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Thread: आखिर कब तक यूँ मरता रहेगा किसान ??? क्या किसान

  1. #1

    Angry आखिर कब तक यूँ मरता रहेगा किसान ??? क्या किसान

    आखिर कब तक यूँ मरता रहेगा किसान ??? क्या किसानों के भी अच्छे दिन आएंगे??
    भारत में लगभग ७५-८० करोड़ लोग खेती पर निर्भर हैं इसके विपरीत ५ करोड़ लोग सरकारी नौकर हैं .... मित्रों सरकार का खेल देखिये,,, जो पढ़े लिखे नौकर हैं उसको बहलाया फुसलाया नहीं जा सकता इसके लिए ७ बार वेतन आयोग बनाया गया हैं... और बनाने वाले भी सरकारी नौकर ही होते हैं... वैसे भी नेताजी कुर्सी के साथ शादी थोड़े ही करते हैं नेता तो लीव इन रिलेशनशिप में रहना पसंद करते हैं .... ऊपर ऊपर से मलाई खाओ और चलते बनो... ... नेताओं को मतलब सिर्फ मलाई खाने से होता हैं और बची खुची खुरचन यह अफसर खाते रहते हैं ...

    मित्रों अब बात किसानों की... ७५-८० करोड़ किसानों के लिए आज तक कोई आयोग नहीं बना हैं... वैसे भी किसान ठहरा मुर्ख ... कुछ भी करो इसके साथ क्या फर्क पड़ेगा... बहरे के आगे बिन बजाने के समान हैं.. यह मेरी पोस्ट... जब भी नुकसान होता हैं किसान कहता हैं यह सब तो ऊपर वाले का किया धरा हैं... जब सरकार की कोई योजना का लाभ मिले (ऐसा बहुत काम होता हैं क्यूंकि बीच में कुर्सी के खुरचनचोर इस लाभ को चाट जाते हैं) और उसका आधा हिस्सा बीच में गायब हो तो भी किसान खुश रहता हैं उसे क्या मालूम की पूरा मिलना था... उसे जितना मिले वो भगवान ने दिया समझता हैं....
    आज से लगभग १६ साल पहले (१९९८) में जीरे के भाव ८५ से ९० किलो के भाव से बिकता था... और आज भी लगभग वही हैं ९५ से १०२ किलो के भाव से बिक रहा हैं... डीजल का भाव १९९८ में जहाँ तक मुझे याद हैं १६-१८ रुपये के बीच था और आज ६१.८५ रूपया हैं ... मित्रों आपकी जानकारी के बता दूँ कि जीरा उत्पादन करने वाले ९० % किसान डीजल मशीन का उपयोग करते है ... मित्रों अब आप भी सोचलो इतने सालो में एक सरकारी नौकर की तनख़्वाह में कितनी बढ़ोतरी हुई होगी??? क्या किसान ऐसी बढ़ोतरी का हक़दार नहीं हैं??? किसान का घर चलाना दिन ब दिन महंगा होता जा रहा हैं... उसका कर्ज बढ़ता जा रहा हैं... मज़बूरी में किसान को आत्महत्या करनी पड़ती हैं... और यदि कहीं ऐसी घटना होती हैं तो यह मीडिया वाले भी गिरजों और भूखे कुत्तों की तरह आसपास भटकना शुरू हो जाते हैं ... किसी को भी किसान के मरने से पहले की नहीं पड़ी होती हैं... सबको मजा आता हैं ऐसी न्यूज़ देते हुए ...और चैनल वाले भी बड़े चाव से चलाते हैं और बार बार चलाते हैं ... जब तक चलाते हैं तब तक सत्ताधारी पार्टी द्वारा हड्डी का टुकड़ा उनके आगे फेंक दिया जाये... और रही बात नेताओं की तो .. उनका तो खानदानी धंधा हैं आकर घड़ियाली आंसू बहाने का... जो सत्ता पक्ष में होगा वो इस आत्महत्या की वजह को कर्ज से दूसरी और धकेलने की कोशिश करेगा और जो विपक्ष में होगा वो सत्तापक्ष के अवगुण को मस्का लगा लगा कर मीडिया को बताएगा ... मरने वाले के परिवार पर क्या बीत रही है किसी को फ़िक्र नहीं होती,,,, सब अपनी रोटियां सेंकते हैं,,,,
    किसान क्यों आत्महत्या कर रहे हैं इस विषय पर आजतक कोई चैनल चर्चा नहीं करता हैं....किसान अपने यहाँ से कोई भी चीज बेचता हैं उससे ३ गुना दर पर वो चीज बाजार में बिकती है क्या यह फर्क सरकार कम नहीं कर सकती??? मेरा इतना ही कहना उदहारण के तौर कि हमसे जीरा १४० किलो कि दर पर लेकर आखिरी ग्राहक को १६० किलो के दर से बेचो...सरकार को चाहिए कि बिचोलिये का धंधा करवाये क्यूंकि इस ने किसान को मारा हैं ... जब बीज निकलने का समय होता हैं यह बिचोलिये भाव को जमीन पर लेकर गिरा देता हैं.... कर्ज में डूबे किसान को अपनी फसल औने पौने दामों पर अपनी फसल बेचनी पड़ती हैं और जब पूरा चुकता नहीं होता हैं तो फांसी के फंदे को गले लगाना पड़ता हैं.. .
    आखिर में आप सबसे एक ही सवाल हैं ------कब तक यूँ मरते रहेंगे हम .. ?????????????????????????????????????????????????? ?????????????????????????????????????????????????? ?????????????????????????????????????????????????? ?????????????????????????????????????????????????? ?????????????????????????????????????????????????? ??
    इतना पढ़ने के बाद कुछ किसान के बारे में चिंता हो तो जरूर सरकार के पास इस दर्द को पहुंचादे...
    www.facebook.com/KSPSRSEOL
    जय भारत

