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Thread: सन 1857 और हरियाणा-खाप की वीरांगनाएँ:

  1. #1

    सन 1857 और हरियाणा-खाप की वीरांगनाएँ:

    सन 1857 और हरियाणा-खाप की वीरांगनाएँ:

    हे मेरी जाट-कौम! यह कविता पढ़ो और जानो दो बातें:


    1. कि क्यों फंडी और तथाकथित राष्ट्रवादी आप लोगों को आपका इतिहास भूल जाने को कहते हैं, ताकि आप इनसे यह ना पूछ लो कि आजतक हमारे गौरवशाली इतिहास को भारत की लाइब्रेरियों-पुस्तकों-प्रश्नों-फिल्मों-सीरियलों में यथायोग्य स्थान क्यों नहीं मिला? जो नहीं जानता वो जान ले कि फंडी को जो आप पैसा दान के रूप में देते हैं वो यह लोग मनमाने ढंग से आपका इतिहास लिखने और अपनी पसंद के किरदारों पर फ़िल्में-सीरियल बनाने में भेजते हैं| यानी पैसा आपका और आपकी ही कौम के इतिहास का कहीं गुणगान नहीं, बखान नहीं, सिवाय हमारी सर्वखाप के द्वारा यह गुणगान करने के| सर्वखाप ना होती तो जाटों का इतिहास ही लिखने और गाने वाला शायद कोई होता|
    2. ताकि जो इनकी मान तथाकथित क्षत्री बन, अपनी पत्नियों से शाक्के-जौहर-स्वग्निप्रवेश यानी औरतों को सतीत्व खोने का डर दिखा लड़ते हुए मरने की बजाय उनको मुफ्त में सती करवाते रहे, ऐसी मूर्खपूर्ण हरकतें इनकी ना खुल जाएँ|


    देख लो फर्क इस कविता को पढ़ के, हमारे बुजुर्ग इन फंडी-पाखंडियों के फंडों-फंडों से दूर रहे, स्वछंद रहे तो हमारी औरतें भी ऐसी वीरताएँ दिखा पाई, वरना इनकी मानते तो व्यर्थ में बिना लड़े आग में झुकवा देनी थी इन्होनें हमारी औरतें भी|

    और हाँ यह कविता उन भांड मीडिया वालों को भी पढ़ाना, जो यह भोंकते नहीं छकते कि जाट औरतों को अवसर-अधिकार-मान देना क्या जानें, औरत के जज्बे की कदर क्या जानें| और उन तथाकथित डेमोक्रेट्स को भी पढ़ाना जो पूछते रहते हैं कि जाटों और खापों का योगदान ही क्या था, तो यह तो उस योगदान का एक छोटा सा अंश है, सारी गाथा तो पूरा 1857 ही अपने में समेट लेगी|


    अब प्रस्तुत है कविता:

    सन 1857 और हरियाणा-खाप की वीरांगनाएँ:

    एक कहानी अजब सुनो, सन अठारह सौ सत्तावन की,
    एक लड़की देश-खाप में ब्याही, थी गठवाला बावन की|
    नाम था ‘धर्मबीरी’, इसकी उम्र थी अठाईस साल भाई,
    बड़ौत गारद के, अठारह गौरों की तेग से गर्दन उड़ाई|
    चार घाव गोली के खाकर, फिर इसे मूर्छा आई थी,
    देश-खाप दादा की हवेली में, तुरंत गई पहुंचाई थी|

    एक कहानी बिजवाड़े रजवाड़े की बतलानी है,
    बिजवाड़े की बहु, वीरों की क़ुरबानी लासानी है|
    सिसौली की पुत्री थी, इसकी अजब कहानी है,
    फ़ौज घुसी जब बिजवाड़े में, आगे आई यह मर्दानी है|
    दोनों हाथ से तेग चलाई, कई गौरों ने मार्ग छोड़ दिया,
    आखरी दम तक लड़ी गाँव में, अपना मोहरा तोड़ दिया|
    पच्चीस पैदल - नौ सरदारों का थोड़े अरसे में काम तमाम किया,
    जीते जी शत्रु को पीछे हटा, अपना ऊँचा नाम किया|
    अमर हुई गई स्वर्गलोक यह बिजवाड़े की रानी थी,
    जीते जी इसने गोरों की बोटी-बोटी छानी थी|

    तीसरी कहानी शाहपुर बड़ौली में, एक देवी ने देशप्रेम दर्शाया था,
    बड़ौत के मैदानों में, पैंसठ गोरों से लड़कर खूब दिखाया था|
    सातों को नेजे से मारा, बाकी को तेग से घायल बनाया था,
    मिला अमर पद इस 'ज्ञानो' को, नाम शहीदों में पाया था|
    क्योंकि एक गोरे ने पीछे से, भाले का इसपर वार किया,
    बाएं हाथ से भाला पकड़ा, दायें से गोरे का सर तार लिया|
    धड़ाम से पड़ा वह धरती पर, उसके साथी घबराये,
    दो सवार बढे आगे को, वे भी 'ज्ञानो' ने मार गिराये|
    डेढ़ पहर तक लड़ी अकेली, खून से वस्त्र लाल हुए,
    रेजा-रेजा कटा 'ज्ञानो' का सात गोली के वार कमाल हुए|
    ऐसी-ऐसी अमर देवियों की, सच्ची अमर कहानी है,
    देश-खाप की वीरांगनाओं का, महान जीवन लासानी है|

    कविता लेखक: रामदत्त भाट

    सौजन्य: सर्वखाप इतिहास, सौरम मुख्यालय

    लेख लेखक: फूल कुमार मलिक
    Last edited by phoolkumar; September 11th, 2014 at 02:27 AM.
    One who doesn't know own roots and culture, their social identity is like a letter without address and they are culturally slave to philosophies of others.

