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Thread: राजकुमार सैनी और रोशनलाल आर्य, लोकराज लोकë

  1. #1

    राजकुमार सैनी और रोशनलाल आर्य, लोकराज लोकë

    राजकुमार सैनी और रोशनलाल आर्य, लोकराज लोकलाज से चलता है इसको ना भूलें:

    जाटों को आरक्षण चाहिए तो जमीन छोड़ दो! - राजकुमार सैनी
    आप माली समाज से आते हैं, जमीनें तो आपके भी पास हैं तो क्या आपने छोड़ दी जमीनें आरक्षण की ऐवज में? रोशनलाल आर्य के समाज के पास भी हैं जमीनें या उन्होंने छोड़ दी?
    बाकी जमीनें किसी से जाटों ने खैरात में नहीं ली हैं, जब जाटलैंड एक जंगल हुआ करती थी तो हमारे पुरखों ने अथक परिश्रम से समतल बनाई थी|
    वैसे राजकुमार सैनी आप एक बार यह क्यों नहीं कह देते कि व्यापारियों को कर्जा माफ़ी चाहिए तो वो फैक्टरियां छोड़ दें? या फंडियों को आदर-मान चाहिए तो दलित-पिछड़ों को नीच-अछूत कहना छोड़ दें? उनको मंदिरों-कुओं पे चढ़ने दे?

    अरे बावले जिस जाट चौधरी छोटूराम की वजह से आज जमींदार कहलाता है कम से कम उसी की लाज रख ले| मंडी-फंडी के हाथों ऐसा भी क्या बिकना कि लोकलाज सब बेच खाई है|
    रोशनलाल आर्य साथ ही यह भी बता देते कि जाट कब किस हिन्दू के डंडों से डरे? और किसके सहन करे? हमेशा पाखंड और मंडी-फंडी के विरुद्ध हमने नेतृत्व वाली लड़ाईयां लड़ी हैं और हमें ही डंडे से डराने की घुर्खी घालते हो?
    मतलब कुछ भी क्या?
    लगता है बेचारे बिहार की हार से बोखला गए हैं और बीजेपी और आरएसएस ने छोड़ दिए हैं जाटों पे भोंकने को खुल्ले| जाट समाज सावधान, सेंटर में बैठे लोग अब बिहार का गुस्सा इधर निकालना चाहते हैं और जाट समाज को दूसरे 1984 में धकेलना चाहते हैं| इससे अपना धैर्य और संयम मत खोना| अपनी ऊर्जा को अपनी कौम को सहेज के रखने में लगाना| हाँ, कानूनी तरीके से जो लड़ाई हो सके इनके खिलाफ वो लड़ना| ज्यादा जरूरत पड़े तो मंडी-फंडी से असहयोग शुरू कर लेना परन्तु इन दो नादानों की वजह से बाकी पिछड़ा समाज से बैर मत बांधना| क्योंकि देर-सवेर यह भटके हुए भी वापिस आएंगे|
    इन दोनों जैसे लोगों के लिए बस इतना ही कहूँगा कि तुम लोग आरक्षण मिलने के बाद, नौकरियों से तुम्हारी आमदनी और रोजगार बेशक बढ़ गया हो परन्तु सोच से वहीँ के वहीँ खड़े हो, दोनों के दोनों आज भी पिछड़े ही पड़े हो| तुम जैसे लोगों को मंडी-फंडी पहले भी प्रयोग करता रहा है और आज भी हो रहे हो| और जब तक होते रहोगे तब तक पिछड़े ही कहलाओगे| किसान-कमेरे को साथ ले के चलने की कूबत सिर्फ जाटों में रही और रहेगी, वो तुम यह रवैया बदले बिना कभी हासिल नहीं कर सकते, चाहे जितने तो थोथे धान पिछोड़ लो और जितने बड़े बोल बोल लो|
    फिर भी किसी पल लोकलाज आये तो अपने गिरेबान में झाँक के देख लेना कि इस मंडी-फंडी की दी हुई चिंगारी को जाटों पे फेंकते-फेंकते कहीं अपने ही हाथ ना जला बैठो|
    विशेष: अंधभक्त बने जाट अब तो आँखें खोलेंगे या अब भी इन्हीं की पीपनी बनके डोलेंगे? निकल आओ इस धर्म के कीड़े से बाहर और कौम की सुध ले लो कुछ| कल को जाट समाज बाकी जाटों से ज्यादा तुमपे थू-थू करा करेगा, जो बीजेपी और आरएसएस में बैठ के भी ना तो इन लोगों के मुंह बंद करवा पा रहे और ना ही इनको छोड़ पा रहे|

    जय यौद्धेय! - फूल मलिक

    News source: http://www.tribuneindia.com/news/har...ta/158222.html
    One who doesn't know own roots and culture, their social identity is like a letter without address and they are culturally slave to philosophies of others.

    Reunion of Haryana state of pre-1857 is the best way possible to get Jats united.

    Phool Kumar Malik - Gathwala Khap - Nidana Heights

  2. The Following User Says Thank You to phoolkumar For This Useful Post:

    op1955 (November 15th, 2015)

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