के बिगड़ै सै, देखी जागी:


"के बिगड़ै सै, देखी जागी" जाट समाज की सबसे बड़ी आत्मघाती परिकल्पना जो "जाटड़ा और काटड़ा अपने को ही मारे", और "जाट-जाट का दुश्मन और जाट की छत्तीस कौम दुश्मन" जैसी मानसिक प्रवृतियों का मूल है| जब तक यह पहले वाली खत्म नहीं होगी, दूसरे वाली सदा कायम रहेगी| जो इन दूसरे वालियों को इस समाज से खत्म करने की सोचता हो, वो पहले वाली को खत्म करने पे विचारे|


जीवन में खुशियां कायम रखने के लिए जीवन के प्रति हल्का रवैय्या जरूरी होता है, परन्तु इतना भी हल्का नहीं होना चाहिए कि वो बेखबरी/अनभिज्ञता का सबब बन जाए| क्योंकि बेखबरी अनियमतताओं का ऐसा द्वार है जिसके रास्ते दुश्मन आपकी संस्कृति से ले के आपके कौमी अस्तित्व और सामाजिक महता तक को खा जाता है|



और कैसे इस एक "के बिगड़ै सै, देखी जागी" रवैये ने जाटों की संस्कृति खा ली, इसके लिए जाटों की प्रणाली में दिन-प्रतिदिन आ रहे नए तरीकों से देख लो| जाट ब्याह-शादी में भी धोती-कुरता-दामण-सलवार-सूट की अपनी संस्कृति नहीं बना रख पा रहे हो उसे देख लो| क्योंकि कोई भी आ के कह दे कि जाट जी "लड़की को स्टेज पे लाते वक्त चार भाई सर पे चार-पल्ले पकड़ के लावें तो अच्छा लगेगा", और जाट इतने बड़े दिल के होते हैं कि लड़की को मंडप-या-स्टेज पर लाने का जो रिवाज मामा का होता आया वो भाईयों के जिम्मे चढ़ाये बैठे हैं, और किसी को भान नहीं| छोड्डे नैं यार यू फूल तो न्यूं ए ताकू-तैये करें जा सै "के बिगड़ै सै, देखी जागी"|


और कैसे इस एक "के बिगड़ै सै, देखी जागी" रवैये ने जाटों का "कौमी अस्तित्व" खा लिया, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जाटों द्वारा यह पता ना लगाना कि हरियाणा में यह जो जाट बनाम नॉन-जाट का जहर है यह कौन लोग फैला रहे हैं, और इनको कैसे रोक जाए| क्योंकि जाट जरूरी ही नहीं समझते ना, कारण, अरे भाई वही एक "के बिगड़ै सै, देखी जागी"। खा लिया ना खून इस "के बिगड़ै सै, देखी जागी" नैं कि जो कामगार और दलित जातियों के रोजगार से ले के सुख-दुःख में आप सबसे ज्यादा काम आते हो, वो ही आज आपसे छींटके पड़े हैं; और छींटकाने वाले राज कर रहे हैं| और आप "के बिगड़ै सै, देखी जागी" घूंटी पिए जा रहे हो; हुई ना आत्मघाती नीति यह?


और कैसे इस एक "के बिगड़ै सै, देखी जागी" रवैये ने जाटों की "सामाजिक महता" खा ली; कि अब आपके अस्तित्व से कोई इतना भी खौफ नहीं खाता कि अगर जबरन भी आपकी भूमि हड़प ली जाएगी तो आप चूं नहीं करेंगे| अब तो सोशल मीडिया पर यह "धाक्कड़ जाट", "धांसू जाट", "ऐंडी जाट", "सूरमे जाट" जैसे स्लोगन्स भी मेरे से नाक-भों सिकोड़ने लगे हैं जैसे मुझे चिड़ा रहे हों; परन्तु मेरी कौम के शेर इनको ही प्रमोट करने पे लगे रहते हैं, रै छोड्डै नैं फूले मेन्टल "के बिगड़ै सै, देखी जागी"| क्या आप लोगों का यह अति-आत्मविश्वास वजह नहीं जो इतना शापित भूमि अधिग्रहण मसौदा बनाने की कूबत, इसको बनाने की सोचने या बनाने वालों में जिसने भर दी? रै मैं तैने फेर कह रह्या, सुणदा नई तैने, अक तेल-पाणी ले कैं मानैगा, ज्यब कह दी ना "के बिगड़ै सै, देखी जागी"|


सिर्फ इतना ही नहीं इस "के बिगड़ै सै, देखी जागी" के चलते आपकी सोच और पहुंच इतनी छोटी होती जा रही है कि आपकी विश्व की सबसे प्राचीन लोकतान्त्रिक व्यवस्था "खाप" तक को खाती जा रही है; क्योंकि 90% लोग मंत्रणा भी इसी "के बिगड़ै सै, देखी जागी" की सोच के तहत करने लगे हैं| जाटो इससे पहले वो कहावत बन जाए कि "हाथ ना पल्ले, मियाँ मटकता-ए-चल्लै", फेंक बगा दो इस "के बिगड़ै सै, देखी जागी" की खाज को|


रै तू चाल जा मखा खाज के खजौती| - फूल मलिक