    Reunion of Haryana state of pre-1857 is the best way possible to get Jats united.

    Phool Kumar Malik - Gathwala Khap - Nidana Heights

  2. The Following 8 Users Say Thank You to phoolkumar For This Useful Post:

    ayushkadyan (November 12th, 2014), dndeswal (September 12th, 2014), lrburdak (September 13th, 2014), MukeshGodara (October 2nd, 2014), neetinirwal (September 12th, 2014), SandeepSirohi (November 12th, 2014), shivamchaudhary (November 13th, 2014), spdeshwal (September 12th, 2014)

  3. #2
    फूल कुमार जी आपकी कविता बहुत पसंद आई। कुछ और वीरांगनाओं की भी जानकारी दो।
    Laxman Burdak

  4. #3
    शिवदेवी - मेरठ में1857 की क्रांति में शाहमल के नेतृत्व में अंग्रेजों से लोहा लिया था। क्रांतिकारियों कों अंग्रेजों ने मौत के घाट उतारा। जाट-पुत्री शिवदेवी ने जब यह अत्याचार देखा तो उन्होने अंग्रेजों को मारने का निश्चय किया। उसकी सहेली किशनदेवी ने भी इसमें साथ देने का निश्चय किया। बड़ौत के कुछ जाट युवकों के साथ शिवदेवी ने अंग्रेजों के तंबुओं पर हमला किया। शिवदेवी के नेतृत्व में जाटों ने 17 अंग्रेजों को तलवार के घाट उतार दिया। जबकि 25 भागकर छिपने में सफल रहे। घायल शिवदेवी अपने घावों की मरहम पट्टी कर रही थी कि बाहर से आए अंग्रेजों ने उसे घेर लिया। वीर बालिका ने मरते दम तक अंग्रेजों से लोहा लिया। (जाटों के विश्व साम्राज्य और उनके युग पुरुष, लेखक: महावीरसिंह जाखड़, पृ 240-41)
    Last edited by lrburdak; November 13th, 2014 at 11:13 AM.
    Laxman Burdak

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    DrRajpalSingh (November 13th, 2014), vdhillon (November 16th, 2014)

  6. #4
    जय देवी - सन 1857 की क्रान्ति के समय अंग्रेजों ने अनेक जाट स्त्री बच्चे और पुरुषों की नृशंस हत्या की। शिवदेवी की 14 वर्षीय छोटी बहन जय देवी ने यह दृश्य अपने तिमंज़िले मकान से देखा। उसने बड़ौत वासियों को कहा कि मेरे बहन के प्रति सच्ची श्रद्धाजलि यह है कि हम आजादी के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देते रहें। जयदेवी ने प्रण किया कि जिस अंग्रेज़ ने उसकी बहन तथा वीरों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था उसका बदला अवश्य लूँगी। उसने गंगोल गाँव में अंग्रेजों द्वारा फांसी पर लटकाए, लिसाड़ी गाँव के 22 क्रांतिकारियों के छलनी किए शरीरों का तथा घोलाना के 14 वीरों के पेड़ों पर लटकाए हुये शवों को भी देखा, फिर भी वह डरी नहीं। वीर बालिका जयदेवी अंग्रेजों के रिसाले का पीछा करती रहती तथागावों में घूम-घूम कर युवक-युवतियों में जोश पैदा करती। जयदेवी के साथ लगभग 200 क्रांतिकारियों का जत्था चलता था । इसने अग्रेज़ रिसाले का लखनऊ तक पीछा किया लेकिन अंग्रेजों को जयदेवी की खबर तक नहीं लगी। इस वीर बालिका ने मेरठ, बुलंदशहर, अलीगढ़,एटा, मैनपुरी, इटावा आदि जिलों में भी क्रांति की अलख जगाई।

    लखनऊ में जयदेवी ने अपने क्रांतिकारी दस्ते द्वारा बड़ौत में अत्याचार करने वाले अंग्रेज़ अधिकारी के बंगले की खोज करवाली। कई दिनों तक अंग्रेज़ अधिकारी को मारने का प्रयास होता रहा। लखनऊ में उन्हें छिपकर रहने और खाने की भारी परेशानी हुई, लेकिन एक दिन बंगले में टहलते हुये अंग्रेज़ अफसर का सिर जयदेवी ने तलवार से उड़ा दिया। उसके अनुयायियों ने अंग्रेज़ सैनिकों को मार गिराया और बंगले को आग लगा दी । क्रांतिकारी अंग्रेजों से झुंझकर जुझार हो गए। कपड़ों पर लगे खून से अंग्रेज़ जयदेवी को पहचान कर पाये और उसकी देह को लखनऊ में पेड़ से लटका दिया गया। अंग्रेजों के भयंकर आतंक के बावजूद क्रांतिकारियों ने उनकी लाश को दफनाकर उस पर चबूतरा बनवा दिया। यह चबूतरा विधानसभा की दूरदर्शन वाली सड़क पर है। यहाँ देशभक्त आज भी सिर झुका कर श्रद्दा-सुनन अर्पित करते हैं। बूढ़े लोग आज भी जयदेवी की लोक-कथा सुनाकर बलिकाओं में वीरता का संचार करते हैं। (जाटों के विश्व साम्राज्य और उनके युग पुरुष, लेखक: महावीरसिंह जाखड़, पृ 241-42)

    क्या यह स्थान एक राष्ट्रीय स्मारक नहीं बनाया जाना चाहिए ?
    Laxman Burdak

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    DrRajpalSingh (November 13th, 2014), vdhillon (November 16th, 2014)

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