आपने इतिहास के कुछ अच्छे पन्ने उठा लिए... किताबो में अच्छी बात ढूँढना अच्छी बात है.
समय के साथ हरयाणा समाज में भी उतार-चढाव आये है.
आज दोनों ही चीज़े है, अच्छी भी और बुरी भी. हम बुराई हटाने के साथ साथ अच्छाई को प्रोत्साहन दे तो कामयाबी जल्दी मिल सकती है.
जैसे:
१.
खाप पंचायत ... इनमे औरतो को शामिल करना चाहिए. (मैंने कुछ ही खाप पंचायतो का सम्मलेन देखा है, सबमे औरते नदारद.)(
लाडो मूवी बनी है राष्ट्रीय पुरुस्कार प्राप्त ).
२.
ग्रामपंचायत .... इसमें यदि सरपच अगर महिला हो तो भी सारा काम-काज उनका पति ही देखता है, और बाकायदा उसके पति को ही सरपंच बुलाया जाता है.... और शायद वो महिला (वास्तविक) सरपंच गाय-भैंसों की डवाल करती नज़र आये, और पंचायतो की मीटिंग में शामिल ही नाहो. यहाँ तक की उसका पति उसके sign की नक़ल करके (खुद sign करके ) काम करता हो.
३. जब औरते मर्दों के साथ लड़ती थी तो, आज औरतो का हरयाणा घूँघट में क्यों छिपा हुआ है... आज ६०+ की महिला भी राम-राम (सुबह की नमस्कार ) जैसा सम्मान भी घूँघट की वजह से नहीं प्राप्त कर सकती. जब भतीजे-कम उम्र के लोग उसके पति (ताऊ) को राम राम कर जाते है तो क्या उस महिला का भी मन नहीं करता राम-राम सुन-ने का...... और वो चाह कर भी कुछ करने से डरती है क्यूंकि सामाजिक नियम पुरुष बनाते है, और वो सास के जिन्दा रहने तक पति के साथ बैठ भी नहीं सकती ....
हम महिलाओ को उनका इतिहास सुनकर उनको प्रताड़ित करने के अलावा कुछ नहीं कर रहे. हम उनसे इतिहास की महिलाओ की तरह बन-ने की अपेक्षा तो रखते है. लेकिन ना उनको माहोल देते, ना उनको विचार देते, ना योग्यता पैदा करने की शिक्षा देते.
कुछ उदाहरणों को छोड़ दे तो हम उनके खाने का ध्यान नहीं रखते. न खेलने और शारिरिक रूप से मजबूत होने के लिए आधार प्रदान करते. ना उनके विचार सुनते.... और तो और हम उनको पैदा होने से पहले और बाद में मारने तक की सोचते है.....
साफ़ है... पतन के रास्ते पर है ... तभी तो इतिहास को याद करते है.. अन्यथा वर्तमान की गाथाये गाते
ओलंपिक्स में हरयाणा की बच्चियों ने बहुत नाम कमाया है... उनके परिवार ने क्या -क्या किया वो हमें लिखना-पढ़ना चाहिए.. शायद हम भी वो जल्दी अपने घर में लागू कर पाए...