राष्ट्रीय दलित-पिछड़ा एकता संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व कमांडेंट पंडित हवासिंह सांगवान ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि जब छह जुलाई, 2013 को हरियाणा के मुख्यमंत्री चौ० भूपेंद्र सिंह हुड्डा दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में हुए जाट सम्मेलन में गए, तो हरियाणा और उससे बाहर बहुत लोगों ने आसमान को सिर पर उठा लिया कि चौ० भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सीएम होते हुए जातीय सम्मेलन में नहीं जाना चाहिए था। लेकिन जब कल 28 दिसंबर को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पानीपत में अपने जातीय सम्मेलन में गए और उन्होंने वहां पर एक जातीय ट्रस्ट को एक एकड़ जमीन तथा करोड़ों रुपए अनुदान राशि की घोषणा की, जब किसी ने भी चूं तक नहीं किया। यह सरासर अनदेखी है।
बाद में खट्टर साहब सफाई देते सुनाई दिए गए कि पंजाबी कोई जाति नहीं है। यदि वास्तव में ये पंजाबियों का ही सम्मेलन था तो वास्तविक सिख पंजाबियों को इस सम्मेलन में क्यों नहीं बुलाया गया। इससे स्पष्ट है कि ये सम्मेलन हिंदू पंजाबियों अर्थात अरोड़ा और खत्रियों का था, जो सरासर जातीय सम्मेलन था। हम ये भी स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि सन 1966 में पंजाब का बंटवारा भाषा आधार पर हुआ था, जिसमें पंजाबी भाषियों को पंजाब दिया गया था और गैर पंजाबियों को हरियाणा। इसी प्रकार हमारे देश में भाषा के आधार पर बंगाल, तमिलनाडू, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात प्रदेश बने हुए हैं और जाति के आधार पर नागालैंड और मिजोरम हैं। इससे स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी द्वारा हरियाणा में पंजाबी मुख्यमंत्री थोपना किसी भी सिद्धांत पर खरा नहीं उतरता है। इसलिए हम चाहते हैं भारतीय जनता पार्टी खट्टर साहब को बदलकर किसी भी हरियाणवी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाए, नहीं तो आने वाले समय में एक बहुत बड़े आंदोलन का सामना करना पड़ेगा।