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Thread: Kya Kisan Insan Nahi ?

  1. #1

    Kya Kisan Insan Nahi ?

    क्या किसान इंसान नहीं हैं ?
    किसान का नाम लेते ही जेहन में एक गरीब , बेबस इंसान का चेहरा आता हैं | एक ऐसा इंसान जिस जैसी नेक नियत का इंसान दुनियाँ में दूसरा कोई नहीं | एक ऐसा इंसान जिसकी नेक कमाई में सबका सांझा हैं | जो सबका अन्नदाता हैं पर दुनियाँ मे सबसे दुःखी भी यहीं इंसान हैं , जिसका सरकार से लेकर कुदरत तक सब बैरी हैं | कभी सरकार की गलत योजनाओं का शिकार होता हैं तो कभी कुदरत की मार सहता हैं , परंतु हिम्मत फिर भी नहीं हारता , अपने कर्म में लगा रहता हैं , दुनियाँ का पेट भरता रहता हैं | जिस दिन यह खेत में बीज बीजता हैं उसी दिन से धरती पर जितने जीव हैं सब इसकी मेहनत खाना शुरू कर देते हैं | जिस दिन हल जोतता हैं उस दिन इसके हल के पीछे चिड़ियाँ , कीड़े मकोड़े इसके दाने खाना शुरू कर देते हैं , जैसे बीज फसल का रूप लेता हैं , उस दिन से आवारा पशु इसकी फसल खाना शुरू कर देते हैं , फसल पकने के बाद मंडी मे बैठे आढ़ती इसकी कष्ट कमाई को खाते हैं | जब फसल बेचने जाता हैं तो मंदी की मार सहता हैं और जब उसे खरीदना पड़ता हैं तो महंगाई कमर तोड़ती हैं | जिस दिन किसान की फसल मंडी में आती हैं उसी दिन से बाज़ारों में रौनक आनी शुरू हो जाती हैं | कहने का मतलब धरती पर जितने भी जीव जन्तु हैं सब इसकी कमाई के सहारे हैं , सब इसकी कमाई पर समय समय पर डाका डालते रहते हैं और यह इतना उदार हैं कि फिर भी कोई परवाह नहीं करता |
    गोरों के राज में किसान का बहुत बुरा हाल था और उसके इन हालातों का कारण था सूदखोर महाजन | यह सूदखोर महाजन कोई विदेशी नहीं यही के स्वदेशी थे | किसान के लहू को जोंख बन कर चूस रहे थे , इन सूदखोरों के हिमायती नेता किसान का ध्यान अंग्रेजों की गुलामी की तरफ तो कभी धर्म की तरफ भटकाए हुए थे | ऐसे बुरे हालातों में किसान को चौधरी छोटूराम नाम के मसीहा का सहारा मिला | चौधरी छोटूराम ने किसान को उसकी शक्ति का एहसास दिलाया , धर्म जाति के नाम से बंटे किसानों को संगठित किया , किसान की भलाई के अनेक कानून बनाए , मुजारों को ज़मीन का मालिक बनाया | परंतु उनके जाने के बाद किसान एक बार फिर से अनाथ हो गया , फिर से धर्म जातियों मे बंट गया | देश की सत्ता पर मंडी-पाखंडी का कब्जा हो गया | चौधरी चरण सिंह , चौधरी देवी लाल के रूप में किसानों ने केंद्र की सत्ता तक पहुँचने के इक्का दुक्का प्रयास भी किए परंतु उनको इन मंडी-पाखंडी ने विफल कर दिया | चौधरी छोटूराम ने विदेशी सरकार से टक्कर लेकर किसान को उसके हक दिलवाए , आज देश आज़ाद हैं , कहने को अपनी सरकार हैं परंतु किसान को अपनी मांग के लिए आंदोलन करने पड़ते हैं , जो कहने को उसकी अपनी सरकार हैं वह उस पर लाठीचार्ज करती हैं , गोलियां चलाती हैं | ऐसे हालातों से आज किसान इतना मायूस और बेबस हो गया हैं कि मजबूरन उसे आत्महत्या जैसे कदम उठाने पड़ रहे हैं |
    राष्ट्रिय अपराध रिकॉर्ड ब्यौरों के अनुसार 1995 से लेकर अब तक 2,72,000 के करीब किसान आत्महत्या कर चुके हैं | दिन प्रतिदिन किसानों की आत्महत्याओं के केस बढ़ते जा रहे हैं , अब तो कुछ प्रदेशों की सरकारों ने यह आकडे छुपाने का षड्यंत्र शुरू कर दिया हैं | देश में होने वाली कुल आत्महत्याओं में से दो तिहाई आत्महत्याएँ महाराष्ट्र , आन्ध्रप्रदेश , कर्नाटका , मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में होती हैं | 1995 में अकेले महाराष्ट्र में ही 53,818 किसानों ने आत्महत्या की | यहीं कारण हैं कि देश में खेती करने वालों की संख्या धीरे धीरे कम होती जा रही हैं | 2011 की जनगणना के अनुसार देश में किसानों की संख्या 77 लाख कम हो गई हैं | किसान के लिए अनेक योजनाए आई गई पर किसान के हालातों मे कोई सुधार नहीं , इसी निराशा में किसान आत्महत्याएँ करने को मजबूर हैं |
    किसान बैंक से लोन लेता हैं और लोन न चुका पाने के कारण उसे जेल जाना पड़ता हैं , अदालत में एक चोर की माफिक खड़ा किया जाता हैं | जबकि दूसरी तरफ एक व्यापारी भी बैंक से लोन लेता हैं और बहुत से ऐसे व्यापारी हैं जो समय पर लोन नहीं चुकाते और लोन की यह रकम बढ़ती चली जाती हैं | इस रकम के आकडे चौकने वाले होते हैं | बहुत से बैंक सेठों के लोन के यह आकडे पूरी तरह से बताते भी नहीं हैं , छुपाते हैं | वित्त मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार देश की केवल 30 बड़ी कंपनियों का उधार 16877 करोड़ रुपए हैं | यह 30 कंपनियाँ बड़े-बड़े सेठों की हैं और यकीनन उन सबका संबंध देश के बड़े बड़े नेताओं से भी होगा ! अजीब दस्तूर हैं जो खून पसीना एक करके देश का पेट भरता हैं वह चोर और जो हेरा फेरी करता हैं वह कानून की नजर में साहूकार ?
    शहरों मे बैठे लोगों को किसान की मुसीबतों का अंदाजा नहीं हैं , इसीलिए वह इसकी हर समस्या को मुसीबत को हंसी में उड़ा देते हैं | जब भी शहर वालों पर कोई मुसीबत आती हैं तो वह लोग राई का पहाड़ बना देते हैं , मोमबतिया हाथ में लेकर निकल पड़ते हैं | दिल्ली में एक किसान सरे आम एक जलसे में आत्महत्या कर लेता हैं परंतु शहरी लोगों के लिए शायद यह आम बात रही होगी इसलिए कोई भी शहरी मोमबती लेकर नहीं निकला ! किसी भी एनजीओ को रांड रोना रोते नहीं देखा ! किसी धर्म या मजहब के ठेकेदार को किलकारी मारते नहीं सुना ! ऐसे लगता हैं जैसे कि इन नेताओं , शहरियों , धर्म के ठेकेदारों आदि सबके लिए किसान कोई इंसान नहीं हैं यह सिर्फ बरतने का कोई नमूना हैं ! किसान आत्महत्याएँ कर रहे हैं , मंत्री जी कहते हैं उन्हे इसकी कोई जानकारी नहीं हैं !किसान मरता हैं तो नेताओं के तो त्योहार आ जाता हैं , किसान की मौत पर सियासी रोटियाँ सेंकनी शुरू कर देते हैं | दिल्ली में आम आदमी पार्टी के जलसे में किसान आत्महत्या करता हैं परंतु पार्टी के नेता सारा इल्जाम पुलिस पर लगा रहे हैं कि पुलिस हमारे हाथ में नहीं हैं उन्होने हमारी नहीं सुनी | पुलिस ने नहीं सुनी पर तुम तो उसको बचा सकते थे ? एक पार्टी ने धर्म की आड़ लेकर सरकार बनाई , धर्म बहुत बड़ा मुद्दा होता हैं , इसमे कई समुदाए आ जाते हैं , जिनकी भावनाओ को धर्म के नाम पर भड़का कर आप जैसे चाहे उन्हे इस्तेमाल कर सकते हैं , जैसे कि पीछे चुनाव में देखने को मिला | परंतु किसान का मुद्दा तो धर्म से भी बड़ा मुद्दा हैं और पिछले एक महीने से सब तरफ किसान के लिए शोर सुनाई दे रहा हैं , परंतु इस शोर से साफ जाहीर होता हैं कि यह सिर्फ मगरमच्छी आँसू हैं क्योंकि इनमे से किसी की सरकार आ कर जा ली तो किसी की अभी हैं |
    " साहिल के तमनाई हर डूबने वाले पर ,
    अफसोस तो करते हैं , इमदाद नहीं करते "