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    rajpaldular (September 26th, 2014), sukhbirhooda (September 20th, 2014)

  3. #2
    The position of small farmers is the same through out the world unless they are big farmers. The definition of small and big farmers depend on land holdings and that too according to country. Please note that a farmer in North America even with a holding of 100 acres is poor.
    Yoginder Gulia

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    amankadian (September 14th, 2014), sukhbirhooda (September 20th, 2014), vk23 (September 14th, 2014)

  5. #3
    till farmers remain disunited and do not realize their strength

  6. #4

    आखिर कब तक यूँ मरता रहेगा किसान ??? क्या किसान

    Quote Originally Posted by SALURAM View Post
    आखिर कब तक यूँ मरता रहेगा किसान ??? क्या किसानों के भी अच्छे दिन आएंगे??
    भारत में लगभग ७५-८० करोड़ लोग खेती पर निर्भर हैं इसके विपरीत ५ करोड़ लोग सरकारी नौकर हैं .... मित्रों सरकार का खेल देखिये,,, जो पढ़े लिखे नौकर हैं उसको बहलाया फुसलाया नहीं जा सकता इसके लिए ७ बार वेतन आयोग बनाया गया हैं... और बनाने वाले भी सरकारी नौकर ही होते हैं... वैसे भी नेताजी कुर्सी के साथ शादी थोड़े ही करते हैं नेता तो लीव इन रिलेशनशिप में रहना पसंद करते हैं .... ऊपर ऊपर से मलाई खाओ और चलते बनो... ... नेताओं को मतलब सिर्फ मलाई खाने से होता हैं और बची खुची खुरचन यह अफसर खाते रहते हैं ...

