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Thread: मैं जो कर रहा हूँ उसको जातिवाद नहीं, जातिगत &#

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    मैं जो कर रहा हूँ उसको जातिवाद नहीं, जातिगत &#

    मैं जो कर रहा हूँ उसको जातिवाद नहीं, जातिगत प्रेम कहते हैं:

    और मैं यह क्यों, कब और किसकी वजह से करने लगा हूँ इसकी व्याख्या यह रही।

    2012 में सम्पूर्ण हरयाणवी जातियों व् उनके आपसी सहयोग से बनने वाले हरयाणवी कल्चर को दुनियां के सामने निष्पक्ष रूप से लाने के लिए मैंने एक वेबसाइट लांच की थी "निडाना-हाइट्स", जो कि निर्बाध रूप से आज भी चल रही है। शायद मैं पहला इंसान रहा होंगा जिसने समाज में जातिसूचक शब्दों के प्रयोगों बारे निष्पक्षता से लेख लिखा और इनकी आलोचना की। ब्राह्मण को "पण्डा", "पंडोकली वाला", "ताता खानिया" कहने पे ऐतराज जताया; हिन्दू अरोड़ा/खत्री को "रेफूजी", "भाप्पा", "झंगी", "पाकिस्तानी" कहने पे ऐतराज जताया; जाट को "सोलह दूणी आठ" कहने पे ऐतराज जताया; बनिए को "किराड़", "मूंजी" कहने पे ऐतराज जताया, दलित/ओबीसी को "कमीन", "कांदु', "डेढ़", "गण्डल" कहने पे ऐतराज जताया। इसी से सम्बन्धित निडाना-हाइट्स पर चार साल पुराना लिखा मेरा यह आर्टिकल है: http://www.nidanaheights.net/EHhr-marmmt.html

    इसी बीच आती है यह "हिन्दू एकता और बराबरी" के ठेकेदारों की 2014 में सेण्टर और हरयाणा में सरकार। आते ही "जाट बनाम नॉन-जाट" पसार दिया। वैसे तो मैं जाट हूँ, किसी भी प्राकृतिक-अप्राकृतिक विपदा-आपदा से लड़ने-भिड़ने-सुलटने में सक्षम हूँ। परन्तु साथ ही मैं लोकतान्त्रिक भी हूँ और लोकतंत्र में व्यक्ति-विशेष से लेकर, परिवार-कुनबा, गाँव-गुहांड, जाति-सम्प्रदाय सबकी छवि, रेपुटेशन और प्रभाव मायने रखता है। और इसकी मुझे इन निखट्टुओं के आने से पहले चिंता नहीं थी।

    परन्तु फिर जब 35 बनाम 1 के नारे, वो भी खट्टर, चोपड़ा, ग्रोवर जैसे उन समाजों के नेताओं के मुंह से सुने, जिनको कि मैं "रेफूजी", "भाप्पा", "झंगी", "पाकिस्तानी" कहने पर, ओबीसी वाले सैणी, आर्य जैसों को "कमीन", "कांदु' कहने पर विरोध का झंडा अपने लेखों और नेटवर्कों में उठाया करता था तो लगा कि भाई कुछ तो गड़बड़ है। ऐसा करो, इनको बाद में सम्भालना, पहले इस "जाट बनाम नॉन-जाट" की फैलाई जा रही खाई से अपने समाज की छवि को सुरक्षित कर, सुरक्षित निकाल। यहां तो उल्टा ही हो चला है। कहाँ तो मुम्बई में ठाकरे-परिवार बाहर से वहाँ आकर बसने वालों को लताड़ता है और यहां तो जाट बाहर से आकर बसने वालों से प्रेम-मुलाहजा निभाने के बाद भी लताड़ा जा रहा है तो चिंता हुई।

    ऐसे में मेरे पास दो राह थी, या तो मैं इन द्वारा जाट को बदनाम किये जाने पर इनके समाजों को भी इन्हीं के तरीके से बदनाम करने वाला "जातिवाद" का मार्ग चुनूँ, या फिर जब तक यह "जाट बनाम नॉन-जाट" चलता है तब तक सिर्फ अपने समाज के पॉजिटिव को अपने लेखों के जरिये समाज के आगे लाना शुरू करने का "जातिगत-प्रेम' का मार्ग चुनूँ। और मैंने "जातिगत-प्रेम" के मार्ग को चुना। और यह तब तक रहेगा जब तक यह जाट बनाम नॉन-जाट समाज में चलता है या कोई मेरे साथ आगे बढ़ के इसको खत्म करवाने बाबत कार्य नहीं करता है।

    और मेरा "जातिगत-प्रेम" का मार्ग मानव-धर्म के अनुसार सही है। मानव धर्म कहता है कि जब आपके शरीर में कोई विपदा हो तो आपको पहले वह दूर करनी चाहिए। इसी तरह जब आपके समाज पर कोई विपदा हो तो पहले उसको दूर करना चाहिए। और मैं वही कर रहा हूँ। मुझे नहीं लगता कि जो जातिवाद और जातिगत प्रेम में अंतर समझता होगा और अपनी जाति से प्रेम करता होगा, वह मेरे मार्ग को गलत कहेगा। और मेरे से जातिगत प्रेम करने वाले को डरने की भी जरूरत नहीं। मेरे से सिर्फ वही डरेगा, जो जातिवादी होगा।

    जय यौद्धेय! - फूल मलिक
    One who doesn't know own roots and culture, their social identity is like a letter without address and they are culturally slave to philosophies of others.

    Reunion of Haryana state of pre-1857 is the best way possible to get Jats united.

    Phool Kumar Malik - Gathwala Khap - Nidana Heights

  2. The Following 2 Users Say Thank You to phoolkumar For This Useful Post:

    krishdel (October 11th, 2016), sukhbirhooda (October 23rd, 2016)

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