पेट्रोल डीजल बढ़ा महंगी हो गयी प्याज |
फिर भी महंगाई काबू में बूझो क्या है राज ||
पेट्रोल डीजल बढ़ा महंगी हो गयी प्याज |
फिर भी महंगाई काबू में बूझो क्या है राज ||
महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमा: |
सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||
cooljat (February 16th, 2013), hemanthooda (April 6th, 2014), sivach (February 16th, 2013)
चंद सिक्कों में बिकता है यहाँ इंसान का ज़मीर,
कौन कहता है मेरे मुल्क मैं महंगाई बहुत है।।
कितने मसरूफ हैं हम ज़िन्दगी की कशमकश में, ग़ालिब।
नमाज़ भी जल्दी में पढ़ते हैं, फिर से गुनाह करने के लिए।।
जिस नगर भी जाओ, किस्से है कमबख्त दिल के,
कोई ले के रो रहा हैं, कोई देके रो रहा है।।
जितना सुल्जाओगे यह और भी उलजती जाएगी,
ज़िन्दगी ज़ुल्फ़ नहीं जो संवर जाएगी।।
पढना है तो इंसान को पढने का हुनर सीख,
हर चेहरे पे लिखा है किताबों से ज्यादा।।
मैं और मेरा खुदा दोनों एक से हैं, रोज़ भूल जाते हैं हम,
वोह मेरे गुनाहों को, और मैं उसकी मेहरबानियो को।।
रास्ते कहाँ ख़तम होते हैं ज़िन्दगी के सफ़र मैं,
मंजिल तो वहीँ है जहाँ ख्वाइशे थम जाये।
Cheers
Jit
Last edited by cooljat; February 16th, 2013 at 04:49 PM.
.. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..
bsbana (February 17th, 2013), hemanthooda (April 6th, 2014), ravinderjeet (February 24th, 2013), SandeepSirohi (February 16th, 2013), shivanidhama (March 4th, 2013), sivach (February 16th, 2013), sjakhars (June 29th, 2013)
.
उस देश में कई सूबे थे…
हर सूबा
एक अलग अलग देश सा था
हर सूबे में कई शहर थे
हर शहर
एक एक देश होता था
कोई शहर हिंदुओं का था
कोई शहर मुसलमानों का
सिखों, ईसाईयों के भी कुछ
शहर बन गए थे
और हर ऐसा शहर बन गया था
एक मज़हबी मुल्क
कुछ शहर बचे थे
जो हिंदुओं-मुसलमानों
और बाकियों के नहीं थे
उन शहरों में
हुआ करते थे
हिंदुओं…मुसलमानों
और बाकियों के अलग अलग इलाके
ये इलाके भी
अलग अलग
देश हुआ करते थे
ये देश
सारे सूबों…
शहरों…
इलाकों के देश
अक्सर करते रहते थे
एक दूसरे पर हमला
एक देश का आदमी
नहीं जाता था दूसरे देश की
सीमा के पार
चुनावों में
इनके नेता जीत कर
जाते थे
एक और देश में
जिसे ये लोग कहते थे दिल्ली
और वहीं से
चलाते थे एक साथ
बैठ कर
अलग अलग देशों की हुकूमतें
जहां जो ज़्यादा ताकतवर था
वहीं वो दूसरे पर हमला करता था
हर देश के पेट भरे लोग
इंतज़ार में थे
कि कब धीरे धीरे
हर घर बन जाए एक देश
और इसी बात से ख़ौफ़ज़दा थे
हर देश के भूखे नंगे लोग
हां इन शहरों और इलाकों के
देशों से अलग
थे कुछ गांव भी
जहां से लोग पढ़ लिख कर
आ गए थे शहर
और पीछे छोड़ आए थे
कुछ बचे हुए इंसान
हां इसीलिए
गांव अभी तक देश नहीं बने थे
वहां अभी भी कुछ इंसान
पैदा कर रहे थे
इन तमाम देशों के लिए अनाज
भेज रहे थे चमड़ा
और तैयार कर रहे थे
इनके सोने के लिए चारपाईयां
लेकिन
कुछ देश के लोग तय कर चुके थे
कि गांव को भी
बना कर छोड़ेंगे शहर
फिर शहर से देश…
और
आपको पता है क्या कि
शहर और मोहल्ले,
मुल्क में बदलने के बाद
श्मशान, कब्रिस्तान
और खंडडहरों में बदलते हैं…
Cheers
Jit
.. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..
