सर्व-हिन्दू धर्म, सर्व-हिन्दू जात का फर्ज बनता है कि वो जाटों को उनके गन्ने के पैसे दिलवाएं:
रै भाई! इन जिहाद के खिलाफ जाटों के छोरों को कुर्बान करने को उतारू इन तथाकथित 'राष्टवाद' और धर्म की 'एकता और बराबरी' का नारा उछालने वाले 'फंडी-मंडी' के भेजे में कोई यह बात घुसा दे कि इस लव-जिहाद (हमें आभास है कि इसके चक्कर में किसकी छोरियां सबसे ज्यादा फंस रही होंगी, अगर वाकई में कहीं ऐसा है तो, परन्तु तुम्हें "पापी के मन में डूम के ढांडे की तरह अपना डर छुपाने की गंभीर आदत जो है) को तो तुम्हारे लिए हम अकेले ही (वैसे भी तुम लोग जो लड़ाई शुरू 'हिन्दू-मुस्लिम' के नाम पे करते हो, अंत में उसी को 'जाट-मुस्लिम' की बना के तो बताते ही हो) निबटा देंगे (अगर वाकई में कहीं लव-जिहाद है तो, हाँ जो लड़की अपनी मर्जी से और सुख-शांति से किसी मुस्लिम के यहां बस रही है उसको तो हम प्रमोट करेंगे, विरोध नहीं); तुम तो बस हम जाटों के लिए इन सुगर-मिल वालों और सरकारों से पैसा दिलवाने हेतु आंदोलन चलाओ, तब तक इस लव-जिहाद के आंदोलन को रखो ठंडे बस्ते में| आओ जाटों की किसान यूनियन और खापों का साथ दो हमें तुम्हारे ही भाईचारे के सुगरमिल वालों से हमारी कमाई दिलवाने में|
अब यहां कोई तथाकथित राष्टवादीइया यह कहते हुए उल्टे तर्क शुरू मत कर देना कि तुम ले लो जा के अजित सिंह से या किसी और से| पहली तो बात अबकी बार अजित सिंह को नकार के जाटों ने तुमको सत्ता दी है, इसलिए जो अजित सिंह की रिप्लेसमेंट हुई है वो तुम्हारी ही पार्टी को हुई है, दूसरी बात जाट के गन्ने से बनी चीनी से सिर्फ जाट की चाय-दूध मीठे नहीं होते, बल्कि हिन्दू धर्म की बाकी पैंतीस जात के भी होते हैं; इसलिए सर्व-हिन्दू धर्म, सर्व-हिन्दू जात का फर्ज बनता है कि वो जाटों को उनके गन्ने के पैसे दिलवाएं|
और अगर नहीं कर सकते तुम लोग ऐसा तो, इससे जाटों के छोरो तुम तो सबक ले के इनसे उलटे हट जाओ, यह तुम्हारे ही दम पे तो इतना उत्पात मचाये हुए हैं| और यह बताओ कि यह खाम्खा (न्याम-स्याम) यानी फ्री में इनकी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने हेतु कब तक अपनी पुंजड़ जलवाते हान्ड़ोगे? अगर यह गन्ने के पैसे दिलवाने के लिए हमारे लिए आंदोलन नहीं कर सकते तो कम से कम इस इनके लिए पुंजड़ जलवाने के ऐवज में ही चार्ज करना शुरू कर दो| गन्ने के पैसे यह दिलवाते नहीं, पुंजड़ जलवाने के तुम चार्ज करते नहीं, तो घर कैसे चलाओगे अपने, या अपने किसान माँ-बापों को अपनी जायज कमाई (बाकी तो छोडो) ना मिलने से और फिर घर में बिखर रही कंगाली से तंग आ ऐसे ही आत्महत्याओं पे आत्महत्याएं ही करते देखते रहोगे?