    मित्रों अब बात किसानों की... ७५-८० करोड़ किसानों के लिए आज तक कोई आयोग नहीं बना हैं... वैसे भी किसान ठहरा मुर्ख ... कुछ भी करो इसके साथ क्या फर्क पड़ेगा... बहरे के आगे बिन बजाने के समान हैं.. यह मेरी पोस्ट... जब भी नुकसान होता हैं किसान कहता हैं यह सब तो ऊपर वाले का किया धरा हैं... जब सरकार की कोई योजना का लाभ मिले (ऐसा बहुत काम होता हैं क्यूंकि बीच में कुर्सी के खुरचनचोर इस लाभ को चाट जाते हैं) और उसका आधा हिस्सा बीच में गायब हो तो भी किसान खुश रहता हैं उसे क्या मालूम की पूरा मिलना था... उसे जितना मिले वो भगवान ने दिया समझता हैं....
    आज से लगभग १६ साल पहले (१९९८) में जीरे के भाव ८५ से ९० किलो के भाव से बिकता था... और आज भी लगभग वही हैं ९५ से १०२ किलो के भाव से बिक रहा हैं... डीजल का भाव १९९८ में जहाँ तक मुझे याद हैं १६-१८ रुपये के बीच था और आज ६१.८५ रूपया हैं ... मित्रों आपकी जानकारी के बता दूँ कि जीरा उत्पादन करने वाले ९० % किसान डीजल मशीन का उपयोग करते है ... मित्रों अब आप भी सोचलो इतने सालो में एक सरकारी नौकर की तनख़्वाह में कितनी बढ़ोतरी हुई होगी??? क्या किसान ऐसी बढ़ोतरी का हक़दार नहीं हैं??? किसान का घर चलाना दिन ब दिन महंगा होता जा रहा हैं... उसका कर्ज बढ़ता जा रहा हैं... मज़बूरी में किसान को आत्महत्या करनी पड़ती हैं... और यदि कहीं ऐसी घटना होती हैं तो यह मीडिया वाले भी गिरजों और भूखे कुत्तों की तरह आसपास भटकना शुरू हो जाते हैं ... किसी को भी किसान के मरने से पहले की नहीं पड़ी होती हैं... सबको मजा आता हैं ऐसी न्यूज़ देते हुए ...और चैनल वाले भी बड़े चाव से चलाते हैं और बार बार चलाते हैं ... जब तक चलाते हैं तब तक सत्ताधारी पार्टी द्वारा हड्डी का टुकड़ा उनके आगे फेंक दिया जाये... और रही बात नेताओं की तो .. उनका तो खानदानी धंधा हैं आकर घड़ियाली आंसू बहाने का... जो सत्ता पक्ष में होगा वो इस आत्महत्या की वजह को कर्ज से दूसरी और धकेलने की कोशिश करेगा और जो विपक्ष में होगा वो सत्तापक्ष के अवगुण को मस्का लगा लगा कर मीडिया को बताएगा ... मरने वाले के परिवार पर क्या बीत रही है किसी को फ़िक्र नहीं होती,,,, सब अपनी रोटियां सेंकते हैं,,,,
    किसान क्यों आत्महत्या कर रहे हैं इस विषय पर आजतक कोई चैनल चर्चा नहीं करता हैं....किसान अपने यहाँ से कोई भी चीज बेचता हैं उससे ३ गुना दर पर वो चीज बाजार में बिकती है क्या यह फर्क सरकार कम नहीं कर सकती??? मेरा इतना ही कहना उदहारण के तौर कि हमसे जीरा १४० किलो कि दर पर लेकर आखिरी ग्राहक को १६० किलो के दर से बेचो...सरकार को चाहिए कि बिचोलिये का धंधा करवाये क्यूंकि इस ने किसान को मारा हैं ... जब बीज निकलने का समय होता हैं यह बिचोलिये भाव को जमीन पर लेकर गिरा देता हैं.... कर्ज में डूबे किसान को अपनी फसल औने पौने दामों पर अपनी फसल बेचनी पड़ती हैं और जब पूरा चुकता नहीं होता हैं तो फांसी के फंदे को गले लगाना पड़ता हैं.. .
    आखिर में आप सबसे एक ही सवाल हैं ------कब तक यूँ मरते रहेंगे हम .. ?????????????????????????????????????????????????? ?????????????????????????????????????????????????? ?????????????????????????????????????????????????? ?????????????????????????????????????????????????? ?????????????????????????????????????????????????? ??
    इतना पढ़ने के बाद कुछ किसान के बारे में चिंता हो तो जरूर सरकार के पास इस दर्द को पहुंचादे...
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    अदरणीय सिओल जी,

