अगर आज छोटूराम होते तो!
भूमिका: अगर किसान मसीहा दीनबंधु सुशासन के सर्वोत्तम प्रतीक सर छोटूराम इक्क्सवीं सदी में अवतारें तो किसानों-दीनहीनों के ऐसे कौनसे कार्य उनकी प्राथमिकता रहते, जैसे कि उन्होंने उनके प्रथम अवतार में किये थे? ऐसे ही कुछ मुद्दों पर चर्चा करता है यह लेख|
प्रस्तावना: इस लेख को लिखने की मेरी प्रेरणा सर छोटूराम द्वारा किसानों-दलितों-दीनों के लिए उस जमाने में बनवाए गए कानूनो जैसें साहूकारा पंजीकरण एक्ट, गिरवी जमीन वापसी एक्ट, कृषि उत्पाद मंडी एक्ट, व्यवसायिक श्रमिक एक्ट, पंजाब वेटरस व् मेयर एक्ट, पंजाब ग्राम पंचायत एक्ट, पंजाब रेगुलेशन व् अकाउंट एक्ट, कर्जा माफ़ी एक्ट, सम्पत्ति स्थानांतरण एक्ट से आती है कि आज के जमाने में इसी तर्ज पर कानून बनाने हों तो कौनसे-कौनसे कानून बनें?
परिवेश: इन विषयों पर चर्चा करते हुए स्वर्गीय बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के इस फॉर्मूले को ध्यान में रखना जरूरी है| यह फार्मूला बताता है कि इसकी समानुपाती अनुपालना की अनुपस्थिति में किसान कहाँ पहुँचने की बजाय कहाँ पहुँच गए हैं|: Baba Tikait Price Formula
आगे बढ़ने से पहले एक नजर इन पहलुओं पर भी डालते चलते हैं, जिन्होंने मुझे यह लेख लिखने पर विवश किया:
- किसान की "बंधुआ मजदूरी" की यह प्रथा अब बंद हो: इक्कीसवीं सदी में आकर भी गैर-कृषक समाज द्वारा किसान के उत्पादों का वह भी किसान की सलाह/रजामंदी लिए बिना मूल्य निर्धारण करना ठीक वैसा है जैसे कि "बंधुआ मजदूरी"। पुराने जमाने में जैसे किसान की जमीन का वह खुद मालिक नहीं होता था ऐसे ही आज किसान खुद अपने उत्पाद का मालिक नहीं है, क्योंकि उस उत्पाद का मूल्य निर्धारण कहीं और बंधा हुआ है| यह ठीक वैसा ही है जैसे किसी मजदूर से बंधुआ मजदूरी करवाना व् दिहाड़ी के नाम पर मनमाने पैसे उसके हाथ में थमा देन| इसलिए इसका समूल अंत हो|
- एक मामले में तो व्यापारी जैसा रस्क किसान को भी मिलना चाहिए: व्यापारी के दर पे बेचने जाए तो किसान, खरीदने जाए तो वो भी किसान| कम से कम एक तरफ तो व्यापारी किसान के दर पे भी आये, या तो खरीदने के वक्त ही आये या फिर बेचने के वक्त| आखिर किसान की ऐसी फूटी किस्मत क्यों कि दोनों ही वक्त किसान ही उसके दर पे जाए वो भी अपना भाड़ा और वक्त लगा के?
- ट्रांसपोर्टेशन लागत किसान क्यों भरे?: मंडी में अनाज ले के किसान जाए तो अपने खर्चे पर, वहाँ रुकना पड़े तो उसका खर्च भी वही उठाये| जबकि बाकी के सारे व्यापारिक क्षेत्रों में ट्रांसपोर्टेशन से ले के ट्रांसपोर्ट पर जाने वाले तमाम कामगारों को भत्ता व् किराया मिलता है| तो ऐसा ही किसान के मामले में भी हो, कि उस द्वारा गाँव से दूर फसल बेच के आने पर उसकी ट्रांसपोर्टेशन लागत का खर्च उसकी फसल का भाव तय करते वक़्त उसमें जुड़े अथवा उसको अलग से उसके पैसे मिलें|
- किसान की न्यूनतम आय का कोई पैमाना नहीं: जिस प्रकार एक मजदूर की न्यूनतम आय तय है, प्रवेश स्तर से ले प्रथम श्रेणी तक के कर्मचारी की न्यूनतम आय तय है, तो ऐसे ही किसान की न्यूनतम आय तय क्यों नहीं?