ravinderjeet (February 24th, 2013), SandeepSirohi (February 25th, 2013), shivanidhama (March 4th, 2013), sivach (February 24th, 2013)
धर्म के झण्डे, जात के फण्डे,
नेताओं के रथ के साथ
गाँव के गुण्डे, सब मुस्तण्डे
नेताओं के रथ के साथ
शंख झालरें, भजन आरती
माइक लाउडस्पीकर संग
मन्दिर के सब घण्टी घण्टे
नेताओं के रथ के साथ
फूल तितलियाँ चाँद चाँदनी
घर के भीतर दुबके हैं
चाकू छुरियाँ लाठी डण्डे
नेताओं के रथ के साथ
तोता मैना पिंजरे में हैं
कोयल है अमराई में
लेकिन सारे गाँव के कुत्ते
नेताओं के रथ के साथ
नेताओं की सभी इन्द्रियाँ
चौकस और भली चंगी
देश के सारे अक्ल के अन्धे
नेताओं के रथ के साथ
महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमा: |
सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||
sivach (February 25th, 2013)
गूँगा, बहरा व अन्धा
है कानून मेरे देश का।
फिर भी चाहिए इंसाफ
देख जुनून मेरे देश का।
महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमा: |
सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||
cooljat (February 28th, 2013), hemanthooda (April 6th, 2014), sivach (February 28th, 2013)
छोडो मेहँदी खडक संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे|
कब तक आस लगाओगी तुम,
बिक़े हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा मांग रही हो
दुशासन दरबारों से|
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आयंगे|
कल तक केवल अँधा राजा,
अब गूंगा बहरा भी है
होठ सी दिए हैं जनता के,
कानों पर पहरा भी है|
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझायेंगे?
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयंगे|
महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमा: |
सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||
.
केवल रावलपिंडी पर मत थोपो अपने पापों को,
दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को|
अपने सिक्के खोटे हों तो गैरों की बन आती है,
और कश्मीर कि घाटी देखो खून से सन जाती है ||
पकड़ गर्दनें उनको खींचों बाहर खुले उजाले में,
चाहे कातिल सात समंदर पार छुपा हो ताले में|
इन सब षड्यंत्रों से परदा उठना बहुत जरुरी है,
पहले घर के गद्दारों का मिटना बहुत जरुरी है||
.. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..
hemanthooda (April 6th, 2014), malikdeepak1 (June 28th, 2013), SandeepSirohi (March 19th, 2013), sivach (March 23rd, 2013), sjakhars (June 29th, 2013)
.
वकील केस में बिक रहा है,
अदालत में जज बिक रहा है,
वर्दी में फर्ज बिक रहा है !
यहाँ सब कुछ बिक रहा है.......
मज़बूरी में इंसान बिक रहा है,
जुल्म का हैवान बिक रहा है,
पैसों कि खातिर ईमान बिक रहा है,
गरीबों का प्राण बिक रहा है !
फिल्मों में गाना बिक रहा है,
गरीब बच्चों का दाना बिक रहा है,
स्कूल का मास्टर बिक रहा है,
अस्पताल का डाक्टर बिक रहा है !
यहाँ सब कुछ बिक रहा है.......
सड़कों पर मन बिक रहा है,
ब्यूटी पार्लरों में तन बिक रहा है,
गरीबों का गुर्दा बिक रहा है,
शर्म-हया का पर्दा बिक रहा है !