    आपने बड़ा दुखदायी विषय छांट लिया है | यह बहुत पुराना विषय है | इसका अभीतक कोई हल नजर नहीं आ रहा है | पुराने समय का किसान तो बहुत बुरी तरह पिसता था | उस समय वह जानता था कि उसका वाली वारिस कोई नहीं है और वह खुद ही सारे हालात को सहन करने पर मजबूर था ओर चुपचाप सहन करते -2 वह बहुत सहनसील हो गया था | लेकिन अब समय बदल गया है , सहन करने की शक्तियाँ सभी मे कम हो गयी है | इसका नतीजा अत्महत्या की तरफ बढ़ गया है |
    स्मास्या इतनी विराट है कि चंद शब्दों मे बखान नहीं किया जा सकता | हमारे अपने जो कुछ कर सकते थे उन्होने भी नहीं समझा | चोधरी चरण सिंह माने हुऐ कृषक चिंतक होते हुऐ केन्द्रिय वित मंत्री मंत्री बनने के बाद भी कुछ ज्यादा नहीं सोच पाए अतः किसानो के लिए ज्यादा नहीं कर पाये | उन्होने अधिकारियों की लाईन अनुसार ही बजट दिया और किसानो की सोच की झलक ज्यादा नहीं दे पाये |

    चोधरी देवीलाल ने कर्जा माफी का मुद्दा बनाकर 1987 का चुनाव जीता मगर कर्जा माफ करना नहीं आया | सिर्फ एक आदेश पारित कर दिया कि सरकार ने किसानो के रु 10000/- तक के कर्ज माफ कर दिये है और बैंक अपने आप किसानो को राहत प्रदान करें, जो बाद मे फददु मज़ाक जैसा लगा | चौधरी बंसीलाल अपने जलसों मे कहते रहे कि कर्जे माफ नहीं किए जा सकते है, यदी ऐसा हो सकता तो मैं सबसे पहले करता | बाद मे यह लोकसभा चुनाव का मुद्दा बना और वीपी सिंह सरकार ने बजट मे खर्च का प्रावधान डाल कर (प्रोविज़न करके) लगभग रु 16000 करोड़ के कर्जे माफ किये | अफसोस उन्हे भी अधिकारियों ने किसानो का ज्यादा हित नहीं करने दिया, क्योंकि उस माफ़ी मे डिफ़ाल्ट कि तारीख का एक नुक्ता डलवा दिया जिससे किसानो को नाम मात्र लाभ भी नहीं मिला लेकिन बेंकों को अभूतपूर्व लाभ मिला | क्योंकि बेकों के जो कर्ज बिलकुल डूब चुके थे जिसमे वसूली की कोई संभावना नहीं थी (जैसे गोबर गैस , भेड बकरी ऋण , ऐसे ऋणि जिनकी मृत्यु हो चुकी थी तथा ऐसे ऋणि जो गाँव या घर छोड़ चुके थे व उनका कोई अता पता नहीं था आदि ; उनको माफी के तहत कवर किया गया व बेंकों की बैलेन्स सीट साफ करदी गयी ओर किसान ठगा रह गया |

    समय को टाला जा सकता है खत्म नही किया जा सकता, किसानों के कर्ज़ माफी के साथ भी यही हुआ | मजबूरन सरकार को 2006-07 मे एक और माफी योजना लानी पड़ी जो वास्तविक स्वरूप मे बनाई गयी इसका पूरा व प्रतयक्ष फायदा किसान को दिया गया लेकिन इसमे भी सही फायदा किसान नहीं ले पाया क्योंकि बकाया भरने की उसके पास गुंजाईस नहीं बची थी | सरकारी तंत्र किसान की समस्या समझता था लेकिन करने नहीं देना चाहता था | बाद मे कर्ज 7% पर देने की शरूआत कि गयी इसको 4% तक किया गया लेकिन जबतक मरीज आईसीयू मे भर्ती होने लायक हो चुका था | अभी भी कुछ हुआ जैसा नहीं हुआ है | अभी भी बहुत लोचे बाकी है | बेचारा किसान जानता ही नहीं उसके लिए व उसके विपरीत क्या चल रहा है अनभिज्ञ है और रहेगा भी शायद |

    आओ हम सब मिलकर काम करे ; काश किसान के दर्द को कोई समझे व ईमानदारी से हल ढूँढे | अफसोस यदि कोई हमारे किसान से हल जानना चाहेगा तो हमारा किसान हल बताना भी नहीं जानता होगा |

    सधन्यवाद व सबको राम राम
    Last edited by RKhatkar; September 26th, 2014 at 10:34 PM.

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    lrburdak (April 1st, 2015), SALURAM (October 2nd, 2014), sukhbirhooda (September 28th, 2014)

  8. #5
    विविध भारती पर एक विज्ञापन आता है -

    "सर्व श्रेष्ठ्किसान का पुरस्कार मिला है हरिया को

    हरिया बतायेंगे सफ़लता का राज...."

