पृथ्वी के निवासियों द्वारा मंगल ग्रह पर भेजे गए अथवा भविष्य में भेजे जानेवाले अनुसंधान यान भले ही हमें अमूल्य जानकारी प्रदान कर सकते हैं परन्तु यदि ये यान पृथ्वी पर पुनः लौटेंगे तो वे अपने साथ बिन बुलाए अतिथियों को भी ला सकते हैं। भले ही ये हरी चमड़ी वाले मनुष्य नहीं होंगे। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये अत्यंत सूक्ष्म जीव हो सकते हैं जो पृथ्वी के निवासियों के लिए एक भयंकर ख़तरा बन सकते हैं।

अमरीका द्वारा मंगल ग्रह पर भेजे गए रोवर “क्युरियोसिटी” पर लगे एक खोज-यंत्र ने अभी हाल ही में इस ग्रह पर मीथेन गैस की उपस्थिति का पता लगाया है। इस गैस की उपस्थिति का अर्थ यह है कि मंगल ग्रह पर जीव और पौधे भी अस्तित्व में हो सकते हैं। पौधों और जीवों के कारण ही पृथ्वी पर मीथेन गैस उत्पन्न होती है। अब प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या मंगल ग्रह पर वास्तव में जीव-जंतु और पौधे अस्तित्व में हैं? वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मंगल ग्रह पर वर्तमान में बुद्धिमान प्राणी तो संभवतः नहीं रहते हैं किन्तु वहाँ अति सूक्ष्म अविकसत जीवों की उपस्थिति से ना नहीं किया जा सकता है। इस संबंध में रूसी विज्ञान अकादमी के अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान के एक वरिष्ठ शोधकर्ता मक्सिम मक्रोऊसोव ने "रेडियो रूस" को बताया-

"मंगल ग्रह पर अभी तक स्वयं सूक्ष्म जीव तो नहीं मिले हैं परन्तु मंगल के वातावरण में मीथेन गैस की उपस्थिति का पता चला है। इसका अर्थ यह है कि वहाँ जीवन भी है। यदि ऐसा नहीं है तो हम इस प्रश्न का उत्तर भी नहीं दे सकते हैं कि यह गैस वहाँ कहाँ से आई? विज्ञान हमें बताता है कि वातावरण में मीथेन गैस की उपस्थिति तब ही संभव हो सकती है यदि इस स्थान पर जीवों की निरंतर गतिविधियां होती हों। मीथेन गैस वास्तव में बहुत शीघ्र ही अन्य गैसों के साथ पुनर्संयोजित होकर लुप्त हो जाती है।"
वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे "अतिथियों" को मिलने से बचने में ही हमारी भलाई है। इस प्रकार के बैक्टीरिया ने अंतरिक्ष स्टेशन 'मीर' को लगभग नष्ट ही कर दिया था। एक ही स्थान पर उनके जमावड़े के कारण अंतरिक्ष स्टेशन 'मीर' के कई उपकरणों ने काम करना बंद कर दिया था। इसी प्रकार की घटनाएं अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भी घट चुकी हैं। ये बैक्टीरिया पृथ्वी से वहाँ पहुँचाए गए थे। अंतरिक्ष में इनका विकास बहुत तीव्र गति से होता है। इस संबंध में मक्सिम मक्रोऊसोव ने कहा-
"हमारी पृथ्वी पर हवाएं चलती रहती हैं, अर्थात हमारी पृथ्वी पर वेंटिलेशन होती रहती है। अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आई.एस.एस.) पर वेंटिलेशन नहीं होती है। वहाँ कोई गुरुत्वाकर्षण भी नहीं है, हर स्थान पर हवा निश्चल होती है। ऐसे वातावरण में बैक्टीरिया का विकास बहुत तीव्र गति से होता है। अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर जो अंतरिक्ष यान भेजे जाते हैं उनको पूर्ण रूप से स्वच्छ किया जाता है परन्तु फिर भी कुछ न कुछ फफूंद उनके साथ चले ही जाते हैं और अंतरिक्ष में जाकर वे बड़ी तीव्रता से बढ़ते हैं। यदि आप इंटरनेट में जाकर अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर स्थापित पैनलों के चित्र ध्यान से देखें तो आपको वहाँ भारी मात्रा में फफूंद दिखाई देंगे।"
इस मामले में इन सूक्ष्म जीवों की संख्या का उतना महत्त्व नहीं है जितना उनके गुणों का महत्त्व है। नए वातावरण में वे उत्परिवर्तित हो जाते हैं, बदल जाते हैं। आप इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि यदि त्रुटिवश किसी अन्य ग्रह से पृथ्वी पर ऐसे सूक्षम जीव पहुँच जाएं तो फिर क्या हो सकता है? लोगों को नए घातक विषाणुओँ का सामना करना पड़ सकता है। इस बारे में रूसी विज्ञान अकादमी के पर्यावरण और जैव-चिकित्सा संस्थान की सूक्ष्म जीव-विज्ञान तथा रोगाणुरोधी प्रयोगशाला की प्रमुख नताल्या नोविकोवा ने कहा-
"अंतरिक्ष यान को दूसरे ग्रहों की और भेजने से पूर्ण रूप से सेस्टेरलाइज़ नहीं किया जा सकता है। पूरे प्रयासों के पश्चात भी कुछ न कुछ सूक्ष्म जीव इन यानों पर रह सकते हैं। और जब वे दूसरे ग्रह के वातावरण में रहकर पुनः पृथ्वी पर लौटेंगे तो हम इन जीवों के गुणों में आए परिवर्तन का अग्रिम अनुमान नहीं लगा सकेंगे।"
दूसरे ग्रह का वातावरण सूक्ष्म जीवों के गुणों में गंभीर परिवर्तन कर सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि आज इन परिवर्तनों को पहचान पाना एक असंभव कार्य है और यदि मंगल ग्रह के निवासी (अति सूक्षम जीव) और पृथ्वी से मंगल पर जानेवाले सूक्ष्म जीव एक साथ पृथ्वी पर पुनः लौटेंगे तो वे मानवजाति के लिए कई नई कठिनाईयों का स्रोत बन जाएंगे।
source : hindimedia.in