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Thread: The never ending story of self-styled Godmen in India

  1. #21
    Caste-ism in Hinduism has played a significant role in marginalizing a section of society which in return led to origin of such Deras. People go to deras to find a space which they could not in the society currently. Religious institution have been tightly controlled by Upper Caste people which discriminate lower caste people. Problem is similar in other religions as well like Sikhism, Islam, Christianity. Therefore these marginalized section of society who are weaker socially, economically have no other place to go except these Deras. Deras ensure them a comfort which these people cannot find outside. There Deras will flourish until society reforms itself and give equal opportunity to all people in the society. I see no such change in the near future and you will see similar Deras, Ashrams flourishing in the country alongside in the coming time.
    Har Har Modi, Ghar Ghar Modi.

  2. The Following User Says Thank You to amitbudhwar For This Useful Post:

    neel6318 (September 1st, 2017)

  3. #22
    Quote Originally Posted by amitbudhwar View Post
    Caste-ism in Hinduism has played a significant role in marginalizing a section of society which in return led to origin of such Deras. People go to deras to find a space which they could not in the society currently. Religious institution have been tightly controlled by Upper Caste people which discriminate lower caste people. Problem is similar in other religions as well like Sikhism, Islam, Christianity. Therefore these marginalized section of society who are weaker socially, economically have no other place to go except these Deras. Deras ensure them a comfort which these people cannot find outside. There Deras will flourish until society reforms itself and give equal opportunity to all people in the society. I see no such change in the near future and you will see similar Deras, Ashrams flourishing in the country alongside in the coming time.
    log to karm ko leke, krishna leela bhi karwate hain. Baseless!!

  4. #23
    Quote Originally Posted by sanjeev_balyan View Post
    one bus full of so called Ramrahim bhakt went to punchkula from my own village that day and most of them are Jats. Our community was follower of Aryasamaj earlier. I am totally failed to understand the reason behind this change. Earlier few people were there in that kawad gang and now hardly any house is left, where kawadiya is not there.
    जाट बहुत ज्यादा कन्फ्यूज है धर्म को लेकर| कभी ये आर्यसमाजी बन जाते है| कभी किसी बाबा की शरण में पहुँच जाते है| कभी कांवड़ लेके चल पड़ते है| इसकी वजह है कि जाट तर्क और आस्था में सामंजस्य नहीं बना पाते| जहाँ तर्क हावी हो जाते है वहाँ धार्मिक आस्था क्षीण हो जाती है| जहाँ आस्था सर्वोपरि होती है वहाँ तर्कों के लिए जगह नहीं बचती है|
    आस्था और तर्क, धार्मिक विचारधारा के दो ध्रुव है जो कभी एक नहीं हो सकते है| जाट समुदाय इसी विचारधारा के द्वन्द में फंसा हुआ है| जब यह धार्मिक आस्था वैचारिक तर्कों पर हावी हो जाती तो उसका परिणाम कर्मकांड के रूम में परिलक्षित होता है| यह आपकी तर्कशीलता को लील जाता है| इस स्थिति में ब्राह्मणों द्वारा चालित कर्मकांड आपको धर्म का ही एक अंग प्रतीत होता है| यह स्थिति धर्मिक उन्माद और अन्धविश्वास की जननी है| जिसके वशीभूत होकर जाट भी ब्राह्मणों द्वारा बताये हुए कर्मकांडो जैसे मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाना, अनावश्यक तीर्थयात्राए करना आदि को ही धर्म मान लेते है| यह भी एक प्रकार का ब्राहमणवाद ही है|

    जाट स्वभाव से तर्कशील है| परिश्रमी है| हो सकता है वह कुछ समय तक इन कर्मकांडो में फस जाये| लेकिन जब फिर से जाट की तार्किक बुद्धि आस्था पर हावी होती है तो उसे समझ आता है कि जिन कर्मकांडो को वह धर्म समझ रहा है| वास्तव में वह ब्राहमणों का बुना गया जाल है, एक छलावा है| परन्तु यक्ष प्रश्न फिर वही| अगर यह धर्म नहीं तो फिर धर्म क्या है|

    ऐसी स्थिति में जाट फिर से उसी वैचारिक अंतर्द्वंद का सामना करते है| जाट अब धर्म के विकल्पों की ओर आकर्षित होते है| धर्म के ये विकल्प कभी आर्यसमाज के रूप में सामने आते है| कभी कोई डेरे वाला बाबा उसको इंसान बनाने का स्वप्न दिखाता है| कभी कोई सतलोक आश्रम (रामपाल वाला) कबीरपंथ की राह दिखाता है| ये सारे विकल्प धर्म के बाज़ार के प्रोडक्ट है| जिसकी जितनी मार्केटिंग उसके उतने ही यूजर या यूँ कहे कि अनुयायी| क्योंकि जाट पहले से ही ब्राह्मणों द्वारा अपभ्रंश किये हुए हिन्दू धर्म से त्रस्त है| इसलिए उसे ये विकल्प प्रयोग करना ज्यादा सुविधाजनक लगता है| यही वजह है कि जब आर्यसमाज मार्केट में आया तो जाटो ने उसे हाथो हाथ लिया क्योंकि यह कर्मकांडो को ख़त्म करने की बात करता है| लेकिन यहाँ भी लोगो ने व्यक्तिवाद को बढ़ावा दिया|

