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Thread: जाटडा और काटडा !!? Real Truth

  1. #1

    जाटडा और काटडा !!? Real Truth

    हरयाणा के जाट अवश्य जानते होंगे एक पुराणी प्रचलित कहावत के बारे में ! जी , और अक्सर इसको जाट ही आपस में कहते हैं,‘’ जाटडा और काटडा अपने ने ए मारया करे ‘’! ये कहावत अक्सर तब कही जाती है जब किसी एक जाट ने दूसरे जाट को धोखा दिया हों इतियादी ! पंजाब में इस सन्दर्भ में क्या कहा जाता है , सिख भाई अवश्य इस बारे में बताएं!
    इस कहावत के व्यापक प्रचलन के कारण जाट एक दूसरे की सहायता करते कतराते हैं ! एक दूसरे के काम आने से बचते हैं !
    सही सही साल तो नहीं पता की ये कब आरम्भ हुई परन्तु संभावत: ये उस समय आरम्भ हुई होगी जब समाज और धर्म के अग्रणी ठेकेदार जातियाँ को ये आभास हुआ होगा की यदि जाट एक दूसरे की सहायता करने लग गए तो इनकी मानसिक एवं आर्थिक तरक्की उस जाति या जातियों के लिए हानिकारक होगी ! उन्होंने इस कहावत को व्यापक तौर पर फैलाकर उनकी समस्या का बड़ा सूक्ष्म हल निकाला! जैसा की आपको ज्ञात है कि यदि एक ही झूठ लगातार बोला जाए तो अंत में वह सत्य लगने लगता है !
    परिणाम स्वरुप जितना अविश्वास उत्तर भारत के जाटो में एक दूसरे को लेकर है और शायद ही किसी दूसरी जाति में हों ! ये अविश्वास अवचेतन व् चेतन मन में तथ्य के रूप में बसा हुआ है ! किसी भी समुदाय या जाति विशेष के प्रगति/विकास को अवरुद्ध करने का सबसे सरल उपाय है – मनोवैज्ञानिक तौर पर उनके आत्म सम्मान को उनकी की ही नजरो में इतना गिरा दो की उठाने में सदिया लग जाए और जब सच सामने आये तब भी विश्वास करने की अपेक्षा इस पर शक किया जाए ! जाटडा और काटडा की कहावत और तकनीक इसी तर्ज़ पर गैर जाटो द्वारा सफलता पूर्वक विकसित की गयी ! तथाकथित अग्रणी जाती ब्राह्मण ने इस से भी बुरा हश्र दलितो के आत्म सम्मान के साथ किया ! यदि बाबा आंबेडकर और सर छोटू राम दलितो और जाटो में अवतरित नहीं होते तो हमारी तरक्की आने वाले कम से कम दो सौ सालो तक प्रभवित होनी थी !
    ऐसी ही दूसरी कहावत है कि जाटो का दिमाग घुटने में होता है ! वाह! अब यही वाक्य कोई मेधावी जाट विद्यार्थी को बार बार कहा जाए तो मनोवैज्ञानिक तौर पर उसका आत्म विश्वास टूटना तय है !
    हल/निदान/निवारण :- आपको अभी तक का लेख पढ़ कर ठगे जाने का अहसास हों चुका होगा और ब्राह्मण या अन्य अग्रणी जातियों पर गुस्सा भी आ गया होगा ! इनसे बदला लेने कि भावना भी मन में प्रबल हों रही होगी ठहरिये ! इस से क्या हासिल होगा ? सबसे पहले तो स्वयं को जागरूक करना होगा ये तथ्य स्वीकार करके !
    अगले कदम पर इसको भूलना होगा कि ऐसा भी कुछ होता है ! बार बार इस बात की शिकायत की दुहाई नहीं दी जा सकती की भूतकाल हमारा इस तरीके से शोषण किया गया है ! हमारी कौम बहादुरों की कौम जो करके दिखाने में यकीं रखती है !
    और आखिरी कदम पर असली बदला लेना है ! कैसे ? ऐसे! इस बात को अपने जाट सर्कल में फैला कर ! फिर अपने जाट समुदाय की दोगुने उत्साह से हर संभव बेहिचक मदद करके चाहे वो को भी क्षेत्र हों , शिक्षा , व्यवसाय ,उद्योग जगत , सरकारी अथवा प्राइवेट क्षेत्र में नौकरी ! अगर आप अच्छे प्रभावशाली पद पर हैं तो जितना भी हों सके तो दूसरे जाटो को इसमें लाये बैगर किसी शर्त ! किसी दूसरे जाट के घर में चूल्हा जलाने से बड़ा पुण्य का कार्य कोई भी नहीं है ! आइये अपनी कौम का सुनहरा भविष्य लिखने में एक दूसरे की मदद करें !
    धन्यवाद



    "All I am trying to do is bridge the gap between Jats and Rest of World"

    As I shall imagine, so shall I become.

  2. The Following 2 Users Say Thank You to Samarkadian For This Useful Post:

    ayushkadyan (April 23rd, 2017), narvir (June 4th, 2017)

  3. #2

    ये बात तो एकदम सही है। पता नहीं कुछ जाट क्यों एक दूसरे की जड़ काटने में लग जाते है। आप किसी भी फील्ड में चले जाओ दूसरी जातियों के
    जो लोग ऊँचे ओहदों पर बैठे है वो अपने सजातीय लोगो को ही प्राथमिकता देते है। और तो और ये लोग अपने स्टेट के नाम पर भी प्रेफरेंस देते है। जँहा भी कोई बिहारी हेड होगा आपको उस डिपार्टमेंट में ज़्यादातर बिहारी ही मिलेंगे। बस जाट ही इसका अपवाद है। इन्हें पता नही क्या एलर्जी होती है अपने ही लोगो से। सारे सिद्धांतो का पालन करने का जिम्मा इन्होंने ही अपने सर पर लिया हुआ है। कुछ जाट प्रोफेशनलिज्म की दुहाई देते है। इस चक्कर में हर फील्ड में आपको ब्राह्मण, बनिये और पंजाबी ही दिखेंगे और अब तो बिहारी भी झेलने पड़ते है।
    हालांकि कुछ जाट बुद्धिजीवी इसे नेपोटिज़्म का नाम देते है। लेकिन याद रखिये अगर जाट ही एक दूसरे की मदद के लिए हाथ नही बढ़ा सकते तो किसी और से उम्मीद रखना फ़िज़ूल है। यही एक तरीका है अपने लोगो को आगे बढ़ाने का। मेहनत, ईमानदारी अपनी जगह है जिसमे जाट कही भी कम नही है। बस कभी-कभी ज़रूरत होती है किसी अपने के साथ की। वो साथ किसी जाट से मिले तो इस जाट कौम की तकदीर सुधर जाये।
    I have a fine sense of the ridiculous, but no sense of humor.

  4. The Following 3 Users Say Thank You to ayushkadyan For This Useful Post:

    Arvindc (May 17th, 2017), cooljat (April 24th, 2017), narvir (June 4th, 2017)

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