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Thread: I was a hindu!!!!

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  1. #1

    Angry I was a hindu!!!!

    मुझे लग रहा है की ये फोरम मेरे मतलब का नहीं है, सबसे बड़ी बात तो ये की ये जाटों को धरम के नाम पर डिवाइड करता है, मई जब हिंदू था तो मुझे ये बकवास बढ़िया लगती थी, पर अब मुझे नई लगता की मुझे यहाँ अब रुकना चाहिए, क्योकि मई भगत सिंह, सर छोटूराम का अनुयायी हु , और उनकी बातों को अपने जीवन में उतारने में विश्वास करता हु , हमारे पूर्वज धोती कुरता पहनते थे जरुरी नहीं की मई भी धोती कुरता पहनू ,, हमारे पूर्वजो ने जो किया आज वो इतिहास ह , आज हम जो कर रहे ह वो कल इतिहास होगा , हमे कल को सुधारना ह, इसमें इतिहास हमारी मदद करता ह, जो गलती हमारे पूर्वजो ने की , जरुरी नहीं की हम दोहराये , हो सकता ह हमरे पूर्वजो ने कुछ गलत किया हो, जरुरी नहीं की हम भी करे,,
    अरे भाई हमे भी तो सोचने का मौका दो,भगत सिंह अगर आपकी वेबसाइट पर होता तो तुम क्या कहते,? शायद यही की तुम नास्तिक हो, तुम्हारे पूर्वज हिन्दू थे, तुम भी हिन्दू बनो, , पर आज दुनिया में भगत सिंह के करोडो पढ़ने वाले ह, उसकी सोच की दुनिया कायल ह, करतार सिंह सरभा को क्यों भूल जाते हो वो भी तो फांशी पर चढ़ गया था १९ साल की उम्र में, क्या वो भी धरम के लिए चढ़ा था?? नहीं, धरम से उसको कोई लेना देना नहीं था, क्योकि धरम का न तो नैतिकता से सम्बद्ध ह, न संस्कृति से, और कौम से तो बिलकुल भी नहीं , पर यहाँ इस फोरम पर रूढ़िवादी कट्टरपंथी सोच के लोग ज्यादा ह , कुछ तो मॉडरेटर ह, मुझे ये भी पता ह की मेरी पोस्ट जरूर डिलीट की जाएगी, पर फिर भी सोचा की एक लास्ट मैसेज छोड़ना चाहिए , ताकि मेरी इस बात पर भी कुछ विचार हो, एक सुझाव जाट इतिहासकारो को भी देना चाहूंगा की , इतिहास को ज्यादा से ज्यादा साइंटिफिक बनाने की कोशिश करे.
    धन्यवाद

  2. The Following 8 Users Say Thank You to abhisheklakda For This Useful Post:

    amitbudhwar (June 4th, 2016), DevArbikshe (June 23rd, 2018), login4vinay (February 2nd, 2015), prashantacmet (January 30th, 2015), rajpaldular (June 24th, 2018), rskankara (January 31st, 2015), singhvp (January 30th, 2015), spdeshwal (January 30th, 2015)

  3. #2
    please tell me how i delete my jatland.com account?? if modarator see this post then i request that please delete my account. not block, please ban, because i am not hindu, i am jat, an atheist.....

  4. #3
    हा हा हा, कुछ लोगों ने नाम हिंदुओं वाला रखा हुआ है, विवाह भी हिंदू पद्धति से कर लिया होगा, बच्चों को ईद तो कभी नहीं मनाने दी होगी, लेकिन हिंदुओं के त्योहार अवश्य मनाने दिए गए होंगे, उनके नाम भी हिंदुओं वाले रख दिए होंगे, जब उन्होंने पूछा होगा कि दूसरे उनका धर्म पूछेंगे तो क्या बताना है तो उन्हें यह भी कह दिया होगा कि 'हिंदू' बताना है, नौकरी के लिए फॉर्म भरते हुए भी धर्म 'हिंदू' लिख दिया होगा और दूसरे भी इन्हें इनके नाम एवं रीति-रिवाजों से हिंदू समझ रहे हैं, इसके बावजूद दावा यह कि हम तो हिंदू हैं ही नहीं...
    बढ़िया है...

  5. The Following 4 Users Say Thank You to upendersingh For This Useful Post:

    AbhikRana (January 30th, 2015), cooljat (January 30th, 2015), virendra204 (March 1st, 2015), ygulia (January 30th, 2015)

  6. #4
    naam language k according rlha jata hai, aur language ki jaati dhram ki nhi hoti , culture, area ki hoti hai

  7. #5
    Quote Originally Posted by abhisheklakda View Post
    please tell me how i delete my jatland.com account?? if modarator see this post then i request that please delete my account. not block, please ban, because i am not hindu, i am jat, an atheist.....
    Oho...
    It seems you're going through self identity crisis. Take a break from your routine work then you'll be able to recall that you've always been a hindu who practice the Jat customs..let all the members know if it works..
    Last edited by ayushkadyan; January 30th, 2015 at 04:20 AM.
    I have a fine sense of the ridiculous, but no sense of humor.

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    AbhikRana (January 30th, 2015), rkumar (January 30th, 2015)

  9. #6
    Quote Originally Posted by abhisheklakda View Post
    please tell me how i delete my jatland.com account?? If modarator see this post then i request that please delete my account. Not block, please ban, because i am not hindu, i am jat, an atheist.....
    माननीय अभिषेक लाकड़ा जी,
    आपके मार्मिक शब्दों को पढ़कर हृदय भर उठा। इतिहास साक्षी है जिस प्रकार देश के स्वतंत्रता संग्राम में शहीद शिरोमणि भगत सिंह का नाम सर्वोपरि है उसी प्रकार जाटलैंड के इतिहास में जाटो की रणभेरी बजाने के लिए आप सदैव इसके सदस्यों के प्रेरणास्रोत बने रहेंगे। आप का नाम अनंत काल के लिए स्वर्णाक्षरो में अंकित हो चुका है।
    आपका वैचारिक बलिदान असंख्य सदस्यों का मार्गदर्शक बनेगा।
    वीर तुम बढे चलो धीर तुम बढे चलो...
    हमें आप जैसे जाटों की ही आवश्यकता है जो ना हिन्दू है ना मुस्लिम या सिख!! बस जाट है..क्या बात है जी..दिल खुश कर दित्ता..ओए जियो गुरु..तुसी छ गए..
    अब तो जाग जाओ..सुबह हो गयी मामू..:p
    Last edited by ayushkadyan; January 30th, 2015 at 11:53 AM.
    I have a fine sense of the ridiculous, but no sense of humor.