    कोई माने या न माने लेकिन अगर आज कोई सर्वे करे तो सबसे ज्यादा आर्यसमाज को मानने वाले, बाबाओ के डेरो में जाने वाले जाट ही मिलेंगे| और इसकी वजह है जाटो की धर्म को लेकर वैचारिक असमंजस की स्थिति| एक कटु सत्य यह भी है कि अगर सतलोक आश्रम या सच्चा सौदा के केस में प्रशासन को हिंसक प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा तो इसके पीछे इन बाबाओ के जाट अनुयायियों की एक बड़ी फौज है| जाटो की लड़ाकू प्रवृत्ति का इन बाबाओ द्वारा गलत प्रयोग किया गया है|

    जाटो की धर्म को लेकर जो मनोस्थिति है उसे आप शहीद भगत सिंह की विचारधारा से समझ सकते है| अपने अंतिम समय में वह भी इस स्थिति से दो-चार हुए| अंत में वैचारिक झंझावातो में उलझकर उन्होंने स्वयं को नास्तिक घोषित करना ही उचित समझा| सर छोटूराम ने भी जाटो को धर्म से दूर रहने के सलाह दी थी तो इसकी एक वजह है| जाट जैसी कमेरी कौम के लिए धर्म एक बंधन की तरह है| यह आपको अकर्मण्य बनाता है| दुनिया के किसी भी धर्म को उठा लीजिये सब में कुछ न कुछ बिना मतलब की और दकियानूसी बातें भरी पड़ी है| एक तर्कशील व्यक्ति उन बातो को स्वीकार नहीं कर सकता| वही शहीद भगत सिंह ने किया था| वैसे सब जाटो को भगत सिंह बनने की जरूरत नहीं है| आज के दौर में जाट यदि स्वयं को इन धार्मिक बन्धनों, अंधभक्ति और कर्मकांडो से मुक्त कर पाए तो वह भी बड़ी बात होगी|

    कहते है कि हिम्मत का हिमायती भगवान्| नास्तिक बनना ज़रूरी नहीं परन्तु स्वयं को किसी धार्मिक विचारधारा का आस्तिक भी मत बनाओ| इन बाबाओ से, कर्मकांडो से दूर रहो| धर्म के आश्रित वो होते है जिन्हें स्वयं के सामर्थ्य में विश्वास नहीं| जाट तुम परिश्रमी हो, संघर्षशील, स्वछंद प्रवृत्ति के हो| अपनी स्वाभाविक वृत्ति के अनुकूल चलो| धर्म के बन्धनों से दूर रहो| तुम अपनी राह खुद बनाना जानते है| उसी पर चलो| यही जाट का धर्म है|
    I have a fine sense of the ridiculous, but no sense of humor.

  5. The Following 2 Users Say Thank You to ayushkadyan For This Useful Post:

    neel6318 (September 4th, 2017), sanjeev_balyan (September 8th, 2017)

  6. #24
    जाट स्वभाव से तर्कशील है| परिश्रमी है|

    Excellent!

  7. #25
    Quote Originally Posted by ayushkadyan View Post
    जाट बहुत ज्यादा कन्फ्यूज है धर्म को लेकर| कभी ये आर्यसमाजी बन जाते है| कभी किसी बाबा की शरण में पहुँच जाते है| कभी कांवड़ लेके चल पड़ते है| इसकी वजह है कि जाट तर्क और आस्था में सामंजस्य नहीं बना पाते| जहाँ तर्क हावी हो जाते है वहाँ धार्मिक आस्था क्षीण हो जाती है| जहाँ आस्था सर्वोपरि होती है वहाँ तर्कों के लिए जगह नहीं बचती है|
    आस्था और तर्क, धार्मिक विचारधारा के दो ध्रुव है जो कभी एक नहीं हो सकते है| जाट समुदाय इसी विचारधारा के द्वन्द में फंसा हुआ है| जब यह धार्मिक आस्था वैचारिक तर्कों पर हावी हो जाती तो उसका परिणाम कर्मकांड के रूम में परिलक्षित होता है| यह आपकी तर्कशीलता को लील जाता है| इस स्थिति में ब्राह्मणों द्वारा चालित कर्मकांड आपको धर्म का ही एक अंग प्रतीत होता है| यह स्थिति धर्मिक उन्माद और अन्धविश्वास की जननी है| जिसके वशीभूत होकर जाट भी ब्राह्मणों द्वारा बताये हुए कर्मकांडो जैसे मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाना, अनावश्यक तीर्थयात्राए करना आदि को ही धर्म मान लेते है| यह भी एक प्रकार का ब्राहमणवाद ही है|