    यह ऐड जब भी आता है - मेरे दिमाग में विचार आता है कि कब तक हरि किसान को हरिया कहते रहेंगे. कौन किसान आज अपमान सूचक शब्द हरिया से सम्बोधित करवाना चाहेगा और वह भी सर्वश्रेष्ठ् किसान. लगता है भारतीय रेडियो अपने जागीरी सोच से बाहर नहीं आ पा रहा है. शेखावाटी किसान आन्दोलन के कारणों मे अपमान सूचक शब्द का किसान के लिये प्रयोग करना भी एक कारण था.

    इस विज्ञापन में भारत सरकार का एक टोल फ्री नंबर भी आता है। मैंने उस नंबर पर जब अपमान सूचक नाम हरया हटाने का अनुरोध किया तो वे विवस थे उन्होने राजस्थान के सूचना प्रकाशन विभाग का एक दूर भाष नंबर दिया तो उन्होने सहमति व्यक्त की कि आप ठीक कह रहे हैं और हम विविध भारती जयपुर को बतादेंगे। अभी तक कई महीनों बाद भी वह अपमान सूचक नाम हरया हटाने का काम नहीं हो पाया। हाँ यह जरूर हुआ कि उसके बाद मेरे मोबाइल पर कई विज्ञापन संबंधी संदेश आने लगे हैं। किसान की समस्या जस की तस है।

    किसान की भूमि लेकर सरकार मार रही है। पूर्व में ली गई जमीन का मुआवजा शायद अगली पीढ़ी को मिल जाये तो गनीमत है।

    शायद किसान तो परेशान होने के लिए ही पैदा होता है।
    Laxman Burdak

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    RKhatkar (April 1st, 2015), sukhbirhooda (April 2nd, 2015)

  10. #6
    आदरणीय बड़क जी,
    आपके प्रयासों की में सराहना करता हूँ | इसमे कमी हमारी भी है, क्योंकि हम भी भाषा हरिया की ही समझते रहे है |

    कृपया शेखावाटी किसान आन्दोलन की जानकारी देने का कष्ट करे |

    धन्यवाद

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    lrburdak (April 1st, 2015), sukhbirhooda (April 2nd, 2015)

  12. #7
    Shekhawati Kisan Andolan

    We have compiled rare collections on Shekhawati Kisan Andolan here on Jatland. You may read -

    http://www.jatland.com/home/Shekhawati_Kisan_Andolan
    Laxman Burdak

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    RKhatkar (April 2nd, 2015), sukhbirhooda (April 2nd, 2015)

  14. #8
    It will continue like this, in my opinion only solution is to make cooperative ltd company at village level , involve in rural tourism , small industry , paper industry , garment industry , food process industry at village level, now farmer need to involve in more trade other than farming to earn at village level. Most important is to tap solar energy for all these industry


    Quote Originally Posted by SALURAM View Post
    आखिर कब तक यूँ मरता रहेगा किसान ??? क्या किसानों के भी अच्छे दिन आएंगे??
    भारत में लगभग ७५-८० करोड़ लोग खेती पर निर्भर हैं इसके विपरीत ५ करोड़ लोग सरकारी नौकर हैं .... मित्रों सरकार का खेल देखिये,,, जो पढ़े लिखे नौकर हैं उसको बहलाया फुसलाया नहीं जा सकता इसके लिए ७ बार वेतन आयोग बनाया गया हैं... और बनाने वाले भी सरकारी नौकर ही होते हैं... वैसे भी नेताजी कुर्सी के साथ शादी थोड़े ही करते हैं नेता तो लीव इन रिलेशनशिप में रहना पसंद करते हैं .... ऊपर ऊपर से मलाई खाओ और चलते बनो... ... नेताओं को मतलब सिर्फ मलाई खाने से होता हैं और बची खुची खुरचन यह अफसर खाते रहते हैं ...

