कुछ धर्म के सौदागरों द्वारा की गयी मशहूरी सुनकर मुझे भी ये फिल्म देखनी पड़ी I खामखाँ की हाय तौबा मचा रखी है I बॉलीवुड के routine कूड़े कबाड़ से हट कर ये एक ठीक ठाक फिल्म है जो अंधविश्वास और धर्म के कारोबारीकरण पर अच्छी चोट करती है I हाँ थोड़ा सा इस्लामी कट्टरपन और पैसे के बल पर दुनिया भर में ईसाई मिशनरीज द्वारा किये जाने वाले धर्म परिवर्तन पर भी बराबर जोर दिया जा सकता था, जिसका अनुपात मुझे थोड़ा कम नज़र आया I हिन्दु अन्धविश्वाश से कहीं अधिक खतरा आज इस्लाम के नाम पर कुछ जंगली जानवरों द्वारा फैलाया जा रहा आतंकवाद है जिसको फिल्मों में तवज्जोह दी जानी बहुत जरूरी है I हिन्दु उग्रवाद और अन्धविश्वास उसके सामने कम चिंता का विषय है, क्योंकि यह तो सिर्फ एक देश के कुछ भागों में ही है और उसे भी शिक्षित समाज का काफ़ी बड़ा हिस्सा धीरे धीरे नकारता जा रहा है I लेकिन आतंकवाद का खात्मा धर्म के नाम पर उन्माद फैला कर नहीं किया जा सकता I ये काम सरकारी तंत्र, जैसे सुरक्षा एजेंसियों, फ़ौज़,पुलिस और गुप्तचर विभाग का है न की धर्म के सौदागरों का I अगर उन्हें फिल्म की कहानी पसंद नहीं है तो सेंसर बोर्ड से शिकायत कर सकते हैं I धार्मिक गुंडागर्दी फैलाकर कला का गला घोंटने की आज़ादी प्रजातंत्र में किसी को नहीं होनी चाहिए I वैसे भी इस फिल्म का निर्माता, निदेशक और कहानीकार हिन्दु ही हैं और सिर्फ इसीलिये इसका विरोध करना कि इसमें मुख्य कलाकार मुस्लिम है तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने वाली बात है I