सर्कस का जोकर बिक रहा है,
बैंक का लाकर बिक रहा है,
अखबार का हाकर बिक रहा है,
कोठी का नोकर बिक रहा है !
यहाँ सब कुछ बिक रहा है.......
गेट का संत्री बिक रहा है,
पार्टी का मंत्री बिक रहा है,
खिलाडी खेल में बिक रहा है,
कानून जेल में बिक रहा है !
यहाँ सब कुछ बिक रहा है.....
Last edited by cooljat; March 21st, 2013 at 06:09 PM.
.. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..
SandeepSirohi (March 22nd, 2013), shivanidhama (March 21st, 2013), sivach (March 23rd, 2013)
जैसे –जैसे चुनाव निकट आ रहा है
फिजा का आलम बदलता जा रहा है
मिडिया पर जो विशेष कवरेज दिखाया जा रहा है
उसका सार मेरी समझ में कुछ ऐसे आ रहा है
कल तक जो नेता परहेज करता था
साथ में सफर करने से
वो आज उसी कैटल क्लास को
अपना माई- बाप बता रहा है
कल तक जो नेता दबंगई से बात-बात पर
उछाला करता था लोगो की इज्जत बाजारों में
वो आज अपनी इज्जत बचाने के लिए
आँसूओं की गंगा बहा रहा है
और तो और जो नेता vvip था कल तक
आज एक-एक वोट के लिए दर-दर हाथ फैला रहा है
क्या “राज” और क्या “युवराज”
हर कोई वादों के चक्र चला रहा है
कोई आरक्षण का कोटा
तो कोई कोटे-में कोटा देकर लुभा रहा है
कोई मुफ्त में शिक्षा, तो कोई इलाज
कोई बेरोजगारी भत्ता, तो कोई मकान
और कोई शादी कराने का सपना दिखा रहा है
और तो और जिसे कल तक नफरत थी कंप्यूटर के नाम से
वो भी आज मुफ्त में लेपटॉप बाटने का बता रहा है
बावजूद इन तमाम हथकंडो के
कोई भी नेता जनता का मूड समझ नहीं पा रहा है
क्योकि भीड़ में जो आदमी आ रहा है भाषण सुनने के लिए
वो हाथ में काला झंडा लिए एक ही सवाल उठा रहा है
की पिछले चुनाव में जो वादा किया था आपने
उनमे से एक भी पूरा नजर क्यों नहीं आ रहा है ?
ये आसान सा सवाल आलाकमान के माथे पर सलवटे
और नेताओं के मुहं पर ताला लगा रहा है
महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमा: |
सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||
sivach (March 23rd, 2013)
देश की राजनीतिक नगरी में आयोजित महान विभूतियों के पद्म श्री, भूषण और विभूषण सम्मान समारोह में स्वर्ग की परियों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था।
कई दिनों तक सोच-विचार के बाद स्वर्ग के प्रशासन ने यह कहकर परियों को अनुमति नहीं दी कि जब उस देश में उनकी अपनी 'परियां' सुरक्षित नहीं हैं, तो वे हमारी परियों को कितनी सुरक्षा दे पाएंगे? पर परियां ठहरीं परियां! वे अपने रिस्क पर सम्मान समारोह में आ पहुंची। समारोह खत्म होने के बाद जब वे लौट रही थीं कि एक नन्ही परी प्रदर्शनकारियों की भीड़ में बिछुड़ गई। भीड़ से भरी सड़क होने के बाद भी वह अकेली रोती रही।
ढलती सांझ! अपनों का इंतजार करती नन्ही परी लाल किले के पास तिरंगे के नीचे बैठी थी, अपने नन्हे-नन्हे पंख समेटे हुए। इधर-उधर आती-जाती भीड़ को देखती, सहमी-सहमी सी। ऊफ! इत्ते लोग! उसे लग रहा था कि वह कहीं सुरक्षित हो या न हो, तिरंगे के नीचे तो सुरक्षित रहेगी ही।
तभी विक्रम के घर जाता बेताल उधर से गुजरा। अचानक उसकी नजर खुद में सिमटी नन्ही परी पर पड़ी। उसके बंजर मन में पता नहीं कहां से वात्सल्य उमड़ आया। वह ऑटो से उतरा और उसके पास जा पहुंचा। उसने नन्ही परी को अपनी बांहों में भरने की कामना करते हुए कहा, हे नन्ही परी! तुम यहां कैसे? देखो तो सांझ ढल रही है।
आओ, मैं तुम्हें घर छोड़ दूं! नन्ही परी ने उससे दूर होते हुए कहा, नहीं! मैं यहां सुरक्षित हूं। तिरंगे के नीचे! मेरे घरवाले लेने आ रहे हैं। बेताल थोड़ा और नजदीक आते हुए बोला, अरी पगली! तुम जैसी तो यहां दिन में भी सुरक्षित नहीं रहतीं। चलो मेरे घर!