    मित्रों अब बात किसानों की... ७५-८० करोड़ किसानों के लिए आज तक कोई आयोग नहीं बना हैं... वैसे भी किसान ठहरा मुर्ख ... कुछ भी करो इसके साथ क्या फर्क पड़ेगा... बहरे के आगे बिन बजाने के समान हैं.. यह मेरी पोस्ट... जब भी नुकसान होता हैं किसान कहता हैं यह सब तो ऊपर वाले का किया धरा हैं... जब सरकार की कोई योजना का लाभ मिले (ऐसा बहुत काम होता हैं क्यूंकि बीच में कुर्सी के खुरचनचोर इस लाभ को चाट जाते हैं) और उसका आधा हिस्सा बीच में गायब हो तो भी किसान खुश रहता हैं उसे क्या मालूम की पूरा मिलना था... उसे जितना मिले वो भगवान ने दिया समझता हैं....
    आज से लगभग १६ साल पहले (१९९८) में जीरे के भाव ८५ से ९० किलो के भाव से बिकता था... और आज भी लगभग वही हैं ९५ से १०२ किलो के भाव से बिक रहा हैं... डीजल का भाव १९९८ में जहाँ तक मुझे याद हैं १६-१८ रुपये के बीच था और आज ६१.८५ रूपया हैं ... मित्रों आपकी जानकारी के बता दूँ कि जीरा उत्पादन करने वाले ९० % किसान डीजल मशीन का उपयोग करते है ... मित्रों अब आप भी सोचलो इतने सालो में एक सरकारी नौकर की तनख़्वाह में कितनी बढ़ोतरी हुई होगी??? क्या किसान ऐसी बढ़ोतरी का हक़दार नहीं हैं??? किसान का घर चलाना दिन ब दिन महंगा होता जा रहा हैं... उसका कर्ज बढ़ता जा रहा हैं... मज़बूरी में किसान को आत्महत्या करनी पड़ती हैं... और यदि कहीं ऐसी घटना होती हैं तो यह मीडिया वाले भी गिरजों और भूखे कुत्तों की तरह आसपास भटकना शुरू हो जाते हैं ... किसी को भी किसान के मरने से पहले की नहीं पड़ी होती हैं... सबको मजा आता हैं ऐसी न्यूज़ देते हुए ...और चैनल वाले भी बड़े चाव से चलाते हैं और बार बार चलाते हैं ... जब तक चलाते हैं तब तक सत्ताधारी पार्टी द्वारा हड्डी का टुकड़ा उनके आगे फेंक दिया जाये... और रही बात नेताओं की तो .. उनका तो खानदानी धंधा हैं आकर घड़ियाली आंसू बहाने का... जो सत्ता पक्ष में होगा वो इस आत्महत्या की वजह को कर्ज से दूसरी और धकेलने की कोशिश करेगा और जो विपक्ष में होगा वो सत्तापक्ष के अवगुण को मस्का लगा लगा कर मीडिया को बताएगा ... मरने वाले के परिवार पर क्या बीत रही है किसी को फ़िक्र नहीं होती,,,, सब अपनी रोटियां सेंकते हैं,,,,
    किसान क्यों आत्महत्या कर रहे हैं इस विषय पर आजतक कोई चैनल चर्चा नहीं करता हैं....किसान अपने यहाँ से कोई भी चीज बेचता हैं उससे ३ गुना दर पर वो चीज बाजार में बिकती है क्या यह फर्क सरकार कम नहीं कर सकती??? मेरा इतना ही कहना उदहारण के तौर कि हमसे जीरा १४० किलो कि दर पर लेकर आखिरी ग्राहक को १६० किलो के दर से बेचो...सरकार को चाहिए कि बिचोलिये का धंधा करवाये क्यूंकि इस ने किसान को मारा हैं ... जब बीज निकलने का समय होता हैं यह बिचोलिये भाव को जमीन पर लेकर गिरा देता हैं.... कर्ज में डूबे किसान को अपनी फसल औने पौने दामों पर अपनी फसल बेचनी पड़ती हैं और जब पूरा चुकता नहीं होता हैं तो फांसी के फंदे को गले लगाना पड़ता हैं.. .
    आखिर में आप सबसे एक ही सवाल हैं ------कब तक यूँ मरते रहेंगे हम .. ?????????????????????????????????????????????????? ?????????????????????????????????????????????????? ?????????????????????????????????????????????????? ?????????????????????????????????????????????????? ?????????????????????????????????????????????????? ??
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    rsdalal (April 25th, 2015)

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