उन्होंने बेचा, इन्होने खरीदा...ना भेजना ऐसे देशों में हो दाता|
दुःख तो तब होता है जब कोई बिहार, बंगाल का पत्रकार/समाज-सेवी भी हरियाणा पर यह सवाल उठाता है कि यहाँ तो दुल्हनें भी खरीद कर लाई जाने लगी हैं| मैं पूछता हूँ उन पत्रकारों से कि बेशक दुल्हन खरीदना जितना बड़ा सामाजिक कुकृत्य हो सकता है, क्या उससे कहीं बड़ा बेटियां बेचना नहीं? खरीदार बड़ा दोषी या बेचने वाला? कार्यक्रम करो पर दोनों पक्षों पे करो, आलोचना भी करो पर दोनों पक्षों की करो?
और फिर ऐसा तो है नहीं कि बिहार-बंगाल में बेटियां तभी से बेचीं जाने लगी हैं जबसे हरियाणा वालों ने खरीदनी शुरू की हैं| इस नरजिये से कोई नहीं देखता कि हरियाणा वाले इसके जरिये भी कितना पुन्य का काम कर रहे हैं:
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१) पहले वो लड़कियां जो हैदराबाद, मुंबई, दुबई जैसी जगहों पे देह-व्यापार के लिए जाती थी (और आज भी जो हरियाणा नहीं आती वो वहीँ जाती हैं) तो कम से कम हरियाणा में आके वो घरों कि दुल्हनें तो बनती हैं| एक चीज की कमी के चलते ही सही पर कितनी ही ऐसी लड़कियों का भविष्य देह-व्यापार कि दलदल में गिरने से तो बच जाता है जो हरियाणा के घरों की इज्जत-रोनक बनती हैं|
२) लड़कियों की कमी ही सही, पर इससे अंतरजातीय-विवाह को तो बढ़ावा मिल रहा है|
३) और फिर तुम्हे लडकियां बेचने का मलाल है तो सीधे ब्याह करने शुरू क्यों नहीं करवाते? तब क्या कोई उनको दुल्हन बनाने से इनकार कर देगा? क्यों नहीं कहते उन खरीदने वालों को कि मैं बेटी बेचूंगा नहीं, हाँ तुम्हे दुल्हन बना के ले जानी है तो ले जाओ?
इन बड़बोले पत्रकारों में से जा के समझाएगा कोई उन बेचने वालों को कि तुम्हे बेचने की जरूरत नहीं बल्कि खरीदने वालों के आगे ब्याह के ले जाने का प्रस्ताव रखो तो देखो कोई कैसे नहीं बाजे-गाजे के साथ उनको दुल्हन बना के लायेगा? रिश्ते मधुर बनें जिनसे ऐसे तरीके सोचना तो इनके लिए मुहाल है| हाँ समाज को बाँट के रखने के कार्यक्रम तो इनसे कितने ही करवा लो|
मुझे भी दुःख होता है जब मैं कहीं भी यह सुनता हूँ कि फलाना बिहार-बंगाल से दुल्हन खरीद के लाया है और हर वक्त यही सोचता हूँ कि यह ब्याह के भी तो लाई जा सकती थी| हम हरियाणा के बिहार और बंगाल से शुरू हो चुके, रिश्तों को अब झूठला नहीं सकते लेकिन इनको एक सभ्यता का अमली-जामा तो पहना सकते हैं, इस खरीदारी को बाकायदा शादी का जामा पहना कर, क्या नहीं?
मैं हरियाणा के भी हर उस निवासी से जो ऐसे दुल्हनें लाने का इच्छुक हो, यही दरख्वास्त करना चाहूँगा कि आप पहले उनसे कहिये कि हम आपकी बेटी को बाकयदा ब्याह के ले जाना चाहते हैं, क्योंकि जो आपके घर आ रही है वो आपके बच्चों की माँ होगी, कल आपकी जमीन-जायदाद में बराबर की हक़दार भी होगी, तो एक हकदारी को खरीदिये मत, बाकायदा सामाजिक तौर-तरीकों से ब्याह के विदा करने का अनुरोध कीजिये उनसे, ताकि कल को उस औरत को भी जीवन भर इस अहसास से ना जीना पड़े कि मेरे बाप या घरवालों ने मुझे बेच दिया था और यहाँ मैं खरीद के लाई हुई हूँ|
तो आज के दिन की इस सच्चाई को स्वीकार किया जाए और ऐसे प्रयास शुरू किये जाएँ, जिनसें ऐसी शादियों को खरीदारी के दाग से बचा, बाकायदा अंतर-जातीय और अंतर-राज्यीय विवाहों का जामा पहनाया जा सके?