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Thread: अब घर-घर नहीं फुदकती नन्हीं गौरैया !!!!!!

  1. #1

    अब घर-घर नहीं फुदकती नन्हीं गौरैया !!!!!!






    एक-दो दशक पहले लोगों के घर-आंगन में फुदकने वाली गौरैया आज विलुप्ति के कगार पर है। भारत में गौरैया की संख्या घटती ही जा रही है। इस नन्हें से प्यारे से पक्षी को बचाने के लिए प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है।


    पर्यावरण संरक्षण में गौरैया के महत्व व भूमिका के प्रति लोगों का ध्यान आकृष्ट करने तथा इस पक्षी के संरक्षण के प्रति जनजागरूकता उत्पन्न करने के इरादे से यह आयोजन किया जाता है। यह दिवस पहली बार वर्ष 2010 में मनाया गया था। वैसे देखा जाए तो इस नन्ही गौरैया के विलुप्त होने का कारण मानव ही है। हमने विकास तो बहुत किया परन्तु इस नन्हें पक्षी के विकास की ओर कभी ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि जो दिवस हमें हर्ष के रूप में मनाना चाहिए था, वो हम आज इसलिए मनाते हैं कि इनका अस्तित्व बचा रहे।


    समय के साथ जमाना बदला और छप्पर के स्थान पर सीमेंट की छत आ गई। आवासों की बनावट ऐसी कि गौरैया के लिए घोंसला बनाना अत्यंत कठिन हो गया। एयरकंडीशनरों ने रोशनदान तो क्या खिड़कियां तक बन्द करवा दीं। गौरैया ग्रामीण परिवेश का प्रमुख पक्षी है, किन्तु गांवों में फसलों को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशकों के प्रयोग के कारण गांवों में गौरैया की संख्या में कमी हो रही है।


    प्रकृति ने सभी वनस्पतियों और प्राणियों के लिए विशिष्ट भूमिका निर्धारित की है। इसलिए पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं को पूरा संरक्षण प्रदान किया जाए।


    गौरैया के संरक्षण में मनुष्यों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। आवास की छत, बरामदे अथवा किसी खुले स्थान पर बाजरा अथवा टूटे चावल डालने, पारले जी बिस्किट व उथले पात्र में जल रखने पर गौरैया को भोजन व पीने का जल मिलने के साथ-साथ स्नान हेतु जल भी उपलब्ध हो जाता है। बाजार से नेस्ट हाउस खरीद कर लटकाने अथवा आवास में बरामदे में एक कोने में जूते के डिब्बे के बीच लगभग चार सेंटीमीटर व्यास का छेद कर लटकाने पर गौरैया इनमें अपना घोंसला बना लेती है। केवल एक दिन नहीं हमें हर दिन जतन करना होगा गौरैया को बचाने के लिए।


    गौरैया मात्र एक पक्षी नहीं है, ये हमारे जीवन का अभिन्न अंग भी रहा है। बस इनके लिए हमें थोड़ा परिश्रम रोज करना होगा। छत पर किसी खुली छायादार स्थान पर कटोरी अथवा किसी मिट्टी के बर्तन में इनके लिए चावल और पीने के लिए साफ बर्तन में पानी रखना होगा। फिर देखिये रूठा मित्र कैसे वापस आता है?
    India and Israel (Hindus & Jews) are true friends in this World. Both are Long Live and yes also both have survived and surviving under adverse conditions.

  2. The Following 4 Users Say Thank You to rajpaldular For This Useful Post:

    cooljat (March 25th, 2014), dndeswal (March 20th, 2014), DrRajpalSingh (March 24th, 2014), sukhbirhooda (March 23rd, 2014)

  3. #2
    Quote Originally Posted by rajpaldular View Post





    एक-दो दशक पहले लोगों के घर-आंगन में फुदकने वाली गौरैया आज विलुप्ति के कगार पर है। भारत में गौरैया की संख्या घटती ही जा रही है। इस नन्हें से प्यारे से पक्षी को बचाने के लिए प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है।


    पर्यावरण संरक्षण में गौरैया के महत्व व भूमिका के प्रति लोगों का ध्यान आकृष्ट करने तथा इस पक्षी के संरक्षण के प्रति जनजागरूकता उत्पन्न करने के इरादे से यह आयोजन किया जाता है। यह दिवस पहली बार वर्ष 2010 में मनाया गया था। वैसे देखा जाए तो इस नन्ही गौरैया के विलुप्त होने का कारण मानव ही है। हमने विकास तो बहुत किया परन्तु इस नन्हें पक्षी के विकास की ओर कभी ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि जो दिवस हमें हर्ष के रूप में मनाना चाहिए था, वो हम आज इसलिए मनाते हैं कि इनका अस्तित्व बचा रहे।


