सर छोटूराम || जन्मदिन विशेष || वैचारिक प्रासंगिकता वर्तमान सन्दर्भ में
देश की आजादी से पहले जो स्थान राजा राम मोहन राय का था हिन्दू समाज के सुधारक के रूप में शायद उससे कही बढ़कर सर छोटूराम का योगदान था जाट समाज के उत्थान में| आज के दौर में जाटो की जमींदारी सर छोटूराम के अथक प्रयासों का ही परिणाम है| उन्होंने पंजाबी बनियों और ब्राहमणों के एकाधिकार को तोडा| कमेरे जाटो को उनका हक़ दिलाया| समाज में वो रुतबा दिलाया जिसके जाट हकदार थे| लेकिन इतना सब कुछ करने के बाद भी वर्तमान में ऐसा लगता है कि जाट उनके योगदान को वह महत्व देने में हिचकते है जिसके लिए जाट मसीहा जीवन पर्यंत लगे रहे|
क्या यह वैचारिक अंतर्विरोध है जो आजादी के बाद हिन्दुत्ववादी राजनीति के उद्भव से पनपा है? देश के धार्मिक विभाजन के बाद जो मुस्लिम विरोधी भावना पनपी उसका व्यापक प्रभाव हुआ| जाट समुदाय भी इससे अछूता नहीं रह पाया| हिंदूवादी संगठनों द्वारा जो राष्ट्रीयता की लहर फैलाई गयी उसमे मुस्लिमो के लिए कोई जगह नहीं है| ऐसा प्रतीत होता है कि जाट समुदाय भी इस छद्म राष्ट्रवाद की लहर में अपनी जाट पहचान को त्यागकर हिदुत्ववादी आवरण स्वीकार करने में ज्यादा सहज है| यही कारण है कि जाट मसीहा इस राष्ट्रवाद के गुबार में कही खो गए से लगते है|
हिंदूवादी संगठनों द्वारा आजादी के बाद सर छोटूराम की छवि एक ऐसे व्यक्ति की गढ़ी गयी जो अवसरवादी था| अंग्रेजो का पिट्ठू था| मुस्लिमो का हमदर्द था| अफ़सोस जाटो के एक तबके ने इस मिथ्या प्रचार को छद्म राष्ट्रवाद के अभिभूत होकर स्वीकार भी कर लिया| क्या जाट समुदाय कौम की तरक्की के लिए सर छोटूराम द्वारा किये गए अथक प्रयासों को एक स्वर में स्वीकार कर सकता है? जिस दिन ऐसा होगा जाट प्रगति के पथ पर होगा| जिस जाट गौरव का विचार सर छोटूराम ने रखा था वह यथार्थ के धरातल पर उतरेगा| परन्तु उस समय जब जाट समुदाय अपने हिन्दू आवरण को त्यागकर एक जाट के रूप में अपनी पहचान स्वीकार करेगा|
उस समय का इन्तजार रहेगा|