भगत धन्ना जाट
भगत धन्ना जाट के जन्म के बारे में दो मत हैं , एक मत के अनुसार उनका जन्म धालीवाल गोत्र के जाट परिवार , गाँव चोरु जिला टोंक में हुआ था , दूसरे मत के अनुसार उनका जन्म हरचतवाल गोत्र के जाट परिवार , गाँव चोरु जिला जयपुर में हुआ था | उनका विवाह कैरों गोत्र के जाट परिवार में हुआ था | गाँव चोरु से उनके पिता रामेशवर जिला टोंक के गाँव अभयनगर जो आजकल धुआँ कलाँ नाम से जाना जाता हैं में जा कर बस गए थे | डॉक्टर पेमाराम का मानना हैं कि भगत जी का जन्म इसी धुआँ कलाँ गाँव में सन 1415 , 20 अप्रैल , व विक्रम संवत 1472 में हुआ था |
भगत जी धार्मिक प्रवृति के इंसान थे , उनके घर हमेशा साधू सन्यासियों , जरूरतमंदों का जमावड़ा रहता | भगत जी की भगवान में गहरी आस्था थी , कहते हैं एक बार मंदिर के पुजारी ने भगत जी को एक बेकार सा पत्थर कपड़े में लपेट कर पकड़ा दिया और कहा की यहीं भगवान हैं , हालांकि मंदिर के पुजारी ने भगत जी को पत्थर पकड़ा बदले में गाय ले कर ठगा था पर उस ब्राह्मण को यह नहीं पता था के जब जाट अपनी आई पर आता हैं तो भगवान से भी अपने खेत में हल जुतवा लेता हैं , बिलकुल ऐसा ही भगत जी ने भी करके दिखाया | भगत जी उस पत्थर को घर ले गए और जिद्द कर ली के जब तक भगवान खुद प्रकट हो कर खाना नहीं खाएँगे मैं भी नहीं खाऊँगा , कहते हैं कि भगवान प्रकट हुए तथा रोटी खाई | उस मंदिर का पुजारी जो रोज उस पत्थर को नहलाता उसे कभी भगवान के दीदार नहीं हुए क्योंकि ब्राह्मण के मन में हमेशा छल-कपट की भावना रहती हैं , परंतु धन्ना जो एक अनपढ़ सीधा साधा भोला जाट था ने उस बेकार से पत्थर से भी भगवान को प्रकट करवा दिया | भगत जी के बारे में अनेक कथाएँ कहीं जाती हैं , कहते हैं कि एक बार भगत जी अपने खेत ज्वार बीज रहे थे , वहाँ कुछ साधू आ गए और उन्होने भगत जी से खाना मांगा , भगत जी ने सारे ज्वार के बीज उन साधुओं को खाने को दे दिये , और खेत में बीज की जगह कंकड़ बीज दिये | कहते हैं कि उन कंकड़ से भी भगत जी के खेत में ज्वार निपजी |
धन्*ना जाट का हरिसों हेत,
बिना बीज के निपजा खेत।
चार-पाँच दिन पहले कुछ जाटों को मैंने परशुराम जयंती की बधाई देते देखा था पर उन जाटों की वाल पर मैंने भगत धन्ना की कोई पोस्ट नहीं देखी , और उसका कारण हैं अपने इतिहास का ज्ञान न होना | कितने जाटों ने भगत जी की जयंती पर ब्राह्मणों की वाल पर भगत जी की जयंती की बधाई की पोस्ट देखी ? अगर मैं ब्राह्मणों के बारे में कुछ लिखता हूँ तो कुछ शंखों को भारी दिक्कत होती हैं , और उनकी दिक्कत का कारण हैं अज्ञानता , अपने बाप को बाप ना मान कर दूसरे के बाप को बाप मानना | दलील देंगे की महापुरुष सबके सांझे के होते