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Thread: जाट चिंतन

  1. #1

    जाट चिंतन

    सर छोटूराम || जन्मदिन विशेष || वैचारिक प्रासंगिकता वर्तमान सन्दर्भ में

    देश की आजादी से पहले जो स्थान राजा राम मोहन राय का था हिन्दू समाज के सुधारक के रूप में शायद उससे कही बढ़कर सर छोटूराम का योगदान था जाट समाज के उत्थान में| आज के दौर में जाटो की जमींदारी सर छोटूराम के अथक प्रयासों का ही परिणाम है| उन्होंने पंजाबी बनियों और ब्राहमणों के एकाधिकार को तोडा| कमेरे जाटो को उनका हक़ दिलाया| समाज में वो रुतबा दिलाया जिसके जाट हकदार थे| लेकिन इतना सब कुछ करने के बाद भी वर्तमान में ऐसा लगता है कि जाट उनके योगदान को वह महत्व देने में हिचकते है जिसके लिए जाट मसीहा जीवन पर्यंत लगे रहे|

    क्या यह वैचारिक अंतर्विरोध है जो आजादी के बाद हिन्दुत्ववादी राजनीति के उद्भव से पनपा है? देश के धार्मिक विभाजन के बाद जो मुस्लिम विरोधी भावना पनपी उसका व्यापक प्रभाव हुआ| जाट समुदाय भी इससे अछूता नहीं रह पाया| हिंदूवादी संगठनों द्वारा जो राष्ट्रीयता की लहर फैलाई गयी उसमे मुस्लिमो के लिए कोई जगह नहीं है| ऐसा प्रतीत होता है कि जाट समुदाय भी इस छद्म राष्ट्रवाद की लहर में अपनी जाट पहचान को त्यागकर हिदुत्ववादी आवरण स्वीकार करने में ज्यादा सहज है| यही कारण है कि जाट मसीहा इस राष्ट्रवाद के गुबार में कही खो गए से लगते है|

    हिंदूवादी संगठनों द्वारा आजादी के बाद सर छोटूराम की छवि एक ऐसे व्यक्ति की गढ़ी गयी जो अवसरवादी था| अंग्रेजो का पिट्ठू था| मुस्लिमो का हमदर्द था| अफ़सोस जाटो के एक तबके ने इस मिथ्या प्रचार को छद्म राष्ट्रवाद के अभिभूत होकर स्वीकार भी कर लिया| क्या जाट समुदाय कौम की तरक्की के लिए सर छोटूराम द्वारा किये गए अथक प्रयासों को एक स्वर में स्वीकार कर सकता है? जिस दिन ऐसा होगा जाट प्रगति के पथ पर होगा| जिस जाट गौरव का विचार सर छोटूराम ने रखा था वह यथार्थ के धरातल पर उतरेगा| परन्तु उस समय जब जाट समुदाय अपने हिन्दू आवरण को त्यागकर एक जाट के रूप में अपनी पहचान स्वीकार करेगा|
    उस समय का इन्तजार रहेगा|
    I have a fine sense of the ridiculous, but no sense of humor.

  2. The Following 4 Users Say Thank You to ayushkadyan For This Useful Post:

    akshaymalik84 (January 5th, 2018), bharti (January 6th, 2018), sukhbirhooda (February 6th, 2018), ygulia (January 5th, 2018)

  3. #2
    जय जाट जय हिन्दुत्व जय भारत

  4. The Following User Says Thank You to jaideepnain For This Useful Post:

    sukhbirhooda (February 6th, 2018)

  5. #3
    Quote Originally Posted by jaideepnain View Post
    जय जाट जय हिन्दुत्व जय भारत
    Nain Saahab ...........yo hindu kon howe hai.
    The word "EQUAL" has no meaning in human life

  6. The Following 3 Users Say Thank You to akshaymalik84 For This Useful Post:

    bharti (January 6th, 2018), cooljat (January 6th, 2018), sukhbirhooda (July 5th, 2018)