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    AbhikRana (January 30th, 2015), virendra204 (March 1st, 2015)

  11. #7
    Bhai abhishek...maidaan chhod ke bhaagne ki koi jaroorat nahi hai... yeh tilakdhari jat to bulbule hai.....daro mat..........loomb-tugana ke kuch jaat tilakdhario ke ghulam bane baithe hai......inki pindi sujhao pehlam koone main tai lathora kaahad ke
    Last edited by prashantacmet; January 30th, 2015 at 12:28 PM.
    Become more and more innocent, less knowledgeable and more childlike. Take life as fun - because that's precisely what it is!

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    abhisheklakda (January 30th, 2015), amitbudhwar (January 30th, 2015), krishdel (February 8th, 2015), spdeshwal (January 30th, 2015)

  13. #8
    Quote Originally Posted by prashantacmet View Post
    Bhai abhishek...maidaan chhod ke bhaagne ki koi jaroorat nahi hai... yeh tilakdhari jat to bulbule hai.....daro mat..........loomb-tugana ke kuch jaat tilakdhario ke ghulam bane baithe hai......inki pindi sujhao pehlam koone main tai lathora kaahad ke
    bhaisahab kiya karein. ye pande type log har dharam mei maujood hain. khair apne desh mei mahool hi aisa hai. Kharbooje ko dekhkar Kharbooja rang badalta hai. Jaise sangat hogi waise vichar honge, vagra vagra.

    Khair samay lagega mahol badlne mei. itne hum log to yahi kar sakte hai ki apne aaas pass ke bhai behno ko in pando ke chakkar mei na padne de.

    balki unhe ek sahi raasta dikhayein, ek practical rasta. samaj jitna practical aur pragmatic hoga utni hi tarakki hogi.

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    abhisheklakda (January 30th, 2015), DevArbikshe (June 23rd, 2018)

  15. #9
    Quote Originally Posted by prashantacmet View Post
    Bhai abhishek...maidaan chhod ke bhaagne ki koi jaroorat nahi hai... yeh tilakdhari jat to bulbule hai.....daro mat..........loomb-tugana ke kuch jaat tilakdhario ke ghulam bane baithe hai......inki pindi sujhao pehlam koone main tai lathora kaahad ke

    Sorry to disturb you, but you are requested to let me know whether according to you am I also involved in any way in your these lines as one of the villages you have mentioned above is of mine and you know it very well? Though I may not be involved in your discussion and there are thousands of the Jats in these villages. But you can clear it better.

  16. The Following User Says Thank You to upendersingh For This Useful Post:

    AbhikRana (January 31st, 2015)

  17. #10
    Quote Originally Posted by upendersingh View Post
    Sorry to disturb you, but you are requested to let me know whether according to you am I also involved in any way in your these lines as one of the villages you have mentioned above is of mine and you know it very well? Though I may not be involved in your discussion and there are thousands of the Jats in these villages. But you can clear it better.
    Upender ji

    why this dilemma? u have already announced may times here that you are not slave like christians, buddhists, sikhs...you are free...so there should not ne any question at all..

    but you have asked this question,it means slavery of tilakdharis may have its clutches in your innerself....loose the shackles and come out as you claim....






    .
    Become more and more innocent, less knowledgeable and more childlike. Take life as fun - because that's precisely what it is!

  18. The Following 3 Users Say Thank You to prashantacmet For This Useful Post:

    abhisheklakda (February 1st, 2015), amitbudhwar (February 1st, 2015), DevArbikshe (June 23rd, 2018)

  19. #11
    जब कभी मैं इतिहास पर नज़र डालकर यह जानने की कोशिश करता हूँ कि यह देश इतने लम्बे समय तक गुलाम क्यों रहा तो मुझे कुछ अभिषेक लाकडा जैसे लोगो के विचारों को पढ़कर उसका जवाब मिल जाता है।

    यह स्वान्तः सुखाय की भावना जो कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियो के मन मस्तिष्क में घर कर चुकी है। उसने न तो हिन्दू धर्म और ना ही इस राष्ट्र को किसी लायक छोड़ा है।

    यह सर्वविदित है कि जब-जब इस देश पर बाह्य आक्रमण हुए होंगे तब ब्राह्मण यह कहकर पीछे हट गए होंगे कि यह तो क्षत्रियो का काम है। मेरा मानना है कि राष्ट्रवाद की भावना किसी भी धर्म, जाति या नस्लीय भावना से ऊपर है।जरा कल्पना कीजिये अगर मैं यह मान लूं कि मैं तो जाट हूँ इसलिए मेरा धर्म तो केवल जाटो की रक्षा करना है कैसा लगेगा।

    मैं खुद में ही खुश रहूँ देखो वो तो हिन्दू पिट रहे है ब्राह्मण पिट रहे है जब बात मेरे जाट समाज पर आएगी तो मैं कुछ करूँगा। मैं खुद क्यों किसी झंझट में पडूँ। क्या हो जाएगी ऐसे इस देश की और जाट समाज की रक्षा।इसी वैचारिक अंतर्द्वंद के कारण समाज और राष्ट्र विघटन के कगार पर पहुँच जाता है।

