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Thread: नवरात्रों के चक्कर में, मैं क्यों गिरूँ अप

  1. #1

    नवरात्रों के चक्कर में, मैं क्यों गिरूँ अप

    नवरात्रों के चक्कर में, मैं क्यों गिरूँ अपनी 'जाट-देवता' की उपाधि से?:

    वो कहते हैं नवरात्रे मनाओ, मैं मना तो लूँ पर उस उपाधि को कैसे छोड़ दूँ जो खुद ब्राह्मण ने मुझे दी है| ब्राह्मण मुझे कहीं "जाट देवता" लिखता है कहीं "जाट जी" तो मैं इस श्रेणी से कैसे गिरा लूँ अपने-आपको? एक देवता होते हुए एक देवी को कैसे पूजूँ? यह तो वही बात हो गई कि मैं अपने ऑफिस की कलीग यानी सहकर्मी महिला को बॉस कहूँ? यह कैसे सम्भव है?
    निसन्देह, लोगों की भावना का आदर-मान करते हैं परन्तु माफ़ करना दोस्तों नवरात्रे मेरी संस्कृति नहीं|
    मेरी तो पड़दादी ने मनाये ना, दादी ने मनाये ना और ना माँ ने मनाये ना आज के दिन मेरे घर की बहुएं यानी मेरी भाभी और बौड़िया मनाती; आप मनाओ आपको सपोर्ट करते हैं, परन्तु सविनय बता देता हूँ यह 'जाट-देवता' की मान्यता नहीं| बताओ मैं एक जाट जो खुद देवता कहलाता हूँ, वो एक देवी को किसलिए पूजेगा? जाट तो पहले से ही देवता श्रेणी में काउंट होते हैं तो मैं क्यों गिरूँ अपनी श्रेणी से?
    सीधा सिंपल वास्तविकता पर आधारित म्हारा "दादा खेड़ा" बना रहो बस वही बहुत है, मेरा आध्यात्म उससे ही सन्तुष्ट है|
    सर्वखाप पंचायतें, डंके की चोट पर और आज भी बहुत रेसोलुशन निकालती हैं व्यर्थ खर्ची के आडम्बरों के खिलाफ| लेटेस्ट महापंचायत अभी हांसी में हो के हटी है, इन्हीं मसलों पर| राजनीति के चक्कर में अगर कोई खाप-पंचायती इनमें जा धंसा है तो उनसे सविनय निवेदन है कि आपको नवरात्रे मनाने के लिए खाप का नाम प्रयोग करने की जरूरत नहीं| वैसे भी खाप के नाम से सामाजिक वोट मिलते आये हैं, राजनैतिक वोट नहीं; सो इस नाम को अपनी बधाइयों में ना खींच के खाप पम्परा भी निभाएं और जनता की भावनाओं का आदर-मान रखने की राजनैतिक जरूरत भी निभा लें|
    एक और पहलु है जो आर्य-समाजी परिवार हैं, वो तो पहले से ही मूर्ती-पूजा से दूर होंगे? आखिर इनसे दूर रहते थे, इतने सभ्य ज्ञानी थे तभी तो ऋषि दयानंद जैसे बाह्मण ने 'सत्यार्थ प्रकाश' में 'जाट-देवता' व् 'जाट जी' कह के गुणगान किया था| वही ऊपर लिखी बात, मैं क्यों गिरूँ अपनी 'जाट-देवता' की उपाधि से| या तो घर में ऋषि दयानंद की फोटो टांग लो, या इनकी, या दो नावों में एक साथ सवार होवोगे? कोई राजनीति, कोई मान्यता आपको इतना मजबूर नहीं कर सकती कि आप अध्यात्म तौर पर भी दो नावों में एक साथ सवार होवो| अगर ऐसा करना पड़ रहा है तो निसन्देह आप भर्मित प्रवृति के हैं और आपकी मानसिकता अनिश्चित है सुनिश्चित नहीं|
    फिर भी फैसला आपका, परन्तु मैं निर्धारति हूँ; ना मेरी सर्वखाप इसकी इजाजत देती, ना मेरे परिवार-पुरखों के सिद्धांत, ना आर्य-समाज, ना मेरा मूर्ती पूजा रहित दादा खेड़ा और इन सबसे बड़ी बात ना मेरी "जाट देवता" और "जाट जी" की छवि; सो मैं नवरात्रे मानने-मनाने वालों को बधाई देते हुए, परन्तु साथ ही अपनी छवि बरकरार रखने हेतु, इनसे तथष्ट रहने की राह पर चलता हूँ| और आशा करता हूँ कि देश-समाज-मीडिया-ब्राह्मण भी मेरे इस फैलसे का सम्मान करेंगे|
    जय यौद्धेय! - फूल मलिक
    One who doesn't know own roots and culture, their social identity is like a letter without address and they are culturally slave to philosophies of others.

    Reunion of Haryana state of pre-1857 is the best way possible to get Jats united.

    Phool Kumar Malik - Gathwala Khap - Nidana Heights

  2. The Following User Says Thank You to phoolkumar For This Useful Post:

    sukhbirhooda (March 26th, 2018)

  3. #2
    Aap ke vichaar bhilkul saral aur manniye hain. Kintu ek najariya aur hai....

    vrat ki dharna humare jeevan mein swasthya, niyam, aur acche vichaar laati hai. Agar impulsion ho to mat karo. ye kisi kshatriye ke liye nahin balki ek brahmin par bhi laagu ho sakta hai.

    sadharan example- danda galti par pade to discipline, bina galti ke pade to police wala bhi alert ho sakta hai
    Last edited by neel6318; May 19th, 2017 at 02:10 PM. Reason: spell check

  4. #3
    जाट नव रात्री मनाने लगेगा और 9-9 दिन उपवास करने लगेगा तो उस समय जो खेती किसानी का काम है वह कौन करेगा। फिर तो पूरा देश ही भूखा मरेगा। यह तो फालतू बैठे लोगों के काम हैं। जाट को तो इस पाखंड से दूर ही रहना चाहिए।
    Laxman Burdak

  5. The Following 2 Users Say Thank You to lrburdak For This Useful Post:

    neel6318 (March 8th, 2018), sukhbirhooda (March 26th, 2018)

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