Results 1 to 3 of 3

Thread: यह दलित-पिछड़े-महादलित मजदूरों की ट्रेनें ê

  1. #1

    यह दलित-पिछड़े-महादलित मजदूरों की ट्रेनें ê

    यह दलित-पिछड़े-महादलित मजदूरों की ट्रेनें भर-भर के बिहार-बंगाल-उड़ीसा-आसाम-ईस्ट यूपी टू हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी क्यों चलती हैं?:

    अगर हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी (इन शार्ट जाटलैंड) पर इतना ही दलित उत्पीड़न है जितना कि एंटी हरयाणा मीडिया लॉबी, गोल बिंदी गैंग और भारत का लेफ्ट वर्जन व् सम्बन्धित एनजीओज वाले लिखते, भांडते, चिल्लाते और दिखाते रहते हैं, तो इस हिसाब से तो यह ट्रेनें बिहार-बंगाल-उड़ीसा-ईस्ट यूपी-आसाम से हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी की ओर की बजाये हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी से इन राज्यों की ओर जानी चाहियें थी, नहीं?

    भारत का कानून इनको सिर्फ इस बात की इजाजत देता है कि यह भारत के किसी भी कोने में जा के सद्भावना व् सौहार्द के साथ रोजगार कर सकें, ना कि रोजगार के नाम पर यह भारत के किसी भी कोने में बैठ के वहाँ की संस्कृति-सभ्यता-भाषा व् स्थानीय जातियों पर चुनिंदा वार करें|

    इसलिए हर हरयाणवी व् पंजाबी समझ ले अपने इस अधिकार को कि सिस्टर स्टेटस से आये भारतीय भाईयों को हमारे यहां रोजगार करते हुए सद्भावना और सौहार्द से बसने की इजाजत तो भारतीय कानून देता है, परन्तु इस बात की नहीं कि यह यहां रोजगार कमाने की आड़ में हमारी सभ्यता-संस्कृति-भाषा के सर पे बैठेंगे और हर उल-जुलूल तरीके से हमारी उपेक्षा व् अपमान करेंगे|

    इनके इन वारों पे चुप रहना बन्द करो, बहुत हो चुका इनका स्वागत और इनसे मेल-मिलाप का हनीमून दौर| अब इनको इनके द्वारा अपनाये गए लेखनी के हथियार के जरिये ही प्रतिउत्तर देने शुरू करें| वर्ना इनमें से आपके ऊपर जहर उगलने वाले कुछ तो ऐसी कुत्ता प्रवृति के हैं कि अगर आपने सामने से आँख नहीं दिखाई तो आपके मुंह तक नोंच खाएंगे|

    इसलिए इनमें से हर एक से पूछा जाए, साथ ही दो-तीन पीढ़ियों पहले से आन बसे हरयाणा के नॉन-हरयाणवी से पूछा जाए कि जहां से तुम उठ के आते हो उधर के तो तुम कभी कोई दोष-द्वेष नहीं दिखाते; उधर की व्यवस्था पर तो कभी नहीं सुने ऊँगली तानते? अगर वहाँ इतना ही सब कुछ ठीक है तो फिर क्यों यह दलित-पिछड़े-महादलित मजदूरों की ट्रेनें भर-भर के बिहार-बंगाल-उड़ीसा-आसाम-ईस्ट यूपी टू हरयाणा-पंजाब की ओर चलती हैं? यह नजारा इसके विपरीत दिशा में देखने को क्यों नहीं मिलता?

    यह सवाल हरयाणा-पंजाब का वह दलित भी उन लेफ्टिस्ट व् गोल बिंदी गैंग वालियों से करे कि माना यहां जाट-दलित के झगड़े हैं, परन्तु इतने भी बड़े नहीं कि यहां के दलित को रोजगार-मजदूरी करने के लिए अपनी इच्छा के विरुद्ध यूँ ट्रेनें भर-भर के दूसरे राज्यों में जाना पड़े|

    सनद रहे यह मीडिया में बैठी एंटी-जाट, एंटी-हरयाणवी लॉबी, यह गोल बिंदी गैंग और यह भारत की जो लेफिटिस्ट आइडियोलॉजी है, यह विश्व के सबसे बड़े घोर जातिवादी लोग हैं; जो बिहार-बंगाल को इस तरीके का बनाने की बजाये कि वहाँ के दलित-मजदूर-महादलित को वहीँ रोजगार मिल सके, चले आते हैं हमारे यहां "चूचियों में हाड ढूंढने!" अर्थात बाल की खाल उतारने|

