खोतन को मौर्य-मौर जाटों ने आबाद किया
खोतन - इसकी स्थिति यारकन्द के पूर्व में है, जो प्राचीनकाल में तकला मकान मरुस्थल के दक्षिण के राज्यों में सबसे समृद्ध तथा शक्तिशाली था। खोतन को मौर्य-मौर जाटों ने आबाद किया था तथा वहां पर शासन किया था जिसका वर्णन अगले पृष्ठों पर किया जायेगा। खोतन बौद्ध धर्म का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। यहां से अनेक जाट बौद्ध-भिक्षु चीन गये और वहां पर बौद्ध-धर्म को फैलाया। समय-समय पर चीन के बौद्ध-भिक्षु, बौद्ध-धर्म के उच्च अध्ययन के लिए खोतन आते रहते थे। इनमें से प्रसिद्ध ‘चोउ-शे-हिंग’ नामक चीनी भिक्षु है, जो सन् 258 ईस्वी में खोतन गया था।
सन् 291 ईस्वी में मोक्षल नामक भिक्षु खोतन से चीन गया और वहां उसने पंचविंशतिसाहस्रिका पारमिता ग्रन्थ का चीनी भाषा में अनुवाद किया।
पांचवीं सदी के प्रारम्भ (401-433 ईस्वी) में न्गन-यांग नामक चीनी राजकुमार बौद्ध-ग्रन्थों के उच्च अध्ययन के प्रयोजन से खोतन गया था। [जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-331]
खोतन का जाटराज्य
खोतन की स्थिति – तारिम नदी, तकलामकान मरुस्थल, जो कि मध्य एशिया के सिंगकियांग प्रान्त में है, के उत्तर में बहती हुई लोपनोर झील में गिरती है। इस नदी के दक्षिण में यारकन्द, खोतन आदि हैं। बुद्ध के निर्वाण से ठीक 234 वर्ष बाद अर्थात् 250 ई० पू० खोतन राज्य की स्थापना हुई। उस समय सम्राट् अशोक भी जीवित थे।
खोतन की स्थापना के विषय में रॉकहिल ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘लाइफ ऑफ बुद्ध’ में तिब्बती अनुश्रुति का संग्रह किया, जो इस प्रकार है -
“बुद्ध कश्यप के समय कुछ ऋषि खोतन देश में गये, पर वहां के निवासियों ने उनके प्रति बहुत बुरा बर्ताव किया। इस कारण वे वहां से चले गये। इससे दुःखी होकर नागों ने खोतन को एक झील के रूप में परिवर्तित कर दिया। जब बुद्ध शाक्य मुनि खोतन गये तो उन्होंने खोतन की इस झील को वैज्ञानिक विधि से शुष्क कर दिया और वह देश के मनुष्यों के निवास योग्य हो गया।”
कुस्तन द्वारा खोतन राज्य की स्थापना: सम्राट् अशोक (273 ई० पू० से 232 ई० पू०) की महारानी के एक पुत्र उत्पन्न हुआ। ज्योतिषियों की भविष्यवाणी को सत्य मानकर अशोक ने उस बालक का परित्याग कर दिया। भूमि माता द्वारा उस बालक का पालन होता रहा। इसीलिए उसका नाम कुस्तन (कु = भूमि एवं स्तन = चूंची, जिसकी भूमि स्तन है) पड़ गया।
उस समय चीन के एक प्रदेश में राजा बोधिसत्व का शासन था। उसके 999 पुत्र थे। राजा बोधिसत्व ने वैश्रवण से प्रार्थना की, कि उसके एक पुत्र और हो जाय ताकि संख्या पूरी 1000 हो जाए। वैश्रवण बालक कुस्तन को चीन ले गया और बोधिसत्व के पुत्रों में शामिल कर दिया। कुछ दिन बाद राजा के पुत्रों का कुस्तन के साथ मतभेद हो गया। इस कारण वह अपने दस हजार साथियों को लेकर वहां से खोतन के मेस्कर नामक स्थान पर जा पहुंचा। उस समय उसकी आयु 12 वर्ष की थी।
सम्राट् अशोक के क्रोध के कारण उसका एक योग्य एवं विद्वान् यश नामक मन्त्री अपने 7000 साथियों के साथ भारत छोड़कर खोतन में उथेन नदी के तट पर जा पहुंचा। वहां पर उसका मिलाप
1. भारत का इतिहास पृ० 47, हरयाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी; हिन्दुस्तान की तारीख उर्दू पृ० 162।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-364
कुस्तन से हो गया। इन दोनों ने अपने साथियों के सहयोग से खोतन देश को आबाद किय और वहां पर राज्य स्थापित किया, जिसका कुमार कुस्तन राजा बना और यश उसका मंत्री बना। उस समय कुस्तन की आयु 16 वर्ष की थी तथा सम्राट् अशोक जीवित था। भगवान् बुद्ध के निर्वाण (स्वर्गवास 484 ई० पू०) के ठीक 234 वर्ष यानि 250 ई० पू० में खोतन राज्य की स्थापना हुई जहां का धर्म बौद्ध था (1)।
नोट - (1) सम्राट् अशोक मौर्य/मौर गोत्र का जाट था (देखो अध्याय तृतीय, मौर्य-मौर प्रकरण)। उसका पुत्र कुस्तन भी मौर्य या मौर गोत्र का जाट था। यश मन्त्री तथा उसके 7000 साथी जाट थे।
