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Please have a glance of the following page of Jatland Wiki. Some relevant extracts from Thakur Deshraj's book (Page 289-291) are given in this post -
http://www.jatland.com/home/Jat_Hist...ter_VII_Part_I -
महाराज रणजीतसिंह की सोलह रानियां थीं जिनमें 9 विवाहिता थीं और सात चादर डालकर लाई गई थीं। नियोग या नाते का नाम चादर डालना है। भारत के सभी पुराने क्षत्रियों में इस तरह के विवाह उचित माने गए थे। अब भी भारत में जो पुराने क्षत्रियों के वंशज हैं अथवा पुरातन नियमों को मानते चले आते हैं, उनमें चादर डालने अथवा नाता करने की प्रथा है। महाराजा रणजीतसिंह जी ऐसी पुरातन काल के क्षत्रियों की संस्था जाट-जाति की संतान होने के कारण जाति के नियमानुसार सात ब्याह चादर डालकर लाए थे।1 उन विवाहित अथवा नाता की हुई रानियों का परिचय इस प्रकार है -
(1)
रानी महताब कुंवरि - : यह कन्हैया मिसल के सरदार गुरुबख्शसिंह की सुपुत्री थी। इन से महाराज ने 1796 ई० में विवाह किया था। इनकी ही मां का नाम सदाकुंवरि था जो कि शासन करने में बड़ी योग्य थी। इनके दो पुत्र हुए थे - (1) शेरसिंह (2) तारासिंह। कुछ इतिहासकारों का मत है कि ये पुत्र इनके औरस पुत्र न थे। इनकी नानी ने किसी के दो पुत्रों को, इनके गर्भ से होना घोषित कर दिया था। महाराज ने भी उन्हें अपना पुत्र मान लिया था। आगे शेरसिंह को तो सदा सदाकुंवरि ने अपना उत्तराधिकारी बना दिया था। सन् 1813 में महारानी महताबकुंवरि की मृत्यु हो गई।
(2)
रानी राजकुंवरि - : यह नकई मिसल के सरदार रामसिंह जी सिन्धू (जाट) की पुत्री थी। इनसे महाराज ने सन् 1798 में विवाह किया था। महाराज की बहन का नाम भी राजकुंवरि था, इसलिए इन्हें दातार कुंवरि व माई निकाई के नाम से पुकारा जाता था। कुंवर खड़गसिंह का जन्म उन्हीं के गर्भ से हुआ था। सन् 1818 में यह स्वर्ग सिधार गईं।
(3) रानी रूपकुंवरि - : यह अमृतसर जिले के एक प्रसिद्ध सरदार जयसिंह की लड़की थी। सन् 1815 ई० में महाराज ने इनसे विवाह किया था। दूसरे सिख-युद्ध के बाद जब सरकार ने पंजाब को अपने राज्य में मिला लिया तो इन्हें 1980) वार्षिक पेन्शन अंग्रेज सरकार जीवन पर्यन्त देती रही।
(4) रानी लक्ष्मी - : यह गुजरानवाला जिले के जोगीखां गांव के सिन्धु जाट देसासिंह की सुपुत्री थी। पंजाब-हरण के बाद सरकार ने इन्हें 11200) वार्षिक की पेन्शन दी थी।
(5-6) महतो देवी, राजवंशी - : कांगड़ा के राजा संसारचन्द्र की महतो देवी और राजवंशी नाम की दो पुत्रियां थीं। इन्हें कांगड़ा विजय के बाद महाराज ने विवाहा था। ये दोनों ही 1839 ई० में महाराज के साथ सती हो गईं।
(7) गुलबेगम - : यह अमृतसर के एक प्रतिष्ठित मुसलमान की लड़की थी। महाराज इनकी सुन्दरता पर मुग्ध हो गए। इसलिए इनसे बड़ी धूमधाम के साथ विवाह कर लिया। सरकार ने पंजाब को जब्त करने के बाद इनकी 12380) वार्षिक पेन्शन कर दी। 1863 ई० में यह मर गई।