    उठ खड़े हो जाओ अब, वरना आपकी शांति-शौहार्द व् भाईचारे से लबालब भरी इस हरयाणवी-पंजाबी संस्कृति की सुनहरी भोर पर यह लोग ऐसा स्थाई ग्रहण लगाने वाले हैं कि अगर इनके वहाँ का सामंतवाद यहां ना उतर आया तो कहना| हमें नहीं चाहिए इनके यहां का सामंतवाद, जिस घोर जातिवाद से भरपूर सामंतवाद से ग्रसित होकर बिहार-बंगाल-उड़ीसा-आसाम-ईस्ट यूपी का दलित पंजाब-हरयाणा-वेस्ट यूपी आता है उस सामंतवाद को तो सम्पूर्ण हरयाणा-पंजाब-हिमाचल से तो सर छोटूराम जी एक सदी पहले उखाड़ के जा चुके, आधी सदी पहले चौधरी चरण सिंह जी वेस्ट यूपी से उखाड़ के जा चुके, सरदार प्रताप सिंह कैरों, ताऊ देवीलाल, मान्यवर कांशीराम और बाबा महेंद्र सिंह टिकैत हमारे दोनों बड़े चौधरियों के कार्यों को आगे बढ़ा के जा चुके|

    इसलिए खड़े होईये और सोशल मीडिया व् कानूनी प्रक्रिया के जरिये टूट पड़िये इनपर एक आवाज बनकर कि रोजगार करने आये हो, सुख-सुविधा पाने आये हो, वो पाओ और "जियो और जीने दो"; वर्ना भारत का जो कानून देश के नागरिक को देश के किसी भी कोने में जा के रोजगार करने की अधिकार/इजाजत देता है, वही कानून एक राज्य-सम्प्रदाय की सभ्यता-संस्कृति-भाषा की रक्षा हेतु तुम्हारे में से जो उन्मादी और स्थानीय सभ्यता-संरकृति-भाषा पर सर चढ़ के बैठने की दूषित मानसिकता के हैं, उनको सर से उतार के फेंकने का अधिकार भी देता है|

    एक कड़वी सच्चाई कहते हुए इस लेख को विराम दूंगा| दर्जन भर लेफ्टिस्टों से पूछा कि आप हरयाणा-पंजाब में वह सामंतवाद क्यों ढूंढते हो जो सर छोटूराम एक सदी पहले उखाड़ के जा चुके, आप वहाँ से कार्य को आगे क्यों नहीं उठाते जहां वह हुतात्मा छोड़ के गया था; तो सबके के मुंह सिल जाते हैं| जब गहराई में उतर कर खुद कारण जानने बढ़ता हूँ तो बार-बार भारतीय जातिवाद का वही घोर व् कट्टर साम्प्रदायिक चेहरा नजर आता है जो आज हरयाणा में जाट बनाम नॉन-जाट मचाये हुए है| इन ताकतों को हर हरयाणवी-पंजाबी को मिलके कुचलना होगा| अगर नहीं चाहते हो बिहार-बंगाल का सामंतवाद अपने यहां देखना तो कलम उठा लो; एक-एक एंटी-जाट, एंटी-हरयाणा-पंजाब लेखक-पत्रकार-गोल बिंदी वाली व् खादी-खद्दर के लंबी बाधी के झोलों वालों की क्लास लेना और लगाना शुरू करो| कुछ नहीं है ये, सिर्फ पेड़ की डालियों पर उछल-कूद करने वाले बन्दरों से ज्यादा| पेड़ के पास आ के इनको भगाओगे तो यह ढूंढें नहीं मिलेंगे| वर्ना अगर चुपचाप टुकुर-टुकुर हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी रुपी आपके ही पुरखों के खून-पसीने से सींचे इस पेड़ पर इन बन्दरों को यूँ ही उछल-कूद मचाते रहने दोगे तो पेड़ तो रहेगा परन्तु यह उस पर फल नहीं पकने देंगे|

    जय यौद्धेय! - फूल मलिक
    One who doesn't know own roots and culture, their social identity is like a letter without address and they are culturally slave to philosophies of others.

    Reunion of Haryana state of pre-1857 is the best way possible to get Jats united.

    Phool Kumar Malik - Gathwala Khap - Nidana Heights

  2. #2
    Welcome back - Phool Kumar ji !

  3. #3
    Thanks Smriti Ji

    Quote Originally Posted by rekhasmriti View Post
    Welcome back - Phool Kumar ji !
    One who doesn't know own roots and culture, their social identity is like a letter without address and they are culturally slave to philosophies of others.

    Reunion of Haryana state of pre-1857 is the best way possible to get Jats united.

    Phool Kumar Malik - Gathwala Khap - Nidana Heights

Posting Permissions

  • You may not post new threads
  • You may not post replies
  • You may not post attachments
  • You may not edit your posts
  •