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Thread: एक 'मैंगो' दामाद की व्यथा

  1. #1

    एक 'मैंगो' दामाद की व्यथा

    आजकल तो दिन ही ठीक नहीं चल रहे। एक तो सासू मां की पार्टी चुनाव पर चुनाव हार रही है ऊपर से बेकार का ये हंगामा। मैंने पहले ही कहा था, मुझे भी चुनाव प्रचार करने दो। ये भी कहा था कि राजनीति में आने को तैयार हूं। पर, ज़रा सा किसी ने सवाल क्या कर दिया, साइड में बिठा दिया मुझे। कम से कम जिमवालों के तो वोट मिलते। यस आइ ऐम सीरीयस।

    पांच दिन ज़बर्दस्त वर्जिश करता हूं। बिज़नेसमैन हूं तो एक लाख लगाने पर 44-45 करोड़ की प्रौफिट कैसे हो ये भी सोचना पड़ता है। किसान भी हूं - तो ये भी देखना पड़ता है कि देश में कहां-कहां मेरे जैसे आम किसानों को ज़मीन मिल सकती है। असल में सारी प्रॉब्लम यहीं से शुरू हुई। अब हरियाणा में मैंने कुछ ब्रिलियंट लैंड डील्स कीं और मुझे ज़बर्दस्त प्रौफिट हुआ। लेकिन, लोग जलते हैं- कहने लगे मुझे राज्य सरकार ने फेवर किया।

    हालांकि, सीएम अंकल ने कहा भी कि मुझे कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं मिला, लेकिन तुम्हें तो पता ही है कि झूठे इल्ज़ाम लगाना तो विरोधियों का काम ही है। और जिन लोगों को अपना ही काम नहीं पता, उन्होंने ऐसे सीधे सादे लैंड डील्स पर फाइल ही बना दी...वही कोई खेमका। सुना है काफी ईमानदार है, पर काम कैसे होता है ये भी तो सीख लेता। यस आइ ऐम सीरीयस।

    अब मेरी सरकार...उफ..सौरी..यूपीए की सरकार ने काम इतना अच्छा किया था कि मैंगो पीपल बहुत खुश थे, इस बनाना रिप्बलिक में (यू नो, आई लव फ्रूट्स- वेरी गुड फौर मसल्स)। और दूसरी पार्टियों को कुछ मिला नहीं तो मेरे जैसे मैंगो किसान, बिज़नेसमैन के बिज़नेस सेंस पर ही सवाल उठाने लगे।

    और अब बताता हूं उस रात हुआ क्या। पांच दिन की जिमिंग के बाद कुछ रिलैक्स कर रहा था, एक इवेंट में जाकर। जैसे ही निकला कोई आ गया सवाल पूछने। अरे उन्हें भी तो कोई काम सिखाए। मुझसे पूछना था न कि कौन सी एक्सरसाइज़ करता हूं, क्या खाता हूं, बॉडी बनाने के लिए (देखा तो होगा ही स्लीवलेस गंजियों और हॉफ बांह की टाइट टी-शर्ट में), कौन सी बाइक चलाता हूं और कितने एसपीजी वाले जॉगिंग के वक्त मेरे पीछे भागते हैं (हे हे- अखबार में फोटो नहीं देखते क्या?) लेकिन पूछा तो क्या- मेरे लैंड डील का क्या होगा?

    यार, छुट्टी के दिन कोई काम की बात करता है क्या? इसीलिए मैंने पूछा- आर यू सीरीयस? चार बार पूछने पर जवाब नहीं आया तो चिंता के मारे मैंने पूछा कि आर यू हैविंग नट्स? नट्स खाता तो सही सवाल पूछता। ओह 'हैविंग' तो लगता है टीवी वालों ने एडिट कर दिया (बट आइ डोंट लाइक नट्स, ओनली मैंगो एंड बनाना)। वैसे एक बात है- मेरे जैसे मैंगो दामाद को ऐसे परेशान किए जाने से बचाने के लिए कितने बड़े लोग सामने आए। कहा, मैं प्राइवेट सिटिजन हूं। सोच रहा हूं, कोई फाइनैंस कर दे तो एक फिल्म बना दूं- "सेविंग प्राइवेट सिटिजन वाड्रा"

