राहुल गांधी और उनकीपार्टी अपनी हर सभा में आरटीआई को लाने का श्रेय लेती हैं, लेकिन अब अपनी पार्टी कोइसके दायरे से बाहर रखना चाहते हैं। जेडी(यू), एनसीपी और सीपीआई (एम) ने भीआरटीआईमें आने के विरोधी है। और तो औरअपने आप को दूध की धुली कहने वाली बीजेपी,जो भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दाबनाना चाहती है, लेकिन बतौर राजनीतिक पार्टी आरटीआई के दायरे में आने से नानुकर कर रही है। राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाने केफैसले के खिलाफ करीब-करीब सभी प्रभावित पार्टियां खुलकर बोला हैं। इनको डर सता रहा है कि आरटीआई के दायरे में आने सेफंड को कर कई तरह के सवाल पूछे जाएंगे। राजनीतिक पार्टियों को कॉर्पोरेट घरानोंसे चंदे के नाम पर मोटी रकम मिलती है। सिर्फ 20 हजार से ज्यादा की रकम परपार्टियों को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को सूचना देनी होती है,परंतु असलियत यह है कि पार्टियां ज़्यादातर पैसा 20 हजार से कम की कई किस्तों में पैसा दिखाती हैं। ऐसेमें पता नहीं चलता है कि किसने कितनी रकम दी है और क्यों दी है।
कांग्रेस : केंद्रीय सूचना आयोग का यह फैसला लोकतंत्र पर चोट है। और इस फैसले का विरोध करती है
बीजेपी : शुरू में कुछ भी खुलकरबोलने से परहेज किया लेकिन जैसे ही कांग्रेस ने इसकाविरोध किया,तो बीजेपी ने कहा कि सीआईसी का यह फैसला लोकतंत्र केलिए अच्छा नहीं है।
क्या इस मुददे पर बीजेपी कांगेस के साथ है?