एक सैनिक जो कम उम्र में
शहीद हो गया..
और मरते वक़्त उसने
अपनी माँ को क्या खत
लिखा होगा....!!
सीमा पे एक जवान
जो शहीद हो गया,
संवेदनाओं के कितने बीज
बो गया,
तिरंगे में लिपटी लाश
उसकी घर पे आ गयी,
सिहर उठी हवाएँ,
उदासी छा गयी,
तिरंगे में रखा खत
जो उसकी माँ को दिख
गया,
मरता हुआ जवान उस खत में
लिख गया,
बलिदान को अब आसुओं से
धोना नहीं है,
तुझको कसम है
माँ मेरी की रोना नहीं है।
मुझको याद आ रहा है
तेरा उंगली पकड़ना,
कंधे पे बिठाना मुझे
बाहों में जकड़ना,
पगडंडियों की खेतों पे मैं
तेज़ भागता,
सुनने
को कहानी तेरी रातों को जागता,
पर बिन सुने
कहानी तेरा लाल
सो गया,
सोचा था तूने और कुछ और
हो गया,
मुझसा न कोई घर में तेरे
खिलौना नहीं है,
तुझको कसम है
माँ मेरी की रोना नहीं है।
सोचा था तूने अपने लिए
बहू लाएगी,
पोते को अपने हाथ से
झूला झुलाएगी,
तुतलाती बोली पोते
की सुन न सकी माँ,
आँचल में अपने कलियाँ तू चुन
न सकी माँ,
न रंगोली बनी घर में न
घोड़े पे मैं चढ़ा,
पतंग पे सवर हो यमलोक मैं
चल पड़ा,
वहाँ माँ तेरे आँचल
का तो बिछौना नहीं है,
तुझको कसम है
माँ मेरी की रोना नहीं है।
बहना से कहना राखी पे
याद न करे,
किस्मत को न कोसे कोई
फरियाद न करे,
अब कौन उसे चोटी पकड़
कर चिढ़ाएगा,
कौन भाई दूज
का निवाला खाएगा,
कहना के भाई बन कर
अबकी बार आऊँगा,
सुहाग
वाली चुनरी अबकी बार
लाऊँगा,
अब भाई और बहना में मेल
होना नहीं है,
तुझको कसम है
माँ मेरी की रोना नहीं है।
सरकार मेरे नाम से कई फ़ंड
लाएगी,
चौराहों पे
तुझको तमाशा बनाएगी,
अस्पताल स्कूलों के नाम
रखेगी,
अनमोल शहादत का कुछ
दाम रखेगी,
पर दलाओं की इस
दलाली पर तू थूक
देना माँ,
बेटे की मौत की कोई
कीमत न लेना माँ,
भूखे भले मखमल पे
हमको सोना नहीं है,
तुझको कसम है
माँ मेरी की रोना नहीं है।
(Mranali Sharma)