अब आते हैं कि अगर आज सर छोटूराम होते तो:जितना मैंने सर छोटूराम को पढ़ा, जाना और समझा है उसके हिसाब से यह कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर कानून जरूर बनते:
- कृषि का व्यापारीकरण: कृषि क्षेत्र का व्यापारीकरण व् इससे संबंधित सभी व्यापारों में अधिकतम किसानों की सीधी भागीदारी| कृषि का व्यापारीकरण होने पर, अन्य व्यापारों की तर्ज पर अध्ययन के अनुसार तमाम तरह के सरकारी, कोआपरेटिव व् सहकारी आर्थिक सहयोग व् सुविधाएं|
- किसान आयोग का गठन: इंडियन चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स की तर्ज पर इंडियन चैम्बर ऑफ़ एग्री-कमोडिटीज (किसान आयोग) का गठन व् इसमें किसानों की सीधी-सीधी अस्सी प्रतिशत भागीदारी व् इससे संबंधित निर्णयों में किसानों को वीटो पावर| एक चुनावी प्रक्रिया के तहत किसानों द्वारा इसकी गवर्निंग बॉडी व् मेंबर्स का चुनाव व् अपना कार्यतंत्र| किसी भी चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स अथवा प्लानिंग कमीशन जगह खेती के विभिन्न उत्पादों की उत्पाद लागत यह किसान आयोग तय करेगा|
- फसल के विक्रय मूल्य निर्धारण का अधिकार: तमाम तरह के फसल उत्पादों का विक्रय मूल्य निर्धारित करने का हक़ सीधा किसानों के हाथों में अथवा लागत से दो गुना दाम| कृषि उत्पाद की लागत किसान तय करें और शुद्ध लाभ हेतु लागत मूल्य में लाभ मार्जिन जोड़ने हेतु किसान आयोग बाबा महेंद्र सिंह टिकैत जी के मूल्य अनुपात फार्मूला को अस्तित्व में लाये व् फसलों के दाम निर्धारित करते वक्त बाबा जी द्वारा बताई गई समकक्ष वस्तुओं में गिरावट व् उछाल को ध्यान में रखते हुए अपने उत्पादों के दाम घटावे-बढ़ावे का कानून|
- किसान की भी न्यूनतम आय तय हो: जैसे हरियाणा में एक मजदूर की न्यूनतम मजदूरी 8100 रूपये प्रतिमाह निर्धारित है, ऐसे ही किसान की भी न्यूनतम प्रतिमाह आय निर्धारित करने का फार्मूला बनाया जाए|
- कृषि स्टॉक एक्सचेंज का गठन: देश का अन्न का कटोरा कहे जाने वाले पंजाब और 1857 से पहले के प्राचीन हरियाणा यानी वर्तमान हरियाणा-उत्तराखंड-दिल्ली-पश्चिमी उत्तरप्रदेश के मध्य किसानों की अपनी कृषि कमोडिटीज के तहत सीधी भागीदारी वाली स्टॉक एक्सचेंज|
- खेत से मंडी तक की ट्रांसपोर्टेशन लागत: हर प्रकार के कृषि प्राइमरी प्रोडक्ट को खेत से मंडी पहुंचाने की ट्रांसपोर्टेशन का खर्च किसान के कृषि उतरपाद लागत में दर्ज हो| मंडी में छ: घंटे के अंदर-अंदर किसान का अनाज ना बिकने की सूरत में, अनाज की सुरक्षा हेतु सरकारी दिहाड़ी की तर्ज पर उसके अतिरिक्त ठहराव के लिए भत्ता-खाना व् वहाँ ठहरने का सुविधाजनक प्रबंध| या फिर व्यापारी/सरकार प्राइमरी प्रोडक्ट सीधा किसान के घर/खेत/खलिहान से अपने ट्रांसपोर्टेशन खर्च पर उठाये|
- फसल का पैसा सीधे किसान के खाते में आये: किसान की फसलों के दाम का भुगतान बिना किसी बिचौलिए के सीधा-सीधा कृषि आयोग की निगरानी में किसानों के बैंक खातों में हो| एक समय सीमा निकल जाने के बाद अगर भुगतान नहीं होता है तो जितना ज्यादा वक्त लगे उस पर किसान को मार्किट दर पर ब्याज दिया जावे|
- बेचने या खरीदने, पर व्यापारी भी किसान के दर पे आये: आज बात चाहे प्राइमरी प्रोडक्ट की हो अथवा सेकेंडरी की; प्राइमरी बेचना है तो किसान ही व्यापारी के दर जाता है और सेकेंडरी खरीदना हो तो भी| इस चक्र को तोड़ एक तरफ किसान को राहत दी जावे और व्यापारी या तो प्राइमरी खरीदने किसान के दर पे आये अथवा सेकेंडरी बेचने उसके दर पर आये|
- किसानों को आनरेरी डिग्रियां दी जावें: विभिन्न विश्वविद्यालय जैसे किसी राजनीतिज्ञ को राजनीती विज्ञान की, किसी व्यापारी को अर्थशास्त्र, या किसी समाजशास्त्री को समाजशास्त्र की वो भी बिना पढाई किये अथवा परीक्षा दिए सिर्फ अनुभव व् उपलब्धियों के आधार पर आनरेरी पी. एच. डी. की डिग्री देते हैं, ऐसे ही किसानों को भी कृषि क्षेत्र की ऐसी ही डिग्रियां कृषि विश्वविधालयों द्वारा दी जावें|
- भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान किसान को भी मिलें: कृषि क्षेत्र के खेतों से सीधे-सीधे जुड़े व् तरक्कीपरस्त, रचनात्मक, परिवर्तनात्मक किसानों को कृषिक्षेत्र व् उनके समाजों में उत्कृष्ट व् अतिउत्क़ृष्ट योगदान हेतु राष्ट्र के चार सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मानों "भारत रत्न", "पदम विभूषण", "पद्म भूषण" व् "पद्म श्री" के लिए हर साल सम्मानित किया जावे| इसके लिए कृषि की अलग से श्रेणी रखी जावे|
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