    मैं अगर आम दामाद हूं तो अखबारों में मेरी तस्वीरें और इंटरव्यू क्यों छपते हैं, टीवी पर क्यों दिखता हूं? मुझे तो लगता है कि मीडिया मेरी जिमिंग और बिज़नेस सेंस से बहुत इंप्रेस्ड है। लेकिन सच बता रहा हूं- मैंने एएनआई का माइक नहीं देखा था- दो सवालों के बाद। इसीलिए उन्हें मेरे हाथ से बस झटका लग गया। सोच रहा हूं, अब आई स्पेशलिस्ट से आंखें दिखवा ही लूं। पर कोई ऐसा स्पेशलिस्ट तो मिले जो मेरी आंखें ऐसी बना दे कि देखते के साथ पता चल जाए कि ये ही ज़मीन अपने काम की है, या भविष्य की खूबसूरत तस्वीर दिखाती रहे। ढूंढ ही लूँगा मैं- ये मेरा न्यू इयर रेसोल्यूशन है।

    http://khabar.ndtv.com/news/india/satire-of-kadambini-sharma-on-robert-vadra-687854
    People will forget what you said, people will forget what you did, but people will never forget how you made them feel.

  2. The Following 9 Users Say Thank You to SumitJattan For This Useful Post:

    ayushkadyan (November 3rd, 2014), cooljat (November 3rd, 2014), login4vinay (November 3rd, 2014), Prikshit (November 3rd, 2014), rajpaldular (November 3rd, 2014), rskankara (November 4th, 2014), sanjeev1984 (November 3rd, 2014), ssgoyat (November 3rd, 2014), vdhillon (December 11th, 2014)

  3. #2
    Quote Originally Posted by SumitJattan View Post
    आजकल तो दिन ही ठीक नहीं चल रहे। एक तो सासू मां की पार्टी चुनाव पर चुनाव हार रही है ऊपर से बेकार का ये हंगामा। मैंने पहले ही कहा था, मुझे भी चुनाव प्रचार करने दो। ये भी कहा था कि राजनीति में आने को तैयार हूं। पर, ज़रा सा किसी ने सवाल क्या कर दिया, साइड में बिठा दिया मुझे। कम से कम जिमवालों के तो वोट मिलते। यस आइ ऐम सीरीयस।

    पांच दिन ज़बर्दस्त वर्जिश करता हूं। बिज़नेसमैन हूं तो एक लाख लगाने पर 44-45 करोड़ की प्रौफिट कैसे हो ये भी सोचना पड़ता है। किसान भी हूं - तो ये भी देखना पड़ता है कि देश में कहां-कहां मेरे जैसे आम किसानों को ज़मीन मिल सकती है। असल में सारी प्रॉब्लम यहीं से शुरू हुई। अब हरियाणा में मैंने कुछ ब्रिलियंट लैंड डील्स कीं और मुझे ज़बर्दस्त प्रौफिट हुआ। लेकिन, लोग जलते हैं- कहने लगे मुझे राज्य सरकार ने फेवर किया।

    हालांकि, सीएम अंकल ने कहा भी कि मुझे कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं मिला, लेकिन तुम्हें तो पता ही है कि झूठे इल्ज़ाम लगाना तो विरोधियों का काम ही है। और जिन लोगों को अपना ही काम नहीं पता, उन्होंने ऐसे सीधे सादे लैंड डील्स पर फाइल ही बना दी...वही कोई खेमका। सुना है काफी ईमानदार है, पर काम कैसे होता है ये भी तो सीख लेता। यस आइ ऐम सीरीयस।

    अब मेरी सरकार...उफ..सौरी..यूपीए की सरकार ने काम इतना अच्छा किया था कि मैंगो पीपल बहुत खुश थे, इस बनाना रिप्बलिक में (यू नो, आई लव फ्रूट्स- वेरी गुड फौर मसल्स)। और दूसरी पार्टियों को कुछ मिला नहीं तो मेरे जैसे मैंगो किसान, बिज़नेसमैन के बिज़नेस सेंस पर ही सवाल उठाने लगे।