    समय के साथ जमाना बदला और छप्पर के स्थान पर सीमेंट की छत आ गई। आवासों की बनावट ऐसी कि गौरैया के लिए घोंसला बनाना अत्यंत कठिन हो गया। एयरकंडीशनरों ने रोशनदान तो क्या खिड़कियां तक बन्द करवा दीं। गौरैया ग्रामीण परिवेश का प्रमुख पक्षी है, किन्तु गांवों में फसलों को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशकों के प्रयोग के कारण गांवों में गौरैया की संख्या में कमी हो रही है।


    प्रकृति ने सभी वनस्पतियों और प्राणियों के लिए विशिष्ट भूमिका निर्धारित की है। इसलिए पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं को पूरा संरक्षण प्रदान किया जाए।


    गौरैया के संरक्षण में मनुष्यों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। आवास की छत, बरामदे अथवा किसी खुले स्थान पर बाजरा अथवा टूटे चावल डालने, पारले जी बिस्किट व उथले पात्र में जल रखने पर गौरैया को भोजन व पीने का जल मिलने के साथ-साथ स्नान हेतु जल भी उपलब्ध हो जाता है। बाजार से नेस्ट हाउस खरीद कर लटकाने अथवा आवास में बरामदे में एक कोने में जूते के डिब्बे के बीच लगभग चार सेंटीमीटर व्यास का छेद कर लटकाने पर गौरैया इनमें अपना घोंसला बना लेती है। केवल एक दिन नहीं हमें हर दिन जतन करना होगा गौरैया को बचाने के लिए।


    गौरैया मात्र एक पक्षी नहीं है, ये हमारे जीवन का अभिन्न अंग भी रहा है। बस इनके लिए हमें थोड़ा परिश्रम रोज करना होगा। छत पर किसी खुली छायादार स्थान पर कटोरी अथवा किसी मिट्टी के बर्तन में इनके लिए चावल और पीने के लिए साफ बर्तन में पानी रखना होगा। फिर देखिये रूठा मित्र कैसे वापस आता है?

    It is not only one bird, which is threatened, it is entire eco system which is being poisoned. It is forecasted, that the way land development is happening in north western India, Ganga and Yamuna will dry up in few decades. Already, we know how much polluted these river systems are.

    Humans do not live in water systems, therefore they are least bothered about the water system and water quality. Blind faith and idol worship are making the things worse for less educated, poor people, middle class, lower middle class, middle class people. This are the people who form the masses in India and are electing the future leaders of this country.

    Every animal, insect, and any other life and non life form in nature is woven in the intricate net, so any damage to nature is going create massive problems.

  4. The Following User Says Thank You to maddhan1979 For This Useful Post:

    rajpaldular (May 26th, 2014)

  5. #3
    हमारे यहां पञ्चमहायज्ञों में से एक है- 'बलिवैश्वदेवयज्ञ' - जिसका अर्थ है कि हम दूसरे प्राणियों के प्रति दयाभाव रखें और उनका पालन-पोषण भी करें। आपने देखा होगा कि हमारे बुजुर्ग कंकर-पत्थर, मिट्टी मिला हुआ अनाज भी संभाल कर किसी पुराने मटके आदि में रखते थे और उसको चिड़िया अथवा मोर आदि को खाने के लिए छतों अथवा घर के आंगन में फेंक देते थे। खाना खाने के पश्चात रोटी का एक टुकड़ा बारीक करके चिड़िया के सामने फेंक देते थे। मैंने बचपन में अपनी माताजी को स्वयँ ये करते हुए देखा है। गर्मियों में घरों के बाहर, आंगन अथवा पेड़ों के नीचे किसी टूटे हुए मटके के टुकड़ों में पानी रख देते थे ताकि पक्षी उसे पीकर अपनी प्यास बुझा सकें। आवारा पशुओं के लिए भी पानी रख देते थे। जब कोई घर बनवाते थे तो छज्जे के नीचे एकाध ईंट बाहर निकवा देते थे अथवा दीवार में ही बड़ा सा सुराख (आळा) छोड़ देते थे ताकि चिड़िया, कबूतर आदि उस में अपना घोंसला बना सकें। घरों के झरोखे खुले रहते थे और चिड़ियां तो घरों के भीतर भी, छत के पास किसी सुराख में घोंसले बना लेती थीं। चिड़िया अपने चूजों के मुख में दाना डालती थे और घर के बच्चे यह दृश्य देखा करते थे। यदि कोई चिड़िया का बच्चा नीचे गिर जाता तो उसे प्यार से घोंसले में रख देते थे।


