Results 1 to 20 of 73

Thread: जाट तो आजकल निठ्ठले ही हो गए हैं!

Threaded View

Previous Post Previous Post   Next Post Next Post
  1. #1

    जाट तो आजकल निठ्ठले ही हो गए हैं!

    जाट तो आजकल निठ्ठले ही हो गए हैं:

    1) पहले जाट अपनी आर्यसमाजी परम्परा के तहत जो ढोंग-पाखंड-आडंबर का भांडा फोड़ने का काम किया करते थे वो आजकल दलित और फिल्मों वाले कर रहे हैं| जाट तो बल्कि आज अपना आर्यसमाजी स्वाभिमान और अभिमान छोड़, इसके उल्ट चौकियों-जगरातों-भंडारों में जा फंसे हैं|
    2) पहले जो जाट, समाज के आपसी झगड़े निबटवाया करते थे, वो आजकल टीवी डिबेटों वाले निबटा रहे हैं (नहीं शायद निबटवाने का ढोंग करके और ज्यादा पेचीदा उलझा रहे हैं)| जाट तो बस आरक्षण की लड़ाई लड़ने तक ही सिमट कर रह चुके हैं|
    3) पहले जो जाट-खाप सामाजिक सुधार के आंदोलन और मूवमेंट चलाया करते थे वो आजकल जाट बनाम नॉन-जाट के मुद्दे तक पर भी खुलकर राय रखने से घबराते हैं| खुद की जाट-ब्रांड को ही सुरक्षित रखने में समर्थ साबित नहीं हो रहे, पूरे समाज की ब्रांड की तो अब बात करना ही सपना लगने लगी है|
    4) जो जाट शिक्षा के लिए खुद आगे बढ़ के कहीं जाट स्कूल तो कहीं जाट कॉलेज तो कहीं आर्य गुरुकुल बनवाया करते थे वो आजकल यह चंदा माता की चौकी और अंधभक्ति वालों के भीतर में उतार रहे हैं| क्या कहीं सुना है कि 'जाट कम्युनिटी' के नाम पर नए जाट कॉलेज या स्कूल निर्माण हेतु विगत दो दशकों से तो खासकर जाटों ने एक भी नई ईंट लगाई हो?
    5) खापें अगर चाहें तो एक पल में 36 बिरादरी की महापंचायत करके राजकुमार सैनी, मनोहरलाल खट्टर और रोशनलाल आर्य जैसों को एक पल में सामाजिक मंच से उनकी समाज को तोड़ने की बातें (कभी जाटों को ले के तो कभी हरयाणवियों को ले के कंधे से ऊपर कमजोर जैसे बयान) करने पे माफ़ी मांगने को विवश कर दें, परन्तु वो यह कह के चुप बैठ जाती हैं कि हम सब बिरादरियों के प्रतिनिधि हैं, कोई बुरा मान गया तो? कमाल है समाज को तोड़ने वालों को आगाह करने से भला कौन बुरा मानेगा?

    तो ऐसे में जाटों का सामाजिक रुतबा सिकुडेगा नहीं तो और क्या होगा? जाट समाज की 40 से 60 साल और 20 से 40 साल की दोनों पीढ़ियों को सोचने की गंभीर जरूरत है कि आप लोग किधर से किधर निकल आये हैं| क्या रुतबा आपके पुरखों ने हासिल किया था| हालत यह होती जा रही है कि उसमें नया जोड़ने की बजाये जो वो दे गए थे उसको संभालने और बरक़रार रखने भर में ही आज के जाट के पसीने छूट रहे हैं|
    जय यौद्धेय! - फूल मलिक
    One who doesn't know own roots and culture, their social identity is like a letter without address and they are culturally slave to philosophies of others.

    Reunion of Haryana state of pre-1857 is the best way possible to get Jats united.

    Phool Kumar Malik - Gathwala Khap - Nidana Heights

  2. The Following 5 Users Say Thank You to phoolkumar For This Useful Post:

    dndeswal (September 12th, 2017), lrburdak (February 26th, 2016), op1955 (December 19th, 2015), SALURAM (September 25th, 2017), sukhbirhooda (December 28th, 2015)

Posting Permissions

  • You may not post new threads
  • You may not post replies
  • You may not post attachments
  • You may not edit your posts
  •