  7. #4
    Quote Originally Posted by ayushkadyan View Post
    सर छोटूराम || जन्मदिन विशेष || वैचारिक प्रासंगिकता वर्तमान सन्दर्भ में

    देश की आजादी से पहले जो स्थान राजा राम मोहन राय का था हिन्दू समाज के सुधारक के रूप में शायद उससे कही बढ़कर सर छोटूराम का योगदान था जाट समाज के उत्थान में| आज के दौर में जाटो की जमींदारी सर छोटूराम के अथक प्रयासों का ही परिणाम है| उन्होंने पंजाबी बनियों और ब्राहमणों के एकाधिकार को तोडा| कमेरे जाटो को उनका हक़ दिलाया| समाज में वो रुतबा दिलाया जिसके जाट हकदार थे| लेकिन इतना सब कुछ करने के बाद भी वर्तमान में ऐसा लगता है कि जाट उनके योगदान को वह महत्व देने में हिचकते है जिसके लिए जाट मसीहा जीवन पर्यंत लगे रहे|

    क्या यह वैचारिक अंतर्विरोध है जो आजादी के बाद हिन्दुत्ववादी राजनीति के उद्भव से पनपा है? देश के धार्मिक विभाजन के बाद जो मुस्लिम विरोधी भावना पनपी उसका व्यापक प्रभाव हुआ| जाट समुदाय भी इससे अछूता नहीं रह पाया| हिंदूवादी संगठनों द्वारा जो राष्ट्रीयता की लहर फैलाई गयी उसमे मुस्लिमो के लिए कोई जगह नहीं है| ऐसा प्रतीत होता है कि जाट समुदाय भी इस छद्म राष्ट्रवाद की लहर में अपनी जाट पहचान को त्यागकर हिदुत्ववादी आवरण स्वीकार करने में ज्यादा सहज है| यही कारण है कि जाट मसीहा इस राष्ट्रवाद के गुबार में कही खो गए से लगते है|

    हिंदूवादी संगठनों द्वारा आजादी के बाद सर छोटूराम की छवि एक ऐसे व्यक्ति की गढ़ी गयी जो अवसरवादी था| अंग्रेजो का पिट्ठू था| मुस्लिमो का हमदर्द था| अफ़सोस जाटो के एक तबके ने इस मिथ्या प्रचार को छद्म राष्ट्रवाद के अभिभूत होकर स्वीकार भी कर लिया| क्या जाट समुदाय कौम की तरक्की के लिए सर छोटूराम द्वारा किये गए अथक प्रयासों को एक स्वर में स्वीकार कर सकता है? जिस दिन ऐसा होगा जाट प्रगति के पथ पर होगा| जिस जाट गौरव का विचार सर छोटूराम ने रखा था वह यथार्थ के धरातल पर उतरेगा| परन्तु उस समय जब जाट समुदाय अपने हिन्दू आवरण को त्यागकर एक जाट के रूप में अपनी पहचान स्वीकार करेगा|
    उस समय का इन्तजार रहेगा|
    Good essay/speech! Very good!

  8. The Following User Says Thank You to neel6318 For This Useful Post:

    sukhbirhooda (July 5th, 2018)

  9. #5
    Quote Originally Posted by akshaymalik84 View Post
    Nain Saahab ...........yo hindu kon howe hai.
    "HINDU" wo hota hai jo apne verse khud define karta hai, Brahmin jaati uska ek hissa hai jo Hindu ke aage jhukne ke liye khud ko Hindu bata sakta hai. Halanki hum bhool jaate hain ki pandit jaati adar-satkar ya dostana nibhane ke liye theek hai, kintu sab jaatiyan unko free kar deti hain khud par haavi hone ke liye. Fir se, agar wo aap ke jeevan-dor ka kamaan na thaam paayein to samjho aap janm-jaat Hindu ho aur karm mein hi vishwas karte ho. Thoda sambhal ke, kyunki kuchh Brahmin yahi soch ko leke bhi havi hona chahte hain. Let them be free, but be wise!


