जाट संघ में शामिल वंश
श्री कृष्ण के वंश का नाम भी जाट था। कृष्ण के वंशज जो
कृष्णिया या
कासनिया कहलाते हैं वर्तमान में जाटों के एक गोत्र के रूप में मौजूद हैं। इस जाट संघ का समर्थन पांडव वंशीय सम्राट युधिस्ठिर तथा उनके भाइयों ने भी किया। आज की जाट जाति में पांडव वंश पाकिस्तान के पंजाब के शहर गुजरांवाला में पाया जाता है। गुजरांवाला से ही
गूजर गोत्र का निकास हुआ और
गूजर जाट गोत्र के रूप में राजस्थान के नागौर, बाड़मेर, पाली, जोधपुर आदि जिलों में आज भी पाए जाते हैं। राजस्थान के जयपुर जिले में
पाण्डु जाट गोत्र आज भी रहते हैं। समकालीन राजवंश
गांधार, यादव, सिंधु, नाग, लावा, कुशमा, बन्दर, नर्देय आदि वंश ने कृष्ण के प्रस्ताव को स्वीकार किया तथा
जाट संघ में शामिल हो गए।
गांधार गोत्र के जाट उत्तर प्रदेश में रघुनाथपुर जिला बदायूं, आगरा जिले के बिचपुरी, जउपुरा, लड़ामदा आदि गाँवों में, अलीगढ़ जिले में तथा मध्य प्रदेश के नीमच जिले में रहते हैं।
यादव वंश के जाट क्षत्रिय धर्मपुर जिला बदायूं में अब भी हैं। सिंधु गोत्र तो प्रसिद्ध गोत्र है। इसी के नाम पर सिंधु नदी तथा प्रान्त का नाम सिंध पड़ा। पंजाब की कलसिया रियासत इसी गोत्र की थी।
नाग गोत्र के जाट उत्तर प्रदेश में खुदागंज तथा रमपुरिया ग्राम जिला बदायूं में हैं। नागा जाट राजस्थान के नागौर, अलवर, सीकर, टोंक, जयपुर, उदयपुर, चित्तोड़ और जैसलमेर जिलों में तथा मध्य प्रदेश के खरगोन, इन्दोर और रतलाम जिलों में भी पाए जाते है। इसी प्रकार
वानर/बन्दर गोत्र जिसके हनुमान थे वे पंजाब और हरयाणा के जाटों में पाये जाते हैं.
नर्देय गोत्र भी कांट जिला मुरादाबाद के जाट क्षेत्र में है।[10]
पुरातन काल में
नाग क्षत्रिय समस्त भारत में शासक थे। नाग शासकों में सबसे महत्वपूर्ण और संघर्षमय इतिहास तक्षकों का और फ़िर शेषनागों का है। एक समय समस्त कश्मीर और पश्चिमी पंचनद नाग लोगों से आच्छादित था। इसमें कश्मीर के
कर्कोटक और
अनंत नागों का बड़ा दबदबा था। पंचनद (पंजाब) में
तक्षक लोग अधिक प्रसिद्ध थे। कर्कोटक नागों का समूह विन्ध्य की और बढ़ गया और यहीं से सारे मध्य भारत में छा गया। यह स्मरणीय है कि मध्य भारत के समस्त नाग एक लंबे समय के पश्चात बौद्ध काल के अंत में पनपने वाले ब्रह्मण धर्म में दीक्षित हो गए। बाद में ये
भारशिव और नए नागों के रूप में प्रकट हुए। इन्हीं लोगों के वंशज खैरागढ़, ग्वालियर आदि के नरेश थे। ये अब राजपूत और मराठे कहलाने लगे।
तक्षक लोगों का समूह तीन चौथाई भाग से भी ज्यादा
जाट संघ में शामिल हो गए थे। वे आज
टोकस और
तक्षक जाटों के रूप में जाने जाते हैं। शेष नाग वंश पूर्ण रूप से जाट संघ में शामिल हो गया जो आज
शेषमा कहलाते हैं।
वासुकि नाग भी मारवाड़ में पहुंचे। इनके अतिरिक्त नागों के कई वंश मारवाड़ में विद्यमान हैं। जो सब जाट जाति में शामिल हैं।[11] इससे स्वत: स्पस्ट है कि काफी संख्या में नागवंशी लोग जाट संघ में शामिल हुए।
जाटसंघ में सामिल 3000 से अधिक गोत्रों की उत्पत्ति और विस्तार का विवरण जाटलैंड वेबसाइट (
http://www.jatland.com/home/Gotras) पर उपलब्ध है। जाटसंघ में इतनी अधिक गोत्रों का समावेश इसकी प्राचीनता और प्राचीन काल में उपयोगिता को रेखांकित करता है। किसी भी मानवजातीय समूह में सम्मिलित सामाजिक समूहों की यह सर्वाधिक संख्या है।
सन्दर्भ
10. किशोरी लाल फौजदार: "महाभारत कालीन जाट वंश", जाट समाज, आगरा, जुलाई 1995, पृ 7
11. किशोरी लाल फौजदार: "महाभारत कालीन जाट वंश", जाट समाज, आगरा, जुलाई 1995, पृ 8