हमारी सेवा सेवा नहीं ?
आरएसएस का गठन 1925 में महराष्ट्र के ब्राह्मणों ने पंडित बलीराम हेड्गेवर की अध्यक्षता में किया था | पंडित हेड्गेवर इस संगठन की स्थापना से पहले काँग्रेस में थे , काँग्रेस से अलग होने के बाद भी हेड्गेवर और उनका यह संगठन गांधी के साथ रहा | लोग दिखावा तो यह संगठन राष्ट्रवादी था , पर राष्ट्रवादी था सिर्फ धर्म के आधार पर | असल में जब इन ब्राह्मणों ने देखा की देश के नौजवान भगत सिंह और उनके कोमरेडों से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं और कहीं सभी उनके साथ ना जुड़ जाए और तुम्हारे हिन्दू राष्ट्र का सपना सपना ही ना रह जाए इसलिए इन ब्राह्मणों ने इस संघ का गठन किया था | जिसका जिक्र आरएसएस के तीसरे प्रमुख बालासाहेब ने अपनी स्मृतियों में भी किया हैं | शायद यहीं कारण था कि देश के प्रधानमंत्री को भी कहना पड़ा कि हमें अब और भगत सिंह नहीं चाहिए ! क्योंकि यदि और भगत सिंह पैदा होंगे तो इनके हिन्दू राष्ट्र का यानि ब्राह्मण सत्ता का सपना पूरा नहीं हो पाएगा ! आरएसएस के ये नेता यहूदियों की " धर्म , संस्कृति , और भाषा " के प्रशंसक थे | अब धर्म , संस्कृति , भाषा क्या हैं वह सबको पता ही होगा ? धर्म हिन्दू यानि मनुवाद , और हिन्दू धर्म के आधार पर राष्ट्र बनने से ही ब्राह्मण की सत्ता कायम रह सकती हैं , मनुवादियों का वर्चस्व कायम रह सकता हैं | इस धर्म , संस्कृति , भाषा के प्रचार से ही ब्राह्मण सत्ता कायम रह सकती हैं और यहीं सिद्धांत इन लोगों ने अपने संघ का रखा | इसका प्रमाण भी हैं कि आजतक इसके जितने भी प्रमुख बने हैं सब ब्राह्मण हैं , एक को छोड़ कर , और वह एक भी किसी पिछड़े या दलित वर्ग से नहीं , इन्हीं के पिट्ठू वर्ग से हैं , जो इनके मनुवाद का घोर समर्थक वर्ग रहा हैं | आज भी इस संगठन में 95% लोग ब्राह्मण या दूसरे उंच वर्ण के लोग ही हैं , अब कुछ 5% के करीब किसान कमेरे तबके के लोग धर्म के नाम पर बहक कर इनके साथ जुड़े हैं और ये 5% भी सिर्फ वही हैं जो शहरों में बस गए हैं | आज देश की कुर्सी पर कहने को पिछड़े वर्ग का बैठा हैं परंतु देश में या अन्य किसी प्रांत में जहां इनकी सत्ता हैं उन सबको कोई भी फैसला लेने से पहले नागपुर में बैठे अपने ब्राह्मण आका से पुछना पड़ता हैं मतलब अप्रत्यक्ष रूप से ब्राह्मण की हैं सत्ता हैं |
चौधरी छोटूराम के पंजाब का बंटवारा करवाने में इस संघ का भी बहुत बड़ा हाथ रहा हैं , जिसके लिए 24 जनवरी 1947 को पंजाब के यूनियनिस्ट पार्टी के प्रिमियर मेजर खिजर तिवाना को आरएसएस और मुस्लिम लीग पर प्रतिबंध लगाना पड़ा था , मुस्लिम लीग भी इन्हीं की तरह मुसलमान धर्म के उंच वर्ण के यानि मुल्ले मौलवियों का संगठन था | यह लोग चौधरी छोटूराम को छोटूखान कह कर अपमानित करते थे , पर हमारे लोगों की याददाश्त बहुत छोटी हैं , वह ऐसी बातें बड़ी ही जल्दी भूल जाते हैं | सीधी सी बात हैं कि धर्म के नाम पर जिस राष्ट्र का निर्माण होगा , उस राष्ट्र पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से धर्म के ठेकेदारों की ही सत्ता रहेगी | भारत आज़ाद हुआ तो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू बने , और पंडित नेहरू ने कितने प्रान्तों के मुख्यमंत्री ब्राह्मण बनाए वह सबको ध्यान ही होगा ? ऐसे ही पाकिस्तान की बुनियाद मजहब के आधार पर रखी गई और आजतक वहाँ भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मुल्ले मौलवी ही राज कर रहे हैं | हमारे लोग धर्म या मजहब के नाम पर कितने ही इनकी बातों में बहक लेना पर आखिर में सत्ता इन धर्म मजहब के ठेकेदारों की ही रहेगी |