    और अब बताता हूं उस रात हुआ क्या। पांच दिन की जिमिंग के बाद कुछ रिलैक्स कर रहा था, एक इवेंट में जाकर। जैसे ही निकला कोई आ गया सवाल पूछने। अरे उन्हें भी तो कोई काम सिखाए। मुझसे पूछना था न कि कौन सी एक्सरसाइज़ करता हूं, क्या खाता हूं, बॉडी बनाने के लिए (देखा तो होगा ही स्लीवलेस गंजियों और हॉफ बांह की टाइट टी-शर्ट में), कौन सी बाइक चलाता हूं और कितने एसपीजी वाले जॉगिंग के वक्त मेरे पीछे भागते हैं (हे हे- अखबार में फोटो नहीं देखते क्या?) लेकिन पूछा तो क्या- मेरे लैंड डील का क्या होगा?

    यार, छुट्टी के दिन कोई काम की बात करता है क्या? इसीलिए मैंने पूछा- आर यू सीरीयस? चार बार पूछने पर जवाब नहीं आया तो चिंता के मारे मैंने पूछा कि आर यू हैविंग नट्स? नट्स खाता तो सही सवाल पूछता। ओह 'हैविंग' तो लगता है टीवी वालों ने एडिट कर दिया (बट आइ डोंट लाइक नट्स, ओनली मैंगो एंड बनाना)। वैसे एक बात है- मेरे जैसे मैंगो दामाद को ऐसे परेशान किए जाने से बचाने के लिए कितने बड़े लोग सामने आए। कहा, मैं प्राइवेट सिटिजन हूं। सोच रहा हूं, कोई फाइनैंस कर दे तो एक फिल्म बना दूं- "सेविंग प्राइवेट सिटिजन वाड्रा"

    मैं अगर आम दामाद हूं तो अखबारों में मेरी तस्वीरें और इंटरव्यू क्यों छपते हैं, टीवी पर क्यों दिखता हूं? मुझे तो लगता है कि मीडिया मेरी जिमिंग और बिज़नेस सेंस से बहुत इंप्रेस्ड है। लेकिन सच बता रहा हूं- मैंने एएनआई का माइक नहीं देखा था- दो सवालों के बाद। इसीलिए उन्हें मेरे हाथ से बस झटका लग गया। सोच रहा हूं, अब आई स्पेशलिस्ट से आंखें दिखवा ही लूं। पर कोई ऐसा स्पेशलिस्ट तो मिले जो मेरी आंखें ऐसी बना दे कि देखते के साथ पता चल जाए कि ये ही ज़मीन अपने काम की है, या भविष्य की खूबसूरत तस्वीर दिखाती रहे। ढूंढ ही लूँगा मैं- ये मेरा न्यू इयर रेसोल्यूशन है।

    http://khabar.ndtv.com/news/india/satire-of-kadambini-sharma-on-robert-vadra-687854
    इब आया ऊँट पहाड़ के तळै| देख्खण आळी बात है कौण सी करवट नै बैठैगा|
    I have a fine sense of the ridiculous, but no sense of humor.

  4. The Following User Says Thank You to ayushkadyan For This Useful Post:

    vdhillon (December 11th, 2014)

  5. #3
    पिछले एक हफ्ते से एक बार फिर से टीवी और प्रिंट मीडिया मे रॉबर्ट बाड्रा का ही राग ज़ोर शोर से अलापा जा रहा है, बेचारे को जिम मे भी चैन से नही रहने देते। एक माईक का हटाया......छोरे के पीछे ही पड़ गए....अभी कही,(शायद) नवभारत टाइम्स में पढ़ा कि एक औरत राबर्ट बाड्रा के घर के बाहर सड़क पर खड़े एक चैनल वाले 'देवता' को अपनी "बीच की उँगली" दिखाई और फिर अपनी इनोवा कार मे बैठ कर चली गई....चैनल वाले "देव पुत्र" ने गाड़ी का नंबर नोट कर लिया है, टाइम्स समूह वाले कार के मालिक का पता लगा रहे है.....इस बात तो अखबार ने भी छाप दिया है और हो सकता है कि "देवर्षि" श्री श्री "अरनब गोस्वामी" इस ब्रेकिंग न्यूज पर आजकल मे एक घंटे का कार्यक्रम भी कर दे और चीख़ चीख़ कहे कि देश जानना चाहता है "मेंगों दामाद" के घर से निकली औरत कौन थी, क्यों आई थी, क्या रिश्ता है,....... आगे विशेषज्ञों की चर्चा में और भी कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाए जा सकते है......
    अरे कनसुखों, अब चुनाब खत्म हो गए है.... सरकार बन गई है .......जाँच करके उसे जेल मे डालने दो.... करो, कुछ करो............चौटालाजी को भी मन नही लगता है अकेले , उन्हे भी वहाँ एक कंपनी मिल जाएगी.... ..... पर चैनलों पर बाइट देने से परहेज़ करो...........एक-एक इंच की जाँच होगी .... .........इसकी क्या जरूरत है ....be focused only on Robart ..... एक-एक इंच की जाँच मत कराओ....बर्र की छ्त्ते मे उँगली मत डालो, .....नही तो बहुत से डैनी, माईकल, तेजा, भूरा..... भी नजर आजाएंगे.....