    आजकल यह भावना समाप्त प्राय सी हो गई है। हमने घरों की खिड़कियां जाली से ढक दी गयी हैं। चिड़िया-कबूतर तो क्या, मच्छर भी घर में नहीं घुस पाता। दीवार में कोई छेद हो तो उसे अपनी प्रतिष्ठा के विरुद्ध समझते हैं। पहले बरामदे की जालियों में पंछी आ कर बैठ जाते थे और रात के अन्धकार में वहीं सो जाया करते थे। आजकल वे आ भी जायें तो कूलर और ए.सी. के कोलाहल से भाग जाते हैं और रात को बाहर जलते हुए बल्ब के प्रकाश में वे सो नहीं सकते।


    मनुष्य अत्यंत स्वार्थी हो चुका है। पक्षियों के ठिकाने पेड़-पौधे, झाडि़यां तो आजकल रहे नहीं, अब वे बेचारे कहां जायें? हमने भी उनको दाना-चुग्गा डालना, पानी पिलाना बंद कर दिया है।


    दो बूँद पानी तो इन प्यारे पक्षियों को भी चाहिये। आप इस गर्मी में थोड़ा सा पुण्य अवश्य करें। घर की छतों अथवा बरामदों, बाल्कनी में किसी चीनी अथवा मिट्टी के छोटे बर्तन में पानी अवश्य रखें जिससे कि कोई पक्षी अपनी तृष्णा (प्यास) बुझा सके। प्लास्टिक के बर्तन में बिल्कुल मत रखें । प्लास्टिक में रखा हुआ पानी पक्षियों के लिए हानिप्रद है। आप अपने पीने का पानी भी प्लास्टिक के जग अथवा बोतल में न रखें क्योंकि प्लास्टिक हमारे लिए भी विष है।







    India and Israel (Hindus & Jews) are true friends in this World. Both are Long Live and yes also both have survived and surviving under adverse conditions.

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    dndeswal (March 25th, 2014)

  7. #4
    Quote Originally Posted by rajpaldular View Post
    हमारे यहां पञ्चमहायज्ञों में से एक है- 'बलिवैश्वदेवयज्ञ' - जिसका अर्थ है कि हम दूसरे प्राणियों के प्रति दयाभाव रखें और उनका पालन-पोषण भी करें। आपने देखा होगा कि हमारे बुजुर्ग कंकर-पत्थर, मिट्टी मिला हुआ अनाज भी संभाल कर किसी पुराने मटके आदि में रखते थे और उसको चिड़िया अथवा मोर आदि को खाने के लिए छतों अथवा घर के आंगन में फेंक देते थे। खाना खाने के पश्चात रोटी का एक टुकड़ा बारीक करके चिड़िया के सामने फेंक देते थे। मैंने बचपन में अपनी माताजी को स्वयँ ये करते हुए देखा है। गर्मियों में घरों के बाहर, आंगन अथवा पेड़ों के नीचे किसी टूटे हुए मटके के टुकड़ों में पानी रख देते थे ताकि पक्षी उसे पीकर अपनी प्यास बुझा सकें। आवारा पशुओं के लिए भी पानी रख देते थे। जब कोई घर बनवाते थे तो छज्जे के नीचे एकाध ईंट बाहर निकवा देते थे अथवा दीवार में ही बड़ा सा सुराख (आळा) छोड़ देते थे ताकि चिड़िया, कबूतर आदि उस में अपना घोंसला बना सकें। घरों के झरोखे खुले रहते थे और चिड़ियां तो घरों के भीतर भी, छत के पास किसी सुराख में घोंसले बना लेती थीं। चिड़िया अपने चूजों के मुख में दाना डालती थे और घर के बच्चे यह दृश्य देखा करते थे। यदि कोई चिड़िया का बच्चा नीचे गिर जाता तो उसे प्यार से घोंसले में रख देते थे।


