एक बार की बात स अपना रलदु अपनी घर आली न ले के दिल्ली घुमन चला गया....
उड़े जा के रलदु अपनी घर आली किताबों न कुतबमिनार दिखान ले गया...
रलदु अपनी बहू त बोलया अक गुलाबो देख ले ध्यान त कदे फेर न्यू कवे अक लाल किला ना दिखाया.... ।
गुलाबो : जी यो त कुतबमिनार स....
(ड़ोस पड़ोसिया न देखया त हासी उड़ाई रलदु की )
रलदु : मेरी सासु की बोलबालि रह... तन्ने घुमान मै ल्याया सु या तू मन्ने ल्याइ ह... ?
दोनवा क छो उठ ज्या दोणु अपना कुतबमीनार प त ए उल्टे हो ले स घर के नाम के... । शांज न रलदु कह स सुने स के... ?
परामठे बनाइये ।?
किताबों क छो उठ रहया कुतबमिनार के नाम का...
उसने परामठे की जगह सूखे रोट धर दिये थाली मे...
रलदु न मारया रुक्का अक ये तन्ने परामठे दिखे स के... ?
किताबों : बेलन मारया बगा के अक बनावे तू है अक मै.....