Originally Posted by
dndeswal
सन् 2004 की बात है। उन दिनों मोबाइल फोन का चलन भारत में शुरु ही हुआ था और सब के पास मोबाइल फोन होते भी नहीं थे।
दिल्ली की सीमा पर हरयाणा में बहादुरगढ़ के पास एक गांव का नई उम्र का लड़का प्रधान बन गया, उसने मोबाइल फोन खरीद लिया। काम के सिलसिले में उसे कभी-कभी दिल्ली जाना पड़ता था। उन दिनों दूसरे राज्य में प्रवेश करने पर एक रुपये की "रोमिंग फीस" प्री-पेड फोन से अपने आप कट जाती थी।
एक दिन वह अपनी प्रधानी की डींग हांकने लगा। अपने दोस्तों से बोला - यार, मैं जब भी दिल्ली जाता हूं तो ये मोबाइल वाले बॉर्डर पार करते ही नेग का एक रुपय्या पहले ही ले लेते हैं। क्या करूं?
उसका एक दोस्त बोला - अरै प्रधान, तू क्यूं सत्यवादी हरिश्चन्द्र की औलाद बणा फिरै सै? उन साळे मोबाइल आळां नै बतावै क्यूं सै अक मैं दिल्ली में सूँ !!