भाई, अपनी पोस्ट में फूल कुमार नै तप और संयम की बात कही थी। मैंने पूछ लिया कि क्या आपने ऐसा कुछ किया है? अब मैंने ये थ्रेड शुरू किया तो उस तर्ज पर आपको मेरे से ये पूछना चाहिए था कि तुम दूसरों पर उंगली उठा रहे हो, क्या तुम खुद को हिंदू जाट मानते हो? मेरा जवाब है 'हां' तो मैं इस थ्रेड को शुरू करने का हकदार बस इसी बात से बन गया।
खैर, जब आपने ये बात छेड़ ही दी तो सुनो : मैं जहां भी होता हूं, वहां मेरा प्रयास रहता है कि जाटों की शान बढ़े, चाहे वो मेरा पड़ोस हो, चाहे गांव हो और चाहे ऑफिस। मैं इसमें कामयाब भी रहा हूं। आज तक कोई भी ये नहीं कह सकता कि मैंने किसी का 1 रुपया भी मारा है। मेरा जो रोजगार है, उसमें मैं इतना बढ़िया काम करके देता हूं कि जिसके संपर्क में आ जाता हूं, वो फिर मुझे अपने साथ जोड़े रखने का प्रयास करता है, चाहे उसके लिए उसे मेरे पैरों में ही क्यों न गिरना पड़े। अपने चरित्र पर और अपनी ईमानदारी पर मुझे नाज है। मैंने कभी अपनी बेइज्जती नहीं होने दी। किसी ने ऐसा करने का प्रयास किया तो मैंने फिर उसकी दुगनी बेइज्जती कर दी। जहां मैं रहता हूं, वहां कोई कहता है कि हमने उपेन्द्र जैसा आदमी ही नहीं देखा। मैं ऑफिस में होता हूं तो वहां कहीं से मेरे कानों में सुनाई पड़ता है कि उपेन्द्र तो अपनी लाइन का मास्टर ब्लास्टर है, क्योंकि उन्होंने कोई मेरे जैसा बढ़िया और मेरे जितने काम करने वाला ही नहीं देखा। फिर कहीं से मुझे ये सुनने को मिलता है कि हमने उपेन्द्र जैसा चरित्रवान आदमी ही नहीं देखा। दुष्ट और पापी लोग तो मेरे से घबराने ही लग गए कि ये आदमी आने वाले समय में कहीं कुछ बड़ा बवाल न निकले।
15 साल पहले जिस उपेन्द्र ने 2000 रुपए महीने की मामूली ड्राइवर की नौकरी पर टेंपो तक चलाया हुआ है, वो आज देश की नंबर 1 खेल पत्रिका का संपादक है (हालांकि मैं इससे संतुष्ट नहीं हूं और मेरा लक्ष्य कुछ और है)। अभी मेरी तपस्या जारी है, जैसे ही वो सिद्ध हो जाएगी तो बड़े स्तर पर भी हिंदुओं/जाटों का नाम रोशन कर दूंगा। अगर सिद्ध नहीं हुई तो कम से कम मैंने प्रयास तो किया। अब इससे ज्यादा और क्या शान बढ़ाऊं मैं हिंदुओं/जाटों की?