(8) रानी रामदेवी - : गुजरानवाला के कर्मसिंह की पुत्री थी। महाराज ने गुजरानवाला विजय के समय इनसे ब्याह किया था।
(9) नवीं रानी - : शदाराज की नवीं रानी अमृतसर जिले के चीना (जाट) की सुपुत्री थी।
ये नौ रानी महाराज की विवाहिता थीं और नीचे लिखी सात रानियां चादर डाली हुई थीं -
(1) रानीदेवी - यह हुशियारपुर के जसवान गांव के बसीर नाकुद्द की पुत्री थी।
(2), (3) दयाकौर, रतनकुंवरि - गुजरात के सरदार साहबसिंह भंगी की दो विधवाओं दयाकौर और रतनकुंवरि से महाराज ने सन् 1811 ई० में नाता किया था। रानी रतनकौर ने मुल्तानसिंह को अपना पुत्र मान लिया था। पंजाब हरण करने के बाद सरकार ने इन्हें 1000) वार्षिक पेन्शन दी थी। दयाकुंवरि ने काश्मीरासिंह और पिशोरासिंह को अपना पुत्र मान लिया था। इनकी सन् 1843 ई० में मृत्यु हो गई थी।
(4) रानी चांदकुंवरि - यह अमृतसर जिले के चैनपुर गांव के जाट सिंह की पुत्री थी। 1822 ई० में महाराज ने इनसे सम्बन्ध किया। सरकार ने इन्हें 1930) वार्षिक पेन्शन दी थी।
(5) रानी महतावकुंवरि - यह गुरदासपुर जिले के मल्ल गांव के जाट चौधरी सुजानसिंह की लड़की थी। इनसे भी महाराज ने सन् 1822 ई० में सम्बन्ध किया था - 1930) वार्षिक की सरकार ने इन्हें भी पेन्शन दी थी।
(6) रानी सामनकुंवरि - मालवा के जाट सूवासिंह की सुपुत्री थी। सन् 1832 ई० में महाराज ने इनके साथ सम्बन्ध किया था - 1440) वार्षिक की पेन्शन सरकार से इन्हें पंजाब-हरण के बाद मिलती रही थी।
(7) महारानी जिन्दा - महाराज की अन्तिम रानी जिन्दा थीं। ये सरदार मल्लसिंह की सुपुत्री थीं। महाराज दिलीप इन्हीं से पैदा हुए थे। पंजाब-हरण के बाद सरकार ने इनकी बड़ी भारी पेन्शन करके इन्हें काशी भेज दिया था। वहां से यह नेपाल को इसलिए भाग गई कि वहां के राजा की मदद से अपने पंजाब को वापस ले लें। इनका पूरा हाल आगे दिया जायेगा।
गुलाबकौर - इसके अलावा गुलाबकौर भी महाराज की रानी थी, जो अमृतसर के जगदेव गांव के एक जमींदार की लड़की थी।
मोरन- एक थी मोरन। इससे महाराज ने प्रेम के वशीभूत होकर बड़ी धूमधाम से विवाह किया था। लाहौर और शाहबीन दरवाजे के बीच गोबर चीनी कटरा की एक हवेली में इससे विवाह हुआ। फिर इसके साथ महाराज ने हरद्वार यात्रा की। महाराज के साथ जब रानी महताकुंवरि सती हुई थी, तो उसकी दासी हरिदेवी, राजदेवी और देवनो भी सती हो गईं थीं।
इन रानियों में 7 सिक्ख जाटों की, 5 हिन्दू जाटों की, 2 मुसलमानों की, 1 हिन्दू जमींदार की और 1 विदेशीय संतान थीं।
भारत के हिन्दू नरेशों में महाराज रणजीतसिंह और महाराज जवाहरसिंह भरतपुर ही ऐसे थे जिन्होंने मुसलमानों की ललनाओं के साथ भी विवाह किए थे। अन्यथा ग्यारहवीं शताब्दी से इतिहास में यही होता रहा कि भारत के राजपूत नरेशों की ललनाओं को मुसलमान शासक अपनी अंकशायनी बनाते रहे। यह सिक्ख और खास तौर से जाट जाति के लिए स्वाभिमान की बात है।