    हिन्दू धर्म और ब्राहमणवाद एक दुसरे के पर्यायवाची नहीं है जैसा कि कुछ लोग समझते है।समय के साथ हिन्दुओ और हिन्दू धर्म का पुनर्जागरण हुआ है। समय के साथ यह धर्म और भी परिष्कृत होगा। क्योंकि हिन्दू धर्म मात्र धर्म की परिभाषा या किसी ग्रन्थ तक सीमित नहीं किया जा सकता। क्योंकि यह इससे बढ़कर है।यह जीवन शैली है। यह मानव सभ्यता में रचा बसा है। जिस प्रकार मानव सभ्यता का आदम युग से लेकर आधुनिक युग तक विकास हुआ है।

    ठीक उसी प्रकार हिन्दू धर्म भी समय के साथ-साथ और ज्यादा विकसित होगा। यह धीरे-धीरे अपने ब्राह्मणवादी स्वरूप से बाहर निकल चुका है।एक समय था जब भारतीय समाज में अनेक कुरीतियाँ भरी पड़ी थी। लेकिन राजा राममोहन राय, स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद सरस्वती ने भारतीय समाज को हिन्दू धर्म की कई कुरीतियों से मुक्त कराया। हालाँकि कुछ अभी भी है परन्तु मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह भी समय के साथ समाप्त हो जाएँगी।

    अब पूछोगे कैसे, क्योंकि यह मात्र धर्म नहीं है बल्कि एक जीवन शैली है और प्रकृति का नियम है कि जीवन शैली समय के साथ बदलती है। ठीक उसी प्रकार जैसे आदम युग का मानव आज परिष्कृत होकर अन्तरिक्ष तक पहुँच गया है।यह हिन्दू धर्म की महानता क्यों न मानी जाये, जब मैं और आप इस धर्म में हो चुके अपभ्रंशो को दूर करने के लिए मंथन कर रहे है। क्या हम किसी और धर्म में ऐसा सोच सकते है जो केवल उनके धर्मग्रन्थो में लिखी बातो को ही लेकर चल रहे है।

    अंत में मै यही कहूँगा कि आखिर कुछ लोगो को हिन्दू धर्म से जुड़ा होने में हीनता का अनुभव क्यों हो रहा है। हो सकता है कुछ लोग मेरे विचारो को किसी खास विचारधारा से प्रभावित बताकर खारिज कर दे।यह कुछ ऐसा है कि कुछ लोग यह जानते हुए भी कि वो हिन्दू है इस हीनता से भरे पड़े है कि अगर कोई उन्हें उनके हिन्दू होने की याद दिला दे तो उन्हें यह अस्वीकार्य लगता है।

    यह खुद की पहचान का संकट है। हमें बस इतना करना है कि किसी को हिन्दू धर्म का ठेकेदार नहीं बनने देना है। हमें गर्व हो कि हम उस सनातन संस्कृति का अंग है जिसने मानव सभ्यता के विकास में महती भूमिका निभायी है। हम और आगे बढ़ेंगे। हमें केवल अपने जाट समाज की ही नहीं बल्कि राष्ट्र के प्रति अपने दायित्वों का भी निर्वहन करना है। जो कि सर्वोपरि है।
    Last edited by ayushkadyan; February 1st, 2015 at 01:11 AM.
    I have a fine sense of the ridiculous, but no sense of humor.

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    cooljat (February 1st, 2015), DrRajpalSingh (February 1st, 2015), upendersingh (February 1st, 2015)

  21. #12
    धर्म और हमारा स्वतन्त्रता संग्राम


    मई, 1928 के ‘किरती’ में यह लेख छपा। जिसमें भगत सिंह ने धर्म की समस्या पर प्रकाश डाला है।

