चौधरी छोटूराम ने बार बार कहा कि धर्म एक नशीली दवा हैं जो ये धर्म के ठेकेदार हमें सुंघाए रखते हैं , ये लोग कभी नहीं चाहते की हम होश में आए ! ये ठेकेदार अच्छी तरह जानते हैं कि हमारा होश में आना मतलब उनकी दुकान का बंद होना हैं !

मैंने तीन चार दिन पहले एक पोस्ट लिखी थी जिसमें कहा था कि क्यों न हम जाटों को भी जाट आरक्षण वाले मुद्दे पर धर्मांतरण जैसी दबाव की राजनीति अपनानी चाहिए ? मेरी उस पोस्ट से एक कोई सुनील नाम के श्रीमान जी को बड़ी तकलीफ हुई , शायद वो जाट की खाल मेँ कोई ब्राह्मण था ! उस श्रीमान जी को जाट के आरक्षण से ज्यादा भगवान के आरक्षण की फिक्र थी ! आज के वक़्त मेँ सबकी सोच यहीं हैं की धर्म का संबंध भगवान / खुदा से हैं और ऐसे लोगों को अपने अपने धर्म के भगवान / खुदा के लिए लड़ते देख सोचता हूँ कि यदि धर्म का संबंध भगवान / खुदा से हैं तो क्या इनका भगवान / खुदा इतना कमजोर हैं कि उसे अपना वजूद बचाने के लिए इन्सानों का सहारा लेना पड़ रहा हैं ?

आखिर मेँ उन श्रीमान जी ने मिर्जा गालिब के एक शेर की दुहाई दी " लोग तो खुदा तक बदल देते है, अगर दुआ कबूल न हो तो " ..... इस पर मेरा यहीं जवाब था कि ' तो कह दो उस खुदा से की हमारी दुआ कबूल करें , वरना वजूद उसके को खतरा हैं , हमारे को नहीं "

:- लगता हैं अब दबाव की राजनीति सिर्फ सरकार के साथ ही नहीं भगवान के साथ भी खेलनी पड़ेगी

जय योद्धेय