    मोदी जी आपने चुनाव से पहले देश को अच्छे दिनों के बड़े-बड़े सपने तो दिखाए थे परंतु अफसोस हैं कि आपकी सरकार आने के बाद सेठों के तो अच्छे दिन आ गए पर अन्नदाता बेहाल हैं , रोज आत्महत्याओं की खबरे सुनने को मिल रही हैं | मोदी जी आपके ये व्यापारी सेठ लोग तो कैसे ना कैसे हेरा-फेरी करके अपना घाटा पूरा कर लेते हैं , कोई तोल मे पूरा कर लेता हैं तो कोई टैक्स चोरी करके परंतु किसान तो अपने इस धंधे मे कैसे भी हेरा-फेरी नहीं कर सकता ! खाद कम डाले तो भी इसी का नुकसान , फसल में पानी कम दे तो भी इसी का नुकसान , दूसरी कोई और स्यानपत ऐसी नहीं जो इसका घाटा पूरा कर दे | यह तो पूरी तरह से कुदरत और सरकार पर निर्भर हैं | अगर सरकार ही इससे मुंह मोड़ ले तो फिर आखिर यह बेचारा निराश हो आत्महत्या ही करेगा ! मोदी जी आप जब भी कहीं जाते हैं तो आपके मुंह से यहीं सुनने को मिलता हैं कि मैं भी डॉक्टर बनना चाहता था , मैं भी इंजीनियर बनना चाहता आदि आदि परंतु आपके मुंह से हमने यह कभी नहीं सुना कि मैं भी किसान बनना चाहता था ! और हमें पता हैं कि यह सुनने को क्यों नहीं मिला ! मोदी जी आप सो नए शहर बसाने की बात करते हैं , आप से अरदास हैं कि सो नए शहर बाद में बसा लेना , जो बसे बसाए उजड़ रहे हैं पहले उन्हे ही बसा दीजिये | आपके ही मंत्री संसद में कहते हैं कि कृषि एक ऐसा क्षेत्र हैं जो अब तक का सबसे ज्यादा रोजगार देना वाला क्षेत्र हैं , फिर समझ नहीं आता की आप इसको क्यों उजाड़ना चाहते हैं ? चौधरी चरण सिंह ने कहा था कि देश कि खुशहाली का रास्ता देश के खेत खलिहानों से होकर गुजरता हैं | देश के 75% लोग खेती करते हैं , इसलिए यदि आप वाक्य में देश की खुशहाली चाहते हैं तो ये ज़मीन अधिग्रहण की जिद्द छोड़ सिर्फ किसान की तरफ ध्यान दीजिये | मोदी जी यह सूट बूट छोड़िए , विदेश भी बाद में संभाल लेना , विदेश कहीं भागा नहीं जा रहा हैं , पहले जो अपने भागे जा रहे हैं उन्हे संभाल लीजिये , इन बेचारों को आपसे बहुत उम्मीदें थी ...
    " मर गए पर अंखे खुली रही ,
    यह तेरे इंतजार की हद थी "