(2) इस खोतन को नाग लोगों ने एक झील बना दिया। इससे ज्ञात होता है कि उस देश में नागवंश के लोग आबाद थे जो कि नागवंशीय जाट थे (देखो तृतीय अध्याय नागवंश)।
तिब्बती जनश्रुति के अनुसार - राजा कुस्तन के बाद उसका पुत्र ये-उ-ल (येउल) खोतन का राजा बना। येउल के बाद उसका पुत्र विजितसम्भव खोतन का शासक बना। उसका उत्तराधिकारी विजितकीर्ति हुआ जो कि कुषाणवंशी सम्राट् कनिष्क का समकालीन था। विजितसम्भव के बाद जो राजा खोतन की राजगद्दी पर बैठे, उनके नाम तिब्बती जनश्रुति में विद्यमान हैं जो उपलब्ध नहीं हैं। इन सब राजाओं के नाम ‘विजित’ शब्द से प्रारम्भ होते हैं, इसीलिए इनके वंश को विजितवंश कहा जा सकता है।
विजितसम्भव के वंशज प्रतापी राजा विजितधर्म (विजितसिंह) ने लगभग 60 ईस्वी में तकला मकान की मरुभूमि के दक्षिण में विद्यमान 13 भारतीय उपनिवेशों को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। उस समय कुषाण राजा विम क्थफिस (जाट राजा) भारत में अपनी शक्ति का विस्तार कर रहा था। 76 ईस्वी में चीन के सम्राट् होती के सेनापति पान-छाओ ने खोतन के इस राजा विजितसिंह से मैत्री स्थापित कर ली तथा इसकी सहायता से मध्य एशिया के अनेक राज्यों से चीन का आधिपत्य स्वीकार करा लिया। पान-छाओ पश्चिम में कैस्पियन सागर तक चीन का प्रभुत्व स्थापित कर सका।
कुषाणवंशी (जाट) सम्राट् कनिष्क की विजयों के कारण मध्यएशिया कुषाण साम्राज्य के अन्तर्गत हो गया था और खोतन के राजा ने भी उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी। पर कुषाण वासुदेव के शासनकाल (152-186 ई०) में कुषाण साम्राज्य में जब शिथिलता आने लगी, तो खोतन स्वतन्त्र हो गया। (सम्राट् कनिष्क की विजय, पिछले पृष्टों पर चीन में जाटराज्य के प्रकरण में देखो)
चीनी साहित्य द्वारा भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि खोतन के राजा विजितसम्भव के पश्चात् ग्यारहवीं पीढ़ी में विजितधर्म (विजितसिंह) राजा हुआ था और वह बौद्धधर्म का कट्टर अनुयायी था। उसने काशगर राज्य पर आक्रमण करके अपने अधीन कर लिया था।
1. तिब्बती जनश्रुति के आधार पर रॉकहिल के प्रसिद्ध ग्रंथ “लाइफ ऑफ बुद्ध” के हवाले से सत्यकेतु विद्यालंकार ने अपनी पुस्तक “मध्यएशिया तथा चीन में भारतीय संस्कृति” के पृष्ठ 89-90 पर लिखा है। जाट इतिहास पृ० 193-194, ले० ठा० देशराज जिसने पुस्तक “मौर्य साम्राज्य का इतिहास” पृ० 539 का हवाला दिया है।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-365
पांचवीं सदी के प्रारम्भ में श्वेत हूणों (जाटों ने उसे आक्रान्त किया और छठी सदी में तुर्कों ने। सातवीं सदी के शुरु में खोतन के पुराने राजाओं (मौर्य-मौर) के वंशज विजितसंग्राम नामक राजा ने खोतन को तुर्कों की अधीनता से स्वतन्त्र कराया।
राजा विजितसंग्राम ने 632 ई० में एक दूतमण्डल मैत्री हेतु चीन के सम्राट् के पास भेजा और तीन वर्ष बाद अपने पुत्र को भी चीन के दरबार में भेज दिया। 648 ई० में खोतन का राजा जो विजितसंग्राम का उत्तराधिकारी था, स्वयं चीन के दरबार में उपस्थित हुआ था। इस काल में चीन में तांगवंश के राजाओं का शासन था, जो अत्यन्त शक्तिशाली तथा महत्त्वाकांक्षी थे। ये तांग जाटवंश के राजा थे। (देखो चीन में तांगवंश के जाट राजाओं का शासन, प्रकरण)।
सातवीं सदी में खोतन का अन्तिम राजा विजितवाहम था, जिसे तिब्बत के राजा ने हराकर खोतन राज्य को अपने अधीन कर लिया था। चीन के तांगवंशज जाट राजाओं ने अपनी शक्ति फिर से बढ़ाई और आठवीं सदी के अन्त से पूर्व ही उन्होंने मध्यएशिया के विविध प्रदेशों पर से तिब्बती शासन का अन्त कर दिया[14]।
जाट्स दी ऐनशन्ट रूलर्ज पृ० 144 पर बी० एस० दहिया ने लिखा है कि मौर्यों का शासन खोतन, मध्य एशिया के अन्य क्षेत्रों और कश्मीर पर रहा (Elliot and Dawson, op. cit, Vol.1)।