    A message you can forward to moderators, "a request of reminder to delete any downloaded profile photo as per rules and authenticity".....because mine and Naveen's profile photo also was removed as per Jatland definition.

  10. #6
    Mandi Fandi ki sajish se bachna jaruri hai
    apne bujurgo ne hamesha karma ko mahtva diya
    hamari generation pakhand ke chakkar mein apni pehchan aur importance dono kho rai hai

    Quote Originally Posted by ayushkadyan View Post
    सर छोटूराम || जन्मदिन विशेष || वैचारिक प्रासंगिकता वर्तमान सन्दर्भ में

    देश की आजादी से पहले जो स्थान राजा राम मोहन राय का था हिन्दू समाज के सुधारक के रूप में शायद उससे कही बढ़कर सर छोटूराम का योगदान था जाट समाज के उत्थान में| आज के दौर में जाटो की जमींदारी सर छोटूराम के अथक प्रयासों का ही परिणाम है| उन्होंने पंजाबी बनियों और ब्राहमणों के एकाधिकार को तोडा| कमेरे जाटो को उनका हक़ दिलाया| समाज में वो रुतबा दिलाया जिसके जाट हकदार थे| लेकिन इतना सब कुछ करने के बाद भी वर्तमान में ऐसा लगता है कि जाट उनके योगदान को वह महत्व देने में हिचकते है जिसके लिए जाट मसीहा जीवन पर्यंत लगे रहे|

    क्या यह वैचारिक अंतर्विरोध है जो आजादी के बाद हिन्दुत्ववादी राजनीति के उद्भव से पनपा है? देश के धार्मिक विभाजन के बाद जो मुस्लिम विरोधी भावना पनपी उसका व्यापक प्रभाव हुआ| जाट समुदाय भी इससे अछूता नहीं रह पाया| हिंदूवादी संगठनों द्वारा जो राष्ट्रीयता की लहर फैलाई गयी उसमे मुस्लिमो के लिए कोई जगह नहीं है| ऐसा प्रतीत होता है कि जाट समुदाय भी इस छद्म राष्ट्रवाद की लहर में अपनी जाट पहचान को त्यागकर हिदुत्ववादी आवरण स्वीकार करने में ज्यादा सहज है| यही कारण है कि जाट मसीहा इस राष्ट्रवाद के गुबार में कही खो गए से लगते है|

    हिंदूवादी संगठनों द्वारा आजादी के बाद सर छोटूराम की छवि एक ऐसे व्यक्ति की गढ़ी गयी जो अवसरवादी था| अंग्रेजो का पिट्ठू था| मुस्लिमो का हमदर्द था| अफ़सोस जाटो के एक तबके ने इस मिथ्या प्रचार को छद्म राष्ट्रवाद के अभिभूत होकर स्वीकार भी कर लिया| क्या जाट समुदाय कौम की तरक्की के लिए सर छोटूराम द्वारा किये गए अथक प्रयासों को एक स्वर में स्वीकार कर सकता है? जिस दिन ऐसा होगा जाट प्रगति के पथ पर होगा| जिस जाट गौरव का विचार सर छोटूराम ने रखा था वह यथार्थ के धरातल पर उतरेगा| परन्तु उस समय जब जाट समुदाय अपने हिन्दू आवरण को त्यागकर एक जाट के रूप में अपनी पहचान स्वीकार करेगा|
    उस समय का इन्तजार रहेगा|
    क्रांति तभी सफल होती है जब बहुमत को उसकी आवश्यकता हो - आचार्य चाणक्य

  11. The Following 2 Users Say Thank You to anil_rathee For This Useful Post:

    neel6318 (April 26th, 2019), sukhbirhooda (July 5th, 2018)

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