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Thread: केवळ जी अर बारां घरआळी

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  1. #1

    केवळ जी अर बारां घरआळी

    एक समय री बात हैं केवळ जी अर बारां घरआळी सूर्यवंशम फिल्म सेट मैक्स टीवी माथे देख ने दोनउ सोणे री तैयारी कर रिह्या हां.
    केवळ जी रे घरआळी बोल्या - अजी सुणो हो टिपुड़ा रा पापा थे मारो मोबाइल चार्ज करवा ने राखदो ,काले आपणे आईदान जी घरां जावणो हैं बठै लाइट री घणी तकलीफ़ हैं।
    केवळ जी बोल्या- टिपुड़ा रा माँ थारी सगळी बातां साच्ची पण रातरां टेम मोबाइल चार्ज नी मेलणो मोबाइल रे मायने हब्बीड़ (धमाको) हो जावे हैं, म्हारे दोस्त अरविन्द जी रे टाबरां लारला दिनां रातरां मोबाइल मेलियौ हो अर घणी देर चार्ज होवण रे कारण मोबाइल में हब्बीड़ बाज्यो हो।
    केवळ जी रे घरआळी बोल्या - टिपुड़ा रा पापा थे मन्ने इत्ती भोळी समझी ही के?? मैं तो म्हारे मोबाइल रे मायने सूं बैटरी पेलां ज बाहरे काढ़ दी हैं।
    जय भारत

  2. #2
    Quote Originally Posted by SALURAM View Post
    केवळ जी रे घरआळी बोल्या - टिपुड़ा रा पापा थे मन्ने इत्ती भोळी समझी ही के?? मैं तो म्हारे मोबाइल रे मायने सूं बैटरी पेलां ज बाहरे काढ़ दी हैं।
    सन् 2004 की बात है। उन दिनों मोबाइल फोन का चलन भारत में शुरु ही हुआ था और सब के पास मोबाइल फोन होते भी नहीं थे।


    दिल्ली की सीमा पर हरयाणा में बहादुरगढ़ के पास एक गांव का नई उम्र का लड़का प्रधान बन गया, उसने मोबाइल फोन खरीद लिया। काम के सिलसिले में उसे कभी-कभी दिल्ली जाना पड़ता था। उन दिनों दूसरे राज्य में प्रवेश करने पर एक रुपये की "रोमिंग फीस" प्री-पेड फोन से अपने आप कट जाती थी।


    एक दिन वह अपनी प्रधानी की डींग हांकने लगा। अपने दोस्तों से बोला - यार, मैं जब भी दिल्ली जाता हूं तो ये मोबाइल वाले बॉर्डर पार करते ही नेग का एक रुपय्या पहले ही ले लेते हैं। क्या करूं?


    उसका एक दोस्त बोला - अरै प्रधान, तू क्यूं सत्यवादी हरिश्चन्द्र की औलाद बणा फिरै सै? उन साळे मोबाइल आळां नै बतावै क्यूं सै अक मैं दिल्ली में सूँ !!
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  3. The Following User Says Thank You to dndeswal For This Useful Post:

    SALURAM (October 3rd, 2017)

  4. #3
    Quote Originally Posted by dndeswal View Post
    सन् 2004 की बात है। उन दिनों मोबाइल फोन का चलन भारत में शुरु ही हुआ था और सब के पास मोबाइल फोन होते भी नहीं थे।


    दिल्ली की सीमा पर हरयाणा में बहादुरगढ़ के पास एक गांव का नई उम्र का लड़का प्रधान बन गया, उसने मोबाइल फोन खरीद लिया। काम के सिलसिले में उसे कभी-कभी दिल्ली जाना पड़ता था। उन दिनों दूसरे राज्य में प्रवेश करने पर एक रुपये की "रोमिंग फीस" प्री-पेड फोन से अपने आप कट जाती थी।


    एक दिन वह अपनी प्रधानी की डींग हांकने लगा। अपने दोस्तों से बोला - यार, मैं जब भी दिल्ली जाता हूं तो ये मोबाइल वाले बॉर्डर पार करते ही नेग का एक रुपय्या पहले ही ले लेते हैं। क्या करूं?


    उसका एक दोस्त बोला - अरै प्रधान, तू क्यूं सत्यवादी हरिश्चन्द्र की औलाद बणा फिरै सै? उन साळे मोबाइल आळां नै बतावै क्यूं सै अक मैं दिल्ली में सूँ !!
    हाहाहा जमानो बदलगियो पण धौलिया कपङा आळा कोनी बदळीयां पेहला भी फेंकता अर आज भी घणा ही फेंके।
    जय भारत

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