    अमृतसर में 11-12-13 अप्रैल को राजनीतिक कान्फ्रेंस हुई और साथ ही युवकों की भी कान्फ्रेंस हुई। दो-तीन सवालों पर इसमें बड़ा झगड़ा और बहस हुई। उनमें से एक सवाल धर्म का भी था। वैसे तो धर्म का प्रश्न कोई न उठाता, किन्तु साम्प्रदायिक संगठनों के विरुद्ध प्रस्ताव पेश हुआ और धर्म की आड़ लेकर उन संगठनों का पक्ष लेने वालों ने स्वयं को बचाना चाहा। वैसे तो यह प्रश्न और कुछ देर दबा रहता, लेकिन इस तरह सामने आ जाने से स्पष्ट बातचीत हो गयी और धर्म की समस्या को हल करने का प्रश्न भी उठा। प्रान्तीय कान्फ्रेंस की विषय समिति में भी मौलाना जफर अली साहब के पाँच-सात बार खुदा-खुदा करने पर अध्यक्ष पण्डित जवाहरलाल ने कहा कि इस मंच पर आकर खुदा-खुदा न कहें। आप धर्म के मिशनरी हैं तो मैं धर्महीनता का प्रचारक हूँ। बाद में लाहौर में भी इसी विषय पर नौजवान सभा ने एक मीटिंग की। कई भाषण हुए और धर्म के नाम का लाभ उठाने वाले और यह सवाल उठ जाने पर झगड़ा हो जाने से डर जाने वाले कई सज्जनों ने कई तरह की नेक सलाहें दीं।सबसे ज़रूरी बात जो बार-बार कही गयी और जिस पर श्रीमान भाई अमरसिंह जी झबाल ने विशेष ज़ोर दिया, वह यह थी कि धर्म के सवाल को छेड़ा ही न जाये। बड़ी नेक सलाह है। यदि किसी का धर्म बाहर लोगों की सुख-शान्ति में कोई विघ्न डालता हो तो किसी को भी उसके विरुद्ध आवाज़ उठाने की जरूरत हो सकती है? लेकिन सवाल तो यह है कि अब तक का अनुभव क्या बताता है? पिछले आन्दोलन में भी धर्म का यही सवाल उठा और सभी को पूरी आज़ादी दे दी गयी। यहाँ तक कि कांग्रेस के मंच से भी आयतें और मंत्रा पढ़े जाने लगे। उन दिनों धर्म में पीछे रहने वाला कोई भी आदमी अच्छा नहीं समझा जाता था। फलस्वरूप संकीर्णता बढ़ने लगी। जो दुष्परिणाम हुआ, वह किससे छिपा है? अब राष्ट्रवादी या स्वतंत्राता प्रेमी लोग धर्म की असलियत समझ गये हैं और वही उसे अपने रास्ते का रोड़ा समझते हैं।बात यह है कि क्या धर्म घर में रखते हुए भी, लोगों के दिलों में भेदभाव नहीं बढ़ता? क्या उसका देश के पूर्ण स्वतंत्राता हासिल करने तक पहुँचने में कोई असर नहीं पड़ता? इस समय पूर्ण स्वतंत्राता के उपासक सज्जन धर्म को दिमागी गु़लामी का नाम देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि बच्चे से यह कहना किµईश्वर ही सर्वशक्तिमान है, मनुष्य कुछ भी नहीं, मिट्टी का पुतला हैµबच्चे को हमेशा के लिए कमज़ोर बनाना है। उसके दिल की ताव़$त और उसके आत्मविश्वास की भावना को ही नष्ट कर देना है। लेकिन इस बात पर बहस न भी करें और सीधे अपने सामने रखे दो प्रश्नों पर ही विचार करें तो हमें नज़र आता है कि धर्म हमारे रास्ते में एक रोड़ा है। मसलन हम चाहते हैं कि सभी लोग एक-से हों। उनमें पूँजीपतियों के ऊँच-नीच की छूत-अछूत का कोई विभाजन न रहे। लेकिन सनातन धर्म इस भेदभाव के पक्ष में है। बीसवीं सदी में भी पण्डित, मौलवी जी जैसे लोग भंगी के लड़के के हार पहनाने पर कपड़ों सहित स्नान करते हैं और अछूतों को जनेऊ तक देने की इन्कारी है। यदि इस धर्म के विरुद्ध कुछ न कहने की कसम ले लें तो चुप कर घर बैठ जाना चाहिये, नहीं तो धर्म का विरोध करना होगा। लोग यह भी कहते हैं कि इन बुराइयों का सुधार किया जाये। बहुत खूब! अछूत को स्वामी दयानन्द ने जो मिटाया तो वे भी चार वर्णों से आगे नहीं जा पाये। भेदभाव तो फिर भी रहा ही। गुरुद्वारे जाकर जो सिख ‘राज करेगा खालसा’ गायें और बाहर आकर पंचायती राज की बातें करें, तो इसका मतलब क्या है?धर्म तो यह कहता है कि इस्लाम पर विश्वास न करने वाले को तलवार के घाट उतार देना चाहिये और यदि इधर एकता की दुहाई दी जाये तो परिणाम क्या होगा? हम जानते हैं कि अभी कई और बड़े ऊँचे भाव की आयतें और मंत्रा पढ़कर खींचतान करने की कोशिश की जा सकती है, लेकिन सवाल यह है कि इस सारे झगड़े से छुटकारा ही क्यों न पाया जाये? धर्म का पहाड़ तो हमें हमारे सामने खड़ा नज़र आता है। मान लें कि भारत में स्वतंत्राता-संग्राम छिड़ जाये। सेनाएँ आमने-सामने बन्दूकें ताने खड़ी हों, गोली चलने ही वाली हो और यदि उस समय कोई मुहम्मद गौरी की तरहµजैसी कि कहावत बतायी जाती हैµआज भी हमारे सामने गायें, सूअर, वेद-वु़$रान आदि चीज़ें खड़ी कर दे, तो हम क्या करेंगे? यदि पक्के धार्मिक होंगे तो अपना बोरिया-बिस्तर लपेटकर घर बैठ जायेंगे। धर्म के होते हुए हिन्दू-सिख गाय पर और मुसलमान सूअर पर गोली नहीं चला सकते। धर्म के बड़े पक्के इन्सान तो उस समय सोमनाथ के कई हजार पण्डों की तरह ठाकुरों के आगे लोटते रहेंगे और दूसरे लोग धर्महीन या अधर्मी-काम कर जायेंगे। तो हम किस निष्कर्ष पर पहंुचे? धर्म के विरुद्ध सोचना ही पड़ता है। लेकिन यदि धर्म के पक्षवालों के तर्क भी सोचे जायें तो वे यह कहते हैं कि दुनिया में अँधेरा हो जायेगा, पाप पढ़ जायेगा। बहुत अच्छा, इसी बात को ले लें।रूसी महात्मा टॉल्स्टॉय ने अपनी पुस्तक (Essay and Letters) में धर्म पर बहस करते हुए उसके तीन हिस्से किये किये हैं —1. Essentials of Religion, यानी धर्म की ज़रूरी बातें अर्थात सच बोलना, चोरी न करना, गरीबों की सहायता करना, प्यार से रहना, वगै़रा।2. Philosophy of Religion, यानी जन्म-मृत्यु, पुनर्जन्म, संसार-रचना आदि का दर्शन। इसमें आदमी अपनी मर्जी के अनुसार सोचने और समझने का यत्न करता है।3. Rituals of Religion, यानी रस्मो-रिवाज़ वगै़रा। मतलब यह कि पहले हिस्से में सभी धर्म एक हैं। सभी कहते हैं कि सच बोलो, झूठ न बोलो, प्यार से रहो। इन बातों को कुछ सज्जनों ने Individual Religion कहा है। इसमें तो झगड़े का प्रश्न ही नहीं उठता। वरन यह कि ऐसे नेक विचार हर आदमी में होने चाहिये। दूसरा फिलासफी का प्रश्न है। असल में कहना पड़ता है कि Philosophy is the out come of Human weakness, यानी फिलासफी आदमी की कमजोरी का फल है। जहाँ भी आदमी देख सकते हैं। वहाँ कोई झगड़ा नहीं। जहाँ कुछ नज़र न आया, वहीं दिमाग लड़ाना शुरू कर दिया और ख़ास-ख़ास निष्कर्ष निकाल लिये। वैसे तो फिलासफी बड़ी जरूरी चीज़ है, क्योंकि इसके बगै़र उन्नति नहीं हो सकती, लेकिन इसके साथ-साथ शान्ति होनी भी बड़ी ज़रूरी है। हमारे बुजुर्ग कह गये हैं कि मरने के बाद पुनर्जन्म भी होता है, ईसाई और मुसलमान इस बात को नहीं मानते। बहुत अच्छा, अपना-अपना विचार है। आइये, प्यार के साथ बैठकर बहस करें। एक-दूसरे के विचार जानें। लेकिन ‘मसला-ए-तनासुक’ पर बहस होती है तो आर्यसमाजियों व मुसलमानों में लाठियाँ चल जाती हैं। बात यह कि दोनों पक्ष दिमाग को, बुद्धि को, सोचने-समझने की शक्ति को ताला लगाकर घर रख आते हैं। वे समझते हैं कि वेद भगवान में ईश्वर ने इसी तरह लिखा है और वही सच्चा है। वे कहते हैं कि कुरान शरीप़$ में खु़दा ने ऐसे लिखा है और यही सच है। अपने सोचने की शक्ति, (Power of Reasoning) को छुट्टी दी हुई होती है। सो जो फिलासफी हर व्यक्ति की निजी राय से अधिक महत्त्व न रखती हो तो एक ख़ास फिलासफी मानने के कारण भिन्न गुट न बनें, तो इसमें क्या शिकायत हो सकती है।अब आती है तीसरी बात – रस्मो-रिवाज़। सरस्वती-पूजावाले दिन, सरस्वती की मूर्ति का जुलूस निकलना ज़रूरी है उसमें आगे-आगे बैण्ड-बाजा बजना भी ज़रूरी है। लेकिन हैरीमन रोड के रास्ते में एक मस्जिद भी आती है। इस्लाम धर्म कहता है कि मस्जिद के आगे बाजा न बजे। अब क्या होना चाहिये? नागरिक आज़ादी का हक (Civil rights of citizen) कहता है कि बाज़ार में बाज़ा बजाते हुए भी जाया जा सकता है। लेकिन धर्म कहता है कि नहीं। इनके धर्म में गाय का बलिदान ज़रूरी है और दूसरे में गाय की पूजा लिखी हुई है। अब क्या हो? पीपल की शाखा कटते ही धर्म में अन्तर आ जाता है तो क्या किया जाये? तो यही फिलासफी व रस्मो-रिवाज़ के छोटे-छोटे भेद बाद में जाकर (National Religion) बन जाते हैं और अलग-अलग संगठन बनने के कारण बनते हैं। परिणाम हमारे सामने है।सो यदि धर्म पीछे लिखी तीसरी और दूसरी बात के साथ अन्धविश्वास को मिलाने का नाम है, तो धर्म की कोई ज़रूरत नहीं। इसे आज ही उड़ा देना चाहिये। यदि पहली और दूसरी बात में स्वतंत्रा विचार मिलाकर धर्म बनता हो, तो धर्म मुबारक है।लेकिन अगल-अलग संगठन और खाने-पीने का भेदभाव मिटाना ज़रूरी है। छूत-अछूत शब्दों को जड़ से निकालना होगा। जब तक हम अपनी तंगदिली छोड़कर एक न होंगे, तब तक हमें वास्तविक एकता नहीं हो सकती। इसलिए ऊपर लिखी बातों के अनुसार चलकर ही हम आजादी की ओर बढ़ सकते हैं। हमारी आज़ादी का अर्थ केवल अंग्रेजी चंगुल से छुटकारा पाने का नाम नहीं, वह पूर्ण स्वतंत्राता का नाम हैµजब लोग परस्पर घुल-मिलकर रहेंगे और दिमागी गुलामी से भी आज़ाद हो जायेंगे
    Last edited by abhisheklakda; February 1st, 2015 at 01:15 PM.