चौधरी छोटूराम बार बार एक ही बात कहते थे कि आज के दौर में जीना हैं तो संगठन बनाओ और प्रचार करो ! हमारे लोगों ने संगठन तो अनेक बनाए परंतु प्रचार में मार खा गए और यहीं वजह हैं कि आज अनेक छोटे छोटे संगठनों में बंट गए | परंतु ब्राह्मण ने इस बात पर पूरा अमल रखा और अपने संगठन का प्रचार इस रूप में करते गए जैसे कि इनसे बड़ा राष्ट्रवादी कोई नहीं , और आज माहौल ऐसा बना दिया हैं कि लोगों को लगाने लगा हैं कि जो इनके साथ जुड़ा हैं सिर्फ वहीं राष्ट्रवादी हैं | हम यहीं मार खा रहे हम सिर्फ राष्ट्रवादी शब्द पर बहक रहे हैं पर यह पूरा शब्द हिन्दू राष्ट्रवादी हैं यानि ब्राह्मणों का राष्ट्र | कहीं कोई प्रकृतिक आपदा आ जाओ तो यह लोग अपने संगठन का बड़े ज़ोरों शोरों से प्रचार करेंगे , उंगली कटा शहीद होना कोई इनसे सीखें ! हमारे भी कुछ बहके हुए लोग इनकी इस उंगली कटा कर शाहादत वाले प्रचार से बड़े प्रभावित हो रहे हैं | यह लोग कभी कोई आपदा आती हैं तभी सेवा करते हैं , उस आपदा में सेवा तो हम भी करते हैं परंतु हमारा कोई संगठन नहीं इसलिए उस सेवा के कोई मायने नहीं ? हमारे लोग इनकी इस सेवा के तारीफ़ों के पुल बांध देते हैं , यह नहीं देखते कि ये लोग जब कोई आपदा आती हैं तो उसमें सिर्फ वहीं सेवा करते हैं जिसमें जान का कोई जोखिम नहीं होता , सिर्फ नाम ही नाम | जबकि हमारे लोग तो बारह मास , चौबीसों घंटे देश की खेत और सीमा पर सेवा करते हैं , जिसमे जान का भी जोखिम रहता हैं पर बड़े दुःख की बात हैं कि उस सेवा की कहीं कोई गिनती नहीं होती ! हमारा शायद ही ऐसा कोई घर कुन्बा मिलें जिसमे देश के लिए कोई शहीद ना हुआ हो , खेत में चौबीसों घंटे मिट्टी में मिट्टी रह कर देश का पेट भरने का काम करते हैं पर हमारी यह सेवा राष्ट्र हित में सेवा नहीं मनी जाती ? हमें हमारी सेवा का राष्ट्रवादिता का प्रमाण पत्र भी इनसे लेना पड़ता हैं ? असल में इन लोगों ने माहौल ही ऐसा बना दिया हैं कि हमारी सेवा सेवा नहीं देश के प्रति फर्ज हैं और इनकी सेवा देश पर कर्ज हैं , जबकि होना उल्टा चाहिए , हमारी सेवा देश पर कर्ज हैं और इनकी सेवा देश के प्रति फर्ज हैं !
इन ब्राह्मणों ने एक आरएसएस से अनेक विंग खड़ी कर दी , कोई धर्म के नाम पर तो कोई राजनीति के नाम पर , और हमारे लोग आज इनके पिछलग्गू बने फिर रहे हैं | चौधरी छोटूराम ने किसान कमेरों की एक विंग खड़ी की थी ' यूनियनिस्ट पार्टी ' और हम लोगों ने वह भी खो दी | इन पाखंडियों ने आज हमारे किसान और जवान की मौत को मज़ाक बना रखा हैं , हमारी सेवा का इनकी नजरों में कोई मूल्य नहीं हैं , इसलिए आज वक़्त का तकाजा यहीं हैं कि हम हमारे रहबर-ए-आज़म चौधरी छोटूराम की विंग को फिर से खड़ा करे , अपनी सेवा का प्रचार करें , देश को हम अपनी सेवा का मूल्य बताए , हमारी सेवा सिर्फ फर्ज ही नहीं देश पर कर्ज भी हैं |
' जय योद्धेय '