देखो, मैं तुम्हारे फूफा-सा हूं। नहीं! मुझे इस देश के हर फूफा से डर लगता है, कहकर वह नन्ही परी परे हो गई, तो बेताल ने फिर कहा, अच्छा चलो तुम्हारे मामा-सा हूं!
नहीं, मुझे इस देश के मामा से भी डर लगता है। तो ठीक है, मैं तुम्हारे पिता-सा हूं! नहीं, मुझे इस देश के हर पिता से डर लगता है, कहकर वह नन्ही परी और किनारे हो गई।
यह देखकर बेताल ने खुद पर थूकते हुए कहा, अरी पगली! मैं आदमी नहीं हूं! बेताल हूं बेताल...
बेताल ने ज्यों ही यह कहा, नन्ही परी उठी और चुपचाप बेताल की पीठ पर जा चढ़ी, मुस्कुराती हुई, खिलखिलाती हुई!
--अमर उजाला
महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमा: |
सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||
Malikpriya (April 23rd, 2013), op1955 (April 23rd, 2013), rskankara (June 28th, 2013), sivach (April 23rd, 2013)
मामा मामा भूख लगी, खाले बेटा घूस बड़ी;
घूस में पकडे जाना नहीं, वरना हम तुम्हरे मामा नहीं;
मामा चढ़ गया रेल में, घूस की धक्कम पेल में;
छुकछुक छुकछुक अफसर आते, खूब मलाई देकर जाते;
मामा बस गया दिल्ली, वहां थी काली बिल्ली;
... बिल्ली ने मारा पंजा, मामा होगया गंजा;
जनपथ की थी रानी; बिल्ली जी की नानी;
नानी जी का पंजा, सबको कर दिया नंगा;
मामा जनपथ जायंगे, नानी को खिलायंगे;
बिल्ली को डराएंगे, खूब मलाई खायंगे l
मीठे बोल बोलिये क्योंकि अल्फाजों में जान होती है,
ये समुंदर के वह मोती हैं जिनसे इंसानों की पहचान होती है।।
cooljat (May 31st, 2013), hemanthooda (April 6th, 2014), rskankara (June 28th, 2013), SandeepSirohi (May 9th, 2013), sjakhars (June 29th, 2013)
सच का सफर अधरों पे दम तोड़ता है झूठ की नजर डोलती है आसमान में |
यार इस सीजन में कितना उड़ाया माल एक नेता पूछता है दूसरे से कान में ||
कुछ ने किया है खेल, खेल में ही रेल पेल सैटिंग बिठाई कईयों ने फोनफान में |
कुछ थो आदर्श हुये सागर किनारे जाके और बाकी कूद गये कोयला खदान में ||
कुछ अधरों की प्यास इतनी वढी कि वस सारी मधुशाला को प्याला कर लिया है |
और कुछ भूख इतनी हुयी है विकराल पूरे संविधान को निवाला कर लिया है ||
माल देश का उड़ा के खुश है दलाल और अपनी ही खाल को दुशाला कर लिया है |
मुंह चूंकि देश को दिखाने लायक नहीं था इसलिये कोयले से काला कर लिया है। ||
भोर की सुनहरी डालियों पे बैठे पंक्षियों को भूख के डरावने ख्यालों से बचाईये |
खुद को तलाश करते जवान लम्हों की शाम को लरजते प्यालों से बचाईये ||