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    agodara (February 2nd, 2015), amitbudhwar (February 2nd, 2015), prashantacmet (February 2nd, 2015), singhvp (February 2nd, 2015), spdeshwal (February 2nd, 2015)

  23. #13
    अभिषेक, धर्म के ढकोसलेपन पर आपके विचार बहुत सटीक और स्पष्ट हैं I भाई न्यू ए बेधड़क हो के लिखता रह I आपकी बात ठीक सै, पाखंडवाद अर कठमुल्लापन नै इस साइट पर तैं अच्छे, पढ़े लिखे अर समझदार माणस हटा दिए I


    आज भी याद है मुझे कि बचपन में जब कभी हिंदु ठेकेदारों (यानि उच्च जाति) वालों के घर में पानी पीना पड़ जाता तो हम जाट बच्चों को घड़े को हाथ लगाने की इज़ाज़त नहीं होती थी और ऊंची जाति के घर वाले अपने हाथ में गिलास लेकर हमें ऊपर से पानी पिलाते थे, यानि ओक(हाथ की चुल्लू) के द्वारा ही हम पानी पी सकते थे I यह बात अलग है कि उनके कपड़ों में बदबू आती थी I मगर वे बड़े हिंदु थे और हम जाटों के बच्चे छोटे या नीच हिंदु I तभी से इस धर्म के आडम्बर से नफरत हो गई थी और सोच लिया था कि इन ढोंगियों की बनाई हुई लकीर पर चलना न केवल मूर्खता बल्कि मानसिक दासता भी I इसलिए हमें अपना धर्म खुद बनाना चाहिए और जरूरत पड़ने पर उसकी मरम्मत भी कर लेनी चाहिए I लकीर का फ़कीर होने और मानसिक गुलामी सहने से तो बिना धर्म के गुज़ारा करना बेहतर I मुझ जैसे अज्ञानी व्यक्तियों के ज्ञान वर्धन के लिए प्रचारक-गण कृपया निम्लिखित शंकाएं दूर करने का कष्ट करें : :


    १. धर्म क्या है
    २. इसको किसने बनाया
    ३ . इसकी अवधि यानि मियाद कितनी होती है या होनी चाहिये
    ४. इसमें संशोधन का प्रावधान होता है या नहीं
    ५. इसके Board of Director में किन किन जातियों का अधिपत्य होना चाहिए
    ६. जाटों को शूद्र बताने वाला clause होना चाहिए या नहीं
    ७. इसमें कुल मिलाकर कितने हज़ार देवी देवताओं को मान्यता प्राप्त है
    Last edited by singhvp; February 2nd, 2015 at 03:19 AM.

