हम अपना उपनाम (surname) क्या लगते है या रखते है उसमे थोड़े विचारो की झलक तो मिल ही जाती है !!
यादव समुदाय को मैंने हमेशा यादव उपनाम लगाते देखा-पढ़ा है ! हो सकता है इसका भी अपवाद हो.
जब भी कोई अधिकारी अपने समुदाय, भाई बंधुओ, आदि का कुछ भला करना चाहता है (जैसा की भारत में बहुतायत में होता है, और होना नहीं चाहिए, फिर भी ....) तो उसको यह पता लगाने की जरूरत नहीं होती की फलां व्यक्ति किस जाति का है...
लेकिन यही बात जब किसी जाट अधिकारी या पहुँच वाले व्यक्ति पर आती है तो पहले उसे जाटो के गोत्रो का अध्ययन करना पड़ता है !! और इतने हजारो का रिकॉर्ड अपने माथे याद रखना होता है !! आखिरी में उसे पूछना ही पड़ता होगा की भाई तू जाट है या कोई और ... ऐसा करना (पूछना) उसकी नोकरी पर भारी पड सकता है !!
(उप्पर लिखी बातें व्यंग-कथन (sarcasm), है पढ़ने वाला इन्हें सीधा ना समझे !)
(नीचे लिखी बातें सीरियस है !)
तो आखिर ऐसा क्यूँ होता है, एक जाति में हम एक उपनाम क्यों नहीं रखते !
क्यूँ हम अपनों में ही अलग दिखना चाहते है !!
मैंने कई बुजुर्गो से ये भी सुना है की जाटों में भी कुछ गोत्र ऊँचे है और कुछ नीचे !! मतलब जाट भी बंटे हुए है !!
जबकि मुझे ये लगता है की सभी जाट गोत्रो के पास सत्ता नहीं थी, और जो सत्ता में थे शायद ये बुजुर्ग इन्ही सत्ता वालो गोत्रो को बड़े बता रहे होंगे !!
एक किस्सा राजस्थान विधान सभा का लो.. 25+ MLA जाटों के होते हुए भी, जाट मुख्यमंत्री नहीं ... और तो और एक अकेले गहलोत माली ने .. भावी कांग्रेसी जाट मुख्यमंत्री (मदेरणा) को जेल में डलवा दिया !!
तो आखिर हम बात एकता की करते है, और काम पता नहीं क्यूँ अलग खड़ा होने का करते है !
और अलग खड़ा होने, या हमारे जाति भाई-बहन कही हमसे आगे न निकल जाये, इस सोच में हम उनकी मदद भी नहीं करते !
(एक वाक्या तो मेरे पिताजी के साथ ही हुआ था.)
मैं यह नहीं कह रहा की सभी जाट ऐसे है, बहुत से जाट तो अपनी जाति से बाहर निकल कर सभी की हरसंभव मदद करते है ! बहुतेरे अपनी जाति की मदद करते है , लेकिन मेरे अनुसार, ये अभी भी बहुमत में नहीं है !
हम अपनों से जब तक अलग खड़े होने, अलग दिखने (नाम, ताकत, पहुँच, सत्ता...आदि ) की कोशिश और जद्दोजहद करते रहेंगे.. हमारी एकता की बातें एक मजाक ही समझी जाएँगी !!