गोस्वामी तुलसीदास ने कलियुग के कुछ लक्षण बताये हैं श्री रामचरित मानस के उत्तर कांड में.. जो त्रिकालदर्शी कागभुषुण्ड जी ने हरिवाहन गरुण जी को बताए थे.. जो नजर आनो लगे हैं.. उनमें से कुछ लक्षण...
कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भये सदग्रंथ
दम्भिंह निज मति कल्पि करी प्रगट किये बहु पंथ
(शाश्वत धर्म कलयुग का ग्रास बन जायेगा, सच्चे ग्रंथअर्थात वेद विलुप्त हो जायेंगे और दंभी अपनीनीच बुद्धि के अनुसार नये नये पंथ पैदा करेंगे)

असुध बेश भूषन धरे भच्छाभच्छ जे खाही
तेई जोगी तेई सिद्ध नर पूज्य ते कलिजुग माहि
(जो अशुभ भेष भारण करेंगे और जो खाने योग्य है और नहीं है.. जैसे मांसाहार का सेवन करेंगे.. वही कलियुग में योगी और सिद्ध पुरुष कहलायेंगे उन्हीं की पूजा होगी)
श्रुति सम्मत हरी भक्ति पथ संजुत बिरति बिबेक.
तेहि न चलहि नर मोह बस कल्पहि पंथ अनेक
( लोग वेदानुसार हरि की भक्ति न करके मोह के वशीभूत होतर नये नये धर्म और भगवान बना देंगे)
साई पूजा करने से पहले .. रामचरित मानस ही पढ लेते जिसमें चारहु वेद पुराण अष्टदस
छहु शास्त्र सब ग्रंथन को रस...शायद कुछ सदबुद्धि आ जाती.