हरयाणा के जाट अवश्य जानते होंगे एक पुराणी प्रचलित कहावत के बारे में ! जी , और अक्सर इसको जाट ही आपस में कहते हैं,‘’ जाटडा और काटडा अपने ने ए मारया करे ‘’! ये कहावत अक्सर तब कही जाती है जब किसी एक जाट ने दूसरे जाट को धोखा दिया हों इतियादी ! पंजाब में इस सन्दर्भ में क्या कहा जाता है , सिख भाई अवश्य इस बारे में बताएं!
इस कहावत के व्यापक प्रचलन के कारण जाट एक दूसरे की सहायता करते कतराते हैं ! एक दूसरे के काम आने से बचते हैं !
सही सही साल तो नहीं पता की ये कब आरम्भ हुई परन्तु संभावत: ये उस समय आरम्भ हुई होगी जब समाज और धर्म के अग्रणी ठेकेदार जातियाँ को ये आभास हुआ होगा की यदि जाट एक दूसरे की सहायता करने लग गए तो इनकी मानसिक एवं आर्थिक तरक्की उस जाति या जातियों के लिए हानिकारक होगी ! उन्होंने इस कहावत को व्यापक तौर पर फैलाकर उनकी समस्या का बड़ा सूक्ष्म हल निकाला! जैसा की आपको ज्ञात है कि यदि एक ही झूठ लगातार बोला जाए तो अंत में वह सत्य लगने लगता है !
परिणाम स्वरुप जितना अविश्वास उत्तर भारत के जाटो में एक दूसरे को लेकर है और शायद ही किसी दूसरी जाति में हों ! ये अविश्वास अवचेतन व् चेतन मन में तथ्य के रूप में बसा हुआ है ! किसी भी समुदाय या जाति विशेष के प्रगति/विकास को अवरुद्ध करने का सबसे सरल उपाय है – मनोवैज्ञानिक तौर पर उनके आत्म सम्मान को उनकी की ही नजरो में इतना गिरा दो की उठाने में सदिया लग जाए और जब सच सामने आये तब भी विश्वास करने की अपेक्षा इस पर शक किया जाए ! जाटडा और काटडा की कहावत और तकनीक इसी तर्ज़ पर गैर जाटो द्वारा सफलता पूर्वक विकसित की गयी ! तथाकथित अग्रणी जाती ब्राह्मण ने इस से भी बुरा हश्र दलितो के आत्म सम्मान के साथ किया ! यदि बाबा आंबेडकर और सर छोटू राम दलितो और जाटो में अवतरित नहीं होते तो हमारी तरक्की आने वाले कम से कम दो सौ सालो तक प्रभवित होनी थी !
ऐसी ही दूसरी कहावत है कि जाटो का दिमाग घुटने में होता है ! वाह! अब यही वाक्य कोई मेधावी जाट विद्यार्थी को बार बार कहा जाए तो मनोवैज्ञानिक तौर पर उसका आत्म विश्वास टूटना तय है !
हल/निदान/निवारण :- आपको अभी तक का लेख पढ़ कर ठगे जाने का अहसास हों चुका होगा और ब्राह्मण या अन्य अग्रणी जातियों पर गुस्सा भी आ गया होगा ! इनसे बदला लेने कि भावना भी मन में प्रबल हों रही होगी ठहरिये ! इस से क्या हासिल होगा ? सबसे पहले तो स्वयं को जागरूक करना होगा ये तथ्य स्वीकार करके !
अगले कदम पर इसको भूलना होगा कि ऐसा भी कुछ होता है ! बार बार इस बात की शिकायत की दुहाई नहीं दी जा सकती की भूतकाल हमारा इस तरीके से शोषण किया गया है ! हमारी कौम बहादुरों की कौम जो करके दिखाने में यकीं रखती है !
और आखिरी कदम पर असली बदला लेना है ! कैसे ? ऐसे! इस बात को अपने जाट सर्कल में फैला कर ! फिर अपने जाट समुदाय की दोगुने उत्साह से हर संभव बेहिचक मदद करके चाहे वो को भी क्षेत्र हों , शिक्षा , व्यवसाय ,उद्योग जगत , सरकारी अथवा प्राइवेट क्षेत्र में नौकरी ! अगर आप अच्छे प्रभावशाली पद पर हैं तो जितना भी हों सके तो दूसरे जाटो को इसमें लाये बैगर किसी शर्त ! किसी दूसरे जाट के घर में चूल्हा जलाने से बड़ा पुण्य का कार्य कोई भी नहीं है ! आइये अपनी कौम का सुनहरा भविष्य लिखने में एक दूसरे की मदद करें !
धन्यवाद