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rajpaldular
गुजरात जहाँ मैं निवास करता हूँ एवं जिनके गृह में किरायेदार के रूप में निवास करता हूँ, गृहस्वामी श्री मान्यवर अखिलेश आचार्य जी, संस्कृत के विद्वान् हैं एवं इनके संयुक्त परिवार में सभी संस्कृत में ही वार्तालाप करते हैं, उन्होंने एक कथा सुनाई। मित्रों वो कथा मैं आप सबके साथ शेयर करना चाहता हूँ:-
मेरे गृह मेरी वंदनीया नानी जी एक कहानी सुनाया करती थीं , वो कहानी मैं आज आपको सुनता हूँ।
"एक राजा था उस राजा को पक्षियों को पालने का शौक चढ़ा। उसने अपने सिपाहियों से कह के अनेक प्रकार के पक्षी पकड़वाए। राजा के महल में अनेक प्रकार के पक्षी पकड़ के लाये गए। सभी सिपाही अपने अपने हाथ में अलग-अलग प्रकार के पक्षी लेकर खड़े थे। राजा जी दरबार में उपस्थित हुए और इतने सारे पक्षी देख कर बहुत प्रसन्न हुए।
राजा ने एक एक कर के सभी पक्षियों को अपने पास लाने का आदेश दिया और कहा कि वे सभी पक्षियों से वार्तालाप करेंगे ।
सभी सैनिक एक एक कर के अपने अपने हाथ में रखे पक्षियों को राजा जी के पास ले जाते और राजा जी सभी पक्षियों से कहते "बोलो ओम् , बोलो ॐ "
पक्षियों को ऐसा बोलना कहाँ से आता , राजा जैसे ही बोला "बोलो ओम् " ,इसके उत्तर में कौए ने "कांव कांव" कहा ,
राजा ने तुरंत आदेश दिया कि , इस कौए को छोड़ दो , स्वतंत्र कर दो ।
इसके बाद राजा ने तोते से बुलवाया - "बोलो ओम् , बोलो ॐ "
तोता तुरंत बोला - "ओम् , ओ ..... म् "
राजा सुनकर प्रसन्न हुआ । और आदेश दिया कि , "इस तोते को अच्छे से एक सोने के पिंजरे में बंद कर दिया जाए और हमारे साथ बात करने के लिए इसको प्रतिदिन हमारे पास लाया जाय ।"
मेरी वंदनीया नानी जी ने इतनी सी कहानी सुना कर हमसे पूछा "क्या समझे इस कहानी से ? , कुछ समझ में आया बेटा ? "
कुछ देर ठहर कर उन्होने स्वयं इसका अर्थ बताया और कहा कि , "कौए ने अपनी भाषा नहीं छोड़ी और वह स्वतन्त्र , आजाद कर दिया गया, और तोते ने अपनी भाषा छोड़ दूसरे की भाषा की नकल की और उसे बाँध दिया गया, परतंत्र कर दिया गया , ठीक इसी प्रकार हम अपनी भाषा को छोड़ कर पराधीन हुए हैं , अब जाग जाओ बेटा , अपनी भाषा अपनाओ बेटा, अपने पूर्वजों की भाषा संस्कृत को अपनाओ बेटा"
मेरी नानी जी की कही हुई यह कहानी केवल मुझे ही नहीं सबको प्रेरणा देती है आइए हम सभी हमारे दादा-दादी , नाना-नानी की भाषा "संस्कृत" को अपनाएं ।
निराश: मा भवतु = निराश मत हो
सः /सा प्रसन्न: अभवत् = वह प्रसन्न हो गया/गयी
ते / ता: प्रसन्ना: अभवन = वे प्रसन्न हुए / हुईं
किमपि वदतु भो: = कुछ तो बोलो
भवत:/ भवत्या: कार्यम् अद्य अवश्यमेव करिष्यामि
= आपका काम आज अवश्य ही करूंगा / करूंगी
(बस करते रहिए संस्कृत का अभ्यास , होगा भारत का और विश्व का विकास )
अखिलेश आचार्य,
आदिपुर, वार्ड न. ३बी
कच्छ, गुजरात