    यह सब होते देख-पढ़ मुझे अजानक ही श्रीमान बाड्रा जी से थोड़ी हमदर्दी सी होने लगी....पता नही क्यों..... क्या लोगों के राबर्ट के पैसे कमाने से दिक्कत है .... नही, ऐसा है....राबर्ट कौन है.... कुछ भी नही ... खूब कमाए पैसा... दिक्कत तो सिर्फ दिल्ली मे सोनिया और हरियाने में 'हुड्डा' से थी, जो दस साल से मलाई पर मलाई खाये जा रहे थे... अब आपसे की कुर्सी की गुत्थम गुत्था मे आफत तो कपड़ो की होती है ..... पर इसमे कपड़ों का क्या दोष....कहाबत तो यह भी है कि गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है और यह भी कहते है कि गेहूँ के साथ खर्तुए मे भी पानी लगता है..... इसमे बेचारे बाड्रा का क्या दोष जिसके लिए एक एक इंच की जाँच कराएंगे ......

    फिर अचानक याद आया कि 1998 मे एक प्राध्यापक मित्र ने 10k /प्लाट (1 ग्राउंड=2400 sqft) के हिसाब से 10-12 ग्राउंड जमीन (खेती) खरीदी,और कुछ 6-7 मित्रों को यही प्लाट145K/ग्राउंड के हिसाब से 2004 मे बेच दिए ॥ भविष्य मे इन लोगों ने अपने अपने प्लाट 7 लाख मे 2006, 15 लाख मे 2009, 33 लाख मे 2012 और 70 लाख मे 2014 मे बेचे... वह अलग बात है के रजिस्ट्री कम की कराते है...2 लाख रूपये खर्च करने से landuse बदलवाने का जुगाड़ हो जाता है...बहुत सारे दलाल नही .....परामर्श दाता जगह जगह उपलब्ध है ..... यह कहानी सभी उभरते शहरों हर नुक्कड़ वाले की है.... सही मे जाँच हो तो 50 "खेमकाओं" की जरूरत पड़ेगी .... और हज़ारो ".....मेंगों दामाद" मिलेंगे.... देखा जाय तो इस प्रक्रिया मे कोई सामान्य खेमका, हमें भी बाड्रा साबित कर सकता है ... पर हम तो आम आदमी है और हमे जीवन में पैसा कमाने के सम्पूर्ण अधिकार है और हम वोटर है तो हकदार भी है| आम का राज है "हापुस-alaphanso" ही एक ब्रांडेड "आम" है बरना कलमी, लगड़ा, दशहरी और चौंसा का भी स्वाद गज़ब का है,वो अलग है किये स्थापित ब्रांड नही है, ........वैसे नए एमबीए डिग्री बाले कनसूखे अब इन नए "मेंगोज" को भी मार्केट में लाँच करके "अपनाधन" बनाएंगे और जीडीपी ग्रोथ मे योगदान देंगे, ऐसी अपेक्षा है ॥
    Last edited by rskankara; November 4th, 2014 at 05:57 PM.
    जाट के ठाठ हैं .....

  6. The Following User Says Thank You to rskankara For This Useful Post:

    vdhillon (December 11th, 2014)

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