ब्रिटिश साम्राज्य के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए गवर्नर जनरल ने भारतीयों पर विभिन्न कानून थोपे थे। यह स्पष्ट है कि भारत में राज्य पदों पर बैठे लोग तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य के प्रतिनिधि थे और उनका मकसद कानून बनाकर जनता को न्याय सुनिश्चित करना नहीं बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करना, उसकी पकड को मजबूत बनाए रखना था और बदले में अच्छे वेतन-भत्ते, सुख-सुविधाएँ व वाही-वाही लूटना था। इसी कूटनीति के सहारे ब्रिटेन ने लगभग पूरे विश्व पर शासन स्थापित कर लिया था और एक समय ऐसा था जब ब्रिटिश साम्राज्य में कभी भी सूर्यास्त नहीं होता था अर्थात उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम तक उनका ही साम्राज्य दिखाई देता था।


उनके साम्राज्य के पूर्वी भाग में यदि सूर्यास्त हो रहा होता तो पश्चिम में सूर्योदय हो रहा होता था। इसी क्रम में बेंजामिन फ्रेंक्लिन ने ब्रिटिश सम्राट व मंत्रियों को भी ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार हेतु कूटनीतिक मूल मन्त्र दिया था। बेंजामिन फ्रेंक्लिन ने ऐसा ही सुझाव देते हुए कहा था कि यदि प्रजाजन स्वतन्त्रता की मांग करें, परिवर्तनकारी विचारों का पोषण करें तो उन्हें दण्डित करें। वे चाहे कितना ही शांतिपूर्ण ढंग से जीवन यापन करें, शासन के प्रति अपना लगाव रखें, धैर्यपूर्वक आपके अत्याचारों को सहन करें तो भी उन्हें क्रांतिकारी ही समझें उनसे गोलियों और डंडे से निपटें और दबाये-कुचले रखें। यद्यपि शासन की शक्ति लोगों के विचारों पर निर्भर करती है किन्तु राजा की इच्छा को सर्वोपरि समझें। यदि आप अच्छे और बुद्धिमान लोगों को वहां गवर्नर बनाकर भेजेंगे तो वे समझेंगे कि उनका राजा अच्छा है और उनका भला चाहता है। यदि आप विद्वान और सही लोगों को वहां जज नियुक्त करोगे तो लोग समझेंगे कि राजा न्यायप्रिय है।इसलिए आप इन पदों पर नियुक्ति करने में सावधानी बरतें।

यदि आप कुछ हारे हुए जुआरियों, सटोरियों व फिजूलखर्ची लोगों को वहां गवर्नर बनकर भेजें तो वे इस पद के लिए बड़े उपयुक्त होंगे क्योंकि लोगों का शोषण कर वे उन्हें उद्वेलित करेंगे। झगडालू और अनावश्यक बहसबाजी करने वाले वकीलों को भी न भूलें क्योंकि वे अपनी छोटी सी संसद में हमेशा विवाद खडा करते रहेंगे। अटोर्नी क्लर्क और नए वकील मुख्य न्यायाधीश के पद के लिए बड़े माफिक रहेंगे और वे आपके विचारों से प्रभावित रहेंगे। इन प्रभावों की पुष्टि और गहरे प्रभाव के लिए, जब कभी भी कोई पीड़ित कुप्रबन्ध, उत्पीडन या अन्याय की शिकायत लेकर आये तो ऐसे लोगों को भरपूर देरी, खर्चे से जेरबार कर और अंतत: पीड़ित करने वाले के पक्ष में निर्णय देकर शिकायतकर्ता को ही दण्डित करें। ऐसा करने का यह सुप्रभाव होगा कि भविष्य में होने वाली शिकायतों और मुकदमों पर स्वत: अंकुश लगेगा तथा स्वयम गवर्नर और जज, अन्याय व उत्पीडन करने के लिए आगे और प्रेरित होंगे जिससे लोग हताश होंगे। जब ऐसे गवर्नर यह महसूस करने लगें कि वे लोगों के बीच सुरक्षित नहीं रह सकते तो उन्हें वापिस बुला लिया जाये और उन्हें पेंशन से नवाजें । इससे नए गवर्नर भी यही मार्ग अपनाने को प्रेरित होंगे और सर्वोच्च सरकार को स्थायित्व प्रदान करेंगे।