  24. The Following 7 Users Say Thank You to singhvp For This Useful Post:

    abhisheklakda (February 2nd, 2015), agodara (February 2nd, 2015), amitbudhwar (February 2nd, 2015), DevArbikshe (June 23rd, 2018), login4vinay (February 2nd, 2015), prashantacmet (February 2nd, 2015), spdeshwal (February 2nd, 2015)

  25. #14
    Quote Originally Posted by abhisheklakda View Post
    please tell me how i delete my jatland.com account?? if modarator see this post then i request that please delete my account. not block, please ban, because i am not hindu, i am jat, an atheist.....
    Brother Live your life. Believe in yourself. Being a good human being must be first thing than anything else. Its your decision to become what you want to become. Don't go by what others say here or anywhere. Do what you like to do, what your heart says and what your brain says.

  26. The Following User Says Thank You to amitbudhwar For This Useful Post:

    abhisheklakda (January 30th, 2015)

  27. #15
    Quote Originally Posted by abhisheklakda View Post
    मई भगत सिंह, सर छोटूराम का अनुयायी हु , और उनकी बातों को अपने जीवन में उतारने में विश्वास करता हु ,


    अभिषेक लाकड़ा से मेरा कोई निजी वैर नहीं है, लेकिन इसके बावजूद मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि ऐसे लोग सर छोटूराम और शहीद भगत सिंह जैसे महापुरुषों के नाम पर गलत सोच को बढ़ावा दे रहे हैं। माना कि भगत सिंह ने यह कहा कि वे नास्तिक हैं, लेकिन उन्होंने खुद को कट्टर जाट/जट्ट भी कब दर्शाया? छोटू राम ने कब कहा कि वे हिंदू नहीं हैं और उन्हें केवल जाट होने पर गर्व है? वे तो गरीब-बेसहाराओं, सबके थे। अभिषेक लाकड़ा को तो केवल जाट होने का गुमान है।

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    AbhikRana (January 30th, 2015), ayushkadyan (January 30th, 2015), cooljat (January 30th, 2015), rkumar (January 30th, 2015), virendra204 (March 1st, 2015)

  29. #16
    जब 1931की जनगणना हुई थी, तब सर छोटूराम ने कहा था कि वो हिन्दू नहीं हैं| चाहें तो आर टी आई लगवा के पूछ लीजिये, ओरिजिनल रिकार्ड्स में आज भी उनका धर्म "आर्य" लिखा हुआ है "हिन्दू" नहीं|


    Quote Originally Posted by upendersingh View Post


    अभिषेक लाकड़ा से मेरा कोई निजी वैर नहीं है, लेकिन इसके बावजूद मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि ऐसे लोग सर छोटूराम और शहीद भगत सिंह जैसे महापुरुषों के नाम पर गलत सोच को बढ़ावा दे रहे हैं। माना कि भगत सिंह ने यह कहा कि वे नास्तिक हैं, लेकिन उन्होंने खुद को कट्टर जाट/जट्ट भी कब दर्शाया? छोटू राम ने कब कहा कि वे हिंदू नहीं हैं और उन्हें केवल जाट होने पर गर्व है? वे तो गरीब-बेसहाराओं, सबके थे। अभिषेक लाकड़ा को तो केवल जाट होने का गुमान है।
    One who doesn't know own roots and culture, their social identity is like a letter without address and they are culturally slave to philosophies of others.

    Reunion of Haryana state of pre-1857 is the best way possible to get Jats united.

    Phool Kumar Malik - Gathwala Khap - Nidana Heights

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    abhisheklakda (February 9th, 2015)

  31. #17
    यह बिंदु जाटों की लाइफ का कोड ऑफ़ कंडक्ट यानी कल्चर रहे हैं:

    1) घर में लड़का होने पे "घंटी" नहीं अपितु "थाली" बजाना|
    2) "हो गया मठ", "मर गया मठ", "मार दिया मठ" की कहावत आज भी जाटों के यहां होना|
    3) सदियों से विधवा विवाह जाटों के यहां का होना|
    4) जाट बहुल इलाकों में देवदासी प्रथा का ना होना|
    5) जाट बहुल इलाकों में बदकिस्मती से सिर्फ एक वृन्दावन (हालाँकि यह आश्रम भी बंगालियों का बनवाया हुआ है, जाटों या स्थानीय लोगों का नहीं) को छोड़ कहीं भी कोई विधवा-आश्रम ना होना और विधवाओं को पुन्र-विवाह की जगह विधवा-आश्रमों में तो बिलकुल नहीं भेजने की मान्यता होना|
    6) जाट बहुत इलाको में सती-प्रथा का नगण्य होना|
    7) तलाक के बाद दूसरा विवाह ना होने तक पहले पति से जीवन-यापन का खर्च आने का चलन होना और उनसे हुई औलादों का तो पहले पति की सम्पत्ति में सामान्य औलाद की भांति हक होना|
    8) खापतंत्र वाला लोकतंत्र होना (पौराणिक गाथाओं और किस्सों से इस तंत्र का कोई कनेक्शन नहीं है| क्योंकि कनेक्शन होता और यह इनकी देन या इनके यहां मान्य होती तो इनके अनुसार यह सर्वोत्तम होती, आज अपना अस्तित्व बचाने को कोर्टों में धक्के नहीं खा रही होती|)|
    9) खाप-पंचायतों का ध्वज ओलिव ग्रीन रंग के बजाय इनके रंग जैसा होता और चिन्ह भी मोर की बजाए इनकी तरह होता|
    10) राजतंत्र के साथ-साथ, खाप-पंचायत जैसी लोकतंत्र प्रणाली का भी साथ-साथ चलते आना|
    11) हमारे यहां हुए वीरों को योद्धेय कहना (योद्धा या योद्धाओं नहीं, फर्क नोट करें)|
    12) जाटों के मूल-सिद्धांतों में मूर्ती-पूजा का ना होना| जाटों के हर गाँव के दादा खेड़ा में आज भी कोई मूर्ती नहीं है|
    13) स्व-गोत में विवाह की अनुमति ना होना| जबकि हिन्दू धर्म इसकी इजाजत देता है|
    14) गाँव-गोत-गुहांड व् इन इलाकों की छत्तीस बिरादरी की लड़की को रिस्ते के अनुसार बहन-बेटी-बुआ मानने की मान्यता होना|एक गोत के बसाये गाँवों में यह मान्यता अति प्रखर है|
    15) घर-खेत में काम करने वाले को नौकर की बजाय सीरी-साझी बुलाना और गाँव में जो रिश्ता है उसके अनुसार सम्बोधित करना ना कि उसका नाम ले के बुलाना| हमारी संस्कृति नौकर-मालिक की नहीं अपितु सीरी-साझी की है| जबकि शुद्ध हिन्दू धर्म की संस्कृति में यह नौकर-मालिक की है , सीरी-साझी की नहीं| तो यह उल्टा चलन क्यों जाटों के यहां?
    16) जाट मूलत: किसी भी प्रकार की पशु अथवा नरबलि में यकीन नहीं रखते और ना ही ऐसा करते|जबकि हिन्दू धर्म में दक्षिण भारत, बंगाल और नेपाल में कई ऐसे त्यौहार है जिनपर हिन्दू कहीं भैंस-काट्ड़े काटते हैं तो कहीं बकरे-मुर्गे| तो फिर एक जाटलैंड पर ही ऐसी बलियों का प्रचलन क्यों नहीं?
    17) जाट मूलत: शाकाहारी होते हैं और पशु-पौधों को अपना मित्र मानने की मान्यता इनके यहां है| जबकि हिन्दू धर्म तो भिन्न-भिन्न पुस्तकों में सम्पूर्ण प्रकार के प्राणियों के मांस खाने की शिक्षा देता हैं|

