उपरोक्त वर्णित चरित्र व्यवहार्य रूप से जाट के घर की दीवारों का Wallpaper होना चाहिए था। लेकिन हम लोगों में से कितने लोग इस कवि के बारे में जानते हैं, यह जान कर हमें शर्मिंदगी तो जरूर होगी। हाँ, मुझे यह जानकार कोई आश्चर्य नहीं हुआ कि वह पंजाब की धरती से निकला था। हम पंजाब को मिलाकर बेशक हमारी इज्ज़त-आफजाई कर लें, लेकिन हरियाणा की संस्कृति में ऐसी शख़्सियत तो दुर्लभ है ही, हम इन धरोहरों को इज्ज़त बख़्शने में भी कोताही बरतते हैं। इतिहास तथा संस्कृति हमारी धरती से पंजाब के साथ ही चले गए। बौद्धिक स्तर निम्नतम बिन्दु पर जाने को है। आलोचनात्मक रवैय्या रखने वाला व्यक्ति अपवाद भले ही खोज कर इस सच्चाई का मुंह मोड़ दें। लेकिन वास्तविकता यह है कि हम लोगों ने विचार करना छोड़ दिया है, किसी दूसरे को धैर्यपूर्वक सुनना, हमारे खून की अल्हड़ता स्वीकार नहीं करती।
कहने को तो कोई इस व्यक्ति का संबंध अतिवाद से जोड़कर बहस को खत्म कर सकता है। इस हस्ती की रचनाओं को पढ़ कर आप अपनी-2 टिप्पणियाँ यहाँ दे सकते हैं। लेकिन इस Thread का अंजाम उसकी रचनाओं के स्तरानुसार ही हो, यह सुनिश्चित करने की हम कोशिश कर सकते हैं। हालांकि हर कोई अपना-2 मत रखने के लिए स्वतंत्र है। और लोकतन्त्र यही कहता है कि हम किसी को किसी बात के लिए बाध्य नहीं कर सकते, चाहे वह भली हो अथवा बुरी। जितनी भी आठ-दस रचनाएँ मेरे पास हैं, वह एक-एक कर मैं हर रोज़ Attach करने की कोशिश करूंगा।
यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना जमीर होना जिंदगी के लिए शर्त बन जाये
आंख की पुतली में हां के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दंडवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है.
हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र चीज
जिसमें उमस नहीं होती
आदमी बरसते मेंह की गूंज की तरह गलियों में बहता है
गेहूं की बालियों की तरह खेतों में झूमता है
और आसमान की विशालता को अर्थ देता है
हम तो देश को समझे थे आलिंगन-जैसे एक एहसास का नाम
हम तो देश को समझते थे काम-जैसा कोई नशा
हम तो देश को समझते थे कुरबानी-सी वफा
लेकिन गर देश
आत्मा की बेगार का कोई कारखाना है
गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है
तो हमें उससे खतरा है
गर देश का अमन ऐसा होता है
कि कर्ज के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह
टूटता रहे अस्तित्व हमारा
और तनख्वाहों के मुंह पर थूकती रहे
कीमतों की बेशर्म हंसी
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो
तो हमें अमन से खतरा है
गर देश की सुरक्षा को कुचल कर अमन को रंग चढ़ेगा
कि वीरता बस सरहदों पर मर कर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा
अक्ल, हुक्म के कुएं पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है.
अवतार सिंह संधू 'पाश'