जनता पर नए नए कर लगायें। जब जनता अपनी संसद को शिकायत करें कि उन पर ऐसी संस्था कर लगा रही है जहां उनका कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है और यह सामान्य अधिकारों के विपरीत है। वे अपनी शिकायतों के निवारण के लिए प्रार्थना करेंगे ।संसद को उनके दावों को ख़ारिज करने दें और यहाँ तक कि उनकी प्रार्थनाओं को पढने से ही मना कर दें, और प्रार्थियों के साथ उल्लंघनकारी की तरह बर्ताव करें। इस सब को सुकर बनाने के लिए ऐसे जटिल और अंतहीन कानून बनायें कि उनकी पालना और याद रखना असंभव हो। जनता की प्रत्येक विफलता के लिए उनकी सम्पति जब्त करें। ऐसी सम्पति के दावों के मुकदमों को जूरी से वापिस लेलें और इसे ऐसे मनमाने जजों को सौंपें जिन्हें आपने नियुक्त किया हो तथा जो देश में निकृष्टतम चरित्र वाले हो व जिनके वेतन भत्ते इस सम्पति की कीमत से जुड़े हों व उनका कार्यकाल आपकी कृपा पर निर्भर हो।

बेंजामिन ने आगे यह परामर्श दिया कि तब यह भी घोषणा कर दें कि आपके आदेशों की अवहेलना देशद्रोह होगा और ऐसा करनेवाले संदिग्ध लोगों को पकड़कर सम्राट के न्यायालय में सुनवाई के लिए लन्दन भेज दें। सेना का एक नया न्यायालय बना दें जिसे निर्देश हों कि ऐसे लोग यदि अपनी निर्दोषिता की कोई गवाही देना चाहें तो उन्हें खर्चे से बर्बाद कर दें और यदि वे ऐसा न कर सकें तो उन्हें फांसी पर लटका दें। ऐसा करने से लोगों को यह विश्वास हो जाएगा कि यह कोई ऐसी शक्ति है जिसका धर्म ग्रंथों में उल्लेख हो जो न केवल उनके शरीर बल्कि उनकी आत्मा को ही मार देगी। लोगों पर कर लगाने के लिए, जहां तक संभव हो सबसे घटिया दर्जे के उपलब्ध निकृष्टतम लोगों का बोर्ड बनाकर भेजें। इन लोगों के वेतन-भत्ते, सुख-सुविधाएँ मेहनतकश जनता के खून पसीने की कमाई के शोषण से उपजते हों क्योंकि राजा ने कोई खर्चा नहीं देना है।

ऐसे लोगों के सभी वेतन-भत्ते, सुख सुविधाओं पर कोई कर न लगे और इनकी सम्पति कानूनन सुरक्षित रहे। यदि किसी राजस्व अधिकारी पर जनता के प्रति नरमी का ज़रा भी संदेह हो तो उसे तुरंत निकाल फेंके। यदि अन्य राजस्व अधिकारियों के विरूद्ध कोई जायज शिकायत भी हो तो उसका संरक्षण करें। सबसे अच्छा तो यह रहेगा कि कि लोग असंतुष्ट रहें, उनका सम्मान-मनोबल घटे और उनमें पारस्परिक लगाव-प्रेम घटता जाए जिससे आपके लिए शासन करना आसान हो जाएगा।

आज भी भारत में एक सेवानिवृत न्यायाधीश का चित्र गलती से मीडिया द्वारा दिखा दिए जाने से मानहानि की कीमत 100 करोड़ रुपये आंकी जाती है किन्तु हिरासत में मरने वाले व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन का मूल्य ही 2 लाख रूपये आंककर न्यायिक कर्तव्य की बलि दे दी जाती है, वहीं हम कानून का राज होने और स्वतन्त्रता का झूठा दम भरते हैं जबकि समाजवाद व न्याय का सिद्धांत कहता है जिसे जीवन में कम मिला हो उसे कानून में अधिक मिलना चाहिए। क्या हमारे जज और वकील इसे याद नहीं रख पाते हैं या कुछ अन्य गोपनीय कारण कार्य कर रहे हैं। भारत की वर्तमान शासन व न्याय व्यवस्था भी हमें अंग्रेजी शासन से विरासत में मिली हुई है और उसका हमने आज तक प्रजातांत्रिकीकरण नहीं किया है- जजों को देवतुल्य मान लिया है- बल्कि पोषण कर इसे आगे बढाया है। अब विद्वान् पाठक स्वतंत्र चिन्तन और मूल्याङ्कन करें कि हमारी विद्यमान व्यवस्था में क्या बेंजामिन द्वारा सुझाई गयी उक्त व्यवस्था से कोई भिन्नता है और हमें इसमें कैसे परिवर्तन करने की आवश्यकता है जिससे वास्तविक अर्थों में लोकतंत्र स्थापित हो सके।
मनीराम शर्मा