    जाट स्वभाव से तर्कशील है| परिश्रमी है| हो सकता है वह कुछ समय तक इन कर्मकांडो में फस जाये| लेकिन जब फिर से जाट की तार्किक बुद्धि आस्था पर हावी होती है तो उसे समझ आता है कि जिन कर्मकांडो को वह धर्म समझ रहा है| वास्तव में वह ब्राहमणों का बुना गया जाल है, एक छलावा है| परन्तु यक्ष प्रश्न फिर वही| अगर यह धर्म नहीं तो फिर धर्म क्या है|

    ऐसी स्थिति में जाट फिर से उसी वैचारिक अंतर्द्वंद का सामना करते है| जाट अब धर्म के विकल्पों की ओर आकर्षित होते है| धर्म के ये विकल्प कभी आर्यसमाज के रूप में सामने आते है| कभी कोई डेरे वाला बाबा उसको इंसान बनाने का स्वप्न दिखाता है| कभी कोई सतलोक आश्रम (रामपाल वाला) कबीरपंथ की राह दिखाता है| ये सारे विकल्प धर्म के बाज़ार के प्रोडक्ट है| जिसकी जितनी मार्केटिंग उसके उतने ही यूजर या यूँ कहे कि अनुयायी| क्योंकि जाट पहले से ही ब्राह्मणों द्वारा अपभ्रंश किये हुए हिन्दू धर्म से त्रस्त है| इसलिए उसे ये विकल्प प्रयोग करना ज्यादा सुविधाजनक लगता है| यही वजह है कि जब आर्यसमाज मार्केट में आया तो जाटो ने उसे हाथो हाथ लिया क्योंकि यह कर्मकांडो को ख़त्म करने की बात करता है| लेकिन यहाँ भी लोगो ने व्यक्तिवाद को बढ़ावा दिया|

    कोई माने या न माने लेकिन अगर आज कोई सर्वे करे तो सबसे ज्यादा आर्यसमाज को मानने वाले, बाबाओ के डेरो में जाने वाले जाट ही मिलेंगे| और इसकी वजह है जाटो की धर्म को लेकर वैचारिक असमंजस की स्थिति| एक कटु सत्य यह भी है कि अगर सतलोक आश्रम या सच्चा सौदा के केस में प्रशासन को हिंसक प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा तो इसके पीछे इन बाबाओ के जाट अनुयायियों की एक बड़ी फौज है| जाटो की लड़ाकू प्रवृत्ति का इन बाबाओ द्वारा गलत प्रयोग किया गया है|

    जाटो की धर्म को लेकर जो मनोस्थिति है उसे आप शहीद भगत सिंह की विचारधारा से समझ सकते है| अपने अंतिम समय में वह भी इस स्थिति से दो-चार हुए| अंत में वैचारिक झंझावातो में उलझकर उन्होंने स्वयं को नास्तिक घोषित करना ही उचित समझा| सर छोटूराम ने भी जाटो को धर्म से दूर रहने के सलाह दी थी तो इसकी एक वजह है| जाट जैसी कमेरी कौम के लिए धर्म एक बंधन की तरह है| यह आपको अकर्मण्य बनाता है| दुनिया के किसी भी धर्म को उठा लीजिये सब में कुछ न कुछ बिना मतलब की और दकियानूसी बातें भरी पड़ी है| एक तर्कशील व्यक्ति उन बातो को स्वीकार नहीं कर सकता| वही शहीद भगत सिंह ने किया था| वैसे सब जाटो को भगत सिंह बनने की जरूरत नहीं है| आज के दौर में जाट यदि स्वयं को इन धार्मिक बन्धनों, अंधभक्ति और कर्मकांडो से मुक्त कर पाए तो वह भी बड़ी बात होगी|

    कहते है कि हिम्मत का हिमायती भगवान्| नास्तिक बनना ज़रूरी नहीं परन्तु स्वयं को किसी धार्मिक विचारधारा का आस्तिक भी मत बनाओ| इन बाबाओ से, कर्मकांडो से दूर रहो| धर्म के आश्रित वो होते है जिन्हें स्वयं के सामर्थ्य में विश्वास नहीं| जाट तुम परिश्रमी हो, संघर्षशील, स्वछंद प्रवृत्ति के हो| अपनी स्वाभाविक वृत्ति के अनुकूल चलो| धर्म के बन्धनों से दूर रहो| तुम अपनी राह खुद बनाना जानते है| उसी पर चलो| यही जाट का धर्म है|
    excellent analysis
    The never-ending task : Self Improvement

  8. The Following User Says Thank You to sanjeev_balyan For This Useful Post:

    neel6318 (September 9th, 2017)

  9. #26
    Ayush ji, mere zehan mein ek baat aayi aapke iss thread ke title ko leke. wo ye ki, aapko "never ending story" nahi balki "never ending defame" se address karna chahiye tha. ab no more Miss Talwar ko deemag se nikal do. That truely is never ending story for us!

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