    अब मुझे यहां तमाम तरह के जाट यह बता दें, कि आपकी इन मूल मान्यताओं जिनका उद्गम कि सिर्फ जाट हैं, यह हिन्दू धर्म के कौनसे ग्रन्थ-पुराण या अन्य किसी धार्मिक पुस्तक में स्थान पाते हैं?

    कौनसे शंकराचार्य, आचार्य, ऋषि-महर्षि ने जाटों की इन बातों को कौनसी किताब, लेखनी, सभा, सम्मलेन में सराहा या हिन्दू धर्म का अंग बताया है|

    मेरी पोस्ट पर प्रतिउत्तर में सिर्फ उत्तर देने की औपचारिकता निभाने मात्र कमेंट मत करना, कुछ तार्किक और दार्शनिक जवाब देने वाला कोई भाई होव तो देवे|

    और क्योंकि मुझे आजतक इन बातों के जवाब नहीं मिले, इसलिए मैंने मेरा धार्मिक-आध्यात्मिक-सामाजिक पहचान पत्र बनाया है| अगले कमेंट में दाल रहा हूँ इसकी एक प्रति|

    अब किसी जाट भाई में ज्ञान-तर्क क्षमता होवे तो मुझे कन्विंस करे कि मेरे भाई आप भटके हुए हो, यह लो आपकी सारी बातों के उत्तर और कहलाओ "हिन्दू"| क्योंकि यह धर्म हमारे स्वाभिमान व् मान्यताएं, दोनों की रक्षा करता है|
    Last edited by phoolkumar; February 9th, 2015 at 12:27 PM.

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    abhisheklakda (February 9th, 2015), prashantacmet (February 9th, 2015)

  33. #18
    और क्योंकि मुझे आजतक इन बातों के जवाब नहीं मिले, इसलिए मैंने मेरा धार्मिक-आध्यात्मिक-सामाजिक पहचान पत्र बनाया है| अगले कमेंट में दाल रहा हूँ इसकी एक प्रति|

    अब किसी जाट भाई में ज्ञान-तर्क क्षमता होवे तो मुझे कन्विंस करे कि मेरे भाई आप भटके हुए हो, यह लो आपकी सारी बातों के उत्तर और बने रहो "हिन्दू"|

    One who doesn't know own roots and culture, their social identity is like a letter without address and they are culturally slave to philosophies of others.

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  34. #19
    Quote Originally Posted by phoolkumar View Post
    यह बिंदु जाटों की लाइफ का कोड ऑफ़ कंडक्ट यानी कल्चर रहे हैं:

