मेहनत मजदूरी करने में,
कभी नहीं शरमाई अम्मा।
ठाठ-बाट औरों के देखे,
फिर भी ना भरमाई अम्मा।
पूरे घर में झाड़ू देकर,
मंदिर भी हो आई अम्मा।
कभी किसी पे गुस्सा ना हो,
मन में रखे समाई अम्मा।
पूरा घर जब खा पी लेता,
फिर चौके में आई अम्मा।
बचा कुचा वह खुद खा लेती,
नहीं जुबां पर लायी अम्मा।
बच्चे जब बीमार हुये तो,
कभी नहीं सो पाई अम्मा।
बच्चों के दुःख मुझको दे दो,
यह अरदास लगाई अम्मा।
मेहमां जब कोई घर आया,
कभी नहीं अलसाई अम्मा।
आस पास का करके चलती,
सबके दिल में छाई अम्मा।
बापू की आमदनी कम थी,
फिर भी ना घबराई अम्मा।
एक आँख में दवा डालकर,
पूरी उमर बिताई अम्मा।
बच्चे उसके पढ़ लिख जाये,
गिरवी सब रख आई अम्मा।
दो धोती में बरसों काटे,
कभी नहीं झल्लाई अम्मा।
पोते पोती जब भी चिपटे,
फूली नहीं समाई अम्मा।
आँगन में दीवार उठी तो,
आँखे भर-भर लाई अम्मा।
जीवन अपना होम कर दिया,
और रोशनी लाई अम्मा।
उसने तो सबको पाला था,
सबसे ना पल पाई अम्मा।
लाख विपत्ति घर पर आयीं,
फिर भी ना मुरझाई अम्मा।
अब भी औरों से अच्छे है,
बात यही समझाई अम्मा।
- नरेन्द्र गोयल, पिलखुवा