राजस्थान के वर्तमान बीकानेर जिले में स्थित गाँव बिग्गा व रिड़ी में जाखड़ जाटों का भोमिचारा था। ओर लम्बे समय तक जाखड़ों का इन पर अधिकार बना रहा। बिग्गा जी का जन्म विक्रम संवत 1358 (1301) में रिड़ी में हुआ। हिन्दू धर्म के संरक्षक और महान गौ रक्षक बिग्गाजी ने बैसाख सुदी तीज को 1336 ई. में गायों की रक्षा के लिये अपने प्राण दाँव पर लगा दिये।
ऐसी लोककथा प्रचलित है कि बिग्गाजी 1336 ई. में अपने ससुराल साले के विवाह में गये तब सुबह खाने के समय कुछ स्त्रियाँ आई ओर बिग्गाजी से सहायता की गुहार लगाई कि यहाँ के राठ मुसलमानों ने हमारी सारी गायों को छीन लिया है वे उनको लेकर जँगल की ओर जा रहे हैं। इस बात पर बिग्गाजी का रक्त खौल उठा ओर घोङी पर सवार होकर युद्ध के लिये रवाना हो गये। लुटेरे संख्या में अधिक थे पर वे बिग्गाजी के सामने टिक नहीं सके। युद्ध में राठों को पराजित कर सारी गायें वापस ले ली थी।
परन्तु एक बछङे के पीछे रह जाने के कारण ज्यों ही बिग्गाजी वापस मुड़े तब एक राठे मुल्ले ने धोखे से पीछे से आकर बग्गाजी का शीश धड़ से अलग कर दिया।
ऐसी लोककथा प्रचलित है कि शीश धड़ से अलग होने के पश्चात भी अपना काम कर रहा था ओर सब राठ मुल्लों को मार दिया था। देह के आदेश पर गायें ओर घोड़ी पुनः अपने मूल स्थान की ओर चल पङे। घोड़ी बिग्गाजी का शीश लेकर जाखङ राज्य की ओर चल पड़ी। जब घोड़ी अपने मुँह में बिग्गाजी का शीश दबाये जाखड़ राज्य की राजधानी रिड़ी पहुँची तो उस घोड़ी को बिग्गाजी की माता ने देख लिया तथा घोड़ी को शाप दिया कि जो घोड़ी अपने स्वामी सवार का शीश कटवा देती है तो उसका मुँह नहीं देखना चाहिए।
प्रकृति का खेल कि घोड़ी ने यह बात सुनी तो वह पुनः दौड़ने लगी पहरेदारों ने मुख्य द्वार बंद कर दिया तो घोड़ी ने छलाँग लगाई ओर किले की दीवार को फाँद लिया किले के बाहर बनी खाई में उस घोङी के मुँह से बिग्गाजी का शीश छूट गया जहाँ आज शीश देवली बना है। बिग्गाजी के हुतात्मा (शहीद) होने के समाचार उनकी बहिन हरिया को मिला तो वह भी सती हो गयी।
जब घोड़ी बिग्गाजी का धड़ ला रही थी तो उस समय जाखड़ की राजधानी रिड़ी से 5 कोस दुरी पर थी। घोड़ी को देखकर वहाँ की गायें बिदक गयी ग्वालों ने गायों को रोकने का प्रयास किया तो उनमें से एक गाय घोड़ी से टकरा गयी तथा रक्त का छींटा उछला। उसी स्थान पर बसाया गया गाँव बिग्गा रखा गया।
यह गाँव आज भी आबाद है तथा इसमें अधिक सँख्या जाखड़ गोत्र के जाटों की है।