हैं , मैं भी मानता हूँ कि महापुरुष सबके सांझे के होते हैं पर सवाल यह हैं कि क्या ये सब महापुरुष सिर्फ उन्ही लोगों की जमात में पैदा होते हैं , हमारी में नहीं ? उन्हे हमारे महापुरुषों का आदर मान करते कितनों ने देखा हैं ? परशुराम की जयंती पर जाट भी बधाई देते नजर आते हैं ! यदि वो हमारे महापुरुषों की जयंती कभी मनाएंगे भी तो किसी स्वार्थ से ना के हमारी तरह निस्वार्थ | एक तरफ कहते हैं कि हम जाट क्षत्रिय हैं हालांकि यह बात सिर्फ जाट खुद कहता हैं ब्राह्मण का वर्ण सिस्टम नहीं मानता , चाहे उनका सिस्टम ना माने पर हम क्षत्रिय हैं इसमें कोई शक नहीं , कहते हैं परशुराम ने 21 बार धरती क्षत्रियविहीन की थी , मतलब क्षत्रियों का हत्यारा ! और कभी किसी को अपने हत्यारे की जयंती मनाते या जयंती की बधाई देते देखा हैं ? मैंने देखा हैं कुछ नासमझ जाटों को ! सिर्फ परशुराम ही नहीं चाहे तुलसीदास हो कोई भी श्रीमान जी हो सबकी जयंती पर जाट बधाई जरूर देगा , क्योंकि मानवतावाद का सारा ठेका जाट ने ले रखा हैं , मानवतावाद का इमदादी इससे बड़ा कोई नहीं ! तुलसीदास के दोहे - चोपाइयों का हर किसी को पता होगा पर क्या धन्ना भगत के बारे में पता हैं ? नहीं पता होगा , क्योंकि धन्ना ब्राह्मण नहीं था ! जबकि धन्ना भगत तो तुलसीदास से पहले के हैं | भगत जी को मान सम्मान दिया सिक्ख धर्म ने , सिक्खों के ग्रंथ साहिब में भगत जी की स्तुतियों शामिल हैं | जबकि भगत जी का जन्म बाबा नानक देव जी से भी 53 वर्ष पहले का माना जाता हैं | मीरा बाई भी जिस भगत का नाम अपने भजनों मे लेती थी , उस भगत के बारे मे खुद उसके लोग नहीं जानते | ना जानने का कारण एक षड्यंत्र हैं अगर कोई समझे तो | पहलवान दारा सिंह ने भगत जी पर एक फिल्म भी बनाई थी , पहलवान जी को भगत धन्ना के बारे में शायद इसलिए ध्यान रहा होगा क्योंकि वो खुद सिक्ख धर्म से थे वरना उनको भी कहाँ धन्ना याद आना था | आज पंजाब में जट्ट महासभा भगत धन्ना की जयंती मनाती हैं परंतु अपने आप को हिन्दू कहने वाले जाटों को इस भगत का ख्याल ही नहीं ! फिर कहते हैं जो हिन्दू हैं सिर्फ वहीं जाट हैं जो धर्म छोड़ गया वो जाट नहीं , जबकि इस महापुरुष की जयंती सिर्फ सिक्ख जाट ही मनाते हैं | अब कुछ अज्ञानी भाई इसे जातिवाद से जोड़ कर देखेंगे , भाइयों हमारे जातिवाद से देश धर्म मानवता किसी को कोई खतरा नहीं हैं , जब उन लोगों के जातिवाद से नहीं हुआ तो हम कमेरों की से कैसे हो सकता हैं ? इसलिए व्यर्थ का भय या शर्म छोड़ अपने बाप को बाप कहना सीख लो , जब तक खुद अपने बाप को बाप नहीं कहेंगे तब तक दूसरा कोई भी हमारे महापुरुषों की जयंती नहीं मनाएगा |
" धन-धन धन्ना भगत जी "
' जय योद्धेय '