    आज किसान कहीं कुदरत की मार से परेशान हैं तो कहीं सरकार की योजनाओं से ! और इसी वजह से कुछ भाई निराशा में आत्महत्या जैसा गलत कदम उठा रहे हैं | किसान भाइयों इन हालातों के आधे ज़िम्मेवार तुम खुद हो जो तुम अपने रहबर के दिखाए रास्ते से भटक कर धर्म के ठेकेदारों की बातों मे बहक जाते हो | मायूस होने से कोई समाधान नहीं होगा , इसका समाधान सिर्फ अपने रहबर-ए-आज़म चौधरी छोटूराम का कहा ध्यान कर उस पर अमल करने से ही होगा ...
    चौधरी छोटूराम कहते हैं :-
    " ऐ किसान ! क्या तूने कभी अपने इतने अधिक अपमान और बेकद्री के कारणों पर विचार किया हैं ? तू गरीबी के नरकिए गर्त में क्यों धंसा हुआ हैं ? क्या मुझे ही बताना पड़ेगा ? तूने अपनी शक्ति को नहीं पहचाना हैं , तूने इस शक्ति का उपयोग नहीं किया हैं , अब तक तू खुद को गरीब और असहाय और कमजोर समझता रहा हैं | दूसरों ने भी तुझे गरीब ही मान रखा हैं | अपनों को संगठित कर , अपनी ताकत का प्रदर्शन कर | तुच्छ विचारों और हीन भावनाओं की कैद से मुक्त हो जा | अपनी चुप्पी तोड़ , अपनी हितों , जरूरतों का प्रचार कर , अपनी शिकायताओं को बेझिझका कह | चुप्पी तोड़ राजनीति की दुनियाँ में आवाज़ उठा | चुप्पी से कभी कुछ नहीं मिलता , और चुप्पी की कोई परवाह नहीं करता | थोड़े में कहें तो ऊंचा चिल्लाना राजनीतिक व्यक्ति की खूबी होती हैं |

    ' चमन ज़ोर सियासत में खामोशी मौत हैं बुलबुल ,
    यहाँ जिंदगी पाबंदी-ए-रस्मे फुगन तक हैं '
    (ए बुलबुल (किसान) राजनीति के क्षेत्र में चुप्पी साधे रखना मौत को बुलावा देने के समान हैं | यहाँ ज़िंदगी से शोर-शराबे और संघर्ष की उम्मीद की जाती हैं ) "

    ' जय योद्धेय '
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

  2. The Following User Says Thank You to RavinderSura For This Useful Post:

    AryanPoonia (May 11th, 2015)

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