कि कैसे कहॉ कौनसी मुसीबत उठाये सर आम आदमी को इन ख्यालों से बचाईये |
और सारी मुश्किलों के निकलने लगेंगे हल पहले इस देश को दलालों से बचाईये ||
लोकतन्त्र की विडम्बना है और कुछ नहीं जाने किस किस को सलाम सोंप दिया है |
आज तक ठीक से समझ में यह आया नहीं जाने किस बात का इनाम सोंप दिया है ||
जो हैं तानाशाही वाली सोच के गुलाम उन्हें आज सारे हिन्द का निजाम सोंप दिया है |
जिन्हें बैठना था पान की दुकान पर उन्हें देश का चलाने वाले काम सोंप दिया है ||
महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमा: |
सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||
.
दिन-ब-दिन गरीब होती हुई आखें
तेंदू के पत्तों पर गिरते हैं कसैले आंसू
सूख जाते हैं, बीड़ियाँ यूँ ही कड़क नही होतीं
.. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..
hemanthooda (April 6th, 2014), rskankara (June 28th, 2013), SandeepSirohi (June 24th, 2013), sivach (June 13th, 2013)
चुनावी मानसून पर मेरी एक छोटी सी तल्खी :
हैं फिर वही काफिले कारों के, वही शोरगुल वो पंचवर्षीय गहमागहमी,
श्वेताम्बर नेता-दल फिर आया है मिटाने को जनता की ग़लतफ़हमी
अपराध बोध से भरे हुए पुष्पमाला से लदे हुए नेता जी रथ पर चढ़े खड़े,
झाड़ रहे हैं भाषण, लम्बी पदयात्रा से लेकिन पैरों में छाले भी हैं खूब पड़े
आराम छोड़ कर बंगले का नेता जी देखो कैसे गाँव की धूल फांक रहे हैं
ढाई मन का पेट लिए वोट मांगने गली गली और घर घर में झांक रहे हैं
मगर चंद दिनों की ये मेहनत पांच साल तक चेहरे की चमक जगाएगी
अतीत भूल कर भोली जनता जाति के नाम पर फिर से मोहर लगाएगी
फिरका परस्ती, वंशवाद, जात धर्म का परचम अब हर खेमे में लहराता है i
लेकिन भूख, बेकारी, भ्रष्टाचार और व्यभिचार का मुद्दा यहाँ कम नज़र आता है i
किसी के हाथ में हरी पताका, कोई केसरिया पगड़ी सर पर धरे खड़ा है
कोई बैठा हाथी पर थामे नीला परचम, किसी के गले में तिरंगा पड़ा है
कुछ केसरिया सन्यासी भी अब प्रभावित हैं सत्ता की पांच वर्षीय अय्याशी से
ऊब चुके हैं साँस फुलाऊ क्रिया, आध्यात्म के पाखंड और भक्तों की धन राशि से
malikdeepak1 (June 28th, 2013), prashantacmet (June 28th, 2013), rskankara (June 28th, 2013), SandeepSirohi (June 28th, 2013)
VP Sir, aap ye urdu ke word maat likha karo yahan par. Ye acceptable nahi hai JL par
singhvp (June 28th, 2013)
ranvirsingh4 (June 28th, 2013), singhvp (June 28th, 2013)