    आजकल यह भावना समाप्त प्राय सी हो गई है। हमने घरों की खिड़कियां जाली से ढक दी गयी हैं। चिड़िया-कबूतर तो क्या, मच्छर भी घर में नहीं घुस पाता। दीवार में कोई छेद हो तो उसे अपनी प्रतिष्ठा के विरुद्ध समझते हैं। पहले बरामदे की जालियों में पंछी आ कर बैठ जाते थे और रात के अन्धकार में वहीं सो जाया करते थे। आजकल वे आ भी जायें तो कूलर और ए.सी. के कोलाहल से भाग जाते हैं और रात को बाहर जलते हुए बल्ब के प्रकाश में वे सो नहीं सकते।


    मनुष्य अत्यंत स्वार्थी हो चुका है। पक्षियों के ठिकाने पेड़-पौधे, झाडि़यां तो आजकल रहे नहीं, अब वे बेचारे कहां जायें? हमने भी उनको दाना-चुग्गा डालना, पानी पिलाना बंद कर दिया है।


    दो बूँद पानी तो इन प्यारे पक्षियों को भी चाहिये। आप इस गर्मी में थोड़ा सा पुण्य अवश्य करें। घर की छतों अथवा बरामदों, बाल्कनी में किसी चीनी अथवा मिट्टी के छोटे बर्तन में पानी अवश्य रखें जिससे कि कोई पक्षी अपनी तृष्णा (प्यास) बुझा सके। प्लास्टिक के बर्तन में बिल्कुल मत रखें । प्लास्टिक में रखा हुआ पानी पक्षियों के लिए हानिप्रद है। आप अपने पीने का पानी भी प्लास्टिक के जग अथवा बोतल में न रखें क्योंकि प्लास्टिक हमारे लिए भी विष है।



    ​(सौजन्य : दयानंद देसवाल जी)
    India and Israel (Hindus & Jews) are true friends in this World. Both are Long Live and yes also both have survived and surviving under adverse conditions.

  8. #5
    गौरैया चिड़िया भारत ही नहीं, बहुत सारे दूसरे देशों में भी पाई जाती है। मैं आजकल स्विटजरलैंड में रह रहा हूं। यहां ये पंछी पानी के प्यासे तो नहीं हैं क्योंकि ठंडा देश है। पर बाहर घर की बाल्कनी में हर रोज मैं थोड़ा सा चुग्गा फेंकना नहीं भूलता। कुछ चिड़ियां (बिल्कुल भारतीय चिड़ियों जैसी) चुग्गा चुगती रहती हैं और मैं कमरे में बैठकर उनको निहारता हूं, मन को प्रसन्नता मिलती है। वैसे नियमानुसार इस देश में बाहर बाल्कनी में चुग्गा डालना मना है क्योंकि पड़ौसी इसमें कई बार आपत्ति कर देते हैं कि इससे आस-पास गन्दगी फैलती है, पक्षी बीठ आदि कर देते हैं। परन्तु मैं उनकी बातों की परवाह किये बिना ही रोज चिड़ियों को चुग्गा डाल देता हूं। आखिर, हम कहीं भी रहें, बलिवैश्वदेवयज्ञ करने में क्या हर्ज है? इससे कुछ तो पुण्य हमें मिलता ही है!

    .
    Last edited by dndeswal; March 25th, 2014 at 08:44 PM.
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

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    rajpaldular (March 25th, 2014)

  10. #6
    अभी तीन चार दिन पहले प्रसिद्ध लेखक खुशवंतसिंह का 99 वर्ष की आयु में दिल्ली में निधन हो गया।

    खुशवंतसिंह ने एक सच्चा किस्सा लिखा है । वे सुजानसिंह पार्क (दिल्ली) में रह रहे थे। उनकी बूढ़ी माताजी रोज चिड़ियों को बाहर आंगन में चुग्गा डालती थी। एक दिन सुबह होने से पहले माता जी का देहान्त हो गया, उनके मृत शरीर को सफेद चादर लपेट कर जमीन पर आंगन के समीप रखा गया था।

    उस दिन खुशवन्त सिंह ने आंगन में चुग्गा डाल दिया। वे लिखते हैं कि पूरे दिन चिड़ियां बाहर आस-पास बैठी रहीं परन्तु किसी ने भी चुग्गे को मुंह नहीं लगाया। उन गोरैया चिड़ियों को भी पता था कि उनको रोज चुग्गा डालने वाली बुढिया मां अब नहीं रही और वे शोकाकुल थी, जैसे कोई उनके अपने परिवार वाला उनको छोड़कर चला गया हो!
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

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    rajpaldular (March 26th, 2014)

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