मात्र 2300 दुजाणिया जाटों ने जब 40000 की झज्जर के नवाब की सेना का मुंह-तोडा था:

हालाँकि आज के दिन इस गाँव में पाकिस्तान से आये हिन्दू अरोड़ा/खत्री भी रहते हैं परन्तु यहां जाट भी बहुतायत में रहते हैं| सुनने में आया है कि अधिकतर पाकिस्तानी मूल के हिन्दू अरोड़ा/खत्री 1947 में उनको सरकार से मिली जमीनें जाटों को बेच के शहरों वगैरह में पलायन कर चुके हैं| 1806 में यह गाँव छोटी सी मुग़ल रियासत भी बन गई थी, जिसकी निशानी यहां एक मस्जिद और नवाब की हवेली जो कि हरयाणा सरकार के आधीन होते हुए 1947 से ही सील पड़ी है| यह तो हुई वर्तमान स्थिति, अब आता हूँ इस शीर्षक में चर्चित किस्से की ओर|

यह गाँव सत्रहवीं शताब्दी का एक बड़ा ही गौरवशाली किस्सा अपने में संजोये हुए है| बात जून 1687 की है| झज्जर जिला हरयाणा का यह ऐतिहासिक गाँव अपने अदम्य साहस और वीरता के लिए जाना जाता है| तब के झज्जर के नवाब को इस गाँव की एक लड़की पसंद आ गयी| वो जाट लड़की इतनी सुन्दर थी कि बड़े-बड़े सुल्तानों के महलो में भी कोई इतनी सुन्दर औरत नहीं थी|

नवाब ने फरमान भिजवा दिया कि वो लड़की को ब्याहने आएगा| लड़की समझदार थी बोली मै अपने गाँव को बचाने के लिए नवाब से शादी करुँगी|

पर गाँव के जाटों का खून खोल उठा| लड़की का बाप, लड़की और परिवार समेत आत्महत्या करना चाहता था| परन्तु दुजाना व् आसपास के गाँवों की हुई खाप पंचायत ने फैसला लिया कि हर इंसान आखिरी साँस तक लड़ेगा पर लड़की नवाब को नहीं देंगे| अब गाँव का हर जाट जो भी 7 साल से ऊपर का था, और औरतें व् लड़कियाँ सब ने हाथो में जेली, पंजालि, गण्डासियां, बल्लम उठा लिए और गुरिल्ला विधि से एक आत्मघाती हमला करने के लिए तैयार हो गए| हालाँकि लड़ाई से पहले दूसरी जातियां गाँव छोड़ कर भाग गयी थी| पर जाट कभी लड़ाई के मैदान से नहीं भागता|

नवाब ने 1687 की जून महीने में गाँव पर शाही फ़ौज लेकर हमला किया| लडकियां, बूढ़े, बच्चे, औरतें सब सर पर कफ़न बाँध कर आये थे| गाँव ने इतनी बुरी तरह हमला किया कि नवाब की तोप बंदूकों से लैस 40,000 की शाही फ़ौज जो पूरी प्रशिक्षित थी और एक भी लड़ाई ना हारे थे पर जाटों की इस 2,300 की फ़ौज जिसमें आधे से ज्यादा औरतें, लडकियां और बच्चे थे, के सामने शाही सेना बुरी तरह हारी| नवाब बड़ी मुश्किल से जान बचा कर भाग पाया| जाटों ने इनकी तोप, बंदूकें, तलवार आदि हथियार छीन लिए जो उस गाँव के जाटों के घरों में आज भी देखे जा सकते हैं|

हमारे पूर्वजों ने कभी घुटने नहीं टेके, जान गवाँ दी पर पगड़ी नहीं उतरने दी| अन्य हिन्दू समाजों की तरह अपनी औरतों को कायरों की भांति उनके पीछे दुश्मन के घेरे में शाक्के करने के नाम पर पीछे रख उनको उनकी युद्ध कौशलता को आजमाने से नहीं रोका|

एक तरफ जहाँ राजा-महाराजा भी हार जाते थे, अपनी जान छुड़ाने को अपनी बेटियां फ्री-फंड में विदेशियों से ब्याह देते थे वहीँ कुछ मुट्ठी भर जाट किसान जीत जाते थे| अगर कोई सच्चा क्षत्रीपण है तो यह है|

जैसा कि ऊपर बताया बाद में आगे चलकर यह गाँव एक छोटी आज़ाद रियासत के रूप में बदल गया|

रिफरेन्स: चौधरी रवि सिंह ज्वाला

रूपांतरण: फूल मलिक