    1) घर में लड़का होने पे "घंटी" नहीं अपितु "थाली" बजाना|
    2) "हो गया मठ", "मर गया मठ", "मार दिया मठ" की कहावत आज भी जाटों के यहां होना|
    3) सदियों से विधवा विवाह जाटों के यहां का होना|
    4) जाट बहुल इलाकों में देवदासी प्रथा का ना होना|
    5) जाट बहुल इलाकों में बदकिस्मती से सिर्फ एक वृन्दावन (हालाँकि यह आश्रम भी बंगालियों का बनवाया हुआ है, जाटों या स्थानीय लोगों का नहीं) को छोड़ कहीं भी कोई विधवा-आश्रम ना होना और विधवाओं को पुन्र-विवाह की जगह विधवा-आश्रमों में तो बिलकुल नहीं भेजने की मान्यता होना|
    6) जाट बहुत इलाको में सती-प्रथा का नगण्य होना|
    7) तलाक के बाद दूसरा विवाह ना होने तक पहले पति से जीवन-यापन का खर्च आने का चलन होना और उनसे हुई औलादों का तो पहले पति की सम्पत्ति में सामान्य औलाद की भांति हक होना|
    8) खापतंत्र वाला लोकतंत्र होना (पौराणिक गाथाओं और किस्सों से इस तंत्र का कोई कनेक्शन नहीं है| क्योंकि कनेक्शन होता और यह इनकी देन या इनके यहां मान्य होती तो इनके अनुसार यह सर्वोत्तम होती, आज अपना अस्तित्व बचाने को कोर्टों में धक्के नहीं खा रही होती|)|
    9) खाप-पंचायतों का ध्वज ओलिव ग्रीन रंग के बजाय इनके रंग जैसा होता और चिन्ह भी मोर की बजाए इनकी तरह होता|
    10) राजतंत्र के साथ-साथ, खाप-पंचायत जैसी लोकतंत्र प्रणाली का भी साथ-साथ चलते आना|
    11) हमारे यहां हुए वीरों को योद्धेय कहना (योद्धा या योद्धाओं नहीं, फर्क नोट करें)|
    12) जाटों के मूल-सिद्धांतों में मूर्ती-पूजा का ना होना| जाटों के हर गाँव के दादा खेड़ा में आज भी कोई मूर्ती नहीं है|
    13) स्व-गोत में विवाह की अनुमति ना होना| जबकि हिन्दू धर्म इसकी इजाजत देता है|
    14) गाँव-गोत-गुहांड व् इन इलाकों की छत्तीस बिरादरी की लड़की को रिस्ते के अनुसार बहन-बेटी-बुआ मानने की मान्यता होना|एक गोत के बसाये गाँवों में यह मान्यता अति प्रखर है|
    15) घर-खेत में काम करने वाले को नौकर की बजाय सीरी-साझी बुलाना और गाँव में जो रिश्ता है उसके अनुसार सम्बोधित करना ना कि उसका नाम ले के बुलाना| हमारी संस्कृति नौकर-मालिक की नहीं अपितु सीरी-साझी की है| जबकि शुद्ध हिन्दू धर्म की संस्कृति में यह नौकर-मालिक की है , सीरी-साझी की नहीं| तो यह उल्टा चलन क्यों जाटों के यहां?
    16) जाट मूलत: किसी भी प्रकार की पशु अथवा नरबलि में यकीन नहीं रखते और ना ही ऐसा करते|जबकि हिन्दू धर्म में दक्षिण भारत, बंगाल और नेपाल में कई ऐसे त्यौहार है जिनपर हिन्दू कहीं भैंस-काट्ड़े काटते हैं तो कहीं बकरे-मुर्गे| तो फिर एक जाटलैंड पर ही ऐसी बलियों का प्रचलन क्यों नहीं?
    17) जाट मूलत: शाकाहारी होते हैं और पशु-पौधों को अपना मित्र मानने की मान्यता इनके यहां है| जबकि हिन्दू धर्म तो भिन्न-भिन्न पुस्तकों में सम्पूर्ण प्रकार के प्राणियों के मांस खाने की शिक्षा देता हैं|

    अब मुझे यहां तमाम तरह के जाट यह बता दें, कि आपकी इन मूल मान्यताओं जिनका उद्गम कि सिर्फ जाट हैं, यह हिन्दू धर्म के कौनसे ग्रन्थ-पुराण या अन्य किसी धार्मिक पुस्तक में स्थान पाते हैं?

    कौनसे शंकराचार्य, आचार्य, ऋषि-महर्षि ने जाटों की इन बातों को कौनसी किताब, लेखनी, सभा, सम्मलेन में सराहा या हिन्दू धर्म का अंग बताया है|

    मेरी पोस्ट पर प्रतिउत्तर में सिर्फ उत्तर देने की औपचारिकता निभाने मात्र कमेंट मत करना, कुछ तार्किक और दार्शनिक जवाब देने वाला कोई भाई होव तो देवे|

    और क्योंकि मुझे आजतक इन बातों के जवाब नहीं मिले, इसलिए मैंने मेरा धार्मिक-आध्यात्मिक-सामाजिक पहचान पत्र बनाया है| अगले कमेंट में दाल रहा हूँ इसकी एक प्रति|

    अब किसी जाट भाई में ज्ञान-तर्क क्षमता होवे तो मुझे कन्विंस करे कि मेरे भाई आप भटके हुए हो, यह लो आपकी सारी बातों के उत्तर और कहलाओ "हिन्दू"| क्योंकि यह धर्म हमारे स्वाभिमान व् मान्यताएं, दोनों की रक्षा करता है|
    But then if Jats were Buddist why are their belief doesnt match buddist ?
    जागरूक ती अज्ञानी नहीं बनाया जा सके, स्वाभिमानी का अपमान नहीं करा जा सके , निडर ती दबाया नहीं जा सके भाई नुए सामाजिक क्रांति एक बार आ जे तो उसती बदला नहीं जा सके ---ज्याणी जाट।

    दोस्त हो या दुश्मन, जाट दोनुआ ने १०० साल ताईं याद राखा करे

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    ayushkadyan (February 9th, 2015), cooljat (February 9th, 2015)

  36. #20
    I don't know aapne "Buddhism" ko kyon daal liya is lekh mein, maine to uska jikra bhi nahin kiya but fir bhi daal liya hai to aapse jaanna chahunga ki aapne buddhism kitna padha hai?

    At least maine itna to buddhism ke baare mein jaroor jana hai ki jo yah 17 points hain inmen se most of point buddhism se mel khaate hain, jo ki is baat ka prove hai ki kabhi ek jamaane mein Buddh rahe hum Jats ne hi in manytaon ko udhar bhi banaya tha aur fir jab by force and laalach udhar se vimukh kiya gaya to hum in points ko tab bhi nahin chhod paaye.... rest aapko jyada is baare jaanna hai to please buddhism ko padh len, maine itna nahin padha hua.....

    maine jo yah 17 points likhe hain yah buddhism ke base pe ya uski reading ke base pe nahin balki jo aaj Jats ke jo parchalan hain uske base pe likha hai.... and I hope most of JL members know these points in person too as in their homes these are the idealistic jat practices.


    Quote Originally Posted by VirJ View Post
    But then if Jats were Buddist why are their belief doesnt match buddist ?
    One who doesn't know own roots and culture, their social identity is like a letter without address and they are culturally slave to philosophies of others.

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    abhisheklakda (February 9th, 2015), rskankara (February 10th, 2015)

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