| लम्बी-चौड़ी काया के साथ जब आप अपनी ओजस्वी वाणी में राजनीति से लेकर सामाजिक विद्रूपताओं तक तमाम विडम्बनाओं को हँसते-हँसते लताड़ते थे तो श्रोता हँस-हँस कर लोटपोट हो जाते थे। पूरे जीवन मंच पर सक्रिय रहने वाले इस रचनाकार का 7 जून 2009 को एक कवि सम्मेलन से लौटते समय भोपाल के पास सड़क दुर्घटना में निधन हुआ
    जाट के ठाठ हैं .....

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    SandeepSirohi (March 26th, 2014), sukhbirhooda (April 5th, 2014)

  5. #3

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